Wednesday, June 18, 2025

कल्पना और यथार्थ में बहुत अंतर होता है। मन की उड़ान ज्यादा हो तो अंतर और बढ़ जाता है।अपने इच्छ और मन पर नियंत्रण होना चाहिए।

  

वास्तविक कल्पना 

वास्तविक कल्पना और यथार्थ में बहुत अंतर होता है।

मन की उड़ान ज्यादा हो तो अंतर और बढ़ जाता है।

अपने इच्छ और मन पर नियंत्रण होना चाहिए

सकारात्मक सोच से इच्छा शक्ति काम करने लग जाता है। 

सकारात्मक सोच से मन की कल्पना यथार्थ में परिवर्तित होने लग जाता है। 

वास्तविक कल्पना कैसे होता है? 

कल्पना क्या है? मन के सकारात्मक कल्पना जीवन के महत्वपूर्ण करि है।

कल्पना मनुष्य को  अंतर मन से बाहरी मन को और बाहरी मन को अंतर मन से जोड़ता है। 

मन के बाहरी हाव भाव से अंतर  मन को संकेत मिलता है। 

जिसके कारण बाहरी मन के भाव  गहरी सोच से  मन में कल्पना घटित होता है। 

कल्पना से अंतर मन प्रभावित होता है। जिससे मनुष्य का  कल्पन बढ़ जाता है। 

कल्पना को सही और सकारात्मक रहने के लिए मन का भाव सकारात्मक और संतुलित रहना चाहिए। 

जिससे अंतर्मन अपने कल्पना को सही ढंग से स्थापित करे। 

कल्पना में कोई नकारात्मक भाव प्रवेश करता है।

तो उससे अपने मन की भावना में परिवर्तन आता है। जिससे गतिशील कल्पना बिगड़ने लगता है।

  इसलिए कल्पना के दौरान या मन में कभी कोई नकारात्मक भावना उत्पन्न नही होने देना चाहिए। 

वास्तविक कल्पना कैसे काम करता है?

मन एकाग्र करके जब कुछ सोचते है। 

कल्पना का भाव अंतर मन अवचेतन मन तक जाता है। 

बारम्बार किसी एक बिषय पर विचार करने से वह विचार सोच कल्पना के धारणा बन जाते है।

कुछ दिन के बाद उससे जुड़े विचार स्वतः आने लग जाते है। 

उस दौरान अपने कल्पना को साकार करने के के लिए मन में सोचने लगते है। 

कुछ नागतिविधि भी शुरू कर देते है।  कल्पना और कर्म साथ साथ चलने लगता है।

मन में नकारात्मक भाव भी उत्पन्न होते है। मन नकारात्मक भव के तरफ भी गतिविधि करता है। 

दिमाग का समझ क्या है? 

सही और गलत का ज्ञान अपने दिमाग से प्राप्त होता है।

तब दिमाग के सकारात्मक पहलू को अनुशरण कर के आगे बढ़ना चाइये। 

दिमाग के समझ दो प्रकार के होते है। एक सकारात्मक दूसरा नकारात्मक दिमाग के समझ है।

उसमे से सकात्मक समझ को ग्रहण कर के आगे बढ़ना चाहिये।

नकारात्मक भाव भी दिमाग में रहते ही है। 

दिमाग हर विचार भाव को दो भाग में कर देते है।

तब मन को निर्णय लेना होता है। कौन से भव, कल्पना, समझ सकारत्मक है। 

सकारात्मक समझ की ओर बढना चाहिए।   

कल्पना के दौरान दिमाग के समझ कैसे होते है? 

अपने कल्पना और दिमाग के समाज बहुत जटिल होते है। 

कल्पना के दौराम दिमाग हर वक्त समझ को दो भाग में कर देता है। 

एक सकारात्मक समझ दूसरा नकारात्मक समझ। 

कभी कभी दोनों समझ साथ में चलते है तो मन में उत्पीड़न होने लगता है।

लाख चाहने के बाद भी नकारात्मक समझ को हटाना मुश्किल पड़ जाता है।

ज्ञान के दृस्टी से देखे तो समझ एक बहुत बड़ा ज्ञान।  जो  कल्पना कर रहे होते है।

वह कल्पना संतुलित न हो कर कल्पनातीत होता जाता है।

तब नकात्मक समझ बारम्बार आते है।  संतुलित कल्पना के लिए एकाग्रता शांति, निश्चल मन, संतुलित दिल और दिमाग, मन में किसी व्यक्ति विशेष के प्रति कोई बैर भाव न हो। गलत धारणाये पहले से मन में बैठा न हो। स्वयं पर पूरा नियंत्रण हो। बहुत सजग रहना पड़ता है। तब कल्पना सकारात्मक होते है। कल्पना साकार होते है। कल्पना फलित होते है। कर्म का भाव जागता है। मन के सकारात्मक सोच कल्पना के भाव कि ओर बढ़ता है। तब कल्पना साकार होता है। कल्पना फलदायक होता है। 

सकारात्मक कल्पना और सकारात्मक सोच समझ के लिए क्या करना चाहिए  ? 

बहुत सजग रहने की आवश्यकता है। 

बड़े हो या छोटे, अपने हो या पराये, सब के लिए एक जैसा भाव होना होता है।

मन में कोई गन्दगी, गलत भावनाए, धारणाये पड़े हुआ है तो निकलना पड़ता है।   

मन में दया का भाव होना चाहिए। 

हर विषय वस्तु के प्रति सजग रहना चाहिए। 

सक्रिय रहना चाइये।  

किसी भी काम को अधूरा नहीं रखना चाहिए। 

कर्म के भाव मन में होना चाहिए।  

रात के समय पूरा नींद लेना चाहिए , देर रात तक जागना नहीं चाइये, दिन में कभी सोना नहीं चाहिए।

लोगो के साथ आत्मीयता से जुड़ना चाहिए। 

सकारात्मक बात विचार करना चाहिए। 

हर बात के प्रति सजग रहना चाहिए। 

किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए। 

सकारात्मक कल्पना के दिल और दिमाग पर क्या प्रभाव पड़ता है?

मन सकारात्मक हो कर प्रफुल्लित होता है। 

मन के भाव सकारात्मक होते है। 

सोच समझ सकारात्मक होते है। 

विचार उच्च होते है।  

अध्यात्मिल शक्ति बढ़ते है।  

मन शांत और एकाग्र होता है। 

जीवन से अंधकार दूर होता है।  

आत्म प्रकाश और आत्मज्ञाम बढ़ता है।   

नकारात्मक भाव समाप्त हो जाते है। 

मन सकारात्मक रहता है। 

सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होता है। 

दिमाग शांत और सक्रिय रहता है। 

वास्तविक जीवन ज्ञान प्राप्त होता है

कर्म से बड़ा कुछ नहीं होता है कर्म ही महान है और वही अध्यात्म है वही जीने की राह है वही सच्ची ख़ुशी है और वही इंसानियत है।

  

कर्म से मन पर प्रभाव 

अपना कर्म मनुष्य का धर्म है  जो जीवन के अध्यात्मिल प्रगति के लिए बहुत आवश्यक है। अध्यात्म मनुष्य के जीवन जीने की कला है जिससे मन पर प्रभाव पड़ता है। जीवन उच्च आदर्श के सिखने कला है  यहाँ पर तीन ज्ञान रूपी अध्यात्म का जिक्र सात्विक राजसी और तामसी है मानसिक इस्तिथि चाहे कैसी भी हो  ज्ञान उसको परिवर्तित कर सकता है एक तामसी ब्यक्ति सही प्रकार से ज्ञान के रस्ते पे चले तो अपने आत्मिक उथ्थान में प्रगति कर सकता है  

सात्विक राजसी तामसी स्वभाव होता है  जो अंतर्मन से जुड़ा होता है

जिसमे परिवर्तन इतना आसान नहीं होता है मन आसानी से परिवर्तित नहीं किया जा सकता है  मन में परिवर्तन के लिए बहुत कुछ करने पड़ते है  वो माध्यम है कर्म करना  मन को लाख मना ले पर वो मानता नहीं है  कर्म से ही मन में परिवर्तन होता है  अच्छे कर्म करने वाले के मन प्रफुल्लित होते है हर्ष और उल्लास होने भरा होता है दुसरो के खुशिया देने के माध्यम से खुशिया स्थापित हो जाते है। 

कर्म से मन कैसे परिवर्तित होता है 

मन पर प्रभाव मन लीजिये हम बुरा कोई काम करते है तो उससे उससे हमारा  मन उद्विघ्न हो जाता है जब उसी बुरे काम के जगह हम अच्छा काम किसिस के भली या सेवा के लिए करते है तो मन प्रस्सनता आता है  भले हम चाहे कितने भी बुरे क्यों न हो या हम मिर्ची कहते है तो तीखा लगता है जब चीनी  मीठा लगता है  वैसे ही बुरे इंसान के द्वारा अच्छा सेवा भाव पर अच्छा कर्म करने से उस बुरे इंसान को कुछ समय के लिए या कुछ पल के लिए मन प्रफुल्लित जरूर होता है  इसलिए निस्वार्थ सेवा भाव से मन और जायदा प्रफुल्लित होता है जैसे समाज या ब्यक्ति विशेष के लिए कुछ अच्छा करते है पर वह पर मन के अंदर किसी विषय वास्तु के प्राप्त करने केलिए कल्पना नहीं होना चाहिए  तब निस्वार्थ सेवा भाव जरूर फलित होता है। 

सतत प्रयास से मन शांत और एकाग्र होता जिसमे प्रस्सनता, प्रफुल्लता, हौसला, साहस, किसी कार्य के लिए प्रयास करने का छमता, दृढ निष्चय, निरनरंतर काम करने की छमता प्राप्त होना 

मन को धीरे धीरे प्रफुलित किया जाता है  ये प्रयास निरंतर होना चाइये  बच्चो से पायरी पैरी बाते करने से उनको कुछ मीठा खिलने मन प्रस्सन होता है चाहे कोई भी प्यारे बच्चे को देखने से किसी का भी मन प्रस्सन होता है। सेवा, किसी  की कार्य को समय पर पूरा करने से से आलस्य दूर होता है,  आलस्य दूर करने  के लिए भी निरंतर मेहनत करना पड़ता है जिससे एकाकी भाव उत्पन्न होता है जिससे किसी भी कार्य या सेवा भाव के लम्बे समय तक कायम रखने के लिए छमता प्राप्त होता है  जिसे आलस्य बिलकुल समाप्त हो जाता है।

दृढ निश्चयत के गुन का विकास होता है। निस्वार्थ सेवा भाव कर्म से आत्मिक उन्नति बढ़ता है

जिससे प्रस्सनता प्रफुल्लता मन में बढ़ता है जिसे मन में सच्चे मायने में ख़ुशी प्राप्त होता है, नकारात्मक भाव समाप्त होने लगते है, सकारात्मक ऊर्जा जीवन में फैलता है, निस्वार्थ कार्य सेवा भाव से जीवन में उन्नति मिलता है लोगो में पहचान बढ़ता है, यश और कृति प्राप्त होता है जिससे वह ब्यक्ति महान बनता है। वही वास्तव में इंसान कहलाता है। 

कर्म से बड़ा कुछ नहीं होता है कर्म ही महान है और वही अध्यात्म है वही जीने की राह है वही सच्ची ख़ुशी है और वही इंसानियत है। 

 

कर्म का भावना ऐसे ही ब्यक्ति परमात्मा के बिलकुल करीब होते है परमात्मा रूपी इंसान ही होते है ऐसे व्यक्ति का आदर सम्मान जरूर करना चाहिए

  

निरंतर प्रयास करने वाला इंसान दुसरो की भलाई के लिए भी अपने जीवन का आदर्श होता है 

हम अपने जीवन की कल्पना के कुछ ऐसे उपलब्धियों के बारे में बताते है। जिसे हम सभी जानते है। और हर किसी के जीवन में सम्मिलित भी होता है। निरंतर प्रयास करने वाला इंसान दुसरो की भलाई करते हुए और समाज की हर पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए आगे बढ़ता जाता है। वाकई वास्तव में वाही इंसान कहलाता है। जो सब की भलाई के लिए जाना जाता है। वही सच्चा इंसान होता है। जिनपर परमात्मा की असीम कृपया होती है।

सकारात्मक इंसान से मेलजोल बढाने से जो ज्ञान प्राप्त होता है उसे शांति औए सुकून महशुस करते है 

ऐसे इंसान से मिलने या मेलजोल बढाने से जो ज्ञान प्राप्त होता है। उसे सुकून और शांति कहते है। जिसमे पास जाने से आत्मा को सुकून महशुस होता है। ऐसे इंसान विरले ही दुनिया में होते है। ऐसे इंसान कही भी केवल जब हमें मिलते है तो बहुत ख़ुशी भी मिलती है। क्योंकि वो ख़ुशियों के बाटते रहते है। उनकी झोली से कभी खुशी समाप्त ही नहीं होती है। जितनी ख़ुशी वो देते है। खुशिया उतना ही बढ़ते जाते है। ऐसे इंसान अपने घर में हमारे माता ही होते है। दादा दादी भी होते है। समाज में बड़े बुजुर्ग भी हो सकते है। जिनको सच्चा ज्ञान होता है। जिन्होंने जीवन के हरेक पहलुओं को देख होता है। ऐसे इंसान को आदर सम्मान अवश्य करना चाहिए।

इसके अलावा कुछ और ऐसी भी होते है। जिनको समाज में या समाज के बहार से भी सम्मान मिलता है। जिनको देखने या मिलाने लोग जाते है। जो कभी भी अपने क्षेत्र या शहर में आते है। उनके प्रकाश से सब चमक उठता है। जिनके बोली वचन से सब प्रभावित होते है। वे सद्गुण सदाचार होते है। जिनको सम्मान करने का भी मन करता है। जिनके मन में कोई लालच नहीं होता है।  कोई मानशिक भाव नहीं होता है। तामशी भाव नहीं होता है। लोभी का भाव नहीं होता है। जो धन के पीछे नहीं भागते है। सिर्फ कर्म का भावना उनका होता है। ऐसे ही ब्यक्ति परमात्मा के बिलकुल करीब होते है। वे परमात्मा रूपी इंसान ही होते है। इसलिए ऐसे व्यक्ति का आदर सम्मान जरूर करना चाहिए।

जीवन की कल्पना में किसी को मान सम्मान देना बहूत बड़ी बात है 

अपने जीवन की कल्पना में किसी को मान सम्मान देना या किसी से मान सम्मान लेना बहुत बड़ी बात होती है। समझ सूझ बुझ से जो ब्यक्ति अपने जीवन का निर्वाह करता है। जो सकारात्मक प्रवृति को समझता है। व्यक्तिव के सही भावना को जनता है। अपने जीवन में सक्रिय रहते हुए अपने कार्य या सेव के क्षेत्र में विकाश करता है।  लोगो को सच्चा ज्ञान देता है। जिनके अंदर इंसानियत कूट कूट भरा होता है। जो विषय वस्तु के प्रति जागरूक होता है। वही भला इंसान होता है। जिसके अंदर असिमित ज्ञान और शिक्षा होता है। जो क्रियावान होता है। ऐसे व्यक्ति को सम्मान जरूर करना चाहिये।

जीवन की कल्पना में आगे बढ़े

जीवन की कल्पना में यदि आगे बढ़ना चाहते है। तो ऐसे ज्ञानवान व्यक्ति की प्रेरणा जरूर लेना चाहिये। ज्ञानवान व्यक्ति का मुख्य लक्ष्य काम धंदा के क्षेत्र हो या सेवाभाव का क्षेत्र हो। सभी जगह सही और सकारात्मक ज्ञान का प्रचार और प्रसार करना ही उनका उद्देश्य होता है। जिससे उनको ख्याति प्राप्त होता है। कल्पना में इस प्रकार से अवश्य मनन करना चाहिये।  

कबीर दास जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा दया लेकिन जब मैंने खुद अपने मन के अंदर में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई इंसान नहीं है दुनिया में

  कबीर दस जी कहते है। कि मैं सारा जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा दया। लेकिन जब मैंने खुद अपने मन के अंदर में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई इंसान नहीं है दुनिया में। मैं ही सबसे स्वार्थी और बुरा हूँ। हम लोग दूसरों की बुराइयां बहुत देखते हैं। लेकिन अगर हम खुद के मन के अंदर झाँक कर देखेंगे तो पाएंगे कि हमसे बुरा कोई इंसान इस दुनिया में नहीं है।

कनिष्ठ तकनीकी सहायक में व्यावसायिक ज्ञान में किस प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं? हिसाब किताब में सब बहूत जरूरी है

  

ज्ञान के स्रोत

ज्ञान के स्रोत जीवन में किसी भी क्षेत्र में बहूत जरूरी है। अब तक किसी भी कार्य ब्यवस्था के लिए उचित जानकारी या ज्ञान न हो तो उस उपक्रम को चलाना मुस्किल पड़ जाता है। ब्यापार क्षेत्र में औद्योगिकी पढाई की पूरी जानकारी होनी ही चाहिए। जब तक औद्योगिकी की सही ज्ञान नहीं होगा तब तक कुछ भी संभव नहीं है। जो लोग उत्पादन क्षेत्र में काम कर रहे है। उनको उत्पादन का पूरा ज्ञान होना चाहिए। कौन सा मशीन कैसे चलता है। क्या सामान लगता है। सामान को कैसे तयार किया जाता है। सभी माप और उपकरण के ज्ञान के बाद ही कोई काम संभव है।

कोई कारीगर का मुखिया होता है तो उसको कम का पूरा ज्ञान होता है। तभी वो मुखिया बनता है। मुखिया को चाहिए की सभी कारीगर को सही ढंग से चलये। दिए हुए कार्य को समय पर पूरा करने का प्रयास करे। साथ में कामगारों के साथ नम्रता से और हमसाथी बनकर काम करने का अच्छा ज्ञान होना चाहिए।

 

  ज्ञान के स्रोत

क्या सामान्य से अधिक सामान्य ज्ञान होना बुरा है?

सामान्य से अधिक सामान्य ज्ञान होना कभी बुरा नहीं होता है। ज्ञान स्वयं सकारात्मक है। इसलिए ज्ञान सामान्य हो या सामान्य अधिक या असामान्य ज्ञान, सब ज्ञान के स्रोत ही होता है। कुछ लोग कभी कभी घमंड में आ कर बहूत ज्यादा ज्ञान के घमंड में उसको अपने ज्ञान का घमंड हो जाता है। तो दुसरे लोगो के के बिच सामान्य से अधिक सामान्य ज्ञान होना बुरा ही होता है। ज्ञान सबको होता है। क्या अच्छा है? क्या बुरा है? सबको पता है। इसलिए अत्यधिक ज्ञान का घमंड बुरा ही होता है। लोगो को उसकी मनसा पता चल चल जाता है। लोग उससे दुरी बनाने में लग जाते है। तब सामान्य से अधिक सामान्य ज्ञान होना उसके कोई काम का नहीं होता है। उसके लिए करनी से ज्यादा कथनी का बोध हो जाता है। फिर वो ज्ञान किस काम का होगा।  

 

कनिष्ठ तकनीकी सहायक में व्यावसायिक ज्ञान में किस प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं?

कनिष्ठ तकनीकी सहायक में व्यावसायिक ज्ञान में सबसे पहले स्नातक या उच्च माध्यमिक होना आवश्यक है। खाते लेखनी बहूत जरूरी है। शोर्ट टाइपिंग, कंप्यूटर ज्ञान, रोजमर्रा के हिसाब का तकनिकी, नकद लेन-देन, उधर सब प्रकार के हिसाब रखने का ज्ञान होना चाहिए।

कामगार के हिसाब किताब रखने का ज्ञान होना बहूत जरूरी है। कामगार के रोज का हजारी और लेन-देन का हिसाब रखने का ज्ञान जरूरी है। सबसे जरूरी है बात करने के तरीके का ज्ञान अच्छा होना चाहिए। पढाई लिखाई में जो ज्ञान सीखे है। उसका याद रहना जरूरी है। हिसाब किताब में ये सब बहूत जरूरी है। कनिष्ठ तकनीकी सहायक में व्यावसायिक ज्ञान में इस प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं।

 

 

एलेक्सा बिल्कुल नए एलेक्सा वॉयस रिमोट के साथ फायर टीवी स्टिक तीसरी पीढ़ी, 2021 टीवी और ऐप नियंत्रण शामिल हैं एचडी स्ट्रीमिंग डिवाइस 2021 रिलीज

  बिल्कुल नए एलेक्सा वॉयस रिमोट के साथ फायर टीवी स्टिक तीसरी पीढ़ी, 2021 टीवी और ऐप नियंत्रण शामिल हैं एचडी स्ट्रीमिंग डिवाइस  2021 रिलीज

 

Latest new generation 2021 Fire TV Stick third Generation  with all new Alexa Voice Remote includes TV and app controls  HD streaming device  2021 release

 

 

 
 

 

बिल्कुल नए एलेक्सा वॉयस रिमोट के साथ फायर टीवी स्टिक तीसरी पीढ़ी, 2021 टीवी और ऐप नियंत्रण शामिल हैं एचडी स्ट्रीमिंग डिवाइस  2021 रिलीज

 

 

 

हमारे सबसे ज्यादा बिकने वाले फायर टीवी डिवाइस की नवीनतम पीढ़ी - फुल एचडी में तेज स्ट्रीमिंग के लिए दूसरी पीढ़ी की तुलना में 50% अधिक शक्तिशाली। पावर और वॉल्यूम बटन के साथ एलेक्सा वॉयस रिमोट शामिल है।

कम अव्यवस्थाअधिक नियंत्रण - बिल्कुल नया एलेक्सा वॉयस रिमोट (तीसरी पीढ़ी) आपको अपनी आवाज का उपयोग सभी ऐप्स में शो खोजने और लॉन्च करने की सुविधा देता है। सभी नए प्रीसेट बटन आपको पसंदीदा ऐप्स पर शीघ्रता से ले जाते हैं। साथ हीएक ही रिमोट से अपने टीवी और साउंडबार पर पावर और वॉल्यूम को नियंत्रित करें।

डॉल्बी एटमॉस के साथ होम थिएटर ऑडियो - संगत होम ऑडियो सिस्टम के साथ चुनिंदा शीर्षकों पर इमर्सिव डॉल्बी एटमॉस ऑडियो के साथ फील सीन जीवंत होते हैं।

Prime Video, Netflix, Disney+ Hotstar, Zee5, SonyLIV, Sun NXT, ALT Balaji, Discovery Plus और कई अन्य ऐप्स से हजारों फिल्में और शो। सदस्यता शुल्क लागू हो सकता है।

क्या मुफ़्त है - YouTube, YouTube Kids, MXPlayer, TVFPlay, YuppTV और भी बहुत कुछ।

फुल एचडी पिक्चर क्वालिटी और डॉल्बी एटमॉस ऑडियो का आनंद लें।

फोन और लैपटॉप से ​​​​टीवी पर मिरर सामग्री। संगत ब्लूटूथ हेडफ़ोन के साथ युग्मित करें।

एलेक्सा वॉयस सर्च - सिर्फ अपनी आवाज से आसानी से

सर्चप्लेपॉजरिवाइंड या फॉरवर्ड कंटेंट। सीधे शब्दों में कहें "एलेक्साकॉमेडी खोजें"।

 

बिल्कुल नए एलेक्सा वॉयस रिमोट के साथ फायर टीवी स्टिक तीसरी पीढ़ी,

2021 टीवी और ऐप नियंत्रण शामिल हैं एचडी स्ट्रीमिंग डिवाइस  2021 रिलीज

 

हमारे सबसे ज्यादा बिकने वाले फायर टीवी डिवाइस की नवीनतम पीढ़ी -

फुल एचडी में तेज स्ट्रीमिंग के लिए दूसरी पीढ़ी की तुलना में 50% अधिक शक्तिशाली।

पावर और वॉल्यूम बटन के साथ एलेक्सा वॉयस रिमोट शामिल है।

फायर टीवी स्टिक प्लस के साथ एक साल के लिए Zee5, SonyLIV और वूट सेलेक्ट का मुफ्त एक्सेस प्राप्त करें। सदस्यता शुल्क दूसरे वर्ष से लागू हो सकता है। फायर टीवी स्टिक और सब्सक्रिप्शन की कुल कीमत 7996 रुपये है।

डॉल्बी एटमॉस के साथ होम थिएटर ऑडियो - संगत होम ऑडियो सिस्टम के साथ चुनिंदा शीर्षकों पर इमर्सिव डॉल्बी एटमॉस ऑडियो के साथ फील सीन जीवंत होते हैं।

Zee5, SonyLIV, Voot Select, Prime Video, Netflix, Disney+ Hotstar, Sun NXT, ALT Balaji, Discovery Plus और कई अन्य ऐप्स से हजारों फिल्में और शो। सदस्यता शुल्क लागू हो सकता है।

क्या शामिल है - Zee5, SonyLIV और Voot Select का एक साल का सब्सक्रिप्शन। इसके अतिरिक्त, YouTube, YouTube Kids, MXPlayer, TVFPlay, YuppTV और कई अन्य सेवाओं का निःशुल्क आनंद लें।

 

उन्नति के लिए किसी ऐसे ब्यक्ति के ज्ञान का सहारा लिया व्यक्ति अपने कार्य क्षेत्र में विशेष अनुभव प्राप्त किया हो जीवन के विकाश के लिए प्रेरणादायक उद्धरण बनता है

  

प्रेरणादायक उद्धरण

जीवन में उन्नति के लिए किसी ऐसे ब्यक्ति के ज्ञान का सहारा लिया जाता है।

जो व्यक्ति अपने कार्य क्षेत्र में विशेष अनुभव प्राप्त किया हो।

जो सफल हो ऐसे व्यक्ति को अपने जीवन के विकाश के लिए प्रेरणादायक उद्धरण बनता है।

जिनके अनुभव और ज्ञान को प्राप्त कर के अपने जीवन में कुछ नया आयाम दिया जाता है।

अपने जीवन में उन्नति करने के लिए होता है। 

प्रेरणा सिर्फ लेने से नहीं होता है।

उनके काम करने की शैली, बात विचार के शैली, रहन सहन की शैली हर तरीके के ज्ञान को समझ कर आगे बढ़ते है।

उनके अनुभव को अपने जीवन में स्थापित करते है।

प्रेरणादायक उद्धरण होते है। स्कूल कॉलेज से सिर्फ ज्ञान ही मिलता है।

ज्ञान को जीवन में स्थापित करने के लिए अनुभव की बहूत आवश्यकता होता है।

जब तक किसी अनुभवी ब्यक्ति से नहीं मिलेंगे।

तब तक ज्ञान का विकाश नहीं होगा।

ज्ञान के अनुभव का विकाश जिस अनुभवी ब्यक्ति के माध्यम से होता है।

प्रेरणादायक ब्यक्ति के प्रेरणादायक उद्धरण होता है।

घर परिवार में माता पिता, दादा दादी के द्वारा दिया हुआ उद्धरण होता है।

सबसे पहले घर परिवार में माता पिता, दादा दादी से पहला अनुभव प्राप्त होता है।

   प्रेरणादायक ज्ञान 

उत्साह स्वावलंबन से ऊपर होने पर होता है.

 

जीवन के विचारधारा में कर्म का उत्साह

 

उत्साह जीवन के लिए जितना अहेमियत रखता है उतना ही कर्म पर प्रभाव डालता है.

कर्म जीवन का वो इकाई है जिसे स्वाबलंबन के मात्र को माप सकते है.

अपने कर्म में खुद के लिए कुछ नहीं होता है.

कर्म दूसरो के भलाई और उपकार के लिए ही आका जाता है.

मनुष्यता तब तक वो पूर्ण नहीं जब तक की वो निस्वार्थ भाव से कोई कर्म न करे.

यदि ऐसा भावना जीवन में नहीं आ रहा है.

कही न कही और कोई न कोई बहूत बड़ी कमी है.

जो या तो पता नहीं चल रहा है या ठीक से उजागर नहीं हो रहा है.

स्वयम के लिए सोचते और करते तो सब है.

पर कभी दूसरो के लिए भी करे तो वास्तविक जीवन का एहसास होता है.

सब जानते है और सब करते है तो भी ये कभी समझ नहीं आता है की वास्तविक जीवन क्या है?

अपने लिए जीना तो है ही, वो तो सबसे बड़ा कर्म है.

जब तक मनुष्य खुद के लिए नहीं करेगा तब तक दूसरो के लिए कैसे कर सकता है.

ज्ञान का पहला प्रयोग तो खुद पर ही होता है तब उससे जो उपार्जन होता है.

तो घर परिवार रिश्ते नाते और जान पहचान तक जाता है भले थोडा सा ही अंश क्यों नहीं हो.

स्वयम में सक्षम होने के बाद ही मनुष्य दूसरो के लिए कुछ कर पाता है.

वही उत्साह का कारन होता है.

 

उत्साह स्वावलंबन से ऊपर होने पर होता है.

जिसमे मनुष्य जीवन के हर पहलू का अध्यन करने के बाद जब पारंगत होता है.

तो ज्ञान का प्रभाव दूसरो पर भी पड़ता है.

उसके बातो से या उसके कार्यो से जो लोग उसे समझने लगते है.

उसे पढने का प्रयास भी करते है.

सच्चा ज्ञान कही छुपा नहीं रहता है.

कही न कही से किसी न किसी रूप में उजागर होता ही रहता है.

ये वास्तविक ज्ञान की परिभासा है.

चीजे जब अच्छी हो तो हर कोई पसंद करता है और उसका गुणगान करता है.

 

ज्ञान से निकले सकारात्मक भाव

जिसमे सब के लिए कुछ न कुछ समाहित होता है तो वो प्रेरणा देता है.

जब किसी के लिए कुछ करते है तो वो देय के भावना से उजागर होना चाहिए.

न की स्वार्थ के भावना से नहीं तो वो कर्म के दायरे में आएगा ही नहीं.

स्वाबलंबन दूर होता चल जायेगा.

जहा स्वयम के लिए कुछ भी नहीं होते हुए जब दूसरो के भलाई और उत्थान के उद्देश्य से कुछ होता है.

तो मन को वास्तविक शांति मिलती है.

 

जीवन के विचारधारा मे खुद को आजमाने के लिए स्वयं को परख सकते है.

कोई अंजान ब्यक्ति यदि भूखा है.

यदि कह रहा है की "मै बुखा हूँ मुझे भोजन चाहिए" यदि मन में उपकार की भावना है.

तो जरूर उसे भोजन करा देंगे.

यदि ये सोचेंगे की इसे भोजन करा के मुझे क्या मिलेगा?

तो वो उपकार करना या नहीं करना दोनों एक जैसा ही हो जायेगा.

भले उसको इस भावना से भोजन करा भी दिए.

तो ऐसा भावना लाना स्वयम के स्तर से और निचे गिरना होगा.

यदि बगैर सोचे समझे यदि मन कह रहा है की इसे भोजन करा दे.

स्वच्छ मन से प्रेम से उनको भोजन करा देते है.

बाद में उस भावना से अपने मन को टटोल कर देखे,

उस भावाना से कही न कही किसी न किसी कोने कोई ख़ुशी जरूरछुपी दिखेगी.

उस ख़ुशी में झांक कर देखिये.

वो वास्तविक ख़ुशी से बहूत ऊपर होगा. उस भाव में ख़ुशी के साथ एक उत्साह भी होगा.

ऐसे उत्साह निस्वार्थ भाव के कर्म से ही मिलते है.

देश काल और पत्र के अनुसार जब सब संतुलित होता है.

जीवन में अतुलित ख़ुशी मिलता है.

अपने जीवन के ख़ुशी में संतुलन भोग विलाश से ज्यादा देय के भावना से होता है.     

जीवन के विचारधारा मे खुशी और वास्तविक ख़ुशी में बहूत अंतर होता है.     

  जीवन के विचारधारा 

ईश्वर भक्ति के रास्ते पर चलने वाला इन्शान

  

ईश्वर भक्ति के रास्ते पर चलने वाला इन्शान के लिए किसी  पवित्र जगह या अपवित्र जगह जाने से उसके मन में कोई प्रभाव  नहीं पड़ता है.

सफलता का मार्ग अपने संघर्षरत जीवन में सुख हो या दुःख उससे भी उसको कोई प्रभाव नहीं पड़ता है.

मन में ईश्वर के नाम लेते लेते सभी आसान और दिक्कत भरे रास्ते पर चलते हुए अपने कर्तव्य को पूरा करता रहता है.

भले वो कर्तव्य मार्ग पर ईश्वर का साधना करते करते हुए मृतु के द्वार भी चले जाये.

तो भी वो अपने मन को ईश्वर के माध्यम से साधने से कभी पीछे नहीं हटता है.

ऐसा करने से वो मृतु के कगार पर भी चला जाता है तो भी वो ईश्वर साधना में अपना जीवन सार्थक मानता है.

 

जो व्यक्ति अपने शारीर को पलता है मेहनत नहीं करता है.

अपने काम और कर्त्तव्य से बचने के लिए किसी पवित्र जगह पर हमेशा रहकर ईश्वर का साधना करना चाहता है.

भले ऐसा करने से दानवीर लोगो के द्वारा उसका भरण पोषण होता रहता है. लोग उसे भक्ति भावना में लीन मानाने लगते है.

ईश्वर के परम भक्त तक समझने लगते है. पर ऐसा कुछ नहीं होता है.

वो ईश्वर के बिलकुल भी करीब नहीं होता है. अपने कामचोरी के नियत को बढ़ावा देता है.

ऐसे नियत वाले व्यक्ति खुद को ईश्वर के भरोसे मानते है.

दिन रात चौबीसों घंटे ईश्वर के नाम में लीन रहते है.

अपने कार्य और कर्तव्यों से भागते रहते है इनका भरोसा ईश्वर पर ही होता है.

जिससे इन्हें देने वाले के द्वारा भोजन और पैसे तो मिल जाता है.

पर ईश्वर की प्राप्ति तो दूर की बात वो इसके काविल भी नहीं बनते है.

 

जीवन में सफलता का मार्ग एक ही है.

करी मेहनत, संघर्स, सुख, दुःख को भोगते हुए जो जीवन को समझता है.

अपने मन को साधता है.

भले ईश्वर भक्ति हो या अपने कर्त्तव्य का पालन करना दोनों ही सार्थक माना जाता है.

ऐसे व्यक्ति को ईश्वर और परमात्मा सभी मदद करते है.

  सफलता का मार्ग 

आपत्ति और विपत्ति मे संचित धन ही काम आता है

  

आपत्ति और विपत्ति मे संचित धन ही काम आता है।

अमीरों को ये नहीं भूलना चाहिए की धन मे चंचलता होता है।

वो कभी भी समाप्त हो सकता है।

जीवन के निर्वाह मे संतुलन के लिए और भविष्य के लिए धन का संचय और रक्षा बहूत जरूरी है।

माना की वर्तमान समय अपना अच्छा चल रहा है।

पर ये कभी भी नहीं भूलना चाहिए की समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता है।

समय मे उतार चढ़ाओ आते ही रहते है।

आज अपना समय ठीक है पर भविष्य मे अपना समय कैसा होगा ये कोई नहीं कह सकता है।

इन सभी प्रकार के मुसीबत से बचने के लिए वर्तमान मे कमाए धन मे से थोड़ा धन भविष्य मे लिए बचाकर रखना चाहिए।

जिससे आगे के समय मे किसी भी प्रकार के आर्थिस तंगी का सामना नहीं करना पड़े

 

धनवान व्यक्ति कहता है की मेरे पास धन संचित है। मुझे कभी मुसीबत पड़ ही नहीं सकता है।

वास्तव मे ऐसा नहीं होता है।

धनी व्यक्ति के पास धन होने के साथ साथ उनके खर्चे भी उतने ही होते है।

एक साधारण व्यक्ति के पास बहूत मुसकिल आज के समय मे अपना घर होता है।

जिसमे वो अपना गुजर बसर करता है। जब की धनवान व्यक्ति के आने वाले आमदनी के साथ खर्चे भी होते है। जिसमे निरंतर खर्च होता रहता है।

आलीशान घर मे बिजली बत्ती सजावट रहने के तरीके मे दिन प्रति दिन बढ़ोतरी  होता रहता है।

जिसे धन के द्वारा ही अर्जित किया जाता है।

समय के बदलाओ के साथ आने वाले आमदनी मे कमी के संभावना से ये सभी आलीशान जौर जरूरत की चिजे को प्राप्त करने मे दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है।

तब अपने जरूरतों को पूरा करने के लिए संचित धन भी खर्च होने लग जाएंगे और अंत मे मुसीबत आना तय है।

मनुष्य को कभी भी नहीं भूलना चाहिए की धन मे चंचलता होता है।

धन की प्रकृति इस्थिर नहीं रहता है। धन आना जाना लगा रहता है।

आज एक के पास तो कल दूसरे के पास आता जाता रहता है।

आर्थिक दृस्टी से कभी समय अच्छा तो कभी समय बुरा होता है।

चाहे जितना भी धन कमा ले फिर भी समय से उम्मीद नहीं कर सकते है की अपना आगे का समय वर्तमान के जैसा हो।

हो सके तो वर्तमान मे कमाए धन मे से थोड़ा धन भविष्य के लिए जरूर बचाकर रखना चाहिए।

कई बार तो ऐसा भी देखा गया है की भविष्य के लिए बचाए धन भी खर्च हो कर समाप्त हो जाते है।

मुसीबर कब किसपर आ जाए ये कोई नहीं जनता है।

धन की चंचलता और बेबुनियाद खर्च एक न एक दिन संचित धन को समाप्त कर देता है।

  संचित धन 

आध्यात्म क्या है।

  

आध्यात्म क्या है? ईश्वर की साधना से सही रास्ते पर चलने का ज्ञान मिलता है।

अपने मन के अंदर झकने से पता चलता है की हम कहा तक सही और गलत है। गलत और असत्य चीज को निकालने कला आध्यात्म से जुड़ा है। मन के घृणापन, दुख, गंदी भावनाए से खुद को बचाकर जीवन जीने की कला सत्य के रास्ते पर चलने से मिलता है। प्यार, दुलार, आदर, सत्कार करने की भावना आध्यात्म सिखाता है। अपने ईस्ट देव के भक्ति भावना से मन को सलतापन मिलता है जिसका पालन अपने वास्तविक जीवन मे करते है।

 

ईश्वर की साधना से सही रास्ते पर चलने का ज्ञान मिलता है।

मन के अंदर भरे हुए गंदगी से छुटकारा पाने का रास्ता मिलता है। जीवन के निर्वाह मे सही रास्ते पर चलने का ज्ञान मिलता है। आपसी व्यवहार मे सरलता का व्याख्या आध्यात्म से सीख जाता है।

 

ईश्वर साधना मात्र मन को सकारात्मक और संतुलित करने का माध्यम है। साधना मे अपने ईस्ट देव से कुछ मांगने से मन का भाव बढ़ता है। जिससे मन संसार के अच्छे बुरे मोह मे इंसान फसते जाता है। साधना के दौरान सरल रहना चाहिए जैसे वो सब खुशी हमे प्राप्त है जो परमात्मा ने हमे दिया है। इससे मन का सलतापन बढ़ता है। मन के सहज होने से मन मे अच्छे ख्याल आते है। विचार साफ और संतुलित होता है। मन के गंदगी के साफ होने के साथ जीवन का प्रकाश बढ़ता है। जिससे जीवन का आयाम बढ़ते जाता है।

 

मन के दुखी होने से निष्ठुरता का विकाश होता है। जिससे मन जिद्दी और अड़ियल होते जाता है। ये सभी नकारात्मक प्रवृत्ति है।  जिससे मन जीवन को दुख की ओर धकेलते जाता है।

 

आध्यात्म की साधना मे जरूरी नहीं की ध्यान ही किया जाए।

मन के भाव को सहज कर के व्यवहार करने से मन सकारात्मक होता है। कम, क्रोध, लोभ, मोह, माया के त्याग से मन शांत होता है। दुशरो को तकलीफ न देखर उसको खुशी देने से अपना अन्तर्मन उत्साहित होता है। जरूरत पड़ने पर सही के लिए अड़ियल रहना ही जीवन का संतुलन है। बाहरी उथल पुथल से मन को बचाकर रखने से जीवन मे निडरता का आभास होता है। सही के लिए गलत से लड़ना पड़ता है। दुखी मजलूम को मदद करने से हृदय उत्साहित रहता है। जीवन मे जो भी उपलब्ध है उससे दूसरों को मदद करने से ही जीवन सकारात्मक रहता है।

 

आध्यात्म क्या है खुद के लिए सोचने से जीवन मे मोह बढ़ता है। जो की नकारात्मक प्रवृत्ति है। खुशी और उत्साह बगैर लालच कर के जो जीवन मे प्राप्त होता है वो नीव का पत्थर कहलाता है। सकारात्मक प्रवृत्ति ही सबसे बड़ा आध्यात्म है।

आधुनिक दिनों में ज्ञान को समृद्ध करने में डाक टिकट संग्रह की भूमिका. ज्ञान हर हाल में मनुष्य को प्रेरित ही करता है. मन के सकारात्मक पहलू ज्ञान ही है जो समय और अवस्था के अनुसार उजागर होते रहते है.

  

आधुनिक दिनों में प्रत्यक्ष ज्ञानको समृद्ध करने में डाक टिकट संग्रह की भूमिका.

प्रत्यक्ष ज्ञान हर हाल में मनुष्य को प्रेरित ही करता है.

मन के सकारात्मक पहलू ज्ञान ही है जो समय और अवस्था के अनुसार उजागर होते रहते है.

मन के विचार और मस्तिस्क के सोच से ज्ञान ही मिलता है.

सबसे बड़ा ज्ञान का माध्यम प्रकृति और विचारवान व्यक्ति होते है.

जिनके चर्चा देश और दुनिया भी करता है.

महापुरुष के प्रेरणादायक विचार और ज्ञान लोगो को प्रेरित करता है.

आमतौर पर डाक टिकट में या तो महापुरुस के तस्वीर होते हा या प्रकृति से जुड़े तस्वीर या निशान होते है.

अक्सर देख गया है की जो व्यक्ति किसी महापुरुस के बात से या प्रकृति से प्रेरित होते है.

उनसे जुड़े हुए निशानी संग्रह करते है. जैसे नोट, सिक्के, तस्वीर, डाक टिकट, लेख इत्यादि इन साभी में सबसे ज्यादा लोग डाक टिकट संग्रह करते है.

डाक से आये पत्र में से डाक टिकट कट कर कही चिपका कर रख लेते है.

ज्ञान को समृद्ध करने में डाक टिकट संग्रह की भूमिका सिर्फ और सर्फ प्रेरणादायक उनके विचार और ज्ञान जो उन्हें समृद्धि देता है.       

 

अपने प्रत्यक्ष ज्ञान के विभिन्न प्रकार क्या हैं?

प्रत्यक्ष ज्ञान में जब हम कुछ करते है और उस कार्य को करने का पूरा ज्ञान नहीं होता है.

तो अपने से होने वाला गलती ही हमें सही दिशा में काम करने का रास्ता बताता है.

ज्ञान के तौर पर कहे तो सबसे ज्यादा ज्ञान तो हमें गलती कर के मिलता है.

जो भविष्य में सुधर कर लेते है.

जब तक इन्सान ज्ञान के तलाश में या कुछ कर गुजरने के लिए गलती नहीं करेगा तब तक वास्तविक ज्ञान का अनुभव नहीं होगा.

यदि हम सोचेंगे की हमसे कोई भी गलती नहीं हो तो फिर अपना ज्ञान सिमित ही होगा.

इससे ज्ञान में विस्तार नहीं होगा.

 

प्रेरणादायक विचार और विद्वान व्यक्ति के सोच से उत्पन्न ज्ञान अनुशरण करने पर अपना ही प्रत्यक्ष ज्ञान बढ़ता है.

स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाले पुस्तक में किसी न किसी विषय के ज्ञानी के ही विचार और सिखने का तरीका होता है.

भले शिक्षा के बाद भी बहूत लोग पुस्तके पढना जरूरी समझते है. वो ज्ञान के ही माध्यम है.

 

किसी कार्य हो होते देखने से समझ बढ़ता है.

अध्ययन में पुस्तक पढ़ने लिखने के साथ विषय वस्तु के प्रयोग से ज्ञान का विस्तार होता है.

जिससे अपन प्रयास बढ़ता है. 

किसी भी प्रकार के गलती करने के बाद निराश न हो कर सुधर के लिए आगे बढ़ने और संघर्स करने से ज्ञान के बारिकियत समझ में आता है.   

 

+2 वाणिज्य के बाद प्रवेश परीक्षा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए मुझे कौन सी वेबसाइट स्थापित करनी चाहिए

प्रत्यक्ष ज्ञान नाम के लिए मोहताज नहीं होता है.

जो ज्ञान हासिल करने के इक्छुक है वो तिनके से भी ज्ञान प्राप्त कर सकते है.

अब रहा बात वेबसाइट स्थापित करने के लिए जो सरकार या पाठ्यकर्म सुझाव देता है उसको स्थापित करे.

ये कोई जरूरी नहीं की कोई नामी वेबसाइट ही अच्छा ज्ञान देगा.

ज्ञान तो वो होता है. जो हलके समझ से भी ज्ञान के रोशनी जले जो सबको प्रकाशित करे. 

   प्रत्यक्ष ज्ञान 

आत्म प्रेरणा उद्धरण

  

आत्म प्रेरणा उद्धरण

जीवन मे प्रेरणा अपने माता पिता के साथ अध्यापक से मिलता है।

प्रेरणा जीवन और मन को परिवर्तित करने के लिए आधार स्तम्भ का काम करता है।

शिक्षा के माध्यम से जो अपने मन को अच्छा लगता है उससे मिलने वाला उपलब्धि का कारण आत्म प्रेरणा होता है।

जीवन मे अच्छे कार्य करने से मन और आत्मा को संतुसती मिलना है। अच्छा कार्य भी आत्म प्रेरणा का कारण बनता है।

अपने जीवन मे होने वाले गलती को सुधार कर जो अच्छा प्रतिबिंब जीवन मे ढालता है

आत्म प्रेरणा का प्रमुख उद्देश्य होता है।

गलती कौन नहीं करता है? पर जो गलती कर के अपने जीवन मे परिवर्तन लाता है।

कुछ अच्छा करने के लिए आगे बढ़ता है तो स्व प्रेरणा से ही होता है।

    आत्म प्रेरणा उद्धरण 

सही गलत का पहचान कर के जो अपने जीवन सही रास्ता अपनाता है।

सत्य के रास्ते पर चलता है। विपरीत परिसतिथी मे घबराता नहीं है।

लोगो को अच्छे कार्य के लिए प्रेरित करता है। वो सब आत्म प्रेरणा के कारण ही होता है।

जब तक व्यक्ति गलती नहीं करता है तब तक सही और गलत का यहसास नहीं होता है।

जीवन को सही ढंग से जीने और आगे के भविष्य को संभालने के लिए जरूरी कदम।

जीवन को संतुलित और अर्थपूर्ण होना आवश्यक है। अपने अस्तित्व मे सही ढंग से जानकारी प्राप्त करने के लिए मन के अंदर झकना पड़ता है। मन मे पड़े हुए उतार चढ़ाओ को समझ कर जीवन के जरूरी अध्याय को उभारते हुए नकारत्मक प्रब्रिति को जीवन से निकालना होता है। जैसे जैसे मन से गंदगी दूर है। वैसे वैसे जीवन उत्थान के तरफ बढ़ता है। इन सभी प्रक्रिया मे खुद पर विश्वास रखते हुए खुद को प्ररित करते हुए। अपने आयाम को नियंत्रित कर के संतुलन प्राप्त किया जाता है। उपलब्धि अपने खुद के प्रेरणा से ही प्राप्त किया जाता है। जीवन के संतुलन को यदि खुद के प्रेयराना से प्राप्त करते है तो वो अपने आयाम मे विकसित होते जाते है। खुद के जिंदगी को संभालने के लिए सबसे पहले खुद को अच्छे मार्ग पर चलने के लिए प्ररित करना पड़ता है। तब जीवन मे सफलता प्राप्त होता है।

अहंकार मनुष्य के एकाग्रता सूझ बुझ समझदारी सरलता सहजता विनम्रता स्वभाव को ख़त्म कर सकता है

  

अहंकार मनुष्य के एकाग्रता सूझ बुझ समझदारी सरलता सहजता विनम्रता स्वभाव को ख़त्म कर सकता है  

अहंकारी स्वभाव यह एक ऐसी प्रवृत्ति है  जिसमे इंसान खुद को डुबो कर अपना सब कुछ ख़त्म करने के कगार पर आ जाता है  इसका परिणाम जल्दी तो नहीं मिलता है, पर मिलता जरूर है.  जब इसका परिणाम मिलता है  तब तक बहुत देर हो चुकी होती है  फिर कोई रास्ता नहीं बचता है.  इस अहंकार के वजह से पहले तो उनके अपना पराया उनसे छूट जाते है  क्योकि वो कभी किसी की क़द्र नहीं करता है.  

अपने घमंड में समाज में वो आपने  को सबसे बड़ा समझता है तो वाहा से भी लोग उससे किनारा कर लेते है. 

भले ताकत और हैसियत के वजह से कोई उनके सामने तो कुछ नहीं कहता है पर उनसे किनारा जरूर कर लेता है.  इसका परिणाम घर में भी नजर आता है.  जैसा स्वभाव उनका होता है वैसे ही घर के सभी लोगो का भी होता जाता है.  तो उनसे भी लोग किनारा करने लग जाते है ये हकीकत है.  समाज में इस प्रकार के स्वभाव के लोगो को देखा गया है.  हम किसी  ब्यक्ति विशेष का जिक्र नहीं कर रहे हैं  अहंकारी स्वभाव का जिक्र कर रहे है।  

अहंकारी स्वभाव का एक परिभाषा है 

जो जीवन के राह में देखते आया हूँ  ऐसे लोगों के बारे में सुनता हूँ  समझता हूँ  कि ऐसे लोगों का आखिर होगा क्या?  सब कुछ तो है उनके पास सिर्फ सरलता नहीं  सहजता नहीं  मिलनसार नहीं  एक दूसए के दुःख दर्द में साथ देने वाला नहीं  जो सिर्फ अपने मतलब के लिए जीता है।  

जीवन में सब कुछ करे, खूब तरक्की करे, नाम बहुत कमाए 

लोगो से खूब जुड़े जरूरतमंद की मदत करे  जिनके पास कुछ नहीं है  उनके लिए   मददगार बने ऐसा करने से ये भावना ख़त्म हो जाएगा  जीवन की निखार सहजता और सरलता से आते है  इससे मन प्रसन्न होता है  उदारता बढ़ता है  उदारता से जीवन का आयाम में विकास होता है  जिससे आत्मिक उन्नति होता है।  

वास्तव में मन का सीधा संपर्क तो आत्मा से होता  है

बाहरी उन्नति के साथ  आत्मिक विकास में बहुत अंतर होता है दोनों साथ साथ चलता है  अंतर्मन में घामड़ जैसी कोई भवन घर कर ले तो  जीवन में खलबली ला देता है  इससे मन की ख़ुशी समाप्त होने लगता  है, वाहा पर सब कुछ होते हुए भी जीवन निराश लगने लगता है  इसलिए निराश जीवन को सही करने के लिए सरलता और अहजता की जरूरत होता है, ईस से मन और आत्मा दोनों प्रसन्न होता वही वास्तविक ख़ुशी और प्रस्सनता है। 

अहंकार क्या होता है? यह एक ऐसी प्रवृत्ति है जिसमे इंसान खुद को डुबो कर अपना सब कुछ ख़त्म करने के कगार पर आ जाता है इसका परिणाम जल्दी तो नहीं मिलता है

  

अहंकार मनुष्य के एकाग्रता सूझ बुझ समझदारी सरलता सहजता विनम्रता स्वभाव को ख़त्म कर सकता है 

अहंकार क्या होता है?  यह एक ऐसी प्रवृत्ति है  जिसमे इंसान खुद को डुबो कर अपना सब कुछ ख़त्म करने के कगार पर  जाता है  इसका परिणाम जल्दी तो नहीं मिलता है. पर मिलता जरूर है.  जब इसका परिणाम मिलता है.  तब तक बहुत देर हो चुकी होती है  फिर कोई रास्ता नहीं बचता है.  इस अहंकार के वजह से पहले तो उनके अपना पराया उनसे छूट जाते है.  क्योकि वो कभी किसी की क़द्र नहीं करता है. 

अपने घमंड में समाज में वो आपने  को सबसे बड़ा समझता है  तो वाहा से भी लोग उससे किनारा कर लेते है  भले ताकत और हैसियत के वजह से कोई उनके सामने तो कुछ नहीं कहता है. पर उनसे किनारा जरूर कर लेता है.  इसका परिणाम घर में भी नजर आता है.  जैसा स्वभाव उनका होता है. वैसे ही घर के सभी लोगो का भी होता जाता है.  तो उनसे भी लोग किनारा करने लग जाते है.  ये हकीकत है.  समाज में इस प्रकार के स्वभाव के लोगो को देखा गया है.  हम किसी   ब्यक्ति विशेष का जिक्र नहीं कर रहे हैं.  अहंकारी स्वभाव का जिक्र कर रहे है।  

अहंकार क्या होता है ये अहंकारी स्वभाव का एक परिभाषा है.  

जो जीवन के राह में देखते आया हूँ.  ऐसे लोगों के बारे में सुनता हूँ.  समझता हूँ.  कि ऐसे लोगों का आखिर होगा क्या?  सब कुछ तो है. उनके पास सिर्फ सरलता नहीं,  सहजता नहीं,  मिलनसार नहीं,  एक दूसए के दुःख दर्द में साथ देने वाला नहीं  जो सिर्फ अपने मतलब के लिए जीता है। 

जीवन में सब कुछ करेखूब तरक्की करेनाम बहुत कमाए  लोगो से खूब जुड़े जरूरतमंद की मदत करे.  जिनके पास कुछ नहीं है.  उनके लिए   मददगार बने ऐसा करने से ये भावना ख़त्म हो जाएगा.  जीवन की निखार सहजता और सरलता से आते है.  इससे मन प्रसन्न होता है.  उदारता बढ़ता है.  उदारता से जीवन का आयाम में विकास होता है.  जिससे आत्मिक उन्नति होता है। 

वास्तव में मन का सीधा संपर्क तो आत्मा से होता  है. 

बाहरी उन्नति के साथ  आत्मिक विकास में बहुत अंतर होता है. दोनों साथ साथ चलता है.  अंतर्मन में घमंड जैसी कोई भवन घर कर ले तो  जीवन में खलबली ला देता है.  इससे मन की ख़ुशी समाप्त होने लगता  है. वाहा पर सब कुछ होते हुए भी जीवन निराश लगने लगता है.  इसलिए निराश जीवन को सही करने के लिए सरलता और अहजता की जरूरत होता है ईससे मन और आत्मा दोनों प्रसन्न होता वही वास्तविक ख़ुशी और प्रसन्नता है। 

असमय आ रहे गुस्सा को नियंत्रित किया जा सके समय समय पर व्यायाम अवस्य करे इससे भी मन शांत रहता है

  

गुस्सा क्यों आता है?

गुस्सा क्यों आता है?  सहनशीलता की कमी ही गुस्सा का मुख्या कारण है. विषय को न समझना भी गुस्सा का कारण हो सकता है. समझ की कमी भी गुस्सा का कारण होता है. विषय वस्तु को पूरी तरह से नहीं समझ आने पर भी गुस्सा आता है. कोई कार्य अपने समय पर पूरा नहीं हुआ तो भी गुस्सा आता है. किसी कार्य में व्यवधान आने पर भी गुस्सा आता है. किसी कार्य में मन का ठीक से नहीं लगने पर भी गुस्सा आता है. मन के अनुसार कोई कार्य नहीं हुआ तो भी गुस्सा आता है.

गुस्सा मन का एक नकारात्मक भाव है जिसे बुद्धि विवेक से कार्य लेने पर और सहज बोध अपनाने पर गुस्सा कम होने लग जाता है.

किसी कार्य में मन का लगाना बहूत जरूरी है मन को समझे और बुद्धि विवेक से कार्य करे तो गुस्सा कम होने लग जाता है. मन जिद्दी होता है. इसलिए मन में थोडा उदार भाव लाये इससे मन का दायरा बढेगा. इसका मतलब ये नहीं की जिस बात से गुस्सा आ रहा है उसके बारे में सोचे, कुछ ऐसा भी सोचे जिससे मन को अच्छा और प्रसन्नता महशुस हो तो गुस्सा कम होने लग जाता है.  

   गुस्सा क्यों आता है 

हर्बल और ऑर्गेनिक तेल सिर पर लगाने से दिमाग ठंडा रहता है.

खासकर जो तेल ठंडा महशुश कराये ऐसे तेल सिर में जरूर लगाना चाहिए. जिससे असमय आ रहे गुस्सा को नियंत्रित किया जा सके समय समय पर व्यायाम अवस्य करे इससे भी मन शांत रहता है. मन के शांति के लिए मैडिटेशन सबसे अच्छा जरिया है, रोज करने से मन शांति से रहने देता है. 

अवधारणात्मक गति खुफिया उदाहरण

  

कहानी का नैतिक है पराक्रम पर बुद्धि की जीत

अवधारणात्मक गति मे नैतिक चरित्र मनुष्य को सहज और सजग बनता है. सहज होने से बहूत कुछ सरल हो जाता है. इसलिए इन्सान को सरल ही रहना चाहिए. सहजता से सरलता का विकाश होता है. सरल भाव में मनुष्य पर सुख दुःख का उतना प्रभाव नहीं पड़ता है, जितना मानसिक भाव में पड़ता है. मानसिक होना कदापि ठीक नहीं है. कभी कभी मानसिकता काम और व्यवस्था को बिगाड़ भी सकता है. मन के चलने का भाव कही न कही दुःख का ही कारन होता है. इसलिए मन को कभी भी बेलगाम नहीं होने देना चाहिए. वो वास्तविकता से इन्सान को दूर कर देता है. सहजता और सजगता से बुद्धि प्रबल होता है. और मन को सहज बनाने में मदद करता है. जब की मन पराक्रम भी कर सकता है. नैतिक चरित्र ही पराक्रम पर जीत हासिल करता है.

अवधारणात्मक गति खुफिया उदाहरण

अवधारणा मन का एक ऐसा भाव है जो मनघडंत बात मन में जगह बनाकर उसको वास्तविकता में देखने का पुरजोर प्रयास करता है. ये हर किसी के मन में हो सकता है. सही का ज्ञान होने के बाबजूद भी अपने मन के हरकतों से वाज नहीं आता है. जानते हुए की ऐसा कुछ नहीं हो सकता, फिर भी उन अवधारणा को मन में हवा देता रहता है. ये भी कल्पना का ही एक रूप ही है. पर ये धरना बिलकुल गलत है. यही कारन है की मनुष्य के जीवन में अचेतन ९० प्रतिशत है और सक्रीय मन सचेतन सिर्फ १० प्रतिशत है.

ज्ञान को सही मानते हुए अक्सर लोग ऐसे बाते को किसी को नहीं बताता है. क्योकि वो उनके मन की बात होते है. यही कारन है की अवधारणात्मक गति मन में ही खुफिया रहता है. उदाहरण के तौर पर अनैतिक इच्छा, दुष्कर्म, अपराध जो निरंतर मन में चलता रहता है. किसी में कम तो किसी में ज्यादा ऐसा अवधारणा हर किसी के मन में पनपता है. स्तिथि और हालत के अनुसार सही रस्ते पर चलने वाले के मन में ज्यादा देर टिकता नहीं है और जो लोग इन अवधारणा के आदि है. गलत राह पकड़ लेते है.   

बुद्धि के लिए क्या पुरस्कार?

बुद्धिमान होना स्वयं एक बहूत बड़ा पुरस्कार है. बुद्धि से सब कुछ संभव है जो सकारात्मक और सहज है. विरल और कठिन कार्य में संघर्स होता है पर समय के अनुसार और संघर्स के पृष्ठभूमि पर बुद्धि विवेक पर खरा उतरता है. बुद्धि सक्रीय ज्ञान है. अच्छा अनुभव सकारात्मक रहने पर मिलता है. सकारात्मक मन में अपार उर्जा होता है जो बुद्धि को हवा देता है. इसलिए बुद्धिमान होना स्वयं में सर्वोच्च पुरस्कार है.  

Post

Perceptual intelligence meaning concept is an emotion of the mind

   Perceptual intelligence meaning moral of the story is the victory of wisdom over might Perceptual intelligence meaning moral character ma...