Thursday, June 19, 2025

खुद की कल्पना करो कल्पना के साम्राज्य में बहुत कुछ समाहित है जीवन के एक एक छन कल्पना से घिरा हुआ है

  

खुद की कल्पना करो

खुद की कल्पना के साम्राज्य में बहुत कुछ समाहित है।

जीवन के एक एक छन कल्पना से घिरा हुआ है।

जैसा सोचते है वैसा करते है। सोच कल्पना ही रूप है। कल्पना तो करना ही चाइये।

प्रगति का रास्ता तो कल्पना से ही खुलता है।

जब तक कल्पना नहीं करेंगे मन में उस चीज के लिए भावना नहीं उठेगी।

सांसारिक कल्पना के साथ साथ खुद की भी कल्पना करना चाइये।

सके बगैर ज्ञान अधुरा भी रह सकता है। 

सांसारिक कल्पना में सकारात्मक और नकारात्मक कल्पना दोनों ही होते है।

कुछ इच्छा पूर्ण होते है। कुछ इच्छा बाकी रह जाते है। यद्यपि कल्पना के अनुरूप कार्य भी करते है। सांसारिक कल्पना संतुलित है या असंतुलित इसका ज्ञान स्वयं के बारे में कल्पना करने से ही पता चलेगा। नहीं तो कल्पना कल्पनातीत भी हो सकता है। 

फिर वो इच्छा कभी भी पूरा नहीं हो पायेगा। जैसे संतुलन घर मेंबहारसमाज मेंलोगो के बिचकाम धंधा में बना के रखते है। वैसे ही कल्पना को भी संतुलित बनाकर रखना चाहिए। स्वयं के बारे में कल्पन करने से एक एक चीज के बारे में ज्ञान होगा। पता चलेगा की कहाँ पर क्या गलती हो रहा है। क्या सही चल रहा है।

किस ओर सक्रीय होना चाहिए। जो गलत हो रहा है।

कौन से कार्य गतिविधि को बंद कारना होगा। ये चीजें का एहसास खुद के बारे में कल्पना करने से ही होगा। जीवन में संतुलन बनाये रखने के साथ साथ अपने कल्पना को भी संतुलित रखना चाहिये।  

  खुद की कल्पना 

No comments:

Post a Comment

Post

जीवन क्यों दुखी रहता है।

परमात्मा दिया हुआ मानव जीवन सुख दुख से घिरा रहता है मानव जीवन में सुख दुख दोनों बारी बारी आता है। परमात्मा ने मनुष्य को अंतहीन दुख और बेपनाह...