तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) धार्मिक, पौराणिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक तथा सामाजिक सभी पहलुओं को समाहित किया गया है।
तुलसी विवाह : एक संपूर्ण विवेचन
प्रस्तावना
भारतीय संस्कृति में धर्म, भक्ति और परंपराओं का अद्भुत संगम है। यहाँ हर पर्व, हर उत्सव किसी न किसी आध्यात्मिक अर्थ से जुड़ा हुआ है। इन्हीं पवित्र पर्वों में से एक है तुलसी विवाह, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी या द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। इसे देवोत्थान एकादशी के बाद का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान माना गया है।
तुलसी विवाह न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय गृहस्थ जीवन और सामाजिक परंपराओं का प्रतीक भी है। यह वह अवसर है जब भगवान विष्णु देव-निद्रा से जागते हैं और माता तुलसी के साथ उनका शुभ विवाह संपन्न होता है। इस विवाह का महत्व इतना अधिक है कि इसे देवताओं का विवाह महोत्सव कहा जाता है।
तुलसी का आध्यात्मिक महत्व
भारतीय जीवन में तुलसी का स्थान अत्यंत उच्च है। उसे “देवी” कहा गया है, क्योंकि तुलसी के पौधे में देवी तुलसी (वृंदा) का निवास माना गया है।
शास्त्रों में कहा गया है
“तुलसीदलेन्येन पूजयेच्छकृष्णं तत्क्षणात् प्रीयते।”
(विष्णु धर्मसूत्र)
अर्थात् – जो व्यक्ति भगवान विष्णु को तुलसीदल से पूजता है, भगवान तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं।
तुलसी के पौधे को हर हिंदू घर में विशेष स्थान प्राप्त है। इसे घर के आँगन, तुलसी चौरा या गमले में लगाकर प्रतिदिन पूजने की परंपरा है। यह न केवल धार्मिकता का प्रतीक है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी पौधा है।
तुलसी देवी का पौराणिक जन्म
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार तुलसी देवी का जन्म धर्मध्वज नामक राजा के घर हुआ था। उनका नाम वृंदा रखा गया। वे अत्यंत रूपवती, तपस्विनी और भगवान विष्णु की महान भक्त थीं। उनका विवाह दैत्यराज जालंधर से हुआ, जो अत्यंत बलशाली और वीर था।
जालंधर भगवान शिव के तेज से उत्पन्न हुआ था। वृंदा की पतिव्रता शक्ति के कारण ही जालंधर को कोई देवता पराजित नहीं कर पा रहा था। अंततः विष्णु ने जालंधर का वध करने के लिए एक युक्ति रची।
जालंधर-वृंदा की कथा
देवताओं ने भगवान विष्णु से विनती की कि जालंधर का अंत करें, क्योंकि वह अधर्म का मार्ग अपना चुका था। विष्णु ने जालंधर के रूप में वृंदा के सामने जाकर उसके पतिव्रत धर्म को भंग किया।
जब वृंदा को इस छल का पता चला, तो वह क्रोधित होकर विष्णु को शाप देती है
“हे विष्णु! तुमने मेरे पतिव्रत धर्म का अपमान किया है। अब तुम शिला बनोगे।”
इस शाप के प्रभाव से भगवान विष्णु शालिग्राम शिला के रूप में परिवर्तित हो गए। वृंदा ने फिर स्वयं को अग्नि में समर्पित कर दिया।
भगवान विष्णु ने वृंदा को आशीर्वाद दिया कि
“हे वृंदा! तुम पृथ्वी पर तुलसी के रूप में उत्पन्न होगी, और जब-जब मेरा विवाह होगा, पहले तुम्हारे साथ विवाह किया जाएगा।”
इस प्रकार से तुलसी विवाह की परंपरा प्रारंभ हुई।
तुलसी विवाह की तिथि और विधि
तुलसी विवाह कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी (देवोत्थान एकादशी) से प्रारंभ होकर द्वादशी या पूजन की अनुकूल तिथि तक किया जाता है। विभिन्न क्षेत्रों में यह तिथि थोड़ी भिन्न हो सकती है
उत्तर भारत में — कार्तिक शुक्ल द्वादशी
महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा में — एकादशी के दिन
दक्षिण भारत में — द्वादशी या त्रयोदशी
इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन प्रातः या सायंकाल शुभ मुहूर्त में किया जाता है।
तुलसी विवाह की तैयारी
1. तुलसी चौरा सजाना
इस दिन तुलसी के पौधे को साफ कर, स्नान कराकर, गंगा जल से अभिषेक किया जाता है। फिर उसे रंग-बिरंगे कपड़ों, फूलों, गन्ने, आमपत्रों और दीपों से सजाया जाता है।
2. भगवान विष्णु (शालिग्राम) की स्थापना
तुलसी के सामने शालिग्राम जी या भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित की जाती है।
3. मंडप बनाना
दोनों ओर तुलसी और विष्णु के लिए एक छोटा मंडप (विवाह मंडप) बनाया जाता है, जिसे केले के पत्तों, नारियल, आमपत्रों और पुष्पों से सजाया जाता है।
4. वैवाहिक सामग्री
कुमकुम, चावल, दीपक, नारियल, मिठाई, हल्दी, पान, सुपारी, वस्त्र आदि सामग्री तैयार की जाती है।
तुलसी विवाह की संपूर्ण पूजा विधि
1. मंगलाचरण और संकल्प:
पूजा की शुरुआत गणेश वंदना से होती है। फिर व्रती संकल्प करता है कि वह भगवान विष्णु और तुलसी माता का विवाह करेगा।
2. अभिषेक:
तुलसी और शालिग्राम जी को पंचामृत और गंगाजल से स्नान कराया जाता है।
3. श्रृंगार:
तुलसी को लाल साड़ी, चूड़ी, बिंदी आदि से सजाया जाता है, जबकि शालिग्राम जी को पीताम्बर पहनाया जाता है।
4. विवाह विधि:
ब्राह्मण या गृहस्थ पुरोहित विवाह मंत्रों का उच्चारण करते हैं —
वरमाला पहनाना
कन्यादान
सप्तपदी
मंगलफेरे
5. आशीर्वाद और आरती:
विवाह के बाद शालिग्राम और तुलसी की आरती की जाती है और प्रसाद वितरित किया जाता है।
तुलसी विवाह का धार्मिक महत्व
1. देवताओं का जागरण काल:
देवोत्थान एकादशी को देवता चार माह की निद्रा से जागते हैं, अतः इसी दिन से सभी मांगलिक कार्य प्रारंभ किए जाते हैं।
2. विवाह पर्व की शुरुआत:
तुलसी विवाह के बाद हिंदू समाज में विवाहों का शुभ मुहूर्त प्रारंभ होता है।
3. आध्यात्मिक अर्थ:
तुलसी और विष्णु का विवाह भक्ति और भोग, आत्मा और परमात्मा, प्रकृति और पुरुष के मिलन का प्रतीक है।
4. मोक्ष का मार्ग:
तुलसी विवाह में सम्मिलित होने या उसका आयोजन करने से मनुष्य को अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।
पौराणिक संदर्भ
तुलसी विवाह का वर्णन पद्म पुराण, स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, गरुड़ पुराण आदि में मिलता है। इन ग्रंथों में तुलसी की महिमा और विष्णु के साथ उसके दिव्य मिलन का विस्तार से उल्लेख है।
पद्म पुराण में कहा गया है
“तुलसी दलमात्रेण जलस्य च तुला भवेत्।
तुलसीस्मरणेनापि पापनं नाशमाप्नुयात्॥”
अर्थ — केवल तुलसीदल अर्पण करने या उसका स्मरण करने से ही पापों का नाश हो जाता है।
तुलसी विवाह के सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू
तुलसी विवाह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता का प्रतीक भी है। गाँवों और शहरों में इसे सामूहिक रूप से मनाया जाता है। स्त्रियाँ गीत गाती हैं, विवाह जैसा उत्सव मनाती हैं।
कुछ स्थानों पर तुलसी विवाह को कन्या विवाह का रूपक मानकर गरीब परिवारों की कन्याओं का विवाह भी इसी दिन कराया जाता है। इससे समाज में दान, सहयोग और सहानुभूति की भावना उत्पन्न होती है।
लोक गीत और पारंपरिक अनुष्ठान
तुलसी विवाह के समय कई पारंपरिक गीत गाए जाते हैं, जैसे
“श्री तुलसी माता विवाह रचायो, विष्णु भगवान सजे वरराजा...”
महिलाएँ ‘मेहंदी’, ‘हल्दी’, ‘बारात स्वागत’ और ‘फेरे’ जैसे विवाह संस्कारों को उत्सव रूप में करती हैं।
वैज्ञानिक दृष्टि से तुलसी का महत्व
आधुनिक विज्ञान भी तुलसी के गुणों को स्वीकार करता है। तुलसी में यूजेनॉल, लिनोलिक एसिड, कैम्फर आदि औषधीय तत्व पाए जाते हैं जो —
श्वसन तंत्र को शुद्ध करते हैं
रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाते हैं
मच्छरों और कीटों को दूर रखते हैं
मानसिक शांति प्रदान करते हैं
इसलिए तुलसी को ‘एलिक्सिर ऑफ लाइफ’ यानी जीवन अमृत कहा गया है।
तुलसी विवाह और पर्यावरण संरक्षण
भारतीय संस्कृति में वृक्षों को देवता माना गया है। तुलसी विवाह इस भावना को और सशक्त करता है, क्योंकि इसमें पौधे को जीवंत रूप में पूजने की परंपरा है। इससे पर्यावरण के प्रति श्रद्धा और संवेदना का भाव उत्पन्न होता है।
तुलसी विवाह से जुड़े धार्मिक व्रत
कई महिलाएँ इस दिन तुलसी विवाह व्रत रखती हैं। व्रतधारी स्त्रियाँ प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं, पूरे दिन उपवास रखती हैं और सायंकाल विवाह अनुष्ठान के बाद व्रत खोलती हैं।
तुलसी विवाह के आस पास के पर्व
तुलसी विवाह के बाद कार्तिक पूर्णिमा तक कई धार्मिक पर्व आते हैं
गोवर्धन पूजा
भाई दूज
छठ पूजा
कार्तिक पूर्णिमा स्नान
इन सभी का संबंध तुलसी पूजा और कार्तिक मास की पवित्रता से है।
तुलसी विवाह का दार्शनिक अर्थ
तुलसी विवाह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है।
तुलसी प्रकृति, भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है।
विष्णु पुरुष, सृष्टिकर्ता और शक्ति के धारक हैं।
उनका मिलन दर्शाता है कि जब भक्ति (तुलसी) भगवान (विष्णु) से मिलती है, तब मोक्ष की प्राप्ति होती है।
तुलसी विवाह और गृहस्थ धर्म
तुलसी विवाह गृहस्थ जीवन के आदर्श का भी प्रतीक है।
यह बताता है कि विवाह केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आत्मिक संबंध है।
तुलसी और विष्णु का विवाह भक्ति, निष्ठा और समर्पण का आदर्श उदाहरण है।
तुलसी विवाह का क्षेत्रीय स्वरूप
भारत के विभिन्न राज्यों में तुलसी विवाह को अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है
महाराष्ट्र: इसे देव दिवाळी के साथ मनाया जाता है। तुलसी को नववधू की तरह सजाया जाता है।
गुजरात: यहाँ इसे “तुलसी विवाह उत्सव” कहा जाता है और सामूहिक पूजन होता है।
उत्तर प्रदेश / बिहार: तुलसी चौरा को मिट्टी से बनाया जाता है और गीतों के साथ विवाह संपन्न होता है।
दक्षिण भारत: तुलसी विवाह के दिन विशेष रूप से दीपमालाएँ सजाई जाती हैं।
तुलसी विवाह के अनुष्ठान में निषेध
1. विवाह के दिन घर में झगड़ा या शोक नहीं होना चाहिए।
2. तुलसी के पौधे को बिना अनुमति या अकारण नहीं तोड़ना चाहिए।
3. रात्रि में तुलसी से पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए।
तुलसी विवाह के लाभ
1. घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है।
2. वैवाहिक जीवन में प्रेम और सामंजस्य बना रहता है।
3. पितरों की तृप्ति होती है।
4. संतान प्राप्ति और रोग निवारण का आशीर्वाद मिलता है।
तुलसी विवाह का सांस्कृतिक संदेश
तुलसी विवाह हमें सिखाता है कि :
प्रकृति की पूजा करें।
दांपत्य जीवन में पवित्रता रखें।
भक्ति और प्रेम से जीवन को पूर्ण बनाएं।
तुलसी विवाह और आधुनिक समाज
आधुनिक युग में भले ही तकनीकी और व्यावहारिक सोच बढ़ी हो, किंतु तुलसी विवाह जैसे पर्व हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखते हैं। यह हमें स्मरण कराता है कि
“जहाँ तुलसी, वहाँ हरि का वास है।”
आज भी भारत में करोड़ों लोग इस पर्व को परिवार सहित उल्लासपूर्वक मनाते हैं।
निष्कर्ष
तुलसी विवाह भारतीय संस्कृति की उस अद्भुत परंपरा का प्रतीक है जहाँ धर्म, प्रकृति, समाज और अध्यात्म का संगम होता है।
यह न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह जीवन की पवित्रता, प्रेम, और नैतिकता का उत्सव है।
तुलसी विवाह हमें सिखाता है कि
“सच्चा विवाह वही है जिसमें समर्पण, श्रद्धा और भक्ति का भाव हो।”
तुलसी माता और भगवान विष्णु के इस दिव्य मिलन से समस्त मानवता को यह संदेश मिलता है कि जब भक्ति और शक्ति एक साथ हों, तभी सृष्टि में संतुलन संभव है।