स्वर्ग और नरक मे अंतर
मन की खुशी से देखे तो स्वर्ग और नरक यही इस पृथ्वी पर है।
कहा जाता है की भक्ति-भाव, ईश्वर-आराधना से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
जब की मन मे कर्म का भाव नहीं होगा तब तक स्वर्ग जैसा सुख कभी नहीं मिलेगा।
कर्म से मनुष्य महान होता है सत्कर्म से सुख देने वाला परिणाम प्राप्त होता है।
जिसका प्रभाव जीवन भर देखने को मिलता है।
स्वयं अच्छे रहेंगे तो सब कुछ अच्छा लगेगा। अच्छे कर्म से ही पुत्र अपने माता पिता को पसंद करता है।
बचपन निराला और अज्ञानता मे होता है।
प्यार और ज्ञान से जब बच्चे पलते है तो वो आज्ञाकारी बनते है।
जिससे माता पिता का जीवन सुफल होता है।
स्वयं से प्यार करने से ही अच्छे, गुणवान, आज्ञाकारी पत्नी की प्राप्ति होता है।
जीवनभर साथ देने के साथ आज्ञा का पालन करने वाली पत्नी तभी संभव है।
जब तक की मनुष्य स्वयं अपने अंदर प्यार की भावना को अपनाकर रखे।
प्यार की भावना जीवन रखने से सुख और शांति के साथ खुशी और उल्लास भी प्राप्त होता है।
मन की खुशी जब सत्कर्म और कर्म के भाव से मिलता है तो यही पर सब सुख मिलने लग जाते है यही स्वर्ग कहलाता है।
जिसने मन के वास्तविक खुशी को नहीं समझा मिथ्या भरे खुशी मे भटकने से बना बनाया स्वर्ग भी नरक बन जाता है। मृतु के बाद आत्मा कहाँ जाता ये तो कोई नहीं जनता पर अपने जीवन को स्वर्ग बनाए रखने के लिए उस कार्य को नहीं करना चाहिए जिससे मन दुखी हो और जीवन नरक लगाने लगे।
वास्तव मे स्वर्ग और नरक जीवन मे ही है जो अंदर से महाशुश होता है और बाहर उपलब्धि दिलाता है। जैसा मन का भाव, वैसा कर्म का भाव होता है। अच्छे कर्म से जीवन सुफल और बुरे कर्म से जीवन व्यर्थ लगता है।
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