कल्पना ज्ञान से बेहतर है
कल्पना ज्ञान से बेहतर ही है ज्ञान हासिल करना ही चाहिये
ज्ञान से ही सब कार्य होते है। जब तक ज्ञान नहीं होगा।
तब तक कोई कम को पूरा भी नहीं कर सकते है।
चाहे छोटा हो या बड़ा काम सब ज्ञान से जुड़ा हुआ है।
पढाई लिखाई से ज्ञान मिलता है।
खेलने कूदने से भी बहूत ज्ञान मिलता है। शारीर चुस्त दुरुस्त रहता है।
मन साफ रहता है। शारीर के तंत्रिका तंत्र सक्रीय रहते है।
खेलने कूदने से शारीर में चुस्ती फुर्ती मिलता है।
कही न कही खेलने कूदने से ज्ञान ही मिलता है।
भले वो भौतिक ज्ञान है। सबसे पहले शारीर होता है।
शरीर से ही सब कुछ जुड़ा हुआ है। ज्ञान ही है।
समाज में लोगो से बात विचार करने से भी नए नए ज्ञान मिलता है।
क्या अच्छा है? क्या बुरा है? अछे बुरे का ज्ञान होता है।
घर में संस्कार का ज्ञान मिलता है। आदर भाव का ज्ञान मिलता है।
माता बच्चे को प्यार दुलार कर के अच्छे बात सिखाते है। ये भी ज्ञान ही है।
कल्पना ज्ञान से बेहतर क्यों है? सवाल बहूत अच्छा है
कल्पना के जरिये ज्ञान को अपने जीवन में स्थापित किया जाता है।
मन लीजिये की पढाई लिखाई कर रहे है।
परीक्षा देना पढाई लिखाई का मुख्या उद्देश होता है।
जिससे की आगे के कक्षा में स्थान मिले। अच्छा अंक मिले।
इसके लिए विषय के पाठ को याद करना होता है।
जब विषय के पाठ याद नहीं होता है।
तब बारम्बार अपने पाठ को पढ़ा जाता है।
अपने मन में विषय के पाठ को याद करने का प्रयाश किया जाता है।
याद करने का प्रयास करना कल्पना ही है। जब कल्पना करते है।
तब विषय के पाठ के शब्द मन में उभरने लगते है।
क्योकि मन विषय के पाठ को कई बात पढ़ चूका होता है।
तब कल्पना कर के याद को ताजा किया जाता है। ज्ञान एक बार में मिल जाता है।
जब तक ज्ञान को तजा नहीं करेंगे।
तब तक ज्ञान कोई कम का नही है। ज्ञान है।
तो ज्ञान सक्रीय होना चाहिए। जब तक ज्ञान सक्रीय नहीं होगा।
तब तक ज्ञान किस काम का होगा।
ज्ञान को सक्रीय करने के लिए कल्पना करना ही होगा।
इसलिए कल्पना ज्ञान से बेहतर है।
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