Saturday, June 21, 2025

रचनात्मक कल्पना का पहला प्रभाव बात चित की कला मनुष्य को बहुत कुछ देता है।

  

रचनात्मक कल्पना खुशहाल जीवन में रंग भर देता है 

जीवन में जो रंग रूप की कमी होते है। लोग के माध्यम से उसको भरने का प्रयास करते है के अनुसार जरूरत की विषय वस्तु को विशेष तौर पर खरीदते है। अपने जीवन को ख़ुशनुमा बनाते है। संतुलित  मनुष्य के जीवन में ख़ुशी भर देता है। कल्पना हर कोई करता है। चाहे बच्चा हो या बूढ़ा सबसे पहले जीवन के रंग को कल्पना में ही ढालते है। तब उसके अनुरूप अपने जीवन में परिवर्तन करने का प्रयास करते है।

 

रचनात्मक कल्पना मनुष्य को अपने जीवन में बहुत कुछ सिखाता भी है 

पहला प्रभाव बात विचार पर पड़ता है। बात चित की कला मनुष्य को बहुत कुछ देता है। आदर सम्मान, छोटे बड़े का भेद भाव हर कोई जनता है  पर जुबान के माध्यम से जो आदरमान सम्मानअपनापन जुबान के माध्यम से ज्ञान मिलता है। जो रचनात्मककल्पना के बगैर नहीं हो सकता है। चाहे कोई भी कल्पना हो हर वक़्त कल्पना में शब्द ही उभरते है। इसलिए रचनात्मक कल्पना का सबसे पहला प्रभाव जुबान पर पड़ता है। बात बिचार सकारात्मक होता है। सकारात्मक बात विचार मन को बहुत ख़ुशी देता है। एक एक शब्द जीवन के खुशहाली में कमी को उजागर करते है। रचनात्मक कल्पना को मनुष्य पूरा करने का प्रयास करता है।

रक्षा बंधन औन लाइन अपने भाइयो को भेजे जो दूर शहर गाँव में रहते है जहा हर समय जाना संभव नहीं है अभी ऑनलाइन बजे समय पर मिल जायेगा

  रक्षा बंधन औन लाइन अपने भाइयो को भेजे जो दूर शहर गाँव में रहते है जहा हर समय जाना संभव नहीं है अभी ऑनलाइन बजे समय पर मिल जायेगा   

Raksha Bandhan Send online to your brothers who live in distant cities, villages, where it is not possible to go all the time, now they will be available on time online.

 

https://amzn.to/3j3n2oc

M.R.P.:    ₹499.00

Price:       ₹90.00

You Save:       ₹409.00 (82%)

Inclusive of all taxes

रक्षा बंधन औन लाइन

 

M.R.P.:    ₹999.00

Price:       ₹149.00

You Save:       ₹850.00 (85%)

Inclusive of all taxes

 

 

 

 
 
 
 

M.R.P.:    ₹299.00

Price:       ₹165.00 Fulfilled

You Save:       ₹134.00 (45%)

Inclusive of all taxes

 

 

 

 

https://amzn.to/3iZtooC

M.R.P.:    ₹200.00

Price:       ₹147.00

You Save:       ₹53.00 (27%)

Inclusive of all taxes

 

 
 
 

M.R.P.:    ₹499.00

Price:       ₹162.00

You Save:       ₹337.00 (68%)

Inclusive of all taxes

 

यूकेजी (Ukg) और केजी (Kg) में प्रवेश के लिए कौन सा ज्ञान (Knowledge) आवश्यक है? भारतीय प्रणाली में ज्ञान की तुलना में प्रमाणपत्र क्यों महत्वपूर्ण हैं?

  

शिक्षा का ज्ञान  (Knowledge of education)

 

यूकेजी (ukg) और केजी (kg) में प्रवेश के लिए कौन सा शिक्षा का ज्ञान आवश्यक है?

यूकेजी और केजी में प्रवेश के  लिए  बच्चे को अपना नाम अपने माता पिता का नाम बताने आना चाहिए। किताबी किसी भी ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। क्योकि पढाई लिखाई की सुरुआत स्कूल से होते है। सिर्फ बच्चे के समझ का अंदाजा लगाया जाता है। क बच्चे को यूकेजी या केजी में प्रवेश लिया जाए। बच्चो को सिर्फ सब्जी की पहचान या फल का पहचान होना चाहिए।

घर में उपयोग होने वाले वस्तु के पहचान होने ज़रूरी है।

बच्चा कितना साफ़ बोल पाता है। बच्चे का उम्र ३ साल से बड़ा और ४ साल से छोटा है। तो इसके अनुसार से केजी में प्रवेश लिया जाता है। बच्चा यदि पहले से कुछ किताबी ज्ञान घर में पढ़ा है। जैसे A B C D शब्द या 1 2 3 गिनती सिखा है। छोटे साधारण कविता घर में दुसरे बड़े बच्चो से सिखा हो। उम्र ४ साल से बड़ा और ५ साल से छोटा है।

यूकेजी में प्रवेश लिया जाता है। यूकेजी और केजी में प्रवेश के लिए इस प्रकार के ज्ञान की आवश्यकता होता है।

मेरे हिसाब से बच्चा जब तक ५ साल का न हो उनके ऊपर पढाई का बोझ डालना ठीक नहीं है। आधुनिक सभ्यता बहूत जल्दी बच्चे पर पढाई का बोझ डाल रहा है। हो सके तो जब तक बच्चा यूकेजी या केजी में प्रवेश के पहले किसी भी प्रकार का किताबी ज्ञान का बोझ न डाला जाये। बच्चे मासूम होते है।

  शिक्षा का ज्ञान 

बच्चे उम्र और सामान्य शिक्षा का ज्ञान जो घर के वस्तु के नाम के ज्ञान के हिसाब से यूकेजी या केजी में प्रवेश होते है।

न कि किसी किताबी ज्ञान के माध्यम से प्रवेश होते है। इसलिए बच्चे को स्कूल में प्रवेश के पहले किसी भी प्रकार का किताबी ज्ञान का बोझ न डाले। बच्चो को स्कूल जाने के पहले कुछ सिखाना चाह रहे है। तो सामान्य ज्ञान के तौर पर घर के बस्तु के नाम सिखा सकते है। इतने ही यूकेजी और केजी में प्रवेश के लिए ज्ञान आवश्यक है।   

 

काम के संदर्भ में कर्मचारियों को दिए जाने वाले सैद्धांतिक और व्यावहारिक ज्ञान (Knowledge) का अर्थ है

सैद्धांतिक ज्ञान और व्यावहारिक ज्ञान ब्यक्ति को जिम्मेदार बनता है। खास कर के काम के संदर्भ में कर्मचारियों को अपने सिद्धांत और व्यावहार में पक्का होना बहूत जरूरी है। सिद्धांत ब्यक्ति को समय पर अपने काम पर आना सिखाता है। मन लगाकर काम करना। काम के प्रति अपने जिम्मेदारी को समझना। दिए गए कार्य को जिम्मेदारी से करना।

समय का खास ख्याल रखना की दिया गया काम अपने समय पर हो।

ताकि उद्यमी को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान न हो। व्यावहारिक ज्ञान ब्यक्ति को दुसरे कामगार के बिच में समन्वय स्थापित करने में मदद करता है। जिससे किसी भी प्रकार का काम में कोई विवाद उत्पन्न नहीं होता है।

भले कामगार हो या उद्यमी दोनो के साथ समन्वय से शिक्षा का ज्ञान समान रहता है।

काम अपने जगह पर है। रहन सहन का तरीका अपने जगह पर है। भले ब्यक्ति काम में कितना ही माहिर क्यों न हो। यदि व्यावहार अच्छा नहीं है। तो वो किसी काम नहीं माना जाता है। उद्यमी के सामने वो किसी काम का नहीं होता है। अक्सर ऐसा देखा गया है। सिध्दांत उसके चरित्र को दर्शाता है। व्यावहार उसके भूमिका को दर्शाता है। इसलिए काम के संदर्भ में कर्मचारियों को दिए जाने वाले सैद्धांतिक और व्यावहारिक ज्ञान बहूत जरूरी है।       

 

भारतीय प्रणाली में शिक्षा का ज्ञान की तुलना में प्रमाणपत्र क्यों महत्वपूर्ण हैं?

ज्ञान की तुलना में प्रमाणपत्र क्यों महत्वपूर्ण हैं? ये सिर्फ भारतीय प्रणाली में नहीं बल्कि पुरे दुनिया में ऐसा ही मत है। कोई भी ब्यक्ति कही काम के तलाश में किसी ब्यावसाई के पास जाता है। अपने बारे में बताता है। ब्यावसाई उससे कुछ पूछ ताछ करता है।

इतना करने से कैसे कोई ब्यावसाई किसी अनजान ब्यक्ति पर विश्वास कर लेगा। जब तक की वो क्या जनता है? क्या तजुर्बा उसके पास है? कहाँ से आया है? इस ब्यावसाई में आने के पहले क्या कर रहा था? कहाँ कहाँ काम किया है? या नया है। काम पकड़ने के लिए सारा बात झूट तो नहीं बोल रहा है? कुछ भी हो सकता है? भारतीय सुरक्षा प्रणाली भी यही लोगो को समय समय अवगत पर कराता है।

किसी भी अनजान लोगो के संपर्क में सोच समझ कर विचार करे।

सिर्फ बात पर विश्वास नहीं करे। आये दिन हो रहे चोरी और धोखादारी से जगत विदित है। इसलिए भारतीय प्रणाली में ज्ञान की तुलना में प्रमाणपत्र महत्वपूर्ण है। ब्यक्ति कौन है? नाम पता कहाँ का है? ब्यक्ति कहाँ से है? कितना पढ़ा लिखा है? क्या क्या योग्यता उसके पास है? कौन कौन से काम में माहिर है? उसका सैद्धांतिक ज्ञान और व्यावहारिक ज्ञान कैसा है?

सब जानकारी उसके प्रमाणपत्र में अंकित होता है। विद्यालय, महाविद्यालय, प्रतिष्ठान का मोहर और हस्ताक्षर होता है। जो की उसके योग्यता और उस ब्यक्ति को प्रमाणित करता है। 

 

 



 

मानव ज्ञान के वर्गीकरण मानव के लिए विषयो का ज्ञान आवश्यक है जब तक विषय का सही ज्ञान नहीं होगा तब तक विषय वस्तु पूरी तरह से समझ नहीं आएगा

  

मानव ज्ञान के विषय और विषयों में वर्गीकरण के दृष्टिकोण की आवश्यकता है

मानव ज्ञान के वर्गीकरण के लिए विषयो का ज्ञान आवश्यक है. 

जब तक विषय का सही ज्ञान नहीं होगा तब तक विषय वस्तु पूरी तरह से समझ नहीं आएगा.

स्कूल में पढाई लिखाई में कुछ विषय होते है जिसमे शब्द, भाषा और प्रकार समझ में आता है.

गणित जोड़ना, घटाना, गुना और भाग सिखाता है.

भाषा क्षेत्रीय, राजकीय और देशीय भाषा का ज्ञान कराता है.

जो अपने राज्य के भाषा देश का भाषा और सार्वभौमिक अन्तररास्ट्रीय भाषा सिखाता है.

इतिहास पौराणिक, मध्य यूग, और वर्तमान के विषय वस्तु की जानकारी कराता है.

भूगोल खगोलीय, देश, प्रदेश, विदेश के जलबायु संरचन का ज्ञान करता है.

देश और स्थान के अनुसार जलवायु परिवर्तन और मौसन शर्दी, गर्मी और बरसात के मौसम के बारे में जानकारी कराता है.

भूमिति संरचन के आकर, प्रकार के मापने के पद्धति और बनाने और गणना करने का तरीका सिखाता है.

सबसे जटिल विषय विज्ञान जिसके तीन भाग होते है.

जीव बिज्ञान जीवन के संरचन के बारे में बताता है.

प्राणी, पशु, पक्षी, किट, पतंग, जीवाणु और विषाणु इत्यादि के शारीरिक बनावट तत्व की जानकारी, स्वभाव, प्रकृति, संरचन की जानकारी देता है. इसे प्राणी विज्ञान भी कहते है.

रसायन विज्ञान में तत्व की जानकारी, पदार्थ की जानकारी, ठोस और तरज पदार्थ की जानकारी, तत्व और पदार्थ के गुणधर्म, प्रकृति इत्यादि की जानकारी मिलता है.

भौतिक विज्ञान मशीनरी के बनाने और उसके वास्तु के गुणधर्म प्रकृति आकर प्रकार के गणना की पद्धति सिखाता है.

 

मानव ज्ञान में वर्गीकरण के अलावा भी बहूत से क्षेत्र है

मानव ज्ञान में वर्गीकरण जो महाविद्यला में अर्थशास्त्र, पुस्तपालन विज्ञान के तकनिकी अध्ययन, वाणिज्य.

ऐसे बहूत से विषय है जो आर्ट्स कॉमर्स, और साइंस के पढाई के लिए वर्गीकृत किये गए है.

 

मानव ज्ञान में ज्ञान के वर्गीकरण से ज्ञान का आयाम बढ़ता है. 

ज्ञान के वर्गीकरण में अपने क्षेत्रे के अनुसार क्या ज्ञान आवश्यक है.

उसको एक संग्रह कर के विषयों का अध्यन कर के अपने क्षेत्र में बढ़ा जाता है.

सबसे पहले खुद के मन में झक के ये निर्णय लिया जाता है की मन किस विषय के लिए उपयुक्त है.

उसके अनुसार से विषय का चयन किया जाता है.

एक मुस्ट विषय को संग्रह कर के अध्यन कर के स्नातक या डिप्लोमा कर के अपने कार्य व्यवस्था को बनाकर कमाई का माध्यम बनाकर व्यापर या सेवा में कार्य किया जाता है.

तभी सफलता मिलने के लिए विषयों में वर्गीकरण के दृष्टिकोण की आवश्यकता होता है.

 

  मानव ज्ञान के वर्गीकरण 

महिलाये आज के समय में पुरुषो साथ कदम से कदम मिलाकर हर क्षेत्र में उन्नति कर रही है

  

लडकियों के लिए शिक्षा अत्यंत आवश्यक

 

माता पिता के लाडली बेटी जो आज के समय में पुरुषो साथ कदम से कदम मिलाकर हर क्षेत्र में उन्नति कर रही है. 

कोई ऐसा क्षेत्र बाकि नहीं है जहा स्त्रीयां पुरुषो से कम हो.

कई क्षेत्र में तो स्त्रियां पुरुषो से आगे भी है खास कर स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर बहुताया में स्त्रियां आगे चल रही है.

भले प्राइवेट स्कूल हो या बच्चो के कोचिंग क्लासेज सब जगह अब स्त्रीयां विराजमान है.

 

आधुनिक समय में पुरुस के साथ स्त्री को भी बाहरी जानकारी होना अत्यंत आवशयक है. 

जिससे वो स्वयं की रक्षा कर सके और घर बैठे गृहिणी को भी चाहिए जी अपने जीवन में बाहरी संसार का पूरा ज्ञान हो.

सरकार ने हर क्षेत्र में स्त्री को प्रोत्साहन के लिए मार्ग खोल रखे है. जिससे की स्त्री को हर प्रकार के जानकारी और स्वतंत्रता मिल सके.

 

आज के समय में स्त्री को भी स्वाभिमानी होना अत्यंत आवशयक है. 

रूढी परंपरा ने जैसे महिलाओ को घर में बंद कर रखा है.

मनो जैसे महिलाये का काम सिर्फ घर में खाना बनाना और परिवार बढ़ाने की ही जिम्मेवारी हो.

अब महिलाओ को खुद के पैर पर खड़ा होना होगा.

रूढीवादी परंपरा के बंधन को तोड़ना होगा. तब जाकर दुनिया का बाहरी ज्ञान मिलेगा.

शहर हो या गाँव में अभी भी बहूत ऐसे परिवार है तो प्राचीन परम्परा को संजोकर महिलाये को ऊपर उठाने नहीं देते है.

बहूत ऐसे भी परिवार है जो महिलाये को घर के बहार तक नहीं निकालने देते है.

यहाँ तक की सैकरो ऐसे परिवार है जो खास कर ग्रामीण इलाके में बचपन में अपने बेटी को स्कूल तक नहीं भेजते है.

 

समय का दौर परिवर्तित हो रहा है. 

आज वैज्ञानिक युग चल रहा है. कुछ कर दिखाने का समय है.

हर किसी के अन्दर कोई न कोई खासियत होता है.

अपने खासियत को परिपक्व करने के इए संसार को अपने आँख से देखना बहूत जरूरी है.

अपने प्रतिभा को उभारना बहूत जरूरी है. देश तरक्की की राह पर चल रहा है.

संसार को ज्ञानवान व्यक्ति की तलाश है, जिससे आगे का समय अच्छा व्यतीत हो.

 

बेटियों के शिक्षा बचपन से ही जरूरी है. लडकियों के लिए शिक्षा कई बरसो से देखा जा रहा है.

मध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा में बेटी अव्वल आ रही है.

खुद के अच्छा नाम के साथ अपने माता को भी सम्मान के पात्र बना रही है.

शिक्षा के उच्चतम स्तर को प्राप्त कर रही है. 

 लडकियों के लिए शिक्षा 

मनुष्य के मन के बारे में जिस दिन ये पता चल जायेगा की स्वयं कितने बुरे है तो दुनिया में अपने बुरा कोई नहीं होगा। मान मर्यादा का भी ख्याल नहीं रखते है। कुछ भी कह देते है

  मनुष्य के मन में क्या है? क्यों अपना बचा हुआ समय जो उसको अपने काम काज से बाद मिलता है। अक्सर लोग ऐसे समय में लोगो की बातो में बिताते है। और बातो बातो में एक दूसरे की बुराई भी सुरु कर देते है। मान मर्यादा का भी ख्याल नहीं रखते है। कुछ भी कह देते है ज्यादा करके समय उन्ही बुराई करने में ही चला जाता है। कभी  अपने अंदर झांक कर देखा है की अपने अंदर कितने बुराई है। जिस दिन ये पता चल जायेगा की स्वयं कितने बुरे है। मनुष्य के मन तो दुनिया में अपने बुरा कोई नहीं होगा। जिस दिन इस बात का एहसास हो जायेगा तो  फिर किसी की बुराई नहीं करेंगे और न करने देंगे।

मनुष्य के जीवन में कर्म का ही महत्व होता है, कर्म से ही सब कुछ है, कर्म के बिना कुछ नहीं, जीवन के आयाम में कर्म की बड़ी उपलब्धि है, माता पिता की सेवा बड़े बुजुर्गो की सेवा समाज में मदद गरीब दुखी को सहारा देना ये सभी कर्म के माध्यम है

 

मनुष्य के जीवन में कर्म का ही महत्व होता है। 

कर्म से ही सब कुछ है, कर्म के बिना कुछ नहीं, कर्म का महत्व के आयाम में कर्म की बड़ी उपलब्धि है, माता पिता की सेवा बड़े बुजुर्गो की सेवा समाज में मदद गरीब दुखी को सहारा देना  ये सभी कर्म के माध्यम है, अपना काम धाम करना स्वयं में व्यस्त रहना ये मनुष्य  का काम, ब्यापार और रोजगार है, इससे मन को संतुष्टि होती है, ऐसा होना ही चाहिए मन सकारात्मक हो कर अपने काम धंदा को करता है तो अच्छा ही है, क्योकि कर्म तो काम धंधा की उपलब्धि से ही प्राप्त होता है, जिससे ऊपर उठ कर मनुस्य कर्म करता है।  समाज में नाम होता है, ये सब जो काम निस्वार्थ भाव से किया जाता है  उसे ही कर्म कहते है। 

 

मनुष्य  एक बार सोच ले की हमें कर्म करना है कुछ अच्छा करना ही तो सहारा होगा

कर्म का महत्व दिन दुखी की मदद करने ने तृस्ना मिटटी है जिससे मनुष्य का मन शांत रहता है, समाज में मदद करने से आयाम बढ़ता है  जैसे समाज में कुछ बुरा हो रहा हो, कोई एक वर्ग दूसरे वर्ग की अवहेलना कर रहा हो तो वह उनको ज्ञान के माध्यम से जागरूक कर के सभी वर्ग को एक सामान समझना और लोगो को प्रेरित करना ताकि सब एक जैसे एक सामान बने रहे, बड़े बुजुर्गो की सेवा बड़ा ही सुफल कर्म होता है  जिनकी यात्रा समाप्त होने वाला होता है, उनको सहारा देने से मन को अद्भुत शांति और ख़ुशी का एहसास होता है, यदि सक्षम हो तो उन बच्चो की भी सहारा दिया जाए जिनके कोई नहीं होते है जो अनाथ होते है, उनको सहारा देने से उपलब्धि प्राप्त होता है  समाज में नाम होता है, ये सब जो काम निस्वार्थ भाव से किया जाता है  उसे ही कर्म कहते है।

मनुष्य अपने व्यक्तिव मे बहूत से परिभाषा ले कर जीता है।

  मनुष्य अपने व्यक्तिव मे बहूत से परिभाषा ले कर जीता है। जीवन के उत्थान के लिए सपना देखना कल्पना करना सोचना ये सभी उसके अंधुरूनी क्रियाकलाप होते है। विषय वस्तु को समझकर क्रियान्वित करने से पहले सोचना विचार विमर्स करना उस कार्य के सफलता के लिए जरूरी है जो करना चाहता है। सोच मे पृस्थ्भिमी के निर्माण होने से कार्य मे आने वाली दिक्कत और सही मार्गदर्शन मिलता है। दिक्कत वाले रास्ते से हटकर सहज मार्ग को चुनना सोचने का महत्व होता है। कार्य के सफलता के लिए निरंतर प्रयाश उसको सकारात्मक परिणाम तक लेकर जाता है। काम की बारीकीयत जीवन मे दूसरे कम को सहज करने के लिए अनुभव प्रदान करता है। निरंतर प्रयाश और अथक परिश्रम जीवन मे अनुभव दिलाता है। जिससे व्यक्ति पारंगत कर अपने कार्य को पल भर मे पूरा कर लेता है।

 

बहूत जादा सोचना और कुछ भी नहीं करना व्यर्थ है वो सोच भी व्यर्थ हो जाता है जिसका कोई परिणाम जीवन मे नहीं मिले। इससे जीवन निराशा मे काटने लगता है। दिन प्रति दिन जीवन मे उत्साह घटने लग जाता है। कार्य करने की क्षमता समाप्त होने लग जाता है। शरीर मे हमेशा थकावट और आलश्य का निर्माण होता है। मानव शरीर मेहनत नहीं करने पर जल्दी जल्दी विमार पड़ता है। जिससे अनेकों बड़े बड़े रोग उत्पन्न होते है।

जीवन के उत्थान के लिए व्यायाम से शरीर निरोगी रहता है। कार्यालय मे दिमागी कार्य होने से मन और दिमाग थकता है जिसका प्रभाव शरीर पर पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को सुबह शाम थोड़ा मेहनत करना चाहिए जिसे शरीर निरोगी रहे। इसका सबसे अच्छा जरिया व्यायाम है जिससे शरीर को चुस्ती फुर्ती और हलकापन मिलता है। कार्य करने की क्षमता बढ़ता है। शरीर चलाएमान होता है।

मन में हरदम कुछ न कुछ खिचड़ी पका रहा होता है पर कभी उस खिचड़ी के स्वाद को भी लेने का प्रयास भी तो करे

  

प्रेरक विचार एक सोच है कर्म हमेसा सक्रीय है बहूत कुछ सोचने से अच्छा है कि कुछ करे और कुछ बन के दिखाए 

 

प्रेरक विचार एक सोच है। कर्म हमेसा सक्रीय है। बहूत कुछ सोचने से अच्छा है कि कुछ करे और कुछ बन के दिखाए। ख्वाबो में घुमाने से अच्छा है की जो स्वप्न देख रहे है, दिन में अच्छा लगता है। पर उस स्वप्न को सच्ची हकीकत में बदने के लिए आगे बढना पड़ता है। बैठकर सोचने से कुछ नहीं होता है। जब तक तन और मन दोनों को सक्रीय नहीं करेंगे तब तक कुछ नहीं होने वाला है। प्रेरक उदहारण किसी से लेना बहूत आसान है। पर प्रेरणा के अनुरूप प्रेरणादायक उदाहरण बन के दिखाए तो किसी  का प्रेरणा कारगर हो। तब प्रेरक उदहारण जीवन में सफल होता है। 

 

प्रेरणा मन में हरदम कुछ न कुछ खिचड़ी पका रहा होता है। पर कभी उस खिचड़ी के स्वाद को भी लेने का प्रयास भी तो करे। 

आज कुछ स्वाद मिल जाता है तो उम्मीद पर पूरी दुनिया काबिज है। प्रयास से भले कल सफलता कम मिले पर कुछ दिन बाद खिचड़ी को स्वादिस्ट होने से कोई रोक नहीं सकता है। असफलता मन का डर है जो की निराशा को ही उत्पन्न करता है। साहस और प्रयास आशा की किरने है जो निडरता को उत्पन्न करता है। प्रयास स्वाबलंबी है। प्रेरणा मिलाने के बाद स्वाबलंबन कभी रुक नहीं सकता है। जिसने ठाना है वो तो जरूर कर गुजरेगा। तब न परवाह किसी डर का न असफलता का होता है। फिर जीत और सफलता किसी के रोके नहीं रुकेता है। प्रेरणा का यही तो मुख्य प्रभाव होता है।

 

प्रेरित होता हूँ। ये बात सुनकर की मन के हारे हार है मन के जीते जीत है। 

प्रेरक विचार एक सोच जब समझ सकारात्मक और स्वाभाविक है तो हारने का सवाल ही क्यों? उससे तो अच्छा है की उसे जीतने का प्रयास किया जाये। कर्महिनता हार के पहचान है। कर्मठता को जितने से कोई रोक नहीं सकता है। भले अध्याय कितना भी कठिन क्यों न हो। कर्मठता की प्रेरणा योग्य व्यक्ति को सफलता से कोई चूका नहीं सकता है। 

 प्रेरक विचार एक सोच 

मन में ईस्वर का नाम और बगल में छुरी ऐसे भी व्याख्या है.

  

दिलो में वही बसते है जिनके मन साफ़ होसुई में वही धागा प्रवेश करता है, जिसमे कोई गाठ नहीं हो.

 

मन में ईस्वर का नाम सच्चे मन की व्याख्या उस धागा से कर सकते है,जिसमे कोई गाठ नहीं हो. बिलकुल सीधा साधा सरल सहज होने पर ही मन शांत और उत्साही होता है. जिसे किसी को भी एक नजर में अच्छा लगने लग जाता है. वो सबके दिलो पर राज करता है. सच्चा और सरल होना ये बहूत बड़ी बात है.

 मन में ईस्वर का नाम 

 

अपने मन में ईस्वर का नाम और बगल में छुरी ऐसे भी व्याख्या है.

उन लोगो के लिए जो होते कुछ और है, पर दखते कुछ और ही.  ऐसे लोग न जल्दी किसी के दिल में बसते है और नहीं समझ में आते है.  ये कब क्या कर बैठेंगे. ऐसे लोगो के पास शक्ति अपार होती है. पर वो कभी भी सकारात्मक पहलू के लिए नहीं होते है.  हमेशा कुछ न कुछ खुरापाती ही करते रहते है. ऐसे लोगो से बच कर रहे तो उतना ही अच्छा है.

 

मन के हारे हार और मन के जीते जित.

जिनको किसी से कुछ मिले नहीं तो भी खुश और कुछ मिले जाये तो भी खुश.संतुलित व्यक्ति सरल और सहज होते है. वो कुछ भी करते है भले उसमे कोई फायदा हो या न हो पर मन में आ गया तो वो कर गुजरते है. इससे मन को शांति और उत्साह महशुस होता है. अच्छा करने वाला अच्छाई के लिए ही जीते है. कुछ भी करते है. वो अच्छाई के लिए ही होता है. इसलिए ऐसे सरल व्यक्ति किसी के दिल में एक वर में बैठ जाते है. जिनका प्रसंसा और जिक्र हमेशा होता रहता है.

मन मस्तिष्क की सक्रियता मन में एकाग्रता काल्पना जीवन में डर भय दूर होता है बात विचार सरल सहज और आकर्षक होता है ग्राहक आकर्षित होते है।

  

कल्पना सोच समझ के बारे  कहा जाता है की कभी भी अच्छे शब्द ही बोलता चाहिए

जीवन के कल्पना सोच समझ के बारे  कहा जाता है की कभी भी अच्छे शब्द ही बोलता चाहिए। किसी से भी भले अनजान से ही क्यों नही

साफ़ सुथरा बात चित करना चाहिए। कब कौन अपने साथ मददगार हो जायेगा क्या पता।

जीवन सदा एक जैसा नहीं होता है।

उतार चढ़ाओ होता ही रहता है।

यही अपना बोलना साफ सुथरा होगा तो कोई भी अपना साथ देगा।

भले जान पहचान के हो या अनजान सभी को अच्छे शब्द पसंद है।

हो सकता है। अपने बुरे समय वो कभी भी अपना साथ मददगार हो।

एक बात और है की जब अपना  बोली वचन ठीक ठाक  होगा। 

सुख हो या दुःख अपने को एहसास नहीं होगा।

चुकी अच्छे बोल वचन अपने को ज्ञान भी देता है।

जीवन के कल्पना में सब अपने स्वयं के सुधार के लिए सोचते है

अपने जीवन के कल्पना में सब अपने स्वयं के सुधार के लिए सोचते है। कभी पिछली बात को याद करते है। तो कभी आने वाले भविष्य की कल्पना करते है।  अक्सर ऐसा तब करते ही जब अपना मस्तिष्क विकशित होता है। सोच  समझ का ज्ञान समझने लग जाते है।  तो  आगे का रास्ता निकालने के लिए  भविष्य की कल्पना करते है। जिसका मुख्य उद्देश्य होता है। जीवन का विकास करना।

जीवन के कल्पना में अपने काम धंदे के बारे में सोचते है आर्थिक स्तिथि मजबूत हो

जीवन के कल्पना में अपने काम धंदे के बारे में सोचते है। जिससे आर्थिक स्तिथि मजबूत हो। घर परिवार खुशहाल ।जीवन के विकास में बहुत सारे ऐसे उद्योग धंदा है। जैसे विपणन और सामान के बिक्री से जुड़े उद्योग धंदा और ब्यापार सेवा।  इस व्यवसाय में मुख्या तौर पर महत्त्व होता है की  ग्राहक को कैसे आकर्षित करते है।  खरीदारी के लिए और सामान के बिक्री की मात्रा को बढ़ाते है। विपणन के व्यवसाय में अपना बात चित करने का तरीका ही अपने व्यवसाय को बढ़ाने में भूमिका निभाता है।  जिससे सामान की बिक्री का मात्रा बढ़ता है। आवश्यकता बात करने की कला होता है।  जीवन में बात विचार के कला और ज्ञान के लिए किसी के प्रेरणा का सहारा लिया जा सकता है। आत्मज्ञान पर पूर्ण विस्वाश करना होता है। स्वयं के मन में झांककर वो सभी प्रकार के गन्दगी को निकालना होता है।

कल्पना के दौरान सोच समझ में रोड़ा अटकने वाला विचार आता है। 

उसकी सफाई कर के सकारात्मक विचार को बढ़ाया जाता है। मन को सरल और सहज रखने का  प्रयास किया जाता है।  विपणन के व्यवसाय में कभी भी खली समय को व्यर्थ नहीं गवाना चाहिये।  खली समय में भी कुछ न कुछ कार्य करते रहना चाहिए। जिससे मन मस्तिष्क सक्रिय रहता है।  हमेशा मन में एकाग्रता का ख्याल रहना चाहिये।  जिससे मन का डर भय दूर होता है।   बात विचार सरल सहज और आकर्षक होता है। ग्राहक आकर्षित होते है।

  जीवन के कल्पना 

मन भी बहुत खुश होता है कहा जाता है अच्छाइयों के साथ रहने से अच्छाई बढ़ती है लोगो के बीच अच्छी बाते करते और विचार अनुभव करते है

  

अच्छाइयों के साथ जीवन में अच्छाइयों के तरफ बढ़ने के लिए मन में अच्छे चीजों को ग्रहण करना चाहिए

अच्छाइयों के साथ जीवन में अच्छाइयों के तरफ बढ़ने के लिए अच्छे चीजों को ग्रहण करना चाहिए।

जिन लोगो से मिलते है। जिनके बारे में अच्छा सुनते है अच्छा लगता है।

इससे अपना मन भी बहुत खुश होता है। इसे ही कहा जाता है अच्छाइयों के साथ रहने से अच्छाई बढ़ती है।

जहाँ पर  लोगो के बीच अच्छी बाते करते और विचार अनुभव करते है।

तो वाहा अच्छा सिद्धांत उत्पन्न होता है।

जो अच्छाइयों को बढ़ता है। सबसे बुरा तब होता है।

जहाँ लोग एक दूसरे से बाते करते है। और सामने वाले की कमज़ोरी पकड़कर उनका फायदा उठाते है।  

सामने वाले का नुकसान करते है।

ये अच्छी बात नहीं है। ऐसा नहीं करना चाहिए ऐसा करना अपराध भी है।

अक्सर ऐसा होता है किसी से बात करते करते उस पर क्रोधित भी हो जाते है।

तब ये नहीं पता चलता है। की क्या कर रहे है क्या नहीं कर रहे है क्या करना है।

क्रोध के दौरान सब ज्ञान मस्तिष्क से गायब हो जाता है।

तब सिर्फ और सिर्फ गुस्सा ही रहता है।

इसलिए ऐसा तो कभी नहीं करना चाहिए।  चुकी ऐसा करने से सब ख़त्म होने का दर रहता है। उससे भविष्य में विक्छिप्तता के वजह से नुकसान ही होता है। ऐसा करना सर्वनाश करने के बराबर होता है। इसलिए ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। होना तो ये चाहिए की भले सामने वाला कुछ कहता है। भले उसके मुँह से कुछ बुरा बात निकल जाता है। तो हो सकता है उसके पास ज्ञान की कमी हो सकता है।

इसके वजह से ही कुछ बुरा बोला होगा। इसलिए उसे माफ़ करना ही सबसे अच्छा है।

इससे उसको भी ज्ञान होगा की अरे मुझसे तो गलती हो गई है। मान लिजिए कोई आपको कुछ दे रहा है। और आप उसे स्वीकार नहीं कर रहे है। तो होगा क्या वो वापस ले कर चला जायेगा। यदि किसी ने बुरा बात बोले तो हमें उसे स्वीकार करके बुरा बात बोलने की कोई जरूरी नहीं है। इससे हमारा ऊर्जा ही ख़राब होगा। जो खतरनाक है। इससे अच्छा है। सब से अच्छा बोले। अच्छा रहे। अच्छा बने रहे। अच्छाई बिखेरते रहे। इससे सब ठीक रहेगा।

  अच्छाइयों के साथ 

मन ज्ञान का प्रवेश द्वार है कल्पना ज्ञान का द्वार है जब तक मन कुछ अपने में नहीं लेगा तब तक कल्पना सार्थक नहीं होगा

  

ज्ञान का रास्ता या ज्ञान का प्रवेश द्वार जो सही है

मन का प्रवेश द्वार है 

कल्पना ज्ञान का द्वार है 

जब तक मन कुछ अपने में नहीं लेगा। तब तक कल्पना सार्थक नहीं होगा। मन तो अपने अन्दर बहूत कुछ अपने में समेटे रखता है। पर सक्रीय वही होगा जो कल्पना में समां जायेगा। कल्पना मन का विस्तार है। मन पहेली भी रच सकता है। कल्पना संधि विच्छेद तक कर सकता है। द्वार तो मन ही है। उद्गम कल्पना है। जब तक संस्कार और ज्ञान अन्दर नहीं जायेगा। तब तक कल्पना के उद्गम में ज्ञान का आयाम कैसे बनेगा। सार्थकता तो उद्गम तक पहुचना होता है।

प्रवेश द्वार के अन्दर जा कर कोई वापस भी आ सकता है। पर उद्गम में विचरण का मौका सबको नहीं मिलता है। मन आडम्बर कर के चला भी जा सकता है। कल्पना में जो गया वो विस्तार ही कर बैठेगा। नजरिया सबका अपना अपना है। मन के हारे हर मन के जीते जित होता है। स्वाबलंबन ज्ञान बढ़ाएगा। कर्महीनता आडम्बर रचेगा। समझ वही जो समझ सके तो ज्ञानी नहीं तो बाकि सब समझते है।     

ज्ञान का प्रवेश द्वार

मन को कैसे समझने की कोर्शिस करे की मन में उठाते विचार को एक पुस्तक में लिखते जाये. जब भी मन में कोई नारात्मक विचार आ रहा है.

  

मन को कैसे समझे?

स्वयं के मन को समझने के लिए सबसे पहले मन में उठाते विचार को परखे. 

मन के विचार किस तरफ जा रहा है? उसका मुआयना करे.

मन क्यों बारम्बार एक ही चीज को सोच रहा है? उससे क्या ज़ुरा हुआ है? उसको समझने का प्रयास करे.

मन के एक एक बात को फिर समझने का प्रयास करे मन किस किस बात पर ज्यादा विचार कर रहा है.

हर तारीखे से समझने का प्रयास करे उसमे से क्या उचित है? क्या अनुचित है? उसको भी समझने का प्रयास करे.

कोर्शिस करे की मन में उठाते विचार को एक पुस्तक में लिखते जाये.

मन को कैसे समझे जब भी मन में कोई नारात्मक विचार आ रहा है.

जिससे दुःख या तकलीफ हो रहा है तो मन के विचार को परिवर्तित करने के लिए कुछ नया सोचे। 

जिससे नकारात्मक विचार का प्रवाह कम हो और सकारात्मक दृष्टी पर जोर देने से नकारात्मक प्रवाह कम होने लग जाता है.

 

बारम्बार उठाते मन के नकारात्मक विचार से छुटकारा पाने के लिए. 

कोई अच्छी ज्ञानवर्धक पुस्तक पढ़े। 

जिससे मन में उठाने वाला नकारात्मक ख्याल कम हो और ध्यान ज्ञानवर्धक पुस्तक पर लगने से सकरात्मक दृस्तिकोन बढ़ने लग जाता है.

सदा अच्छा सोचे अच्छा करे.

अपने मन में अच्छे विचार के लिए जगह बनाये जिससे खली पड़ा हुआ मन का घनघोर अँधेरा कम होने लग जाता है.

खुद का मन में जो भी अच्छा सोचे उसको पुरे करने के का प्रयास भी करे जिससे सक्रिय भी बढ़ने लगे.

मन को कैसे समझे मन के सकारात्मक दृस्तिकोन से बढे सक्रियता का इस्तेमाल विषय वस्तु में करे जिसका निर्माण कर रहे है.

जो भी मन में अच्छा सोच रहे है उसको पूरा करने का प्रयास करे। 

इससे नकारात्मक प्रभाव कम होने लग जाता है और सकारात्मक प्रवाह बढ़ने लग जाता है.

 

मन में सोचने और समझने के बाद जब उस क्रिया को पूरा करने का प्रयास करे.

समझने के बाद जब उस क्रिया को पूरा करने लग जाते है तो मन उस विषय वस्तु में लगने लग जाता है.

मन को सदा प्रसन्न रखने का प्रयास करे इससे भी सकारात्मक प्रभाव बढ़ता है.

लोगो के साथ जुड़े उनसे अच्छा बात विचार करने से ज्ञान का आयाम बढ़ता है.

सकारात्मकता को बढ़ने के लिए ये बहूत जरूरी है.

मन के अन्दर कुछ चल रहा है जिससे छुटकारा पाना चाह रहे है तो उस बात को किसी को बता देने से उसका प्रभाव कम होने लग जाता है.

मन के अन्दर कुछ भी नहीं रखे जो दुःख या तकलीफ दे रहा है.

लोगो के बिच अपने बात विचार के माध्यम से

मन में बैठे ख्याल जिससे छुटकारा पाना चाह रहे है लोगो को बताने से वो कम होने लग जाता है.

   मन को कैसे समझे 

मन के ज्ञान से देखे तो बीती यादें में भवनाओ का असर होता है। मन की आदत वैसे ही बानी हुई रहती है। अच्छी चिजे निकल जाती है। क्योकि उसमे भावनाओ का असर होता है।

  

मन के ज्ञान में दिन प्रति दिन समय बीतते चला जा रहा है। 

अपने मन के ज्ञान में देखे तो  बच्चे जन्म लेते है। बड़े होते है।

अब हम सब बुढ़े होते जा रहे है।

कई बार हम ये सोचते है की जिस तारीके से दिन बीतते जा रहा है।

ऐसे गतिशील समय में ऐसा लगता है। कुछ सोचे तो कुछ और होता है।

जो सोचते है वो फलित नहीं होता है।

ऐसा लग रहा है जैसे सरे सोच व्यर्थ होते जा रहे है।

उस सोच को पूरा न होते देख कर हम अक्सर दुखी ही रहते है।

आखिर ये सब का कारण क्या है। जो सोचते है। वो होता नहीं है। होता वो है।

जिसके बारे में सोचते नहीं है। ऊपर से इन सभी के कारण दुःख का भाव।

तो इसका रास्ता क्या निकलेगा। 

 

मन के ज्ञान में अपने मन से मजबूर होने पर भाई इसका कोई रास्ता नहीं निकलेगा। और नहीं निकलने वाला है।

जो समय पीछे छूट गया है। उसे पूरी तरह से छोड़ दे।

तो ही जीवन में फिर से ख़ुशी आयेगी। जो समय हमे आगे मिला हुआ है।

कम से कम उसका सदुपयोग करे। और पुरानी  बाते को मन से निकला दे।

तो ख़ुशी ऐसे ही हमें मिलाने लगेगी। हमें पता है की ख़ुशी मिलने से ही हमें ताकत भी मिलती है।

ख़ुशी से हमें ऊर्जा मिलता है। तो क्यों न हम ख़ुशी के तरफ ही भागे।

पुरानी बाते को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ते जाय।

जो बित गया उससे कुछ मिलाने वाला नहीं है। 

पिछली बात के बारे में जितना सोचेंगे दुःख के अलावा कुछ नहीं मिलाने वाला है। 

 

मन के ज्ञान में बीती यादें में भवनाओ का असर होता है। मन की आदत वैसे ही बानी हुई रहती है।

अच्छी चिजे निकल जाती है। क्योकि उसमे भावनाओ का असर होता  है।

अच्छी चीजे वो है। जिसमे कोई भाव नहीं होता है।

सिर्फ ख़ुशी का एहशास होता है। वो रुकता नहीं है।

आगे जा कर दुसरो को ख़ुशी देता है। वो सब के लिए है।

भावनाये तो वास्तव में उसका होता है। जो हमारे मन में पड़ा हुआ है।

तीखी कील की तरह चुभता रहता है।

तो ऐसे भाव को रख कर क्या मतलब होगा। जो दुःख ही देने वाला है। 

 

मन के ज्ञान में निरर्थक भाव भावाना से बच कर ही रहे। तो सबसे अच्छ है। जो बित गया उसे भूल जाए।

आगे का जीवन ख़ुशी से गुजारे। नए जीवन की प्रकाश ओर बढे। 

उसमे हमें क्या मिल पा रहा है। उस ओर कदम बढ़ाये। नए रस्ते  चले। 

जहा पिछली कोई यादो का पिटारा ही हो।

जहा पिछला कोई भाव भावना नहीं होना चहिये

 

मन के ज्ञान में समय दिन प्रति दिन भागते जा रहा है। हर पल को ख़ुशी समझ कर बढ़ते रहे।

अच्छी चीजे को ग्रहण करे। जिसमे कोई पड़ेशानी कोई दुःख या कोई ब्यवधान हो।

तो उसको पार करते हुए। अपनी मंजिल तक पहुंचे। 

दुविधाओ को मन से हटा के चले। जीवन में बहुत कुछ आते है। बहुत कुछ जाते है।

उनसे ज्ञान लेकर आगे बढ़ते रहे। 

खुशी से रहे, प्रसन्नचित रहे, आनंदित रहे।  

मन के ज्ञान में दुविधाए कुछ नहीं होता है। मन का भ्रम होता है। 

सही सूझ बुझ से अपने कार्य को विवेक बुद्धि से करे तो हर रूकावट दूर होता रहता है।

सय्यम  रखे। किसी भी प्रकार के विवाद को मन पर हावी नही होने दे।

मन में सय्यम रखते हुए बुद्धि का उपयोग करे। 

हर  कार्यो में सफलता अवस्य मिलेगा। 

मन के ज्ञान में विवेक बुद्धि दिमाग के सकारात्मक पहलू होने चाहिए।

मन जब सकारात्मक होता है। तो शांत होता है। एकाग्र होता है। 

एकाग्र मन में सकारात्मक विचार होते है। जिससे सकारात्मक तरंगे दिमाग में जाते है। 

दिमाग ऊर्जा का क्षेत्र होता है। जो सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ता है। 

विवेक बुद्धि इससे सकारात्मक होता है। यदि विवेक बुद्धि सकारात्मक नहीं हो तो उसे विक्छिप्त माना जाता है।

विक्छिप्त प्राणी के मन में भटकन होता है। उसके मन के उड़न बहुत तेज ख्यालो में रहता है।

जिसको कभी पूरा नहीं कर सकता है। निरंतर ख्याल, विचार, मस्तिष्क में होने पर सक्रियता समाप्त होने लगता है। जो की थिक नहीं है। सक्रिय सकारात्मक सोच विचार ही कार्य को पूरा करने में मदत करता है। जिससे मन शांत रहता है। जरूरी कार्य में मदत करता है। कार्य पूरा होता है।  

 
  मन के ज्ञान 

मन की इच्छाएँ के दौरान कल्पना में नकारात्मक भावना नहीं होना चाहिए नहीं तो मस्तिष्क में विकार आ सकता है

  

मन की इच्छाएँ

मनुष्य के सोच में बहुत सारी मन की इच्छाएँ होते है

मन की इच्छाएँ पल भर में बदलते रहते है। एक पल में एक तो दूसरे पल में दूसरा इच्छा उत्पन्न होता है। जब एक इच्छा आता है।

तो दूसरा इच्छा चला जाता है।क्या ये सब ठीक है?

मानो जैसे मनुष्य इछाओ का साम्राज्य है। जब मर्जी जो इच्छा रख लिए।

ये कौन सी बात हो गई? भाई जो चाहो वो सोच लो। दूसरे का क्या जाता है। सबकी अपनी मर्जी है। क्यों भाई अपनी मर्जी है न?

इसमें तो किसी का कुछ नहीं जाता है।

तो सवाल ये है, की इच्छा फिर बना ही किस लिए है? फिर तो ये सब व्यर्थ है।

ये तो कोई काम का नहीं है।नहीं भाई ऐसा नही है।

इच्छा नहीं इच्छा शक्ति होनी चाहिए।

ताकि सब अपनी इच्छा पर डटे रहे और उसे व्यर्थ न जाने दे।

वही सब कुछ करता है। इच्छा नहीं तो मनुष्य कुछ नहीं।

इच्छा को नियंत्रित करे। उस दिशा में कार्य करे। वही सकारात्मक इच्छा है।

मन की इच्छाएँ के लिए सोच समझ अच्छी होनी चाहिए

अपने मन की इच्छाएँ मे किसी का किसी प्रकार से कोई नुकसान न हो तो ही इच्छा कारगर है।

कुछ भी सोचे कुछ भी करे ऐसा नहीं है।

बिलकुल भी कभी कोई गलत इच्छा नही रखे वो टिक नहीं पायेगा।

उस तरफ जा भी नहीं पाएंगे। क्योंकि अपने पास ज्ञान है। मान लीजिये की जो कर रहे है।

काम काज या कोई अच्छा कार्य करते है।

मन भी अच्छे से लगता है। सक्रीय कार्य को सफलता पूर्वक पूरा कर लेते है। यही सकारात्मक इच्छा शक्ति है। 

मन की इच्छाएँ में इच्छाशक्ति बहुत महत्वपूर्ण ज्ञान है 

अपने मन की इच्छाएँ मनुस्य को अपने जीवनपथ पर आगे बढ़ने के लिए है।

इच्छाशक्ति इतना आसानी से नहीं प्राप्त होता है।

बहुत सरे इच्छाओ को पाल लेने से और एक के बाद दूसरा इच्छा कर लेने से तो कोई काम नहीं बनेगा।

इच्छा पूर्ति लिए जीवन में सिद्धांत बनाना पड़ता है।

अपनी इच्छाओ पर नियंत्रण पाना होता है।

जिससे सकारात्मक इच्छा सोच सके कल्पना कर सके, विचार कर सकेकल्पना कर सके।  

बहुत सरे इच्छाओ के मिश्रण से अंतर्मन किसी भी संभावित नतीजे तक नहीं पहुंच पायेगा।

किसी भी काम को पूरा करने में मन नहीं लगेगा।

कार्य में सफलता मिल नहीं पायेगा।

हो सकता है बहूर सरे इच्छाओ में सकारात्मक इच्छा और नकारात्मक इच्छा हो।

इच्छाओ के बवंडर में मस्तिष्क में विकार भी आ सकता है।

जिससे वविक्छिप्तता मन मे फ़ैल सकता है। जो की बिलकुल भी ठीक नहीं है।

मन की इच्छाएँ को जगाने के लिए मन के कल्पना में कोई एक चित्र बनाये 

अपने मन की इच्छाएँ को बनाये रखने के लिए कल्पना मे सब कुछ संतुलित और संगठित होन चाहिए।

मन के भावना सकारात्मक होना बहुत जरूरी है।

नकारात्मक भावना अनिच्छा को उत्पन्न करता है।

नकारात्मक प्रभाव से मन में गुस्सा और तृस्ना सवार हो जाता है।

बात विचार प्रभावशाली नहीं रहता है।

इसलिए मन की इच्छा सकारात्मक ही होना चाइये। 

मन की इच्छाएँ और कल्पना के दौरान किसी भी प्रकार का नकारात्मक भावना नहीं होना चाहिए

अपने मन की इच्छाएँ में सोच कल्पनातीत भी नही होना चाहिए।

ऐसा भी हो सकता है की कल्पना पुरा ही नहीं हो सके।

ऐसा होने से भी मस्तिष्क में विकार आ सकता है।

जिसका सीधे प्रभाव ह्रदय और मन पर पड़ता है।

ऐसी हालत में भी कुछ नहीं कर पाएंगे। मन कल्पनातीत में बेलगाम घोड़ा हो जाता है।

स्वयं नियंत्रण में करना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे मनुष्य आगे चलकर आलसी भी हो सकते है।

मन में सकारात्मक सोच समझ और कल्पना होने से विवेक बुद्धि संगठित रहता है 

अपने मन की इच्छाएँ संतुलित और कल्पना के दौरान जो जरूरी विषय वस्तु है।

उसपर ध्यान बराबर बना रहता है। यहाँ पर भी मन पर पूरा नियंत्रण होना चाहिए।

संभावित विषय बस्तु को मन के कल्पना में निरंतर सकारात्मक बना रहे।

मन उस विषय और कार्य में भी सकारात्मक कार्य करते रहे। 

ऐसा होने से मन अपने सकारात्मक काम काज विषय बस्तु में कार्यरत रहेगा।

तभी मन में किया गया इच्छा की कल्पना सकारात्मक बनकर इच्छा शक्ति बनेगा।

उस कार्य या विषय में सफलता मिलेगा।

मन का संबंध

  

मन का संबंध

मानव के मन का संबंध सीधे आत्मा से होता है।

आत्मा न दिखने वाला ऊर्जा है जो मन के प्रभाव से जीवन को प्रभावित करता है। आत्मा परमात्मा के आधीन होता है। आत्मा को जो ऊर्जा प्राप्त होता है वो परमात्मा से ही मिलता है। परमात्मा अदृश्य शक्ति है जो आत्मा को उसके मन के भाव और क्रिया कलाप के अनुसार उसको ऊर्जा प्रदान करता है।

 

मन का संबंध मे मन के दो पहलू होते है।

अंतर मन और बाहरी मन जिसमे अंतर मन बहूत सक्रिय होता है। बाहरी मन बाहरी संसार मे चलता रहता है जो चल रहे कार्य और गतिविधि को वो प्रभावित करता है। कार्य और गतिविधि के पूरा होने मे अंतर मन का सहयोग होता है। बाहरी मन के प्रभाव से वो प्रभावित होकर परिणाम देता है। बाहरी मन का संबंध बाहरी संसार से जुड़ा रहता है। लोगो की प्रकृति और उसके व्यवहार से, रहन सहन से, क्रिया कलाप से, रोज़मर्रा के चल चलन से प्रभावित होता रहता है।

 

अंतर मन संगठित और शक्तिशाली होता है।

मन के अंदर चलने वाला बाहरी मन का प्रभाव आंतरिक मन के शक्ति को कमजोर, मजबूत और प्रभावित करता है। संतुलित जीवन और विचार के सही रहने पर अन्तर्मन शक्तिशाली होते जाता है। जिससे किसी भी सक्रिय कार्य मे व्यवधान नहीं आता है। सफलता का मात्र बढ़ते जाता है।

 

मन का संबंध अंतर मन अंदर से शांत और संगठित रहते हुए बाहरी मन के क्रिया कलाप को नियंत्रित करते रहता है।

बाहरी मन के प्रभाव के बढ्ने पर अंतर मन मे विचार बढ्ने लग जाता है। मन की खुशी समाप्त हो कर वेचैनी बढ्ने लगता है। जीवन के संतुलित नहीं रहने पर बाहरी मन निरंतर बेपरवाह होते हुए चलता रहता है। जीवन मे लापरवाही से से बाहरी मन का संगठन कमजोर पड़ता है। तब मन बहू आयामी हो जाता है। कभी एक बात सोचता है तो तुरंत दूसरे बात पर विचार करने लग जाता है। जिससे अंतर मन की शक्ति कम होने से विमारी, तकलीफ, बेचैनी, डर, शंका जैसे नकारात्मक गुण बढ्ने लग जाते है। कार्य मे सफलता कम होने लग जाता है। किसी भी कार्य के सुरुयआत मे ही शंका मन मे आने लगता है की वो पूरा होगा या बिगड़ जाएगा। ये सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव है जो जीवन को भी प्रभावित कर के रख देता है।

मन का आयाम और कर्म का आयाम

  

मन का आयाम और कर्म का आयाम अलग अलग होने पर सफलता और उपलब्धि दूर होता रहता है।

मन और कर्म मे मन से जुड़ने का महत्व बहुत बड़ा आयाम है। दिमाग के हस्तक्षेप से उसमे विकार और निखार दोनो का भाव उत्पन्न होता है।

जिद में व्यक्ति सही और गलत के समझ से परे हो जाता है। अपने मिथ्या को सही करने के लिए किसी की मान मर्दिना का भी ख्याल नही रखता है।

क्या पैसे का महत्व इतना ज्यादा है की आज पैसा बचा लिया तो कल यही पैसा बचाने वाले को बचाता है ।

ये सत्य है की भले पैसा साथ में ऊपर नही जाता है पर नीचे रहते हुए सतत ऊपर उठाता रहता है।

कौन कहता है कि आइना झूट नही बोलता है। ठीक से देखे तो वो प्रतिरूप बनाता है पर दाहिने को बाया और बाए को दाहिना जरूर कर देता है। लिखावट को ऐसे उल्टा करता है जिसे न कोई देखकर सहज लिख सकता है और नही सलीके से पढ़ा जा सकता है। क्या इसे ही कहा जाता है आइना झूट नही बोलता है?

आईने में दिख रहा अपने रूप का प्रतिरूप देखने में सीधा होता है पर वो हरेक वस्तु को उल्टा कर देता है।

प्रेम की परिभाषा निस्वार्थ भाव से समागम ही उपलब्धि तक पहुंचता। लालच मोह में किए कार्य व्यक्ति कभी भी मर्यादा में नही रहने देता। स्वयं पर नियंत्रण अपितु मन पर नियंत्रण ही होता है। ये कभी नहीं भूलना चाहिए की एक दिन इस दुनिया में आए है तो एक दिन इस दुनिया से जाना भी है। एक दूसरे के बीच बना प्रेम भाव से मन को जो संतुष्टि मिलती है वो आत्म के उठान के लिए होता है। मानो विज्ञान से दृष्टि से मनुष्य के सकारात्मक मन सिर्फ दस प्रतिशत है। जीवन को ऊपर उठाना है तो मन के कलेश को दूर करना अनिवार्य है।

लालच मोह गुस्सा तिरस्कार दूसरे को दुख देना अपने और उससे जुड़े व्यक्ति के मन को कही न कही आहत हो होता है। जीवन में कुछ भी करे निस्वार्थ भाव से ही करे। जैसे भगवान श्री कृष्ण राधा जी से निस्वार्थ भाव प्रेम में जुड़े। वृद्धावस्था में राधा के अंत के समय उनके प्रेम में वसूरी को tug diye the। Prem वास्तविक एक मन का त्याग है। जिसमे जिसके आकर्षण में त्याग ही प्राप्त होता है जो मुक्ति का कारण बनता है। जो भी अर्जित करते है आज न कल वो दूसरे को ही जाता है। खुद के लिए तो सकारात्मकता ही बढ़ता है। यही जीवन है यही मुक्ति का मार्ग है।

समय और हालत ऐसा क्यों हो गया है की लोग अपनो में खुशियां खोजने के बजाए पराए में ढूंढते है।

एक बच्चा मां बाप के साए में पलता है। अपने पैर पे खड़ा होने के बाद क्यों अपने बुनियाद से कट कर उसे अपना बना लेता है जो कभी अपना नही हो सकता है। माता पिता परिवार से बढ़कर दुनिया में कुछ नही होना चाहिए। माना की रोजी रोटी के लिए दूसरे शहर में जाने चलन है। पर अपने चल चलन को कभी खराब नही करना चाहिए।

एक तरफ शहर में खुशी और रंगरलिए के नशा में गुम होते सभ्यता संस्कार दिख रहा है। तो दूसरे तरफ गांव में तकलीफ भोगते माता का ख्याल करने वाला कोई नहीं है। ये एक बिजारे से सभ्यता का चलन रहा है जिसमे अभी ध्यान नहीं दिया तो भविष्य में बूढ़े माता पिता की दुर्दशा बाद से बदतर होते जायेंगे। मैं खासकर उन लोगो के लिए लिख रहा हू जिन्होंने पैसे की कमाई में कर्म की कमाई को जैसे ताक पर रख दिया है। जिन्होंने बूढ़े माता पिता को छोड़ ही दिया है।  क्या ये ठीक है?

मिथ्या और आडंबर मन में सवार हो जाता है तो मनुष्य खुद अपने आप से बहुत दूर हो जाता है।

भक्ति में शक्ति होती है। पर भक्ति को सहज करने के लिए सबसे पहले खुद के ओर ही देखना पड़ता है। एक समय था मैं कुंडली के चक्कर में फसकर घमासान घनचक्कर में चला गया। आज कुंडलिनी का अभ्यास धीरे धीरे खुद के करीब लेकर आ रहा है। सत्य को निष्ठा से समझकर समय को अपने अनुकूल करने का प्रयास ही जीवन है। इसके लिए मन के गहराई में छुपे अदृश्य नाकारामक ऊर्जा से संघर्ष करने से ही सकारात्मकता का एहसास उपलब्धि है।

जीवन में भले कुछ प्राप्त हो या न हो पर प्रारब्ध को किसी से कोई छीन नही सकता है। मन के गंदगी को निकलने के लिए सबसे पहले हीन भावना को परखकर उसका त्याग करना ही सकारात्मकता का ज्ञान है। भक्ति को अपने ऊपर सवार करने से अच्छा भक्ति में डूब जाना ही आध्यात्म है। जीवन को समझते हुए भी कर्म रूपी भक्ति कभी मनुष्य को निराशा नही देती है। कर्म से बड़ा कुछ नही है। भक्ति कर्म का करना चाहिए। दूसरो के हृदय को कभी दुखाना नही चाहिए।

 

 मन और कर्म 

कहा जाता है की जीवन मे संतुलन के लिए अच्छे कर्म करना चाहिए।

निस्वार्थ भाव से सेवा ही मन को सरल बनाता है। भोग विलाश कही ना काही मन और आत्मा के दुख का कारण ही है। जीवन का वास्तविक संतुलन अपने कर्म को करने और उससे प्राप्त परिणाम ही जीवन मे सफलता का कारण होता है। चतुराई के चार गुण साम, दान, दंड भेद से परिणाम को अपने पक्ष मे कर तो लेते है पर वो काही ना काही जीवन मे मन और आत्मा के दुख का कारण भविष्य मे बनता है।

कुलसित मन होने के वजह को समझे बगैर किसी को दोष नहीं देना चाहिए।

मन पर किसी का नियंत्रण नहीं होता है। भावनाए मन मे जड़ बना लेती है। जो फैलते जाता है। स्वयं पर नियंत्रण कर के ऐसे बेबुनियादी मन के भावना से बचा जा सकता है। कुंठित मन मे परमात्मा कभी निवश नहीं करते है। परमात्मा के माध्यम से कुलसित मन का उपचार कर सकते है। सबसे अच्छा रास्ता भक्ति भवन ही कुंठित मन को सरलता प्रदान करता है। जिससे कुलसित मन का उपचार होता है।

भगवान श्री कृष्ण की भक्ति मन मे प्रेम की भावना जागता है। सकारात्मक आयाम बढ़ता है।

 

ख़ुद के मन को समझ के फेर में बेखुदी में ही फसते हैं। मन जैसा भी है उसे वैसे ही रहने दे। मन के आयाम को समझने का मतलब कही न कही फसाना। जो जा चुका है लौट कर नहीं आएगा। पीछे की ओर देखना वर्तमान को खराब करना। भविष्य का तो अता पाता नही। सोचने का मतलब मस्तिष्क के दोहरे पहलू में फसाना । जो की एक सकारात्मक और और दूसरा नकारात्मक है। सोच विचारो के उलझन में ही फसा देता है।

कर्म ही दिलासा देता है। सत्कर्म ही शांति हैं। बाकी जो बचा सब ग्लानि देने वाला है। भविष्य की चिंता में फसाना बीमार पड़ने के बराबर है। वर्तमान को सही रखे तो वही आने वाले पल में भविष्य होने वाला है। चिंताओं में घिरना परिणाम को कम करने के बराबर है। सोच का सहारा लेना परिणाम को दो भाग में करना। कर्म एक मुष्ठ सकारामक है। परिणाम चाहे जो भी हो उसने हर्ष और उल्लास है। कभी भी मन को कुलशित नही बनने दे।

 

 

 

ब्यर्थ का समय बर्बाद नही कर के मैं अपने कार्य और कर्तब्य पर ज्यादा ध्यान देता हूँ अपने जिम्मेवारी को निभाने का प्रयास करता हूँ इसलिए मै खुश हूँ प्रसन्न हूँ आनंदित हूँ

  

मन को जब भी समझने का प्रयास करता हूँ। सवाल पर सवाल खड़ा हो जाता है। 

अपना मन कभी ऐसा सोचता है! मन कभी वैसा सोचता है! जितना मन का भाव में उतरने का प्रयास करता हूँ। उलझने लग जाता हूँ। ये सोचकर आगे बढ़ता हूँ की क्या जरूरी है और क्या जरूरी नहीं है। जितना तेज मै नहीं हूँ, उससे ज्यादा तेज तो मन होता है। मै ये सोचकर मन का पीछा नहीं करता हू की उससे मै जीत नहीं पाउँगा। जब मै अपने जरूरी क्रिया कलाप को नहीं पूरा कर पता हूँ।

जो मै सोचता हूँ वो होता नहीं है और जो नही सोचता हूँ वो हो रहा होता है। तब क्या मै इस मन का पीछा कर के अपने उम्मीद पर खड़ा उतर पाउँगा? सुबह उठकर अपने दिनचर्या को पूरा करने में लग जाता हूँ। नित्य कर्म और काम काज जब आज तक समय पर मेरे पुरे हुए ही नहीं है। तो क्या मन के इच्छा को कभी पूरा कर सकता हूँ।

जो चीज सोचता हूँ की आज पूरा कर लू कुछ न कुछ बाकि रह ही जाता है।

तो दुसरे दिन ही जा कर पूरा होता है। और कुछ कम को पूरा करने में कई दिन भी लग जाता है। तो क्या मन के इच्छा को कब पूरा करुगा। मै ये सोचकर मन की इच्छा को नहीं हवा देता हूँ की जितनी चादर है उससे ज्यादा पैर क्या फैलाना। कही कुछ उच् नीच हो गया तो मन के मारा मै तो कही फस ही जाऊंगा। ऐसा मै कभी नहीं चाहूँगा की आ बैल मुझे मार।

मैं मन की बात वहा तक मानता हूँ जहा तक जायज़ है। मैं वही करता हूँ, जिसके बारे में मुझे पूरी जानकारी और ज्ञान होता है। ज्यादा से ज्यादा प्रयास करता हूँ की नित्य कुछ नया सीखते रहूँ। अछी ज्ञानवर्धक पुस्तके पढना मै अच्छा समझता हूँ। ब्यर्थ का समय बर्बाद नही कर के मैं अपने कार्य और कर्तब्य पर ज्यादा ध्यान देता हूँ। अपने जिम्मेवारी को निभाने का प्रयास करता हूँ। इसलिए मै खुश हूँ, प्रसन्न हूँ, आनंदित हूँ।             

  मन का भाव 

सुपर चेतन मन प्राप्त करने के लिए कितने महीनों की आवश्यकता होती है?

सुपर चेतन मन प्राप्त करने के लिए समय की नहीं एकाग्रता की आवश्यकता होती है।  सुपर चेतन मन को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले मन को निर्मल करना होता है।  हर घटना के प्रति सजग रहना पड़ता है। ताकि किसी भी प्रकार के भाव का प्रभाव मन पर रंच मात्र भी नही पड़े और मन हमेशा किसी भी स्तिथि या परिस्तिथि में सरल और सजग रहे। मन को ऐसा बनाये की दुःख में न दुःख महशुस हो और सुख में न सुख महशुस हो तो सुपर चेतन मन के सफलता के लिए आगे बढ़ सकते है।
 

मन का भाव जब सजग रहते हुए सरल हो जाता है।

 
तब मन प्रफुल्लित हो कर हर्स और उल्लास से भर जाता है। तब ऐसे ब्यक्ति को चाहे जितना भी सुख या दुःख हो तो कोई एहसास नहीं होता है। मन के भाव में किसी भी प्रकार के परिवर्तन की कोई उम्मित नहीं रहता है। सुपर चेतन मन प्राप्त करने के लिए मन बुध्दी सोच विचार पर पूर्ण नियंत्रण के साथ योग साधना शवासन बहूत जरूरी है। साधना में सहजावस्था प्राप्त कर के अवचेतन मन के माध्यम से सुपर चेतन मन प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ा जाता है।
 

अपने मन में झक कर मन के जो भी अन्दर पड़ा हुआ है सब कुछ निकलकर मन को निर्मल किया जाता है।

ताकि मन में बाहरी किसी भी प्रकार के भाव का कोई प्रभाव नहीं पड़े। तब साधक मन में नहीं अपने आत्मा में वास करता है। तब निर्मल अवस्था में कोई भाव नहीं होता है। जैसे मन की मृतु हो चुकी हो। फिर साधक के अन्दर अपने शारीर के लिए भी कोई मोह नहीं होता है। मोह समाप्त हो जाने के बाद ही मन को शक्ति प्राप्त होती है। तब मन नहीं होता है मन की शक्ति होता है। इच्छा नहीं होता है इच्छा शक्ति होता है। तब साधक मन के शक्ति के माद्यम से अपना नया निर्माण करता है।
 
जिसमे नकारात्क कोई विषय वस्तु के लिए जगह नहीं होता है।
संसार में कल्याण के उद्देश्य से ऐसा प्रयास करे तो सफलता मिल सकता है। किसी विषय वास्तु के प्राप्ति के उद्देश्य करने पर सफलता की उम्मित बहूत कम रहता है। चुकी विषय वस्तु की प्राप्ति मन का भाव है। सुपर चेतन मन प्राप्त करने से मन समाप्त हो जाता है।
 
मन की शक्ति ही रहता है। इच्छा समाप्त हो जाता है। सिर्फ इच्छा शक्ति रह जाता है। फिर से मन का भाव लाने पर सब शक्ति समाप्त होने लग जाते है। इससे बुध्दी भ्रस्त होने का डर रहता है। पागल भी हो सकते है। साधना के माध्यम से सुपर चेतन मन प्राप्त करने के लिए स्वयं अकेले प्रयास कभी नही करे। योग्य जानकर आत्मज्ञानी के निगरानी में ही ऐसा प्रयास करे। 
 
 
 

 

 

Post

Perceptual intelligence meaning concept is an emotion of the mind

   Perceptual intelligence meaning moral of the story is the victory of wisdom over might Perceptual intelligence meaning moral character ma...