Saturday, June 21, 2025

विपरीत परिस्तिथि एक ऐसा समय है जिसे सहन शक्ति के माध्यम से ही पर कर सकते है अपनी जरूरत को काम कर के बुनियादी तौर पर सिर्फ जरूरत के सामान ही खरीदे

  

आज के समय की परिस्थिति में जितना लोग जिंदगी चलाने के लिए जद्दोजहद कर रहा है। 

समय की परिस्थिति और ऊपर से समय की महामारी ने लोगो के काम धंधे को और व्यापार को पूरी तरीके से उलट पलट कर के रख दिया है।

ऐसे समय में जिंदगी को चलाना  और  दिनचर्या  करना कितनी मुस्किल हो रहा  है।

ये सभी जानते है।  कोई बच्चे की पढ़ाई में दिक्कत महशुश कर रहा है।

तो कोई घर चलने में तो कोई समाज में चलने फिरने और दोस्तों से मिलाने में दिक़्क़त महशुश कर रहा है।

चुकी हर कोई समय के मर के आगे किसी  न किसी से कोई न कोई कर्ज जरूर ले रखा  है।

तो  ऐसे समय में लोग क्या करे।  

समय का तो यही कहना है। ये एक ऐसा समय है। 

जिसे सहन शक्ति के माध्यम से ही पर कर सकते है।

अपनी जरूरत को काम कर के बुनियादी तौर पर सिर्फ जरूरत के सामान  ही खरीदे। 

जहा  खुद की गाड़ी में सफर न कर के बस और रेलगाड़ी में सफर करे।

थोड़ी थोड़ी दूर जाने के लिए पैदल का ही इस्तेमाल करे।

इससे शरीर की ऊर्जा बानी रहती है। और फुर्ती भी खूब रहती है।  

खाने पीने  में  भी थोड़ा कराई रखे। स्वस्थबर्धक ही भोजन करे।

खूब कसरत करे। जो भी काम धाम कर रहे है। मन लगाकर करे।

ताकि सकारात्मक ऊर्जा का विकास को और नकारात्मक ऊर्जा कम हो सके

एक बार यदि सकरात ऊर्जा को पाने में सफलता मिल गई।

तो सब दुःख अपने दूर होने लगेंगे। तब कोई भी काम धंधा में मन जरूरत लगेगा।

मनोकामना जरूर पूरी होगी। यदि ऐसे समय में दुःख के साथ ले कर चलेंगे।

सोच विचार  को समय रहते नहीं बदलेंगे। तो इस समय से निकल  पाना बहुत मुश्किल होगा। 

       

समय की परिस्तिथि मे लोग समझते ही है की इस समय में लोगो ने जितना मुश्किल का सामना किया है।

समय की परिस्तिथि मे बीमारी कम हो रही है। लोग उबर रहे है।  अब भी भी कई देश ऐसे है जाहा  बीमारी काम होने का नाम नहीं ले रहा है। जानकर सरकार और इलाज करने वाले यही कह है। सावधानी  का पालन करे।  उचित रोक  थम रखे। यही हम सब अभी रोकथाम नहीं किये। तो आगे बहुत देर हो जाएगी।  फिर निकलना  तब बहूत मुश्किल हो जायेगा।

समय की परिस्थिति

विचार विस्तृत स्पष्टीकरण के साथ सोच से अधिक तपस्या क्यों पसंद हैं विचार हर संभव विषय वस्तु के बारे में कुछ न कुछ क्रिया या प्रतिक्रिया करता है

  

विचार मन में उठाने वाला एक ऐसा क्रिया है जो हर संभव विषय वस्तु के बारे में कुछ न कुछ क्रिया या प्रतिक्रिया करता है विचार विस्तृत स्पष्टीकरण के साथ। 

मन में उठाने वाले उचित और अनुचित ख्यालो को भी विचार कह सकते है। मन के अभिब्यक्ति को भी विचार कहते है। मन में उठने वाले बात को भी विचार कहते है। किसी को मन ही मन याद करते है वो भी विचार के माध्यम ही बनता है। वह हर समय मन मस्तिष्क में उठाने वाले सवाल जवाब जो स्वयं अपने मन में अविरल चलता रहता है विचार ही है। स्वयं के मन में उठाने वाला शब्द या दूसरो के बारे में अपने मन में उठाने वाला शब्द भी विचार ही है। 

विस्तृत विचार स्पष्टीकरण के साथ

विचार मन के सोच और कल्पना के अनुसार ही चरितार्थ होता है। ब्यक्ति जो सोच समझ रखता है, उसके अनुसार मन में कल्पना अपने कर्तब्य या कार्य के प्रति करता है। सोच समझ बाहरी मन से उत्पन्न होता है। जैसा सांसारिक भाव को मन स्वीकार करता है। जो जीवन में हासिल करना चाहता है। उस सांसारिक भाव को अंतर मन में कल्पना के जरिये मन में नवनिर्माण करता है। ताकि विषय वस्तु जीवन में स्थापित हो सके जिससे जीवन के निवाह का नया मार्ग मिले सके। विचार उसी कल्पना के अनुसार परिलक्षित होता है। विचार बहूत कुछ सिखाता भी है। ब्यक्ति अपने विचार के प्रति सजग हो जाए तो कल्पना से निर्मित विषय वस्तु के परिणाम को ही उजागर करते है।

बाहरी मन की बात कहे तो क्या सही और क्या गलत जिव्हा बाहरी मन के तौर बोल जाता है। विचार विस्तृत स्पष्टीकरण के रूप। 

समझ नहीं पते है बाद में परिणाम कुछ अलग निकलता है तो परिणाम में भी विचार आने लग जाते है। उस विचार से भी सजग हो जय तो जो कुछ बिगड़ रहा है या बिगड़ गया है। उसको ठिक करने का रास्ता मिल जाता है। मन लीजिये की कोई नकारात्मक विचार उत्पन्न हो रहा है तो सोचे की नकारात्मकता कहाँ उत्पन्न हुई है। विचार ही ज्ञान दिलाता है। मन कभी कभी ऐसा हो जायेगा की विचार विचार विस्तृत स्पष्टीकरण क्यों आ रहे है? मै नहीं चाह रहा हूँ की ऐसा विचार आये तब मन उस विचार से पीछा छुड़ाना चाहता है। विचार से भागना नहीं है। 

विचार में उत्पन्न हुए सवाल का जवाब खोजना है।

परिणाम तब कुछ ऐसा निकलेगा की मन जो प्राप्त करना चाह रहा है। उसमे क्या मुस्किल उत्पन्न होने वाला है? वो दर्शाता है। संघर्ष, करी मेहनत कर के सकारात्मक कार्य और कर्तब्य तो पूरा हो सकता है। नकारात्मक कार्य, नकारात्मक धारना, अनर्गल कार्य को सक्रिय करने से मन मस्तिष्क पर कुथाराघात भी पड़ सकता है। जिसका परिणाम लम्बे समय तक मन के विचार विचार विस्तृत स्पष्टीकरण में रह सकता है। जिससे पीछा चुराना बहूत मुस्किल भी पर सकता है, इसलिए विचार हमेशा सकारात्मक ही होना चाहिए                

मनुष्य सोच से अधिक तपस्या क्यों पसंद करते हैं?

सोच समझकर से कुछ करे तो ठिक है। सोच बहूत ज्यादा है तो कलपना भी ज्यादा होगा स्वाभाविक है। कल्पना के द्वारा अंतर मन को सोच के अनुसार कार्य और कर्तब्य के लिए प्रेरित किया जाता है। सोच बहूत ज्यादा है और कार्य कुछ नही कर रहे है तो कल्पना निरर्थक की होता रहेगा। सोच बाहरी मन की देन है, कल्पना अंतर मन में होता है। वर्त्तमान समय में सोच बहूत ज्यादा सक्रीय है। क्योकि कार्य ब्यवस्था को सक्रीय करने में प्रतिस्पर्धा का दौर चल रहा है। सब एक दुसरे से आगे निकलना चाह रहे है।

स्वाभाविक है की प्रतिस्पर्धा के दौर में सब तो एक जैसा आगे नहीं जायेगा।

कोई न कोई तो पीछे जरूर होगा। हो सकता है ऐसे ब्यक्ति सरल हो सांसारिक क्रिया कलाप उनको पसंद न हो, मगर जीवन जीने के लिए ब्यापार, सेवा, कार्य ब्यवस्था में सफल न हो तो अपने जीवन में कुछ परिवर्तन करना उनके लिए उचित लगता है। संसार में सब कोई एक जैसा नहीं होता है। प्रयास में जरूरी नहीं की सबको एक जैसा सफलता मिले। सफलता तो सोच समझ, बुध्दी विवेक, मन, काल्पन, कभी कभी चतुराई, साम, दाम, दंड, भेद सब के मिश्रण से प्राप्त होता है। सिधान्तवादी ब्यक्ति हर रास्ते को नहीं अपनाता है। जो उनके लिए उचित हो वो उसी रास्ते पर चलेंगे।

  विचार विस्तृत स्पष्टीकरण 

सिधान्तवादी ब्यक्ति सोच को कम परिणाम पर ज्यादा ध्यान देते है। 

तपस्या योग ध्यान होता ही है। कर्म के रास्ते पर चलना भी एक तपस्या ही है। जीवन के लिए नित्य कर्म होता है जिसमे सब कुछ समाहित होता है। जो जीवन से ज़ुरा हुआ होता है, सोच मिश्रित हो सकता है। कर्म अपने जीवन के सिधान्त पर चलना तपस्या होता है। ऐसे ब्यक्ति सोचने से अच्छा कर्म करना पसंद करते है। कर्म निस्वार्थ भाव होता है। ऐसे ब्यक्ति न सिर्फ अपने लिए बल्कि अपने से जुड़े  लोगो के हित का भी ख्याल रखते है। उनके ख़ुशी में अपना ख़ुशी समझते है। इसलिए ऐसे ब्यक्ति सोच से ज्यादा तपस्या पसंद करते है। ये सभी विचार विस्तृत स्पष्टीकरण के साथ समझ मे आता है। 

आमतौर पर ब्यक्ति कर्म रूपी तपस्या करे तो जीवन में भले कुछ हो न हो पर आतंरिक ख़ुशी अवस्य मिलता है। 

स्वयं के मन में झाकने से जीवन के परेशानियो से छुटकारा मिल सकता है। जीवन में सबकुछ प्राप्त करना ही ख़ुशी नहीं होता है। सांसारिक भोग विलाश में मनुष्य जीवन के वास्तविक रंग को भूल जाते है। जीवन में सबकुछ होते हुए भी लोग वास्तविक ख़ुशी से कभी कभी दूर हो जाते है। अंतर मन की ख़ुशी ही वास्तविक ख़ुशी है। इसलिए सिधान्तवादी ब्यक्ति सोच से अधिक तपस्या पसंद करते हैं।    

 

आप कैसे पहचानते हैं कि अगर कोई पक्षपाती या स्थिर तरीके से सोच रहा है तो आप बदलाव को कैसे प्रभावित करते हैं?

सोच जब किसी ब्यक्ति विशेष से जुड़ा हो और उसके हित को ध्यान में रख कर कार्य किया जा रहा हो भले वो अनैतिक कार्य ही क्यों न हो वो पक्षपात के दायरे में आता है। स्थिर तरीके के सोच से जो कार्य होता है उसमे स्वयं के साथ साथ अपने से जुड़े लोगो के हित का भी ख्याल रखा जाता है। जिस कार्य के करने से किसी का कोई नुकसान नहीं होता है तो उसको स्थिर सोच कहते है। जीवन में बदलाव को प्रभावित करने के लिए अपने से जुड़े लोगो के हित के बारे में जरूर सोचे। कुछ भी कार्य कर्तब्य करे तो लोगो के मान सम्मान का जरूर ख्याल रखे। कभी किसी की निंदा नहीं करे। स्वयं खुश रहे दूसरो को भी खुश रहने दे। कुछ कार्य निस्वार्थ भाव से भी करे तो जीवन में बदलाव को प्रभावित कर सकते है। 

वास्तविक ज्ञान मन मस्तिष्क के सोच समझ में बुद्धि विवेक का इस्तेमाल करना सब के लिए मान मर्यादा हो मन बुध्दी विवेक सक्रिय हो

  

वास्तविक ज्ञान

वास्तविक ज्ञान को देखा जाय तो आज के समय में लोग एक दूसरे के लिए कुछ नहीं कर पता है।

कही न कही एक दूसरे से जलष की भावना रहता है। ऐसा लगता है।

इस संसार में हर कोई प्रत्योगिता के दौर में एक दूसरे से आगे निकलने की कोर्शिस में एक दूसरे की मान मर्यादा जैसे भूल ही गये है।

वास्तव में ऐसा नहीं होना चाहिए।

 

वास्तविक ज्ञान मन में स्थिरता और करुणा की भावना से कुछ करे तो सफलता जरूर मिलेगी।

संसार सब के लिए है। सभी का बराबर अधिकार है।

कोई कम तरक्की करता है, कोई ज्यादा पर इससे कोई बात नहीं होना चाहिए।

यदि लोग एक दूसरे से मिलजुलकर रहे।

एक दूसरे के साथ दे तो जो कमजोर लोग है उनको थोड़ा सहारा मिल सकता है। 

 

वास्तविक ज्ञान में दया करुणा की भावना जब तक अपने मन के अंदर नहीं आयेगी, तब तक ये सब संभव नहीं है।

दया करुणा से ही मन को अशीम शांति मिलती है। 

जिसके पीछे इंसान भागता है। जब तक लोग एक दूसरे के लिए नहीं सोचना सुरु नहीं करेंगे। 

तब तक जीवन में शांति नहीं मिलेगी।  जिस दिन ऐसी भावना जागेगा। 

उस दिन से शांति महशुश होना सुरु हो जाइएगा। क्योकि शांति एक महशुस है।

शांति एक आभाष है। शांति कोई कितनी भी धन संपत्ति से नहीं खरीद सकता है।

वो स्वतः ही प्राप्त होता है।

वास्तविक ज्ञान कि परिभाषा भी कुछ ऐसे ही बाना है। जब तक हमारा मन मस्तिष्क शांत नहीं होगे।

तब तक शांति नहीं मिलेगी।  जब तक एक दूसरे से आत्मीयता से नही जुड़ेंगे। तब तक विचार का अदन प्रदान नही होगा। जब एक दूसरे के लिए नहीं सोचेंगे। तब तक कुछ संभव नहीं है।  मुख्य अशांति का कारण यही है। एक दूसरे को ठीक से नहीं समझना।  जिस दिन हम एक दूसरे को मन से ठीक से समझने लगेंगे। शांति अपने आप मिलने सुरु हो जाएगी।

वास्तविक ज्ञान मन के कल्पना सोच समझ में जिस दिन से शांति मिलनी सुरु हो जाएगी।

फिर नही कोई वाद न विवाद होगा। न झगड़ा न लड़ाई होगा। क्योकि तब तक सब एक दूसरे से जुड़ चुके होंगे। एक सम्पूर्ण परिवार की तरह। जहा एक सम्पूर्ण परिवार होता है। वहाँ लोग सजग और जानकार भी होते है। तभी वो परिवार चलता है। कोई गलती करता है। तो बड़े बुजुर्ग उसकी सहायता कर के उसकी गलती सुधाने में मदद करते है। जिससे उसका ज्ञान बढ़ता है। तरक्की करता है। 

वास्तविक ज्ञान जिस दिन होगा हम स्वयं शांति महशुस करने लगेंगे। अच्छा महाशुस करने लगेंगे। उस दिन से सब शांति महशुस करने लग जायेगा। सब अच्छ लगने लगेंगा। यही वास्तविक ज्ञान है।

वास्तविक ज्ञान में जीवन की कल्पना में सुख शांति होना चाहिये।

मन मस्तिष्क के सोच समझ में बुद्धि विवेक का पूरा इस्तेमाल करना चाहिये। जिसमे सब के लिए मान मर्यादा हो। स्वयं अपने मन पर पूरा नियत्रण हो। जो जरूरी हो। जरूरी विषय और कार्य को करना चाहिये जिससे मनबुध्दीविवेक सक्रिय हो।

  वास्तविक ज्ञान 

वास्तविक जीवन संघर्स से ही भरा हुआ है. ये जरूरी नहीं की कठिन परिश्रम के बाद पूरा सफलता मिले

  

जीवन और मौसम में अंतर

 

अपने जीवन और मौसम लगभग एक सामान ही होते है. 

जीवन में सुख दुःख होता है तो मौसम में भी पतझड़ और वसंत बहार होते है.

जीवन में कभी कभी बड़े दुःख का भी सामना करना पड़ता है.

जैसे इस कोरोना महामारी में सब भुगते थे.

वैसे ही मौसम में भी चक्रवाती तूफ़ान भी बहूर बड़ा नुकसान पहुचाता है. बाढ़ और सुनामी में बहूत कुछ बर्बाद हो जाता है.

 

जीवन में जैसे सुख के पल कम समय के लिए होते है. 

वैसे ही मौसम में वसंत ऋतू ही एक ऐसा समय है जो सबको अच्छा लगता है.

मौसम में लगातार परिवार्तन लोगो को झेलना पड़ता है.

वैसे ही जीवन में संघर्ष सबको करना पड़ता है.

 

प्रकृति के नियम सबके लिए एक सामान है. 

प्रकृति के नियम को सबको समझना चाहिए.

जैसे जीवन में कभी-कभी ख़ुशी, गम, सुख, दुःख लगा रहता है.

वैसे ही मौसम में समय दर समय परिवर्तन होता रहता है.

कभी लोगो को अच्छा लगता है तो कभी लोगो को परेशान भी करता है.

 

जीवन में कभी ऐसा भी होता है की बहूत परिश्रम में किया गया कार्य हर समय में कोई न कोई रूकावट आता ही रहता है. 

अंत में वो कार्य ख़राब भी हो जाता है. वैसे ही इस साल बिहार भारत में मौसम के कारन धान के खेती पर बहूत बड़ा प्रभाव पड़ा. सुरु में धान के बोआई में पानी नहीं बरसा, जिससे बिज ठीक से हुए नहीं मौसम भी बहूत गरम था. लोगो ने मशीन से पानी चलाये खतो में, कैसे भी कर के धान को उगाने का प्रयास किया. अंत में कुछ धन हुए पर खेत में धान के कटाई के बाद सूखने के दौरान तेज बारिस और पानी बरस जाने से सारे पके हुए धान खेत में उग गए. जिससे कारन सब धान कि खेती ख़राब हो गये.

 

वास्तविक जीवन तो संघर्स से ही भरा हुआ है. 

ये जरूरी नहीं की कठिन परिश्रम के बाद पूरा सफलता मिले. हो सकत है मन के अनुसार सफलता नहीं मिले पर एक किसान के जीवन को देखिये उनके जीवन में ख़ुशी के पल कम और पतझड़ ज्यादा होता है. इसका मतलब किसान खेती कारन नहीं छोड़ते है. क्योकि खेती ही उका जीवन होता है. यदि वो खेती नहीं करेंगे तो मनुष्य को भोजन कहाँ से मिलेगा. इसलिए जीवन में चाहे जीतना भी संघर्स करना पड़े, इससे भागना नहीं है. सफ़लत और असलता तो अपने कर्मो का होता है. जीवन सक्रीय होना चाहिए. आज पतझड़ है तो कल वसंत जरूर आयेगा.

 

जीवन के आयाम में सबको सब सुख प्राप्त नहीं है. 

किसी को कम तो किसी को ज्यादा. इससे घबराकर जीवन से भागना नहीं है. जीवन में आने वाले समय में सभी संघर्स को झेलना ही जीवन है. और यही जीवन है.

 जीवन और मौसम 

वास्तविक जीवन ज्ञान प्राप्त कर ले कई प्रकार के विशेषज्ञ भी बन जाये अपने काम धंदा के लिए उच्च से उच्च अध्ययन कर ले ये सभी ज्ञान अपने काम धंदा के लिए सिर्फ सहारा ही देता होता है

  

कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

जीवन में चाहे जितनी भी ज्ञान प्राप्त कर ले।

कई प्रकार के विशेषज्ञ भी बन जाये।

अपने काम धंदा के लिए उच्च से उच्च अध्ययन कर ले।

ये सभी ज्ञान हमें अपने काम धंदा के लिए सिर्फ सहारा ही देता होता है। 

ज्ञान के प्रमाण पत्र ज्ञान में सक्षमता के है। 

वास्तविक जीवन ज्ञान

कल्पना वास्तविक जीवन ज्ञान में वास्तविकता से तब सामना होता है। 

जब इस ज्ञान के माध्यम से कुछ करना होता है।

तब उस कार्य के लिए विशेष अनुभव की आवश्यकता होता है।

जब तक पूरी तारीके से अपने काम धंदा पर ध्यान नहीं देंगे।

चिंतन मनन नहीं करेंगे।  तब कुछ नहीं हो सकता है।  चाहे जितना ज्ञान क्यों न हो। 

ज्ञान सिर्फ उस कार्य को पूरा करने का माध्यम है। 

जिससे काम करने के लिए उपयुक्त साधन मिलते है।  जब तक स्वयं प्रयास नहीं करेंगे। 

कैसे कुछ होगा।  किसी कार्य को करने के लिए जब काम को अपनी जिम्मेवारी में लेते है। तो उससे जुड़े बहुत से दुविधाएं रूकावट पड़ेशानी भी आते है।  इसके लिए एक एक विषय पर चिंतन मनन करना पड़ता है।  उस कार्य के गहराई में जाने के लिए  मन में कल्पना करना पडता है। 

कल्पना के लिए एकाग्र होना जरूरी होता है चुकी सक्रिय काम में सकारात्मक कार्य का दबाव होता है इसमे एकाग्रता का पूरा सहारा मिल जाता है। 

मन में चिंतन करने के लिए  किताबी ज्ञान तो मस्तिष्क में होता ही है।  जब तक उस कार्य के बारे में नहीं सोचेंगे। तब तक  उससे जुड़े ज्ञान मस्तिष में कैसे उभरेगा। इसलिए अपने कार्य को करने के लिए  एक एक विषय पर चिंतन मनन करना पड़ता है।

मनन करने से मन कार्य के अनुकूल होता है। 

जिससे कल्पना में उस कार्य को एकाग्र कर के कार्य से जुड़े उपयुक्त साधन के बारे में विचार करने से उस कार्य को पूरा करने में सक्रियता बढ़ जाता है।  फिर मन कार्य के अनुसार कार्य करता है। जिससे वो काम पूरा होता है। इसलिए कल्पना सोच समझ ज्ञान से महत्वपूर्ण है।

  वास्तविक जीवन ज्ञान 

वास्तविक जीवन के ज्ञान में सभी के साथ और सभी के विकाश से ही जीवन में ख़ुशी और आनंद मिलता है

  

जीवन का समझौता जीवन की वास्तविक ख़ुशी

वास्तविक जीवन के आयाम में समझौता.

मानव जीवन में कई प्रकार के ख्वाइश होते है पर वो अपने जिम्मेवारी के तहत सभी इच्छा को पूरा नहीं करता है.

मानव जीवन का उद्देश्य कभी भी अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए नहीं है.

यदि ऐसा वो करते है तो सबसे बड़ी विडम्बना है की उनके स्वार्थ कभी भी पुरे नहीं होंगे.

खुद के लिए सोचना ठीक है पर स्वार्थवश कुछ सोचना बिलकुल भी उचित नहीं है.

जब मानव के इच्छा पुरे नहीं होते है तो वो घृणा और दुःख के सागर में डूबने लग लग जाता है.

जिससे जो जिम्मेवारी उसके ऊपर होते है.

उसको भी नहीं पूरा कर पाता है और असफलता ही अंत में हाथ लगता है.

 

जीवन की वास्तविक ख़ुशी तो जो जिम्मेवारी अपने ऊपर है उसको निभाने से मिलता है.

जिम्मेवारी से जो प्राप्त होता है वही सच्चा ख़ुशी है इस ख़ुशी में आनंद और हर्ष भी महशुश होता है.

जीवन के कला में ख़ुशी के पल को खोजने वाले अपने कर्तव्य में ख़ुशी को खोजते है.

तो उनको सालता के साथ साथ मान, सम्मान, इज्जत, प्रतिस्था सबसे बड़ी बात आदर सब जगह से मिलता है.

इतना पाने मात्र से ही जिम्मेदार इन्सान ख़ुशी से उत्साहित हो कर अच्छा करने का प्रयाश करता है दुनिया में वो अपना पहचान बनता है.

जीवन में कुछ प्राप्त करना ही है तो दूसरो के लिए कुछ न कुछ अच्छा करने के बारे में सोचने से सफलता जल्दी मिलता है.

 

जीवन के आयाम को ठीक से समझे तो यदि हम है और दुनिया में कोई नहीं है तो क्या होगा?

 

सब व्यर्थ ही होगा, कोई उद्देश्य ही नहीं होगा, न मन होगा, न सुख होगा, न दुःख होगा, न बोलने वाला कोई होगा, न जानने वाला कोई होगा, तब न कोई कुछ खरीदने वाला होगा, तब न कोई कुछ बेचनेवाला होगा.

तव कैसा जीवन होगा? सोच सकते है जीवन की वास्तविक ख़ुशी.

ऐसे माहोल में एक पल भी नहीं टिक पाएंगे और खुद का अकेलापन ही खुद को खाने लग जायेगा.

चाहे तो किसी शुनसान जगह पर एक दिन बिताकर देख सकते है.

 

वास्तविक जीवन के ज्ञान में सभी के साथ और सभी के विकाश से ही जीवन की वास्तविक ख़ुशी और आनंद मिलता है.

 

जीवन का डोर एक दुसरे से ही जुड़ा हुआ है.
 
एक दुसरे का सहारा बनकर ही मानव जीवन विकाश करके इस प्रगतिशील दुनिया को यहाँ तक लेकर आया है.
 
हमें और भी आगे तरक्की करने है.
 
वास्तविक ख़ुशी को दूसरो में देख्नेगे तो ख़ुशी का आयाम बढ़ने लग जायेगा जिसे हर्ष और उत्साह कहते है ये ख़ुशी से बहूत ऊपर है.
 
हर्ष और उत्साह में जीवन का वास्तविक ज्ञान है.
 
स्वयं के लिए सोचने से हर्ष और उत्साह कभी नहीं प्राप्त होता है.
 
इसे मात्र झूठी ख़ुशी कह सकते है जो ज्यादा समय तक नहीं टिकता है.
 
चुकी जीवन सुख दुःख का मिश्रित परिणाम भोगता है.
 
हर्ष और उल्लाश से जीवन का आयाम बढ़ता है.
 
खुद के लिए सोचने से आयाम घटने लग जाता है और अंत में आयाम छोटा हो कर अंतहीन दुःख ही देता है.
 
अपने दिल और दिमाग से सोच कर समझ सकते है.
  जीवन की वास्तविक ख़ुशी 

वनस्पति विशेषग्य के अनुसार अनजान वृक्ष एडंसोनिया डिजिटाटा प्रजाति का वृक्ष है

  

मुजफ्फरपुर का अंजान वृक्ष

 

किंवदंती के अनुसार ये मुजफ्फरपुर का अंजान वृक्ष ३०० साल पुराना था.

प्राचीन समय में कुछ लोगो से सुना गया था की एक साधु यहाँ आये और दातुन कर के लकड़ी को यहाँ गाड दिये थे.

जिससे ये वृक्ष हो गया और बढ़ने लग गया.

निचे से बहूत मोटा दिखने वाला यहाँ अंजान वृक्ष दो मुख्या शाखा थे.

उसमे से कई छोटे छोट शाखा थे. जिसके पत्ते सेमल के जैसा था

और इसमे कद्दू जैसे फल लगते थे. कनेर के जैसे फूल लगते थे.

वृक्ष के छाल को काटने या छिलने के बाद इसमे से रक्त जैसा तरल पदार्थ निकालता था.

बाद में यहाँ कोई साधू आये और इस पेड़ के निचे रहने लगे.

बच्चे वृक्ष के फल पर पत्थर मरते थे.

इस बात से व्यथित हो कर साधू ने वृक्ष को ही शाप दे दिए.

जिसके बाद वृक्ष से फल आना बंद हो गया. 

 

अंजान वृक्ष औषधी गुणों से भरा था. 

पत्ते के सेवन से पेट के कई प्रकार के दुःख दूर हो जाते थे.

इसके रस से चर्म रोग दूर होते थे.

बाद में इस वृक्ष में लोगो के आस्था बढ़ने से कुछ लोग पूजा पाठ भी करते थे.

बहूत समय पहले यहाँ पर लोगो के आस्था होने से महायज्ञ भी हुआ था.

लगभग २० साल से ज्यादा हो गया है.

मुजफ्फरपुर कुढनी प्रखंड के अंतर्गत तुर्की पंचायत में एक गाँव है जिसका नाम चैनपुर है.

तुर्की स्टेशन से बेहद करीब है. अंजान वृक्ष वही पर है.

एक बालिका विद्यालय है जो वृक्ष से बिलकुल लगा हुआ है.

वनस्पति विसेशग्य के अनुसार अनजान वृक्ष एडंसोनिया डिजिटाटा प्रजाति का वृक्ष है. पर ये उससे अलग है.

 

दुर्भाग्यवास अंजान वृक्ष कीड़े लगने से Jan 3, 2018 को ये वृक्ष दो टुकरा में फटकार बालिका विद्यालय पर सुबह ६ बजे गिर गया. 

सौभाग्यवास स्कूल में कोई बच्चे नहीं थे बिलकुल सुबह का समय था. जिसमे वृक्ष का बहूत बड़ा हिस्सा छतिग्रस्त हो गया. फिर दोबारा ये वृक्ष २४ सितम्बर २०१९ को पूरी तरह गिर कर ख़त्म हो गया. इस तरह से ३०० साल पुराना अनजान वृक्ष अपने अंजान रहस्यों को लेकर ख़त्म हो गया.

रचनात्मक कल्पना का पहला प्रभाव बात चित की कला मनुष्य को बहुत कुछ देता है।

  

रचनात्मक कल्पना खुशहाल जीवन में रंग भर देता है 

जीवन में जो रंग रूप की कमी होते है। लोग के माध्यम से उसको भरने का प्रयास करते है के अनुसार जरूरत की विषय वस्तु को विशेष तौर पर खरीदते है। अपने जीवन को ख़ुशनुमा बनाते है। संतुलित  मनुष्य के जीवन में ख़ुशी भर देता है। कल्पना हर कोई करता है। चाहे बच्चा हो या बूढ़ा सबसे पहले जीवन के रंग को कल्पना में ही ढालते है। तब उसके अनुरूप अपने जीवन में परिवर्तन करने का प्रयास करते है।

 

रचनात्मक कल्पना मनुष्य को अपने जीवन में बहुत कुछ सिखाता भी है 

पहला प्रभाव बात विचार पर पड़ता है। बात चित की कला मनुष्य को बहुत कुछ देता है। आदर सम्मान, छोटे बड़े का भेद भाव हर कोई जनता है  पर जुबान के माध्यम से जो आदरमान सम्मानअपनापन जुबान के माध्यम से ज्ञान मिलता है। जो रचनात्मककल्पना के बगैर नहीं हो सकता है। चाहे कोई भी कल्पना हो हर वक़्त कल्पना में शब्द ही उभरते है। इसलिए रचनात्मक कल्पना का सबसे पहला प्रभाव जुबान पर पड़ता है। बात बिचार सकारात्मक होता है। सकारात्मक बात विचार मन को बहुत ख़ुशी देता है। एक एक शब्द जीवन के खुशहाली में कमी को उजागर करते है। रचनात्मक कल्पना को मनुष्य पूरा करने का प्रयास करता है।

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यूकेजी (Ukg) और केजी (Kg) में प्रवेश के लिए कौन सा ज्ञान (Knowledge) आवश्यक है? भारतीय प्रणाली में ज्ञान की तुलना में प्रमाणपत्र क्यों महत्वपूर्ण हैं?

  

शिक्षा का ज्ञान  (Knowledge of education)

 

यूकेजी (ukg) और केजी (kg) में प्रवेश के लिए कौन सा शिक्षा का ज्ञान आवश्यक है?

यूकेजी और केजी में प्रवेश के  लिए  बच्चे को अपना नाम अपने माता पिता का नाम बताने आना चाहिए। किताबी किसी भी ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। क्योकि पढाई लिखाई की सुरुआत स्कूल से होते है। सिर्फ बच्चे के समझ का अंदाजा लगाया जाता है। क बच्चे को यूकेजी या केजी में प्रवेश लिया जाए। बच्चो को सिर्फ सब्जी की पहचान या फल का पहचान होना चाहिए।

घर में उपयोग होने वाले वस्तु के पहचान होने ज़रूरी है।

बच्चा कितना साफ़ बोल पाता है। बच्चे का उम्र ३ साल से बड़ा और ४ साल से छोटा है। तो इसके अनुसार से केजी में प्रवेश लिया जाता है। बच्चा यदि पहले से कुछ किताबी ज्ञान घर में पढ़ा है। जैसे A B C D शब्द या 1 2 3 गिनती सिखा है। छोटे साधारण कविता घर में दुसरे बड़े बच्चो से सिखा हो। उम्र ४ साल से बड़ा और ५ साल से छोटा है।

यूकेजी में प्रवेश लिया जाता है। यूकेजी और केजी में प्रवेश के लिए इस प्रकार के ज्ञान की आवश्यकता होता है।

मेरे हिसाब से बच्चा जब तक ५ साल का न हो उनके ऊपर पढाई का बोझ डालना ठीक नहीं है। आधुनिक सभ्यता बहूत जल्दी बच्चे पर पढाई का बोझ डाल रहा है। हो सके तो जब तक बच्चा यूकेजी या केजी में प्रवेश के पहले किसी भी प्रकार का किताबी ज्ञान का बोझ न डाला जाये। बच्चे मासूम होते है।

  शिक्षा का ज्ञान 

बच्चे उम्र और सामान्य शिक्षा का ज्ञान जो घर के वस्तु के नाम के ज्ञान के हिसाब से यूकेजी या केजी में प्रवेश होते है।

न कि किसी किताबी ज्ञान के माध्यम से प्रवेश होते है। इसलिए बच्चे को स्कूल में प्रवेश के पहले किसी भी प्रकार का किताबी ज्ञान का बोझ न डाले। बच्चो को स्कूल जाने के पहले कुछ सिखाना चाह रहे है। तो सामान्य ज्ञान के तौर पर घर के बस्तु के नाम सिखा सकते है। इतने ही यूकेजी और केजी में प्रवेश के लिए ज्ञान आवश्यक है।   

 

काम के संदर्भ में कर्मचारियों को दिए जाने वाले सैद्धांतिक और व्यावहारिक ज्ञान (Knowledge) का अर्थ है

सैद्धांतिक ज्ञान और व्यावहारिक ज्ञान ब्यक्ति को जिम्मेदार बनता है। खास कर के काम के संदर्भ में कर्मचारियों को अपने सिद्धांत और व्यावहार में पक्का होना बहूत जरूरी है। सिद्धांत ब्यक्ति को समय पर अपने काम पर आना सिखाता है। मन लगाकर काम करना। काम के प्रति अपने जिम्मेदारी को समझना। दिए गए कार्य को जिम्मेदारी से करना।

समय का खास ख्याल रखना की दिया गया काम अपने समय पर हो।

ताकि उद्यमी को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान न हो। व्यावहारिक ज्ञान ब्यक्ति को दुसरे कामगार के बिच में समन्वय स्थापित करने में मदद करता है। जिससे किसी भी प्रकार का काम में कोई विवाद उत्पन्न नहीं होता है।

भले कामगार हो या उद्यमी दोनो के साथ समन्वय से शिक्षा का ज्ञान समान रहता है।

काम अपने जगह पर है। रहन सहन का तरीका अपने जगह पर है। भले ब्यक्ति काम में कितना ही माहिर क्यों न हो। यदि व्यावहार अच्छा नहीं है। तो वो किसी काम नहीं माना जाता है। उद्यमी के सामने वो किसी काम का नहीं होता है। अक्सर ऐसा देखा गया है। सिध्दांत उसके चरित्र को दर्शाता है। व्यावहार उसके भूमिका को दर्शाता है। इसलिए काम के संदर्भ में कर्मचारियों को दिए जाने वाले सैद्धांतिक और व्यावहारिक ज्ञान बहूत जरूरी है।       

 

भारतीय प्रणाली में शिक्षा का ज्ञान की तुलना में प्रमाणपत्र क्यों महत्वपूर्ण हैं?

ज्ञान की तुलना में प्रमाणपत्र क्यों महत्वपूर्ण हैं? ये सिर्फ भारतीय प्रणाली में नहीं बल्कि पुरे दुनिया में ऐसा ही मत है। कोई भी ब्यक्ति कही काम के तलाश में किसी ब्यावसाई के पास जाता है। अपने बारे में बताता है। ब्यावसाई उससे कुछ पूछ ताछ करता है।

इतना करने से कैसे कोई ब्यावसाई किसी अनजान ब्यक्ति पर विश्वास कर लेगा। जब तक की वो क्या जनता है? क्या तजुर्बा उसके पास है? कहाँ से आया है? इस ब्यावसाई में आने के पहले क्या कर रहा था? कहाँ कहाँ काम किया है? या नया है। काम पकड़ने के लिए सारा बात झूट तो नहीं बोल रहा है? कुछ भी हो सकता है? भारतीय सुरक्षा प्रणाली भी यही लोगो को समय समय अवगत पर कराता है।

किसी भी अनजान लोगो के संपर्क में सोच समझ कर विचार करे।

सिर्फ बात पर विश्वास नहीं करे। आये दिन हो रहे चोरी और धोखादारी से जगत विदित है। इसलिए भारतीय प्रणाली में ज्ञान की तुलना में प्रमाणपत्र महत्वपूर्ण है। ब्यक्ति कौन है? नाम पता कहाँ का है? ब्यक्ति कहाँ से है? कितना पढ़ा लिखा है? क्या क्या योग्यता उसके पास है? कौन कौन से काम में माहिर है? उसका सैद्धांतिक ज्ञान और व्यावहारिक ज्ञान कैसा है?

सब जानकारी उसके प्रमाणपत्र में अंकित होता है। विद्यालय, महाविद्यालय, प्रतिष्ठान का मोहर और हस्ताक्षर होता है। जो की उसके योग्यता और उस ब्यक्ति को प्रमाणित करता है। 

 

 



 

मानव ज्ञान के वर्गीकरण मानव के लिए विषयो का ज्ञान आवश्यक है जब तक विषय का सही ज्ञान नहीं होगा तब तक विषय वस्तु पूरी तरह से समझ नहीं आएगा

  

मानव ज्ञान के विषय और विषयों में वर्गीकरण के दृष्टिकोण की आवश्यकता है

मानव ज्ञान के वर्गीकरण के लिए विषयो का ज्ञान आवश्यक है. 

जब तक विषय का सही ज्ञान नहीं होगा तब तक विषय वस्तु पूरी तरह से समझ नहीं आएगा.

स्कूल में पढाई लिखाई में कुछ विषय होते है जिसमे शब्द, भाषा और प्रकार समझ में आता है.

गणित जोड़ना, घटाना, गुना और भाग सिखाता है.

भाषा क्षेत्रीय, राजकीय और देशीय भाषा का ज्ञान कराता है.

जो अपने राज्य के भाषा देश का भाषा और सार्वभौमिक अन्तररास्ट्रीय भाषा सिखाता है.

इतिहास पौराणिक, मध्य यूग, और वर्तमान के विषय वस्तु की जानकारी कराता है.

भूगोल खगोलीय, देश, प्रदेश, विदेश के जलबायु संरचन का ज्ञान करता है.

देश और स्थान के अनुसार जलवायु परिवर्तन और मौसन शर्दी, गर्मी और बरसात के मौसम के बारे में जानकारी कराता है.

भूमिति संरचन के आकर, प्रकार के मापने के पद्धति और बनाने और गणना करने का तरीका सिखाता है.

सबसे जटिल विषय विज्ञान जिसके तीन भाग होते है.

जीव बिज्ञान जीवन के संरचन के बारे में बताता है.

प्राणी, पशु, पक्षी, किट, पतंग, जीवाणु और विषाणु इत्यादि के शारीरिक बनावट तत्व की जानकारी, स्वभाव, प्रकृति, संरचन की जानकारी देता है. इसे प्राणी विज्ञान भी कहते है.

रसायन विज्ञान में तत्व की जानकारी, पदार्थ की जानकारी, ठोस और तरज पदार्थ की जानकारी, तत्व और पदार्थ के गुणधर्म, प्रकृति इत्यादि की जानकारी मिलता है.

भौतिक विज्ञान मशीनरी के बनाने और उसके वास्तु के गुणधर्म प्रकृति आकर प्रकार के गणना की पद्धति सिखाता है.

 

मानव ज्ञान में वर्गीकरण के अलावा भी बहूत से क्षेत्र है

मानव ज्ञान में वर्गीकरण जो महाविद्यला में अर्थशास्त्र, पुस्तपालन विज्ञान के तकनिकी अध्ययन, वाणिज्य.

ऐसे बहूत से विषय है जो आर्ट्स कॉमर्स, और साइंस के पढाई के लिए वर्गीकृत किये गए है.

 

मानव ज्ञान में ज्ञान के वर्गीकरण से ज्ञान का आयाम बढ़ता है. 

ज्ञान के वर्गीकरण में अपने क्षेत्रे के अनुसार क्या ज्ञान आवश्यक है.

उसको एक संग्रह कर के विषयों का अध्यन कर के अपने क्षेत्र में बढ़ा जाता है.

सबसे पहले खुद के मन में झक के ये निर्णय लिया जाता है की मन किस विषय के लिए उपयुक्त है.

उसके अनुसार से विषय का चयन किया जाता है.

एक मुस्ट विषय को संग्रह कर के अध्यन कर के स्नातक या डिप्लोमा कर के अपने कार्य व्यवस्था को बनाकर कमाई का माध्यम बनाकर व्यापर या सेवा में कार्य किया जाता है.

तभी सफलता मिलने के लिए विषयों में वर्गीकरण के दृष्टिकोण की आवश्यकता होता है.

 

  मानव ज्ञान के वर्गीकरण 

महिलाये आज के समय में पुरुषो साथ कदम से कदम मिलाकर हर क्षेत्र में उन्नति कर रही है

  

लडकियों के लिए शिक्षा अत्यंत आवश्यक

 

माता पिता के लाडली बेटी जो आज के समय में पुरुषो साथ कदम से कदम मिलाकर हर क्षेत्र में उन्नति कर रही है. 

कोई ऐसा क्षेत्र बाकि नहीं है जहा स्त्रीयां पुरुषो से कम हो.

कई क्षेत्र में तो स्त्रियां पुरुषो से आगे भी है खास कर स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर बहुताया में स्त्रियां आगे चल रही है.

भले प्राइवेट स्कूल हो या बच्चो के कोचिंग क्लासेज सब जगह अब स्त्रीयां विराजमान है.

 

आधुनिक समय में पुरुस के साथ स्त्री को भी बाहरी जानकारी होना अत्यंत आवशयक है. 

जिससे वो स्वयं की रक्षा कर सके और घर बैठे गृहिणी को भी चाहिए जी अपने जीवन में बाहरी संसार का पूरा ज्ञान हो.

सरकार ने हर क्षेत्र में स्त्री को प्रोत्साहन के लिए मार्ग खोल रखे है. जिससे की स्त्री को हर प्रकार के जानकारी और स्वतंत्रता मिल सके.

 

आज के समय में स्त्री को भी स्वाभिमानी होना अत्यंत आवशयक है. 

रूढी परंपरा ने जैसे महिलाओ को घर में बंद कर रखा है.

मनो जैसे महिलाये का काम सिर्फ घर में खाना बनाना और परिवार बढ़ाने की ही जिम्मेवारी हो.

अब महिलाओ को खुद के पैर पर खड़ा होना होगा.

रूढीवादी परंपरा के बंधन को तोड़ना होगा. तब जाकर दुनिया का बाहरी ज्ञान मिलेगा.

शहर हो या गाँव में अभी भी बहूत ऐसे परिवार है तो प्राचीन परम्परा को संजोकर महिलाये को ऊपर उठाने नहीं देते है.

बहूत ऐसे भी परिवार है जो महिलाये को घर के बहार तक नहीं निकालने देते है.

यहाँ तक की सैकरो ऐसे परिवार है जो खास कर ग्रामीण इलाके में बचपन में अपने बेटी को स्कूल तक नहीं भेजते है.

 

समय का दौर परिवर्तित हो रहा है. 

आज वैज्ञानिक युग चल रहा है. कुछ कर दिखाने का समय है.

हर किसी के अन्दर कोई न कोई खासियत होता है.

अपने खासियत को परिपक्व करने के इए संसार को अपने आँख से देखना बहूत जरूरी है.

अपने प्रतिभा को उभारना बहूत जरूरी है. देश तरक्की की राह पर चल रहा है.

संसार को ज्ञानवान व्यक्ति की तलाश है, जिससे आगे का समय अच्छा व्यतीत हो.

 

बेटियों के शिक्षा बचपन से ही जरूरी है. लडकियों के लिए शिक्षा कई बरसो से देखा जा रहा है.

मध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा में बेटी अव्वल आ रही है.

खुद के अच्छा नाम के साथ अपने माता को भी सम्मान के पात्र बना रही है.

शिक्षा के उच्चतम स्तर को प्राप्त कर रही है. 

 लडकियों के लिए शिक्षा 

मनुष्य के मन के बारे में जिस दिन ये पता चल जायेगा की स्वयं कितने बुरे है तो दुनिया में अपने बुरा कोई नहीं होगा। मान मर्यादा का भी ख्याल नहीं रखते है। कुछ भी कह देते है

  मनुष्य के मन में क्या है? क्यों अपना बचा हुआ समय जो उसको अपने काम काज से बाद मिलता है। अक्सर लोग ऐसे समय में लोगो की बातो में बिताते है। और बातो बातो में एक दूसरे की बुराई भी सुरु कर देते है। मान मर्यादा का भी ख्याल नहीं रखते है। कुछ भी कह देते है ज्यादा करके समय उन्ही बुराई करने में ही चला जाता है। कभी  अपने अंदर झांक कर देखा है की अपने अंदर कितने बुराई है। जिस दिन ये पता चल जायेगा की स्वयं कितने बुरे है। मनुष्य के मन तो दुनिया में अपने बुरा कोई नहीं होगा। जिस दिन इस बात का एहसास हो जायेगा तो  फिर किसी की बुराई नहीं करेंगे और न करने देंगे।

मनुष्य के जीवन में कर्म का ही महत्व होता है, कर्म से ही सब कुछ है, कर्म के बिना कुछ नहीं, जीवन के आयाम में कर्म की बड़ी उपलब्धि है, माता पिता की सेवा बड़े बुजुर्गो की सेवा समाज में मदद गरीब दुखी को सहारा देना ये सभी कर्म के माध्यम है

 

मनुष्य के जीवन में कर्म का ही महत्व होता है। 

कर्म से ही सब कुछ है, कर्म के बिना कुछ नहीं, कर्म का महत्व के आयाम में कर्म की बड़ी उपलब्धि है, माता पिता की सेवा बड़े बुजुर्गो की सेवा समाज में मदद गरीब दुखी को सहारा देना  ये सभी कर्म के माध्यम है, अपना काम धाम करना स्वयं में व्यस्त रहना ये मनुष्य  का काम, ब्यापार और रोजगार है, इससे मन को संतुष्टि होती है, ऐसा होना ही चाहिए मन सकारात्मक हो कर अपने काम धंदा को करता है तो अच्छा ही है, क्योकि कर्म तो काम धंधा की उपलब्धि से ही प्राप्त होता है, जिससे ऊपर उठ कर मनुस्य कर्म करता है।  समाज में नाम होता है, ये सब जो काम निस्वार्थ भाव से किया जाता है  उसे ही कर्म कहते है। 

 

मनुष्य  एक बार सोच ले की हमें कर्म करना है कुछ अच्छा करना ही तो सहारा होगा

कर्म का महत्व दिन दुखी की मदद करने ने तृस्ना मिटटी है जिससे मनुष्य का मन शांत रहता है, समाज में मदद करने से आयाम बढ़ता है  जैसे समाज में कुछ बुरा हो रहा हो, कोई एक वर्ग दूसरे वर्ग की अवहेलना कर रहा हो तो वह उनको ज्ञान के माध्यम से जागरूक कर के सभी वर्ग को एक सामान समझना और लोगो को प्रेरित करना ताकि सब एक जैसे एक सामान बने रहे, बड़े बुजुर्गो की सेवा बड़ा ही सुफल कर्म होता है  जिनकी यात्रा समाप्त होने वाला होता है, उनको सहारा देने से मन को अद्भुत शांति और ख़ुशी का एहसास होता है, यदि सक्षम हो तो उन बच्चो की भी सहारा दिया जाए जिनके कोई नहीं होते है जो अनाथ होते है, उनको सहारा देने से उपलब्धि प्राप्त होता है  समाज में नाम होता है, ये सब जो काम निस्वार्थ भाव से किया जाता है  उसे ही कर्म कहते है।

मनुष्य अपने व्यक्तिव मे बहूत से परिभाषा ले कर जीता है।

  मनुष्य अपने व्यक्तिव मे बहूत से परिभाषा ले कर जीता है। जीवन के उत्थान के लिए सपना देखना कल्पना करना सोचना ये सभी उसके अंधुरूनी क्रियाकलाप होते है। विषय वस्तु को समझकर क्रियान्वित करने से पहले सोचना विचार विमर्स करना उस कार्य के सफलता के लिए जरूरी है जो करना चाहता है। सोच मे पृस्थ्भिमी के निर्माण होने से कार्य मे आने वाली दिक्कत और सही मार्गदर्शन मिलता है। दिक्कत वाले रास्ते से हटकर सहज मार्ग को चुनना सोचने का महत्व होता है। कार्य के सफलता के लिए निरंतर प्रयाश उसको सकारात्मक परिणाम तक लेकर जाता है। काम की बारीकीयत जीवन मे दूसरे कम को सहज करने के लिए अनुभव प्रदान करता है। निरंतर प्रयाश और अथक परिश्रम जीवन मे अनुभव दिलाता है। जिससे व्यक्ति पारंगत कर अपने कार्य को पल भर मे पूरा कर लेता है।

 

बहूत जादा सोचना और कुछ भी नहीं करना व्यर्थ है वो सोच भी व्यर्थ हो जाता है जिसका कोई परिणाम जीवन मे नहीं मिले। इससे जीवन निराशा मे काटने लगता है। दिन प्रति दिन जीवन मे उत्साह घटने लग जाता है। कार्य करने की क्षमता समाप्त होने लग जाता है। शरीर मे हमेशा थकावट और आलश्य का निर्माण होता है। मानव शरीर मेहनत नहीं करने पर जल्दी जल्दी विमार पड़ता है। जिससे अनेकों बड़े बड़े रोग उत्पन्न होते है।

जीवन के उत्थान के लिए व्यायाम से शरीर निरोगी रहता है। कार्यालय मे दिमागी कार्य होने से मन और दिमाग थकता है जिसका प्रभाव शरीर पर पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को सुबह शाम थोड़ा मेहनत करना चाहिए जिसे शरीर निरोगी रहे। इसका सबसे अच्छा जरिया व्यायाम है जिससे शरीर को चुस्ती फुर्ती और हलकापन मिलता है। कार्य करने की क्षमता बढ़ता है। शरीर चलाएमान होता है।

मन में हरदम कुछ न कुछ खिचड़ी पका रहा होता है पर कभी उस खिचड़ी के स्वाद को भी लेने का प्रयास भी तो करे

  

प्रेरक विचार एक सोच है कर्म हमेसा सक्रीय है बहूत कुछ सोचने से अच्छा है कि कुछ करे और कुछ बन के दिखाए 

 

प्रेरक विचार एक सोच है। कर्म हमेसा सक्रीय है। बहूत कुछ सोचने से अच्छा है कि कुछ करे और कुछ बन के दिखाए। ख्वाबो में घुमाने से अच्छा है की जो स्वप्न देख रहे है, दिन में अच्छा लगता है। पर उस स्वप्न को सच्ची हकीकत में बदने के लिए आगे बढना पड़ता है। बैठकर सोचने से कुछ नहीं होता है। जब तक तन और मन दोनों को सक्रीय नहीं करेंगे तब तक कुछ नहीं होने वाला है। प्रेरक उदहारण किसी से लेना बहूत आसान है। पर प्रेरणा के अनुरूप प्रेरणादायक उदाहरण बन के दिखाए तो किसी  का प्रेरणा कारगर हो। तब प्रेरक उदहारण जीवन में सफल होता है। 

 

प्रेरणा मन में हरदम कुछ न कुछ खिचड़ी पका रहा होता है। पर कभी उस खिचड़ी के स्वाद को भी लेने का प्रयास भी तो करे। 

आज कुछ स्वाद मिल जाता है तो उम्मीद पर पूरी दुनिया काबिज है। प्रयास से भले कल सफलता कम मिले पर कुछ दिन बाद खिचड़ी को स्वादिस्ट होने से कोई रोक नहीं सकता है। असफलता मन का डर है जो की निराशा को ही उत्पन्न करता है। साहस और प्रयास आशा की किरने है जो निडरता को उत्पन्न करता है। प्रयास स्वाबलंबी है। प्रेरणा मिलाने के बाद स्वाबलंबन कभी रुक नहीं सकता है। जिसने ठाना है वो तो जरूर कर गुजरेगा। तब न परवाह किसी डर का न असफलता का होता है। फिर जीत और सफलता किसी के रोके नहीं रुकेता है। प्रेरणा का यही तो मुख्य प्रभाव होता है।

 

प्रेरित होता हूँ। ये बात सुनकर की मन के हारे हार है मन के जीते जीत है। 

प्रेरक विचार एक सोच जब समझ सकारात्मक और स्वाभाविक है तो हारने का सवाल ही क्यों? उससे तो अच्छा है की उसे जीतने का प्रयास किया जाये। कर्महिनता हार के पहचान है। कर्मठता को जितने से कोई रोक नहीं सकता है। भले अध्याय कितना भी कठिन क्यों न हो। कर्मठता की प्रेरणा योग्य व्यक्ति को सफलता से कोई चूका नहीं सकता है। 

 प्रेरक विचार एक सोच 

मन में ईस्वर का नाम और बगल में छुरी ऐसे भी व्याख्या है.

  

दिलो में वही बसते है जिनके मन साफ़ होसुई में वही धागा प्रवेश करता है, जिसमे कोई गाठ नहीं हो.

 

मन में ईस्वर का नाम सच्चे मन की व्याख्या उस धागा से कर सकते है,जिसमे कोई गाठ नहीं हो. बिलकुल सीधा साधा सरल सहज होने पर ही मन शांत और उत्साही होता है. जिसे किसी को भी एक नजर में अच्छा लगने लग जाता है. वो सबके दिलो पर राज करता है. सच्चा और सरल होना ये बहूत बड़ी बात है.

 मन में ईस्वर का नाम 

 

अपने मन में ईस्वर का नाम और बगल में छुरी ऐसे भी व्याख्या है.

उन लोगो के लिए जो होते कुछ और है, पर दखते कुछ और ही.  ऐसे लोग न जल्दी किसी के दिल में बसते है और नहीं समझ में आते है.  ये कब क्या कर बैठेंगे. ऐसे लोगो के पास शक्ति अपार होती है. पर वो कभी भी सकारात्मक पहलू के लिए नहीं होते है.  हमेशा कुछ न कुछ खुरापाती ही करते रहते है. ऐसे लोगो से बच कर रहे तो उतना ही अच्छा है.

 

मन के हारे हार और मन के जीते जित.

जिनको किसी से कुछ मिले नहीं तो भी खुश और कुछ मिले जाये तो भी खुश.संतुलित व्यक्ति सरल और सहज होते है. वो कुछ भी करते है भले उसमे कोई फायदा हो या न हो पर मन में आ गया तो वो कर गुजरते है. इससे मन को शांति और उत्साह महशुस होता है. अच्छा करने वाला अच्छाई के लिए ही जीते है. कुछ भी करते है. वो अच्छाई के लिए ही होता है. इसलिए ऐसे सरल व्यक्ति किसी के दिल में एक वर में बैठ जाते है. जिनका प्रसंसा और जिक्र हमेशा होता रहता है.

मन मस्तिष्क की सक्रियता मन में एकाग्रता काल्पना जीवन में डर भय दूर होता है बात विचार सरल सहज और आकर्षक होता है ग्राहक आकर्षित होते है।

  

कल्पना सोच समझ के बारे  कहा जाता है की कभी भी अच्छे शब्द ही बोलता चाहिए

जीवन के कल्पना सोच समझ के बारे  कहा जाता है की कभी भी अच्छे शब्द ही बोलता चाहिए। किसी से भी भले अनजान से ही क्यों नही

साफ़ सुथरा बात चित करना चाहिए। कब कौन अपने साथ मददगार हो जायेगा क्या पता।

जीवन सदा एक जैसा नहीं होता है।

उतार चढ़ाओ होता ही रहता है।

यही अपना बोलना साफ सुथरा होगा तो कोई भी अपना साथ देगा।

भले जान पहचान के हो या अनजान सभी को अच्छे शब्द पसंद है।

हो सकता है। अपने बुरे समय वो कभी भी अपना साथ मददगार हो।

एक बात और है की जब अपना  बोली वचन ठीक ठाक  होगा। 

सुख हो या दुःख अपने को एहसास नहीं होगा।

चुकी अच्छे बोल वचन अपने को ज्ञान भी देता है।

जीवन के कल्पना में सब अपने स्वयं के सुधार के लिए सोचते है

अपने जीवन के कल्पना में सब अपने स्वयं के सुधार के लिए सोचते है। कभी पिछली बात को याद करते है। तो कभी आने वाले भविष्य की कल्पना करते है।  अक्सर ऐसा तब करते ही जब अपना मस्तिष्क विकशित होता है। सोच  समझ का ज्ञान समझने लग जाते है।  तो  आगे का रास्ता निकालने के लिए  भविष्य की कल्पना करते है। जिसका मुख्य उद्देश्य होता है। जीवन का विकास करना।

जीवन के कल्पना में अपने काम धंदे के बारे में सोचते है आर्थिक स्तिथि मजबूत हो

जीवन के कल्पना में अपने काम धंदे के बारे में सोचते है। जिससे आर्थिक स्तिथि मजबूत हो। घर परिवार खुशहाल ।जीवन के विकास में बहुत सारे ऐसे उद्योग धंदा है। जैसे विपणन और सामान के बिक्री से जुड़े उद्योग धंदा और ब्यापार सेवा।  इस व्यवसाय में मुख्या तौर पर महत्त्व होता है की  ग्राहक को कैसे आकर्षित करते है।  खरीदारी के लिए और सामान के बिक्री की मात्रा को बढ़ाते है। विपणन के व्यवसाय में अपना बात चित करने का तरीका ही अपने व्यवसाय को बढ़ाने में भूमिका निभाता है।  जिससे सामान की बिक्री का मात्रा बढ़ता है। आवश्यकता बात करने की कला होता है।  जीवन में बात विचार के कला और ज्ञान के लिए किसी के प्रेरणा का सहारा लिया जा सकता है। आत्मज्ञान पर पूर्ण विस्वाश करना होता है। स्वयं के मन में झांककर वो सभी प्रकार के गन्दगी को निकालना होता है।

कल्पना के दौरान सोच समझ में रोड़ा अटकने वाला विचार आता है। 

उसकी सफाई कर के सकारात्मक विचार को बढ़ाया जाता है। मन को सरल और सहज रखने का  प्रयास किया जाता है।  विपणन के व्यवसाय में कभी भी खली समय को व्यर्थ नहीं गवाना चाहिये।  खली समय में भी कुछ न कुछ कार्य करते रहना चाहिए। जिससे मन मस्तिष्क सक्रिय रहता है।  हमेशा मन में एकाग्रता का ख्याल रहना चाहिये।  जिससे मन का डर भय दूर होता है।   बात विचार सरल सहज और आकर्षक होता है। ग्राहक आकर्षित होते है।

  जीवन के कल्पना 

मन भी बहुत खुश होता है कहा जाता है अच्छाइयों के साथ रहने से अच्छाई बढ़ती है लोगो के बीच अच्छी बाते करते और विचार अनुभव करते है

  

अच्छाइयों के साथ जीवन में अच्छाइयों के तरफ बढ़ने के लिए मन में अच्छे चीजों को ग्रहण करना चाहिए

अच्छाइयों के साथ जीवन में अच्छाइयों के तरफ बढ़ने के लिए अच्छे चीजों को ग्रहण करना चाहिए।

जिन लोगो से मिलते है। जिनके बारे में अच्छा सुनते है अच्छा लगता है।

इससे अपना मन भी बहुत खुश होता है। इसे ही कहा जाता है अच्छाइयों के साथ रहने से अच्छाई बढ़ती है।

जहाँ पर  लोगो के बीच अच्छी बाते करते और विचार अनुभव करते है।

तो वाहा अच्छा सिद्धांत उत्पन्न होता है।

जो अच्छाइयों को बढ़ता है। सबसे बुरा तब होता है।

जहाँ लोग एक दूसरे से बाते करते है। और सामने वाले की कमज़ोरी पकड़कर उनका फायदा उठाते है।  

सामने वाले का नुकसान करते है।

ये अच्छी बात नहीं है। ऐसा नहीं करना चाहिए ऐसा करना अपराध भी है।

अक्सर ऐसा होता है किसी से बात करते करते उस पर क्रोधित भी हो जाते है।

तब ये नहीं पता चलता है। की क्या कर रहे है क्या नहीं कर रहे है क्या करना है।

क्रोध के दौरान सब ज्ञान मस्तिष्क से गायब हो जाता है।

तब सिर्फ और सिर्फ गुस्सा ही रहता है।

इसलिए ऐसा तो कभी नहीं करना चाहिए।  चुकी ऐसा करने से सब ख़त्म होने का दर रहता है। उससे भविष्य में विक्छिप्तता के वजह से नुकसान ही होता है। ऐसा करना सर्वनाश करने के बराबर होता है। इसलिए ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। होना तो ये चाहिए की भले सामने वाला कुछ कहता है। भले उसके मुँह से कुछ बुरा बात निकल जाता है। तो हो सकता है उसके पास ज्ञान की कमी हो सकता है।

इसके वजह से ही कुछ बुरा बोला होगा। इसलिए उसे माफ़ करना ही सबसे अच्छा है।

इससे उसको भी ज्ञान होगा की अरे मुझसे तो गलती हो गई है। मान लिजिए कोई आपको कुछ दे रहा है। और आप उसे स्वीकार नहीं कर रहे है। तो होगा क्या वो वापस ले कर चला जायेगा। यदि किसी ने बुरा बात बोले तो हमें उसे स्वीकार करके बुरा बात बोलने की कोई जरूरी नहीं है। इससे हमारा ऊर्जा ही ख़राब होगा। जो खतरनाक है। इससे अच्छा है। सब से अच्छा बोले। अच्छा रहे। अच्छा बने रहे। अच्छाई बिखेरते रहे। इससे सब ठीक रहेगा।

  अच्छाइयों के साथ 

मन ज्ञान का प्रवेश द्वार है कल्पना ज्ञान का द्वार है जब तक मन कुछ अपने में नहीं लेगा तब तक कल्पना सार्थक नहीं होगा

  

ज्ञान का रास्ता या ज्ञान का प्रवेश द्वार जो सही है

मन का प्रवेश द्वार है 

कल्पना ज्ञान का द्वार है 

जब तक मन कुछ अपने में नहीं लेगा। तब तक कल्पना सार्थक नहीं होगा। मन तो अपने अन्दर बहूत कुछ अपने में समेटे रखता है। पर सक्रीय वही होगा जो कल्पना में समां जायेगा। कल्पना मन का विस्तार है। मन पहेली भी रच सकता है। कल्पना संधि विच्छेद तक कर सकता है। द्वार तो मन ही है। उद्गम कल्पना है। जब तक संस्कार और ज्ञान अन्दर नहीं जायेगा। तब तक कल्पना के उद्गम में ज्ञान का आयाम कैसे बनेगा। सार्थकता तो उद्गम तक पहुचना होता है।

प्रवेश द्वार के अन्दर जा कर कोई वापस भी आ सकता है। पर उद्गम में विचरण का मौका सबको नहीं मिलता है। मन आडम्बर कर के चला भी जा सकता है। कल्पना में जो गया वो विस्तार ही कर बैठेगा। नजरिया सबका अपना अपना है। मन के हारे हर मन के जीते जित होता है। स्वाबलंबन ज्ञान बढ़ाएगा। कर्महीनता आडम्बर रचेगा। समझ वही जो समझ सके तो ज्ञानी नहीं तो बाकि सब समझते है।     

ज्ञान का प्रवेश द्वार

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