Thursday, June 19, 2025

जीवन की सुंदरता में उच्च ब्यक्तित्व की पहचान में मन के ज्ञान का पहचान बड़ा स्थान रखता है

  

जीवन के वास्तविक सुंदरता

जीवन में वास्तविक सुंदरता पुरुषार्थ के आने के साथ ही नजर आता है।

तन की सुंदरता उनके आकर्षण को दर्शाता है।

ब्यक्ति की पहचान और रुतवा कितना बड़ा है। 

आकर्षक होने से लोग उनके तरफ आकर्षित हो रहे है। 

ब्यक्ति को बाहरी दिखावे पर अवस्य ध्यान देना चाहिये। 

व्यक्तित्व उनके रुतवा को दर्शाता है।  जितना साफ सुथरा परिवेश होता है।

व्यक्तित्व का रुतवा उतना ही आकर्षण को दर्शाता है। 

मन के साफ होने से उच्च ब्यक्तित्व की पहचान

अपने मन के साफ होने अछे ब्यक्तित्व की पहचान होता है।

मन जितना साफ़ होता है। जीवन में सरलता और सहजता उतना ही बढ़ता जाता है। 

मन से साफ होने से अनगिनत फयदे है। 

लोगो के किसी भी प्रकार के बात विचार का असर मन पर नहीं होता है।

कोई भी बात विचार सूझ बुझ समझदारी से होता है। 

बात विचार का प्रभाव  लोगो पर पड़ता है। 

लोगो के बिच में सौहार्द्र बढ़ता है। लोग आत्मीयता से जुड़ते  है। 

मन के साफ होने से मन में सारलता निवास होता है।

जिससे लोगो के बात विचार को समझने की क्षमता होता है।

लोगो के बात विचार का उचित निर्णय लेने में मन सक्षम होते है। 

अपने जीवन की सुंदरता करुणा, सरलता, सहजता में बहुत बड़ा स्थान

जीवन की सुंदरता में करुणा का भी बहुत बड़ा स्थान है।

मन में करुणा का भाव होने से तन मन की सुंदरता चरितार्थ होता है।

करुणा बच्चो के प्रति माता का प्यार दुलार बहुत होता है।

ऐसे स्वभाव के ब्यक्ति के बात विचार आकर्षक और मोहक होते है।

करुणा के स्वभाव से ब्यक्ति का मन बहुत साफ सुथरा होता जाता है। 

ब्यक्तित्व का स्तर बहुत उच्च होता है। 

जीवन के उन्नति में परोपकार, उदारता, दयावान, दानशीलता, दयावान, सत्कर्म है 

जीवन के उन्नति में परोपकार, उदारता, दयावान, दानशीलता, से बड़ा कर्म सायद ही कोई हो।

जिनके मन में परोपकार की भावना होते है।  

उदारता के गुण ब्यक्ति के जीवन में दुसरो के प्रति बहुत अनुराग उत्पन्न करता है।

दयावान, दानशीलता जैसे गुण वाले ब्यक्ति सदा दुसरो के अच्छाई के लिए ही कर्म करते है।

ऐसा समझे की उनका सबकुछ दुसरो के लिए ही होता है।

किसी के भी दुःख तकलीफ पड़ेशानी में सदा साथ देते है। ऐसे ब्यक्ति के भावना सदाचारी होते है।  

  जीवन की सुंदरता 

जीवन की आधारशिला माता पिता ही बच्चो के पालक माता पिता है भले सांसारिक ज्ञान में कोई न कोई मतभेद उसको अपने माता पिता के माध्यम से सुलझाया जा सकता है।

  

जीवन के आधारस्तम्भ जीवन की आधारशिला

जीवन की आधारशिला माता पिता ही होते है।

बच्चो के पालक माता पिता ही होते है।

भले सांसारिक ज्ञान में कोई न कोई मतभेद हो।

उसको अपने माता पिता के माध्यम से सुलझाया जा सकता है।

बड़े और गुरुजन भी मदत करते है। ज्ञान कभी भी छुपा नहीं रहता है।

जैसा हाल जैसा माहौल हो तो धोखे खा कर भी लोग सीखते है।

इसलिए जीवन ही एक संघर्ष है।

माता पिता के द्वारा शिक्षा ज्ञान जीवन की आधारशिला

बच्चे जन्म से ही माता पिता के लाडले होते है।

उनका भरण पोषण माता पिता करते है ये तो जगत विख्यात है।

सिर्फ भरण पोसन ही नहीं उनका देखभाल छोटे से बड़ा होना।

घरेलु शिक्षा फिर पाठशाला में शिक्षा सब में हर जगह माता पिता के ही देख रेख में होते है।

भले ही पाठशाला के ज्ञान का माध्यम अध्यापक हो भूमिका तो माता पिता के ही है।

आगे चलकर उच्च महा विद्यालय की पढाई पूरा करवाना।

जब तक की कही नौकरी धंदा नही लग जाता है। तब तक हर प्रकार से देख रेख माता पिता का ही होता है।

बच्चो के लिए माता पिता का संघर्ष

संघर्ष भरे माता के जीवन में क्या क्या बीतता है। किस किस रस्ते से गुजर कर। ये सभी इच्छाएं माता पिता पूर्ति करते है। कभी कभी ऐसे हालात भी होते है। जिसका अपने बच्चो को किसी प्रकार का शिक्षा और ज्ञान में व्यवधान नहीं आने देते है। हर बुरे हालत कों स्वयं पर झेलते है। अपने बच्चो को रत्ती भर भी तकलीफ नहीं होने देते है। ये सभी क्या है? संघर्ष ही तो है। संघर्ष तो जीवन जीने के लिए हर किसी को करना पड़ता है।

होनहार बच्चे का संघर्ष

संघर्ष तो उस होनहार बच्चे के लिए भी है। जो ज्ञानी और समझदार बच्चे है। माता पिता के दिए हुए ज्ञान से उनका आत्मज्ञान आत्मबल बढ़ता है। जिससे आगे चलकर अपने पढाई लिखाई में दिन रात मेहनत कर के आगे बढ़ते है। इससे ज्ञान तो बढ़ता ही है। मन की एकाग्रता का निर्माण होता है। मन की एकाग्रता से जीवन को सरल और सहज करने में बहुत मदत मिलता है।

जीवन की सरलता और सहजता के मुख्य द्वार एकाग्रता ही है। किसी एक माध्यम में गुजर बसर से मिलता है। संघर्ष के लिए एकाग्रता का जीवन में होना बहुत महत्त्व है। एकाग्रता जीवन में स्थापित हो जाए। तो चाहे जितनी भी मुसीबत या परेशानी जीवन आता है। उस ब्यक्ति के मानसिकता में कोई फड़क नहीं पड़ता है। अपने उद्देश्य पर सजग हो कर चलते ही रहता है। अपने जीवन का निर्वाह करते रहता है। संघर्ष भरे जीवन के ये पहचन है।

   जीवन की आधारशिला 

जीवन का अस्तित्व मव सक्रिय कल्पना से मन सकारात्मक है तो ब्यक्ति के बुद्धिमान होने से सोच समझ सकारात्मक ही होंगे

  

जीवन का अस्तित्व में सक्रिय कल्पना 

सक्रिय कल्पना मे अपने जीवन का अस्तित्व में कल्पना के संसार में मनुष्य का जीवन का अस्तिव कल्पना के संसार में मनुष्य का जीवन पनपता है। 

कल्पना चाहे छोटा हो या बड़ा हर कोई कल्पना के संसार में विचरण करता है। 

कल्पना के अनुरूप अपना कार्य करता है। 

जीवन में आवश्यक कार्य के लिए चिंतन करता है। कार्य के प्रति सक्रीय रहता है। 

जीवन में सक्रियता तो देता ही है। साथ में मन मस्तिष्क को भी सक्रीय बनाये रखता है।

चुस्ती फुर्ती से कल्पना सक्रीय होता है। 

जीवन की सक्रियत रहने के लिए सबसे पहले शरीरमनबुद्धिविवेक का  सक्रीय होना जरूरी है।

 शरीर चुस्त दुरुस्त रहेगा तो मन में भरपूर सकारात्मक ऊर्जा होगा। 

मन सकारात्मक होगा तो ब्यक्ति बुद्धिमान बनेगा। 

बुद्धिमान ब्यक्ति के सोच समझ सकारात्मक ही होंगे। 

लिहाजा ऐसे ब्यक्ति के कल्पना भी सक्रीय होगे। 

जीवन का अस्तीत्व में सक्रीय कल्पना तब ज्यादा फायदेमंद जब वो सकारात्मक हो

जीवन का अस्तीत्व सक्रीय कल्पना तब ज्यादा फायदेमंद होता है जब ब्यक्ति उस तरफ पुरे मन से कार्य करता है ऐसा न हो की कल्पना का संसार बना लिए और कार्य के नाम पर कुछ नहीं किये तब कल्पना का दुश्य परिणाम ही निकलता है कल्पना वही तक सही है जहा तक कल्पना के अनुरूप कार्य करे कल्पना कोई भी हो बहुत सक्रीय होते है  कल्पना का पूरा प्रभाव मन और मस्तिष्क पर पड़ता है यदि कल्पना के अनुसार सक्रीय हो कर कल्पना से जुड़े कार्य में ब्यस्त है तो इससे सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा सक्रीय कार्य समय पर पूरा होगा

कल्पना के अनुसार कार्य में सक्रियता नहीं है तो मन सुस्त होने लगेगा

मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा बाद में मन भी नकारात्मक होने लग जायेगा सक्रियता सकारात्मकता को बढ़ाता है  सुस्तपना नकारात्मक प्रबृति है कार्यहीनता भी नकारात्मक प्रबृति है कर्महिनाता से बिलकुल बचकर रहना चाहिये  मस्तिष्क ऊर्जा का क्षेत्र है मस्तिस्क मन से प्रभावित होता है मन का लगना सकारात्मक प्रबृति है मन का किसी कार्य में नहीं लगना नकारात्मक प्रबृति है

कल्पना सक्रीय है जब कल्पना सक्रीय होता है

तब मन भी सक्रीय होता है परिणाम मस्तिष्क में दिमाग भी सक्रीय होता है मन सुस्त पड़ गया तो जरूरी नहीं की कल्पना और दिमाग भी सुस्त पड़ेगा वो चलता ही रहेगा मनुष्य सचेतन में रहता है जिसे सचेत मन कहते है कल्पना अवचेतन मन की प्रकृति है अवचेतन मन का संपर्क अंतरमन से है सचेत मन सक्रीय नहीं रहा तो अचेतन को बढ़ा देगा जो नकारात्मक प्रबृति है

सक्रिय कल्पना  मे मस्तिष्क में दिमाग के दो भाग होते है

ऊर्जा की दृस्टि से समझा जाए तो दिमाग में दो प्रकार के ऊर्जा का प्रवाह होता है जिसे सकारात्मक ऊर्जा और नकारात्मक ऊर्जा कहते है मन के स्वभाव से ऊर्जा कार्य करता है मन की जैसी प्रकृति होगा ऊर्जा वैसा कार्य करेगा मन और उर्जा का संगम होता है इसलिए मन सदा सकरात्मक होन चाहिए।

  सक्रिय कल्पना 

जीवन और मन के लिए सफल जीवन के लिए बुद्धि विवेक का प्रभाव मन पर पड़ना चाहिए

  

जिंदगी जीवन और मन की सच्चाई है.

कल्पना मन का श्रोत है. मन कुछ और कहता है पर जीवन जिम्मेदारी का नाम है.

संघर्स जीवन के लिए है. जब की मन ख्याली पुलाव खाते रहता है.

दिन रात मेहनत करना चाहता है पर मन उसे ऐसा करने से रोक भी सकता है.

जीवन सच्चाई यथार्थ ही होता है पर मन आडम्बर भी कर सकता है.

 

जीवन के जरीय मन को नियंत्रित किया जा सकता है.

मन के जरिये चल रहे जीवन में परिवर्तन करना आसन नहीं होता है.

मन का संसार आज तक कोई नहीं समझ पाया है.

जीवन को समझने का प्रयास करे तो मन जरूर समझ में आने लग जाता है.

 

जीवन का सच्चा मददगार बुद्धि विवेक ही होता है.

अपना मन चाहे जितना सोचे पर कार्य तो जीवन में बुद्धि विवेक से ही करना चाहिए. समृद्धि के लिए मन को जीवन के अनुसार ही चलाना चाहिए. ज्यादा मन का बढ़ना समृद्धि के रास्ते में रोरा भी अटका सकता है. जीवन का सफल संघर्स तो मन पर नियंत्रण पाना ही होता है. जीवन के उत्थान के लिए मन पर नियंत्रण बहूत जरूरी है.

 

मन को उस ओर जरूर व्यस्त रखे जो जीवन यापन में कार्य कर रहे है.

मन लगाकर कार्य करना और अपने अस्तित्व को बनाये रखने में बुद्धि विवेक हर जगह साथ देता है. जीवन में कभी भी ऐसा कुछ नहीं करे की जिससे बुद्धि विवेक में कोई विकार आये. मन का भरोसा नहीं करना चाहिए, मन का तो आकर, विकार और निराकार भी होता है. पर जीवन के लिए बुद्धि विवेक एक आधार स्तम्भ होता है.

 

सफल जीवन के लिए बुद्धि विवेक का प्रभाव मन पर पड़ना चाहिए.

ऐसा कभी नही हो की मन का प्रभाव बुद्धि विवेक पर पड़े. मन स्वयं का अपना होता है पर जीवन के अंश बहूत लोगो से जुड़ा होता है जिससे जीवन चलता है. जीवन के उत्थान और सफलता के लिए बुद्धि विवेक को सक्रीय करना ही अच्छा है. 

जीवन और मन

जीवंत कल्पना जीवन के विकास के लिए कुछ योजना वर्त्तमान में क्या चल रहा बिता हुआ समय कैसा आने वाला भविष्य कैसा हो तरक्की उन्नति और विकास कैसे हो?

  

जीवंत कल्पना खुशहाल जीवन के कल्पना में मनुष्य अपने अस्तित्व में आना

खुशहाल जीवन के कल्पना में।  जब मनुष्य अपने अस्तित्व में आता है। 

अपने जीवन के विकास के लिए कुछ योजना बनता है।

वर्त्तमान में क्या चल रहा है। बिता हुआ समय कैसा था

आने वाला भविष्य कैसा होगा?

तरक्कीउन्नति और विकास कैसे हो?

जब ब्यक्ति ऐसा कुछ विचार कर के सोचता है। 

भविष्य के जीवन के लिए खुशहाली की कामना करता है।

मनुष्य को करना ही चाहिये।

जब तक मनुष्य सोचेगा नहीं तब तक कुछ करने का भावना जागेगा नहीं।

सोचना कल्पना करना किसी निर्माण के बुनियाद से काम नहीं होता है।

जीवंत कल्पना में युवावस्था में अक्सर लोग जीवन में आकर्षण के लिए जीवंत कल्पना करते है

युवावस्था में अक्सर लोग सकारात्मक सोच रखते है। जीवन में आकर्षण के लिए खासकर ऐसे युवा जीनके कोई प्रेमिका हो प्रसन्नचित मन के लिए  युवा जीवंत कल्पना करते है।  हालाकि कल्पना की दृस्टि से देखा जाए। तो उचित नहीं है। सोच समझ और कल्पना में जितना मनुष्य सरल और सहज हो कर संतुलित कल्पना करेगा।  उतना ही अच्छा है।  मन को  मनोरंजक करना। उतना ही तक ठीक है। बस वो कल्पना हो। कल्पनातीत नही होना चाहिए। क्योकि ये सब के दायरे में ही आते है। बहुत ज्यादा सक्रीय होते है। बहुत तेज गति से दिल और दिमाग पर प्रभाव डालते है।

अपने मनदिलदिमागविवेकबुद्धिसोचसमझ के विकास और संतुलन के लिए करे तो  उपयोगी है।  जिस विषय या कार्य पर सक्रिय होते है। कार्य की सफलता के लिए। जब सक्रीय हो कर विचार करते है। 

मनुष्य को करना ही चाहिये। जब तक मनुष्य सोचेगा नहीं तब तक कुछ करने का भावना जागेगा नहीं। सोचना कल्पना करना किसी निर्माण के बुनियाद से काम नहीं होता है।

युवावस्था में अक्सर लोग सकारात्मक सोच रखते है। जीवन में आकर्षण के लिए खासकर ऐसे युवा जीनके कोई प्रेमिका हो प्रसन्नचित मन के लिए  युवा जीवंत कल्पना करते है।

जीआरसी का काम को पश्चिमी देश में प्रीकास्ट कहते है. कही कही पर जी. आर. सी. वर्क को जी. ऍफ़. आर. सी. वर्क भी कहते है. GRC और GFRC में ज्यादा अंतर नहीं होता है

  

जीआरसी डिजाईन आज के आधुनिक समय में वाइट सीमेंट और सिलिका सैंड से बना पादर्थ है

 

जी आर सी डिजाईन जिसमे वाटर प्रूफिंग के लिए सोलुसन को मिश्रित कर के बनाया जाता है. 

जीआरसी का काम मे मजबूती के लिए फाइबर ग्लास के मैट का बहूत ज्यादा इस्तेमाल ही जी. आर. सी. डिजाईन को मजबूती और टिकाऊ बनता है.

बेहद खुबसूरत फिनिशिंग के लिए सफ़ेद सीमेंट का इस्तेमाल किया जाता है।

जो काले वाले सीमेंट से ज्यादा मजबूत और बारीक़ होता है.

धलाई को मजबूत बनाने के लिए सिलिका सैंड उपयोगी होता होता है.

घर के बहार और अन्दर के सजावटी वस्तु को बनाने के लिए मिट्टी और प्लास्टर से डिजाईन को बनाया जाता है.

सांचे को बनाने के लिए फाइबर ग्लास का इस्तेमाल होता है.

आमतौर पर तयार मॉल अफेद रंग का  निकालता है

जिसे पालिश पेपर से सफाई और सफ़ेद सीमेंट के बने पुट्टी के भाराइ के बाद मनमोहक फिनिशिंग डिजाईन में आता है.

किसी भी प्रकार के जी. आर. सी. डिजाईन के लिए संपक सबसे पहले डिज़ाइनर से करना चाहिए.

आर्किटेक्ट स्वयं एक आर्टिस्ट होता है. जिसके समझ से डिजाईन डिजाईन के उभार को समझकर मॉडल को बनता है.

सब तारीके से सुसज्जित डिजाईन ही बिल्डिंग और घर में लगता है. प्रोडक्शन करने वाले डिजाईन नहीं कर सकते है। 

वे सिर्फ डिजाईन के मोल्ड को बाजार से खरीदकर उत्पादन कर सकते है और फिनिशिंग और फिटिंग करते है.

आकर और डिजाईन को नए रूप और रंग देने की काबिलियत डिज़ाइनर के पास ही होता है.

जो की कम से कम मिटटी के खुबसूरत डिजाईन को आकर और उभार के अनुसार रूप देकर डिजाईन को सुसज्जित कर सके.

 

  जीआरसी का काम 

जीआरसी का काम को पश्चिमी देश में प्रीकास्ट कहते है. 

जीआरसी का कामको कही कही पर जी. आर. सी. वर्क को जी. ऍफ़. आर. सी. वर्क भी कहते है. GRC और GFRC में ज्यादा अंतर नहीं होता है. इंडस्ट्रियल कार्य करने वाले इसे GFRC कहते है, जब की हाथ से काम करने वाले इसे GRC वर्क कहते है या GRC डिजाईन कहते है. डॉन एक ही है.इंडस्ट्रीज में बड़े बड़े आकर के सांचे में आधुनिक मशीन से ढलाई स्प्रे से किया जाता है जिसमे उच्च क्षमता के हवा के प्रेसर के साथ स्प्रे में GFRC मटेरियल को भर कर सांचे में धलाई किया जाता है.

 

शादी के सजावट में उपयोग होने वाले फाइबर ग्लास GRC और GFRC के सामग्री के डिज़ाइनर और निर्माता विस्वविख्यात उद्यम पिछले १५ साल से एक्सपोर्ट मार्किट में सप्लाई करने वाले एक मात्र डिज़ाइनर 

 

Ramnath Kalarathi Enterprise

For designing of wedding mandap stage in fiberglass and stage set up

Grc design work for construction and house interior exterior designing work

durgakalarathi@gmail.com

https;//www.weddingmandapdesigner.com

चाहे काम काज छोटा हो या बड़ा हो काम कम फायदे वाला हो या ज्यादा फायदे वाला हो उस काम काज के समझ का तजुर्बा कम नहीं होता है।

  

कोई भी काम काज या काम काज का ज्ञान कोई छोटी बात नहीं है

हमेशा कोई भी काम काज या काम काज का ज्ञान कोई छोटी बात नहीं है।

चाहे काम काज छोटा हो या बड़ा हो। काम कम फायदे वाला हो या ज्यादा फायदे वाला हो।

उस काम काज के समझ का तजुर्बा कम नहीं होता है। जिस काम के तजुर्बे में शामिल है। 

उसकी बारिकियत को जितना आका जय उतना ही कम है।

कोई भी तजुर्बा जिसके गहराई में पहुंचे तो काम काज के ज्ञान का समझ और तजुर्बा ज्यादा बढ़ता है।

बस कमी तो यही है की सही मार्गदर्शन करने वाला। या तो कम है।

कोई उन तक पहुंच ही नहीं पता है। वास्तव में यदि किसी को सही मार्गदर्शन करने वाला मिल जाय

उनकी रह पर चल कर उनके समझ और ज्ञान पर भरोसा कर के सीखते रहे। तो फिर किसी जानकारी की कमी नहीं रहेगी। 

कोई भी काम के बारीकियत का समझ बहुत बड़ा महत्त्व होता है

कोई भी काम के बारीकियत का समझ बहुत बड़ा महत्त्व होता है।

मन लगाकर यदि किसी भी काम को जानकर के सानिध्य में करे।

तो उसकी गहराई में जाकर नए रूप रंग को दे सकते है। 

इससे अपना ज्ञान और भी बढ़ेगा। जब तक किसी काम में अपना मन लगा लेते है।

मन वास्तव में लगकर जब काम करने लग जाता है। इससे मन की एकाग्रता का विकास होता है।

सोचने समझने की शक्ति बढ़ता है।  जिससे शरीर कभी थकता नहीं है

कोई बाहरी बातचित से उसमे रूकावट नहीं पड़ता है। 

मन लगातार अपने काम में ब्यस्त रहता है।  इससे अपना ज्ञान और बढ़ता जाता है। 

बाद में मन को काम काज करने की आदत लग जाती।

ये कोई छोटा मोटा ज्ञान नहीं है

ये कोई छोटा मोटा ज्ञान नहीं है। बहुत बड़ी कर्म की परिभाषा है। जिस रस्ते पे चलकर सब अपने योग्यता को प्राप्त करते है। समाज में घर परिवार में देश में अपना नाम करते है।  

काम छोटा हो या बड़ा ये मायने रखता है की उसमे ज्यादा फ़ायद है या नहीं

अब बात ये रहा काम छोटा हो या बड़ा। ये मायने रखता है की उसमे ज्यादा फ़ायद है या नहीं उसका भी महत्व है। एक सफाई कर्मचारी दिन भर झाड़ू मार कर रोड की सफाई करता है। उसमे भी वही ज्ञान है। जिसने मन लगाकर अपना काम किया। तो साफसुथरा जल्दी हो जाता है। और जिसने मन नहीं लगाया तो जल्दी सफाई भी नहीं होती है। सब बिखड़ा बिखड़ा सा नजर आता है। साफ सफाई देख कर अपने को भी उतना ही अच्छ लगता है। जितना सफाई कर्मचारी को क्योंकी वो उसका काम है। उसका कर्म है। और उस काम में उसका मन भी लगता है। इसलिए वो सबको अच्छ लगता है। और वही जब सब बिखड़ा बिखड़ा सा रहत है। तब वो किसी को अच्छा नहीं लगता है। 

कर्म के ही रूप है 

वैसेही जब कोई बहुत बड़ा विख्यात ब्यक्ति अपने काम काज को अच्छे तारीके से करता है। तो वो सब लोग और जान कल्याण के लिए बहुत फायदेमंद साबित होता है। वही उलट यदि उनसे कोई गलत काम हो जाती है। जिसमे मन अच्छे से नहीं लगा हुआ होता है। तो उसका परिणाम उलट जाता है। जिससे लोगो का बड़ा नुकसान होता है। समाज का भी नुकसान होता है। जिसका खामियाजा उनसे जुड़े हुए सब को भुगतना पड़ता है। ये सब कर्म के ही रूप है।  

कोई भी काम करे सोच समझ कर करे

इसलिए कभी भी कोई भी काम करे। सोच समझ कर करे। भूल होने की स्थिति में किसी न किसी जानकर से मदत जरूर ले। ताकि गड़बड़ी का कोई नामोनिशान नही हो। अच्छा काम करे। मन लगाकर करे। मन लगाकर किया हुआ काम सफलदाई सिद्ध होती है। जिससे सबको अच्छा लगता है।  

गरीब स्थान मंदिर ३०० साल पुराना है दन्त कथाओ के अनुसार इस मंदिर के जगह पर एक समय ७ पीपल के पेड़ थे

  

गरीब स्थान मुजफ्फरपुर बिहार

(Garibsthan Muzaffarpur Bihar) 

मान्यताओ के अनुसार गरीब स्थान मनोकामना शिव जी का मंदिर है।

शिवलिंग यहाँ स्थापित है. बिहार के देव घर के नाम से भी प्रचलित है.

श्रावण महीने में पूरा महिना यहाँ भक्तो और श्रधालुओ का भीड़ लगा रहता है.

डाकबम और बोलबम वाले और कवर उठाने वाले शिव भक्त हाजीपुर, सोनपुर, पटना में स्थित गंगा नदी जो पहलेजा में पड़ता है। 

वहां से गंगा जल लेकर ७० किलोमीटर पैदल चल कर २४ घंटे में गरीब स्थान मुज़फ्फरपुर पहुचते है.

शिव भक्त बाबा को गंगा जल अर्पित करके खुद को बेहद खुशनुमा महशुशकरते है.   

गरीब स्थान मंदिर ३०० साल पुराना है 

दन्त कथाओ के अनुसार इस मंदिर के जगह पर एक समय ७ पीपल के पेड़ थे।

जिन्हें लोगो ने जब कटा तो इसमे से रक्त के जैसा कोई तरल लाल पदार्थ निकला था। 

बाद में जमीन के मालिक को बाबा स्वप्न में दर्शन दिए थे और बताये थे। 

यहाँ पर एक बड़ा शिवलिंग है.

खुदाई कर के शिवलिंग प्राप्त हुआ था।

तब वहा पर शिवलिंग के स्थानपर मंदिर का निर्माण ३ शताब्दी पहले गरीब स्थान मंदिर का निर्माण हुआ.

  गरीब स्थान mandir 

अन्य दन्त कथाओ के अनुसार बहूत समय पहले वह पर एक बरगद का पेड़ था जो अभी भी है. 

बाबा के मंदिर के ठीक सामने बाये तरफ बरगद का पेड़ है. वही बाबा के मंदिर स्थान के सामने एक नंदी भी विराजमान है. कहा जाता है की इस बरगद के पेड़ को जब जमींदार कटवा रहा था तो उसमे से लाल पानी निकला था जिसके बाद पेड की कटाई रोक दी गई. खुदाई के दौरान शिव लिंग को जमीन से प्राप्त हुआ जो की क्षत बिक्षत हालत में था. फिर जमींदार को बाबा स्वप्न में आये और बताये की चुकी मेरा खुदाई एक गरीब आदमी के द्वारा हुआ है इसलिए इसे गरीब नाथ के नाम से स्थापित करो. तब यहाँ मंदिर गरीब स्थान के नाम से मंदिर बना.

मनोकामना पूर्ण कने वाला बाबा के कृपया से बहूत लोगो के मनवांछित इच्छा पुरे हुए है. बिहार के मुजफ्फरपुर में देवघर के नाम से प्रचलित बाबा गरीब नाथ सबके मनोकामना पूर्ण करते है.

भक्ति के रस में डूबे शिव भक्त दूर दूर से गरीब स्थान मंदिर घुमने आते है.

साल भर यहाँ शिव भक्त का ताता लगा हुआ रहता है. शादी ब्याह में मुजफ्फरपुर के गाँव में रहने वाले लोग अपने बाल बच्चे के शादी ब्याह अवसर पर विशेष सत्यनारायण भगवन की पूजा यहाँ जरूर करते है. जिसके लिए मंदिर प्रशासन के द्वारा शेष व्यवस्था मदिर पहले और दुसरे मंजिल पर किया गया है. गरिब स्थान यहाँ के लोगो के विशेष आस्था रहने से मुजफ्फरपुर के नजदीक रहने वाले लोग यहाँ दिनभर में एक बार जरूर दर्शन करने आते है. 

गरीब स्थान देव घर जाने के लिए 

मुजफ्फरपुर स्टेशन से इस्लामपुर या कंपनी बाग़ होते हुए १.५ किलोमीटर पड़ता है. बेहद नजदीक है. दोनों रस्ते से जाया जा सकता है. 

खुद की कल्पना करो कल्पना के साम्राज्य में बहुत कुछ समाहित है जीवन के एक एक छन कल्पना से घिरा हुआ है

  

खुद की कल्पना करो

खुद की कल्पना के साम्राज्य में बहुत कुछ समाहित है।

जीवन के एक एक छन कल्पना से घिरा हुआ है।

जैसा सोचते है वैसा करते है। सोच कल्पना ही रूप है। कल्पना तो करना ही चाइये।

प्रगति का रास्ता तो कल्पना से ही खुलता है।

जब तक कल्पना नहीं करेंगे मन में उस चीज के लिए भावना नहीं उठेगी।

सांसारिक कल्पना के साथ साथ खुद की भी कल्पना करना चाइये।

सके बगैर ज्ञान अधुरा भी रह सकता है। 

सांसारिक कल्पना में सकारात्मक और नकारात्मक कल्पना दोनों ही होते है।

कुछ इच्छा पूर्ण होते है। कुछ इच्छा बाकी रह जाते है। यद्यपि कल्पना के अनुरूप कार्य भी करते है। सांसारिक कल्पना संतुलित है या असंतुलित इसका ज्ञान स्वयं के बारे में कल्पना करने से ही पता चलेगा। नहीं तो कल्पना कल्पनातीत भी हो सकता है। 

फिर वो इच्छा कभी भी पूरा नहीं हो पायेगा। जैसे संतुलन घर मेंबहारसमाज मेंलोगो के बिचकाम धंधा में बना के रखते है। वैसे ही कल्पना को भी संतुलित बनाकर रखना चाहिए। स्वयं के बारे में कल्पन करने से एक एक चीज के बारे में ज्ञान होगा। पता चलेगा की कहाँ पर क्या गलती हो रहा है। क्या सही चल रहा है।

किस ओर सक्रीय होना चाहिए। जो गलत हो रहा है।

कौन से कार्य गतिविधि को बंद कारना होगा। ये चीजें का एहसास खुद के बारे में कल्पना करने से ही होगा। जीवन में संतुलन बनाये रखने के साथ साथ अपने कल्पना को भी संतुलित रखना चाहिये।  

  खुद की कल्पना 

खाते के लेखनी और ज्ञान के लिए, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, पुस्त्पालन, सचिव अध्ययन और गणित का अच्छा ज्ञान बहूत जरूरी है

  

ज्ञान के क्षेत्र मे स्रोत के रूप में पाठ्यपुस्तक के चयन के लिए मानदंड.

 

ज्ञान के क्षेत्र मे किसी भी पुस्तक से शिक्षा मिल सकता है.

विद्वानों सिर्फ और सिर्फ ज्ञान के लिए ही लिखते है.

ताकि उनके अन्दर जो भी ज्ञान है वो दूसरो के लिए मिले.

ज्ञान आदान प्रदान के लिए भी होता है.

ऐसा नहीं की ज्ञान अपने पास है और वो दूसरो को दिया नहीं जाए तो वो ज्ञान किसी काम का नहीं होता है.

ज्ञान जब तक उजागर नहीं होगा, तब तक न हमें फायदा होगा और नहीं दूसरो को ही.

मान लीजिये की हमें कुछ करने या बनाने का ज्ञान है.

और हम दूसरो से बचा कर रखे है.

ताकि दूसरो को पता ही नहीं चले की हम क्या क्या कर सकते है.

तो फिर वो ज्ञान अपने लिए भी कोई काम का नहीं होगा.

 

अपने पास ज्ञान है और उसका उपयोग ही नहीं कर रहे है.

तो फिर वो किस काम का होगा. अच्छा ज्ञान होने के बाबजूद भी वो परिपक्व नहीं होगा.

अपने पास कोई ज्ञान छुपा कर रखेंगे तो न वो किसी वस्तु के निर्माण में काम आएगा.

न किसी को उसके उपयोग के बारे में पता चलेगा.

इसलिए अपने पास कोई भी ज्ञान है तो उसका उपयोग जरूर करना चाहिए.

शिक्षा और ज्ञान के लिए आध्यात्मिक पुस्तक, धार्मिक पुस्तक, प्रेरणा दायक पुस्तक जिसमे बड़े बड़े विद्वानों के विचार और ज्ञान लिखे होते है.

जो शिक्षा और ज्ञान को बढाता है.

निति नियम के लिए क़ानूनी पुस्तक, संवैधानिक पुस्तक, एतिहासिक पुस्तक.

जिसमे बड़े बड़े राजा और उनके विचारक के विचार और ज्ञान को समझने का मौका मलता है.

जिससे अपने दायरे और निति नियम के बारे में पता चलता है.

विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाले के लिए या ज्ञान हासिल करने के लिए रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, जिव विज्ञान और प्राणी विज्ञान के पुस्तके बहूत उपयोगी होते है.

 

लेखक के लिए भाषा का ज्ञान बहूत जरूरी है

कम से कम क्षेत्रीय भाषा, राज्य की भाषा, देश की भाषा, और अंतररास्ट्रीय का अच्छा ज्ञान आवाश्यक है तभी सभी शब्द का चयन लेखक सही ढंग से कर सकता है. निति नियम, ज्ञान, अच्छा विचार, बात करने का तरीका और सलीका बहूत जरूरी है. इसके लिए उचित पुस्तकों का अध्ययन बहूत जरूरी है. किसी भी भाषा में लेखनी के लिए आदर और अदब जरूर होना चाहिए.  

 

खाते के लेखनी और ज्ञान के क्षेत्र, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, पुस्त्पालन, सचिव अध्ययन और गणित का अच्छा ज्ञान बहूत जरूरी है. जिससे लेखनी का काम और उससे जुड़े हर प्रकार का ज्ञान इन विषयों के पुस्तकों से मिलता है और ज्ञान बढ़ता है.

 ज्ञान के क्षेत्र 

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रहीम दास का जन्म सन् 17 दिसम्बर 1556 ई. में लाहौर में हुआ। उनके पिता बैरम ख़ान अकबर के संरक्षक और सेनानायक थे। प्रारंभिक जीवन में रहीमदास को राजसी वैभव, उच्च शिक्षा और संस्कार प्राप्त हुए।

रहीम दास जीवन, व्यक्तित्व और काव्य-दर्शन हिंदी साहित्य के भक्ति-काल में जिन कवियों ने मानवता, नीति, प्रेम और व्यवहारिक जीवन-मूल्यों को अत्यं...