एक ख़्वाहिश जो कभी पूरी नहीं हुई
एक ख़्वाहिश थी दिल के एक कोने में,
चुपचाप धड़कती रही सपनों के खोने में।
ना किसी से कह पाई, ना खुद से कभी,
बस मुस्कानों के पीछे छुपी रही वो सभी।
रातों की तन्हाई में अक्सर जाग उठती थी,
आँखों की पलक पर आकर ठहर-सी जाती थी।
हवा भी उसके किस्से सरगोशी में कहती,
पर किस्मत की राहें उस तक कभी न बहतीं।
कभी उम्मीदों ने उसके दरवाज़े पर दस्तक दी,
कभी हालातों ने सारी मंज़िलें ही बदल दीं।
दिल ने बहुत सँभाला उसे टूटने से पहले,
पर वक़्त ने थाम लिया हँसने से पहले।
आज भी वो ख़्वाहिश दिल में महकती है,
अधूरी होकर भी जैसे पूरी-सी लगती है।
क्योंकि हर अधूरापन भी एक कहानी देता है—
और सपनों को जीने का एक बहाना देता है।
एक ख़्वाहिश जो कभी पूरी नहीं हुई
एक ख़्वाहिश थी दिल में कहीं,
समय की धूल तले दब गई वही।
न पूरी हुई, न खो ही सकी,
बस आँखों में एक चमक-सी बनकर
आज तक जगी रही।
एक ख़्वाहिश जो कभी पूरी नहीं हुई
दिल के किसी शांत, अनकहे से कोने में
एक ख़्वाहिश थी…
छोटी-सी, मासूम-सी,
पर उतनी ही ज़िद्दी भी।
वो हर धड़कन के साथ
धीमे-धीमे पलती रही,
जैसे बिना धूप के भी
कोई कली खिलने का सपना देखती हो।
वक़्त बदलता रहा,
रास्ते बदलते रहे,
किस्मत अपनी चालें चलती रही—
पर वो ख़्वाहिश
इतनी सरल भी नहीं थी
कि बस यूँ ही पूरी हो जाती,
और इतनी मज़बूत भी नहीं
कि दिल से कभी निकल पाती।
कभी रात की ख़ामोशी में
वो अचानक दिल को चुभ जाती,
कभी किसी याद के बहाने
आँखों में हल्की-सी नमी छोड़ जाती।
कभी लगा…
शायद कल पूरा हो जाए,
कल से उम्मीदें बंध जातीं,
और हर कल बीत जाने पर
एक और 'कभी' जोड़ जाती।
लोग कहते हैं—
अधूरी ख्वाहिशें दर्द देती हैं,
पर सच तो ये है कि
वो हमें जिंदा रखती हैं।
क्योंकि वही तो वो पन्ने हैं
जो हमारी कहानी को
गहराई देते हैं,
रूह को एहसास देते हैं।
आज भी वो ख़्वाहिश
कहीं न कहीं सांस ले रही है—
शायद किसी धुंधले सपने में,
शायद किसी भूली मुस्कान में,
या शायद सिर्फ़ इस उम्मीद में
कि एक दिन…
वक़्त, किस्मत और हौसला
एक ही मोड़ पर मिल जाएँ।
और अगर न भी मिले—
तो भी क्या?
कुछ ख़्वाहिशें अधूरी रहकर ही
सबसे ज़्यादा खूबसूरत लगती हैं।
दिल के एक पुराने, धूल लगे संदूक में
एक ख़्वाहिश पड़ी थी…
वक़्त–वक़्त पर हल्का-सा हिल जाती,
पर कभी बाहर आकर दुनिया को
अपना चेहरा न दिखा पाती।
वो ख़्वाहिश न बहुत बड़ी थी,
न कोई चमत्कार माँगती थी—
बस थोड़ा-सा अपनापन,
थोड़ी-सी मोहब्बत,
या शायद किसी अधूरे पल को
पूरा होने का अवसर।
पर ज़िंदगी की राहों में
ऐसे ही छोटे सपने
सबसे ज्यादा ठोकर खाते हैं।
क्योंकि बड़े सपने तो
हौसले से लड़ लेते हैं,
छोटे सपने
दिल की खामोशी से हार जाते हैं।
कभी वो ख़्वाहिश
भीड़ में चलती भीड़ से अलग
किसी अनजाने चेहरे से मिलने की चाह थी,
कभी किसी अपने के दिये वादे पर
भरोसा करने की चाह,
और कभी यूँ ही
किसी शाम, बिन वजह मुस्कुरा लेने की चाह।
पर हर चाह की एक उम्र होती है—
कुछ बचपन में मर जाती हैं,
कुछ जवानी में हार जाती हैं,
और कुछ उम्र भर साथ चलती हैं
पर कभी पूरी नहीं होतीं।
वो भी ऐसी ही थी—
मेरे साथ चलती,
मेरे साथ हँसती,
कभी-कभी रो भी लेती थी।
जब मैं थक जाता,
वो भी धीमी पड़ जाती;
जब मैं गिर जाता,
वो भी टूटने लगती।
पर मरती कभी नहीं थी—
क्योंकि अधूरी ख़्वाहिशें
मरना नहीं जानतीं।
कई बार लगा
अब ये ख़्वाहिश बोझ बन गई है,
कई बार लगा इसे दिल से निकाल दूँ,
तेज़ हवा में उड़ा दूँ,
किसी नदी में बहा दूँ।
पर जब-जब कोशिश की,
दिल की किसी कोमल नस ने
उसकी डोर पकड़ ली—
जैसे कहना चाहती हो:
"अधूरेपन में भी कुछ सौंधी-सी ख़ुशबू होती है।"
कभी लगता
शायद ये पूरी नहीं हुई,
क्योंकि मैं उसे
पूरी तरह से चाहता ही नहीं था।
कभी लगता
शायद किस्मत को मंज़ूर ही नहीं था।
और कभी ऐसा भी लगा
कि कुछ ख़्वाहिशें
पूर्णता के लिए नहीं,
बस अस्तित्व के लिए जन्म लेती हैं।
आज इतने साल बाद
जब पलटकर देखता हूँ,
तो मालूम होता है—
वो ख़्वाहिश अगर पूरी हो जाती,
तो शायद मैं वही न रहता
जो आज हूँ।
शायद मेरी कहानी भी
साधारण सी बन जाती,
और मेरा दर्द
इतना खूबसूरत न होता।
क्योंकि…
अधूरी ख्वाहिशें
ज़िंदगी को तड़प भी देती हैं
और मतलब भी।
वे हमें हर दिन याद दिलाती हैं
कि दिल सिर्फ़ धड़कन से नहीं,
उम्मीद से भी चलता है।
और हाँ—
वो ख़्वाहिश आज भी वहीं है,
दिल के उसी कोने में,
एक छोटे दीपक की तरह
जिसकी लौ कभी बुझती नहीं।
कभी मंद, कभी तेज़,
पर जलती जरूर है।
क्योंकि जिसे पूरा होना होता है
वो पूरा हो जाता है,
और जिसे याद बनना होता है
वो —
अधूरा रहकर भी
हमेशा पूरा रहता है।
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