Saturday, June 21, 2025

शांति जीवन का ज्ञान में जीवन का मजा आता है अपने घर परिवार में ख़ुशी पूर्वक रहते है सब के ऊपर खुशी बिखेरते रहते है, जिससे हम सबको अच्छा लगता है, जो साथ में हमारे परिवार जुड़े होते है

 

जीवन में जितनी शांति होती है। उतना अपने जीवन में ज्ञान बढ़ता है। 

तब जीवन का  मजा आता है। इससे सब अपने घर परिवार में ख़ुशी पूर्वक रहते है। सब के ऊपर ख़ुशी बिखेरते रहते है। जो सबको अच्छा लगता है। शांति जीवन का ज्ञान घर परिवार में फैला हुआ लगता है।   

पारिवारिक शांति के साथ सब अपने घर परिवार जुड़े होते है। 

परिवार के लोगो को  बहुत अच्छा लगता है। हमारा बेटा बहुत अच्छा है। हम पोता बहुत अच्छा है। हमारा भाई  बहुत अच्छा है। हमारा भतीजा बहुत अच्छा है। घर में शांति बनाये रखना ही अपने घरवालो के लिए सबसे बड़ा काबिलियत साबित होते है।  इस शान्ती को भंग करने के लिए कैसे कोई सोच सकता है। वो हम सब के घर और परिवार है। 

दोस्तो में तो शांति ज्यादा होता है ऐसे ही अपने समाज में लोगो के बिच में काम धंधे में । 

वाहा लोग आत्मीयता से एक दूसरे से जुड़े होते है। जिससे सभी के विचार एक जैसे होते है। सब संगठित होते है। शांत स्वभाव के लोग में ज्ञान बहुत होता है। समाज के हर वर्ग के लोग से मिलते है। बात विचार करते है। उनके अंदर कोई पड़ेशानी तकलीफ है। तो लोग पड़ेशानी तकलीफ से निकलने का रास्ता बताते है। शांत स्वभाव के लोगो का ज्ञान सबके लिए अच्छा होता है।  

अहम् का भाव कई मामले में होता है। लोगो की एक जुटता में पड़ेशानी उत्पन्न कर देता है।

कोई बोलता है। मै ऐसा हूँ। कोई बोलता है। मै वैसा हूँ। यहाँ पर फिर शांति नहीं रहता है। एक जुटाता नहीं रहता है। वहां शांती की भावना बिलकुल भी नहीं रहता है। वाहा सब बिखरने लगता है। टूटने लगता है। क्या ये सब थीक है?  बिलकुल भी नहीं। ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए। हम क्यों नहीं समझते की एक जुटाता हमें बहुत कुछ देती है। अपने संगठन को मजबूत बनता है। 

इंसानियत ऐसा होना चाहिए की घर परिवार, समज, में दोस्ती यारी हो। 

हर कोई काम काजी हो। सबलोग जहा भी रहे। सब एकसाथ मिलजुल कर रहे। मेलजोल से ज्ञान बढ़ता है। आपस में जो अभाव होते है। संघठन की मदत से दूर हो जाते है। जिनके अंदर कोई ज्ञान की कमी है। हाव भाव से दुसरो को पता चल जाता है। उसको क्या जरूरत है ? लोग आपस में कुछ बोल भी नहीं पता है। अपनी कमी नहीं बता पता है। ऐसे माहौल में जमकर दोस्त उसका मदत कर के उसका दुभिधा दूर कर देते है। अभावग्रस्त का जानकारी बढ़ जाता है। समाज में मिले जानकारी से जरूरतमंद दुबिधा को दूर कर लेते है। समाज में ज्ञानी जानकर लोगो के रहने से दूसरे आम लोगो को ख़ुशी और शांति मिलता है। 

संघठन अपने करी को मजबूत करते है। 

चाहे घर में हो या बहार हो चाहे समाज में हो या लोगो के बिच हो सब जगह संघठन एक मजबूत बिंदु साबित होता  है।  मान लीजिये की यदि घर में कोई किसी पर मुसीबत पड़ा है तो क्या होगा ?  यदि संघठन नहीं होगा। तो वाहा एकता भी नहीं होगा।  फिर कोई किसी का साथ भी नहीं देगा।  वो बेचारा टूट जायेगा।  यही बात समाज में लोगो के बिच भी हो सकता है। हम क्यों नहीं समझते की संघटनएकता कितनी जरूरी है।  यूवावस्था तो ज्ञान सिखने के लिए ही है।

बगैर ज्ञान के कुछ होता नहीं है।  चाहे कोई भी अवस्था क्यों  हो सब ज्ञान के लिए ही होता है। सबसे बड़ा ज्ञान एकता और अखंडता के संघठन का होता है।  जहा तक मेरा मनना है। यदि संघठन कायम हो गया तो हमें बहुत कुछ सिखने को मिलेगा। आपसी मतभेद को दूर होने से तरक्की के दरवाजे खुलेगे। समाज और संसार में नए सिरे से विकाश कायम होगा। सभ्यताए बदलेंगे बनेंगे। संस्कार बढ़ेगा। नकारात्मक ऊर्जा काम होगा।  ऐसे अनगिनत फायदे होंगे। इन सब से दुनिया में शांति ही फैलेगा।  

जीवन का आत्म ज्ञान 

वास्तविक जीवन का ज्ञान सबसे पहले घर परिवर में माता पिता से मिलता है। उनके प्यार दुलार से हमें सबको आदर करने का ज्ञान मिलता है। मन सम्मना का ज्ञान बढ़ता है। बड़े छोटो का लिहाज समझ आने लग जाता है। करी मेहनत करने का ज्ञान अपने मेहनती साथी सलाहकार से मिलता है। जीवन में संस्कार बढ़ता है। आगे चलकर ज्ञान स्कूल से मिलता है। उसके बाद समाज में हमें ज्ञान मिलता है। श्रेष्ठ ज्ञान शांति का ज्ञान ही होता है।  

जीवन का आत्म ज्ञान स्कूल

आत्म ज्ञान हमें सबसे ज्यादा स्कूल में मिलता है। पुस्तके पढ़ते है। सभी प्रकार के ज्ञान से भरे होते है। कविता कहानी नाटक के माध्यम से गुरुजन के अच्छे बताये बात विचार से ज्ञान  मिलता है।  सभी ज्ञान का माध्यम जीवन का विकाश के लिए ही होता है ज्ञान जीवन में शांति बनाये रखने का ही माध्यम होता है। 

जीवन का ज्ञान कहाँ पर मिलता है

जीवन के ज्ञान से स्वयं का विकाश, जीवन में शांति, समाज में आदर भाव के साथ जीवन में शांति सौहाद्र बनाते हुए जीवन का विकाश करना होता है।  

आत्म ज्ञान जीवन की पाठशाला

जीवन की पाठशाला में सौहाद्र, शांति, एकता, आदर भाव, सम्मन, बड़े छोटे का लिहाज, समाज के लोगो बीच आत्मीय बनाये रखना। दुखियो का सहारा देना, जरूरत मंद को मदत करना। समाज में अच्छा काम करना। जीवन की पाठशाला में सीखना होता है। 

अपने जीवन का स्कूल, आत्म ज्ञान

जीवन में होने वाले घटना के प्रति सक्रिया रहना बहूत जरूरी है। अच्छे बुरे का भेद भाव का समझ कर अच्छाई प्रति जागरूक रहना। आदर सम्मान से मिलता। सौहाद्र पूर्वक बात विचार करना। शांति से हर पड़ेशानी के उलझन को दूर करना। अपने और दूसरो के जीवन में शांति बनाये रखना। जीवन के स्कूल का आत्म ज्ञान है। 

ज्ञान के पवित्र तरीके, जीवन के स्रोत

ज्ञान के पवित्र तरीके जो जीवन के स्रोत है। आदर भाव, बढे छोटे का लिहाज, मान सम्मना, मर्यादा, समाज में जरूरतमंद को मदत करना। दुखिओं को सहारा देना। लोगो के बिच आदर समझदारी से बात करना। 

पारिवारिक शांति जीवन का ज्ञान

माता पिता की सेवा करना सर्वोत्तम धर्म और जिम्मेदारी है। घर परिवार के लोगो का सहारा बनाना। घर में हर किसी  से सम्मान से बात करना। बच्चो को प्यार से बातचीत करना। घर में हसी ख़ुशी से रहना। 

शांति जीवन का ज्ञान

अपने मन को सदा शांत रखना। दुसरो के हित का ख्याल रखना। निस्वार्थ भाव से सेवा करना। 

शांति मन का ज्ञान

अपने मस्तिष्क को शांत रखना। विवेक बुद्धि का उपयोग करना। मन को एकाग्र रखना। 

 

व्यक्तित्व प्रेरणा में मन विवेक बुद्धि सोच समझ सहज बोध एकाग्रता चिंतन मनन कल्पना सबका उन्नत होना जरूरी होता है

  

प्रेरणा स्त्रोत

जीवनके  उन्नति के पीछे किसी  किसी का बहुत बड़ा हाथ होता है। 

संघर्ष हर किसीके जीवम में होता ही है।

सही दिशा दिखाने वाला ही प्रेरणा स्त्रोत के महत्त्व बनता है। 

चाहे विद्यलयके पढाई लिखाई में किसी अच्छे अध्यापक का प्रेरणा स्त्रोत मिले।

या किसी ऐसे गुरु का जो ज्ञान के माध्यम में प्रेरणा स्त्रोत बन जाए।

किसी का प्रेरणा बहुत बड़ा ज्ञान देता है। 

जिसकेअपने जीवन मेंकिसी से अच्छे जानकर से प्रेरणामिलता है। 

तो उससे अपना जीवन सफल हो जाता है

व्यक्तित्व प्रेरणा 

व्यक्तित्व प्रेरणा किसी भी ब्यक्ति का ज्ञान जन्म के साथ नहीं आता है।  जीवन के हर पहलू में ज्ञान हासिल करना ही पड़ता है।  जीवन में परिपक़्वता सिर्फ किताबी ज्ञान से नहीं मिलता है। किताबी ज्ञान के साथ मन, विवेक, बुद्धि, सोच, समझ, सहज बोध, एकाग्रता, चिंतन, मनन, कल्पना, सबका उन्नत होना जरूरी होता है।  जिस क्षेत्र से जो जुड़े होते है। उस क्षेत्र के दूसरे लोग जो अपने ब्यवसाय, कार्य क्षेत्र में जो सफल या बहुत सफल होते है।  उनसे भी ज्ञान लेना पड़ता है।  उनके कार्य क्षेत्र को समझा जाता है। उनसे मिलकर उनके ज्ञान और उपलब्धि को सुना और समझा जाता है।  उनके बात विचार को ज्ञान समझकर  प्रेरणा स्त्रोत मानकर आगे बढ़ा जाता है। 

प्रेरणा स्त्रोत को सिर्फ ज्ञान ही नहीं समझा जाता है। प्रेरणा स्त्रोत को आत्म मनन करके जीवन में स्थापित किया जाता है।  प्रेरणा स्त्रोत को महत्वपूर्ण ज्ञान समझकर अपने क्षेत्र में आगे बढ़ा जाता है। तब जीवन में सफलता प्राप्त करने का माध्यम प्रेरणा स्त्रोत होता है।

  व्यक्तित्व प्रेरणा 

विश्लेषणात्मक दिमाग में मन सकारात्मक होना चाहीये दिमाग में बहुत सारे शब्द होते है सकारात्मक शब्द नकारात्मक शब्द अकारक शब्द होते है।

  

विश्लेषणात्मक दिमाग मे मन क्या है?

मन क्या है? अपना दिमाग सकारात्मक होना चाहीये।

अपने दिमाग में बहुत सारे शब्द होते है। कुछ सकारात्मक शब्द होते है।

कुछ नकारात्मक शब्द होते है। कुछ  अकारक शब्द होते है।

जो ब्यर्थ में अपने  दिमाग को चलते रहते है। मन  उसके अनुरूप अपने दिमाग पर प्रभाव डालता है। 

मन में एकाग्रता होना चाहिए। जिससे सूझ बुझ कर निस्कर्स निकल सके की क्या होना चाइये।

अपने मन को किस तरफ चलना चाइये। दिमाग अपने सोच समझ को नियंत्रित करता है।

मन के भाव के हिसाब से दिमाग के विश्लेषण पर प्रभाव डालता है।

दिमाग अपने लिए ऊर्जा का क्षेत्र होता है।

हर प्रकार के मन के भाव का दिमाग में विश्लेषण होता है। 

मन के भाव के अनुसार दिमाग विश्लेषण करके मन को नियंत्रित करता है।

उसका प्रभाव अपने मन पर पड़ता है। मन का उड़ान बहुत तेज होता है।

मन में उत्पन्न होने वाला एक एक शब्द दिमाग में संग्रह होता है। 

मन का जैसा भाव होता है। वैसा ही दिमाग का विश्लेषण कर के शब्द को उजागर करता है। 

 

कभी कभी मन में कोई पुराना यादगर याद आता है।

तो उससे जुड़े हुए शब्द अपने दिमाग में विश्लेषण करने लगते है।

कभी ऐसा होता है की कुछ समय पहले की बात भूल जाते है।

याद करने पर भी याद नहीं आता है।

कोर्शिस करने पर भी दिमाग में विश्लेषण के दौरान कुछ याद नहीं आता है।

दिमाग को संकेत मन से मिलता है।

मन के आधार पर ही दिमाग विश्लेषण कर के शब्द उभरता है। 

 

मन में जो भी चलता है दिमाग उसका विश्लेषण करता है।

अपने मन दिमाग के चलाने का माध्यम होता है।

क्रिया कलाप में जो हम करते है।

जो शब्द मन ग्रहण करता है।

वैसा ही शब्द दिमाग विश्लेषण करता है।

बाकि बात विचार हमें याद नहीं रहता है।

दिमाग क्रिया कलाप के प्रत्येक शब्द को संग्रह कर के रखता है।

मन में जैसा भाव आता है। दिमाग वैसा ही भाव को विश्लेषण कर के मन में प्रसारण करता है।

वैसा प्रभाव हमरे मन पर पड़ता है। परिणाम मन जिस तरफ चलता है। 

दिमाग चलते हुए मन को उस तरफ ही परिणाम देता है।  

 

मन कैसे चलता है?

मन के चलने का मतलब एक घटना होता है।

जो घटित होता है। जब हम सक्रिय होते है।

तो सब नियंत्रण में होता है। जब हम सक्रिय नहीं होते है।

 मन अनियंत्रत हो कर कुछ न कुछ खुरापात करते रहता है।

इंसान स्वयं मन के चलन को कभी नहीं समझ सका है।

मन का चलना ऐसी घटना है। जो स्वयं घटित होते रहता है।

इसको जितना नियंत्रण में करना चाहेंगे उतना ही तेज प्रवाह से भागता है।

मन के उठाते हुए विचार कहा से कहा जाता है। आगे पीछे क्या होगा।

कुछ नहीं कहा जा सकता है। मन अविरल प्रवाह से चलता जाता है।

एक ही मार्ग है। मन के प्रवाह को रोकने के लिए।

मन को किसी काम या किसी ऐसे क्रिया में ब्यस्त कर ले।

जो स्वयं को अच्छा लगता हो। उस कार्य क्रिया में खुद पारंगत हो।

तब मन उस ओर जब मन ठहर कर ब्यस्त होना पसंद करता है। 

 

दिमागी सोच का मतलब मन क्या है?

मन के उठाते सवाल या भाव को दिमाग दो भाग में कर दता है।

एक भाग सकारात्मक दूसरा भाग नकारात्मक होता है

दिमागी सोच का मतलब मनके उठाते ख्यालात को उर्जा प्रदान करता है

जिस ब्यक्ति में घटित हो रहा है।

उस ब्यक्ति को उसके सवाल के जवाब मिलते है।

साथ में उसके होने वाले प्रभाव के बारे पता चलता है।

जो मन को अच्छा लगता है।

सकारात्मक है। और जो बुरा महशुश होता है। नकारात्मक है।

सोचने वाले को स्वयं निर्णय लेना होता है।  उसको किस रास्ते पर चलना है।

अक्सर लोग मन से मजबूर होकर के ही चलते रहता है।

जब की दिमाग हमेशा उसके परिणाम के बारे में सचेत  करता रहता है।

मन से मजबूर लोग दिमाग की नहीं सुनते है।

दिमागी सोच सटीक निर्णय लेने में सक्षम है।

मन का प्रवाह दिमागी सोच को विखंडित कर सकता है।

सही निर्णय दिमाग का होता है।  

 

मन के प्रकार मे मन क्या है?

अपने मन के प्रकार में बाहरी मन संसार में भटकता है।

अंतर्मन मन अपने  मन के भीतर होता है।

जो बाहरी मन के क्रिया कलाप को संग्रह कर के उसको सक्रिय करता है। 

अंतर्मन बाहरी मन से ज़्यादा सक्रिय होता है।

अवचेतन मन अंतर्मन को आदे देने में सक्रिय होता है।

अवचेतन मन के माध्यम से स्वयं में परिवर्तन कर सकते है। एक अचेतन मन होता है।

जो सिर्फ चलता रहत है। जब हम सक्रिय नहीं रहते है।

अपने  सक्रिय न रहने का पहचान अचेतन मन है।

अचेतन मन का ज्यादा चलना अपने  मन मस्तिष्क में विकार उत्पन्न करता है। 

मानव मस्तिष्क सोच प्रक्रिया मे मन क्या है

जब अपने मन में कोई सवाल उठा है। तो उसके तरंगे दिमाग को जाते है।

दिमाग उसका विश्लेषण कर के मन को तरंगे देता है।

जिससे मन में उठाने वाले सवाल का परिणाम मिलता है।

साथ में मन के प्रभाव से हम किस ओर जायेंगे तो हमें क्या परिणाम मिलेगा।

स्वयं को निर्णय लेना होता है। हमें किस ओर जाना है।

मानव मस्तिष्क में सोच प्रक्रिया के सभी सवाल का परिणाम होता है। 

 

मन क्या है?

मन घटना है। हम जीतना सक्रिय रहेंगे। मन उतना सक्रिय रहेगा।

हमारा सक्रिय नही रहना मन का भटकन है।

मन के भटकन से हमें बचना है। हमें सदा सक्रिय रहना है। 

क्या सोच रहा है

मन कभी खली नहीं रहता है।

उचित या अनुचित कुछ न कुछ चलता ही रहता है।

किसी विषय वस्तुके बारे में सोचने की प्रक्रिया में जब हम उचित विषय कार्य पर जोर देते है।

तब जो प्रक्रिया चलता है। उसको दिमाग के सोचने की प्रक्रिया होता है।

सक्रिय होने पर दिमाग कार्य करता है।  

दिमाग बनाम मन

दिमाग बनाम मन  बहुत अच्छा शब्द है। जब सक्रियता प्रभावित होता है।

तब बहोत जरूरी विषय पर मन टिकने लगता है। और दिमाग को साथ देता है।

मन के गहराई से जो सवाल उठाते है। वो बहुत सक्रिय होते है।

तब मस्तिष्क के दोनों भाग एक जैसा कार्य करता है।

हा नकारात्मक भावना के लिए कोई जगह नहीं होता है।

सवाल से उत्पन्न सवालो का चक्र मष्तिस्क में चलता है।

दिमाग बनाम मन होता है तब हर सवाल का सटीक रास्ता मिलता है।

ऐसे ब्यक्ति विद्वान और ज्ञानी होते है।

दिमाग के उच्तम सोच वाले ब्यक्ति होते है। 

जो नकारात्मक सोच समझ वाले ब्यक्ति होते है। वो  विक्छिप्त होते है। 

  मन क्या है 

विवेक बुद्धि दिमाग के सकारात्मक पहलू होते है (Wisdom and Intelligence) मन जब सकारात्मक होता है तो शांत होता है एकाग्र होता है एकाग्र मन में सकारात्मक विचार होते है जिससे सकारात्मक तरंगे दिमाग में जाता है

  

विवेक बुद्धि (Wisdom and Intelligence) दिमाग के सकारात्मक पहलू है

जीवन को समझने के लिए बुद्धि विवेक के जरिये मस्तिष्क के पहलू को समझे.

विवेक बुद्धि में दिन प्रति दिन मानव का समय बीतते चला जा रहा है. 

बच्चे जन्म लेते है बड़े होते है बाद मे जवान होकर बुढ़े होते जा रहे है.

कई बार हम ये सोचते है की जिस तारीके से दिन बीतते जा रहा है.

ऐसे गतिशील समय में ऐसा लगता है.

कुछ सोचे तो कुछ और होता है.

जो सोचते है वो फलित नहीं होता है.

ऐसा लग रहा है जैसे सरे सोच व्यर्थ होते जा रहे है.

उस सोच को पूरा न होते देख कर हम अक्सर दुखी ही रहते है.

आखिर ये सब का कारन क्या है जो सोचते है वो होता नहीं है.

होता वो है, जिसके बारे में सोचते नहीं है.

ऊपर से इन सभी के कारण दुःख का भाव तो इसका रास्ता क्या निकलेगा. 

 

विवेक बुद्धि से सोचे भाई इसका कोई रास्ता नहीं निकलेगा (there's no way out) नहीं निकलने वाला है 

जो अपने जीवन से निकाल रहा है उशी परवाह नहीं करे.
जो समय पीछे छूट गया है, उसे पूरी तरह से छोड़ दे.
तो ही जीवन में फिर से ख़ुशी आयेगी, जो समय हमे आगे मिला हुआ है.
कम से कम उसका सदुपयोग करे, और पुरानी  बाते को मन से निकला दे.
तो ख़ुशी ऐसे ही हमें मिलाने लगेगी.
हमें पता है, की ख़ुशी मिलने से ही हमें ताकत भी मिलती है.
जिससे हमें ऊर्जा मिलता है.
तो क्यों न हम ख़ुशी के तरफ ही भागे और पुरानी बाते को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ते जाय.
जो बित गया उससे कुछ मिलाने वाला नहीं है सिवाय दुःख के.

 

विवेक बुद्धि के अनुसार  बीती यादें में भवनाओ का असर (Effect of feelings) होता है 

मन की आदत वैसे ही बानी हुई है, अच्छी चिजे निकल जाती है, क्योकि उसमे भावनाओ का असर होता है, अच्छी चीजे वो है जिसमे कोई भाव नहीं होता है, सिर्फ और सिर्फ ख़ुशी का एहशास होता है, वो रुकता नहीं है, आगे जा कर दुसरो को ख़ुशी देता है, वो सब के लिए है, भावनाये तो वास्तव में उसका होता है जो हमारे मन में पड़ा हुआ है, तीखी कील की तरह चुभता रहता है, तो ऐसे भाव को रख कर क्या मतलब, जो दुःख ही देने वाला है। 

 

विवेक बुद्धि के मतलब ऐसे भाव भावाना से बच कर ही रहे (Stay away from emotion) तो सबसे अच्छ है 

जो बित गया उसे भूल जाए, आगे का जीवन ख़ुशी से गुजारे,  नए जीवन की प्रकाश ओर बढे,  उसमे हमें क्या मिल पा रहा है,  उस ओर कदम बढ़ाये नए रस्ते पे चले  जहा पिछली कोई यादो का पिटारा न हो, जहा पिछला कोई भाव न हो। 

 

विवेक बुद्धि में समय (Time is running day by day) दिन प्रति दिन भागते जा रहा है 

हर पल को ख़ुशी समझ कर बढ़ते रहे, अच्छी चीजे को ग्रहण करे, जिसमे कोई पड़ेशानी कोई दुःख या कोई ब्यवधान हो तो उसको पार करते हुए  अपनी मंजिल तक पहुंचे  दुविधाओ को मन से हटा के चले,  जीवन में बहुत कुछ आते है,  बहुत कुछ जाते है, उनसे ज्ञान लेकर आगे बढ़ते रहे  खुशी से रहे  प्रसन्नचित रहे आनंदित रहे।

 

विवेक बुद्धि से समझे तो दुविधाए (Troubles nothing happens) कुछ नहीं होता है  मन (Mind is delusional) का भ्रम होता है  

सही सूझ बुझ से अपने कार्य को विवेक बुद्धि से करे तो हर रूकावट दूर होता रहता है  सय्यम  रखे  किसी प्रकार के बिवाद को मन पर हावी न होने दे मन में सय्यम रखते हुए बुद्धि का उपयोग करे  हर  कार्यो में सफलता मिलेगा। 
 
 

विवेक बुद्धि दिमाग (Discretion intelligence is the positive aspect of the mind) के सकारात्मक पहलू होते है 

मन जब सकारात्मक होता है तो शांत होता है  एकाग्र होता है  एकाग्र मन में सकारात्मक विचार होते है  जिससे सकारात्मक तरंगे  दिमाग में जाता है  दिमाग ऊर्जा का क्षेत्र होता है  जो सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ता है  विवेक बुद्धि इससे सकारात्मक होता है  यदि विवेक बुद्धि सकारात्मक नहीं हो तो उसे विक्छिप्त माना जाता है विक्छिप्त प्राणी के मन में भटकन होता है उसके मन के उड़ान बहुत तेज ख्यालो में रहता है जिसको कभी पूरा नहीं कर सकता है ख्याल, विचार, मस्तिष्क में होने पर सक्रियता समाप्त होने लगता है जो की थिक नहीं है। सक्रिय मस्तिष्क ही  कार्य को पूरा करने में मदत करता है  जिससे मन शांत रहता है  जरूरी कार्य में मदत करता है  कार्य पूरा होता है।   
  विवेक बुद्धि 

विपरीत परिस्तिथि एक ऐसा समय है जिसे सहन शक्ति के माध्यम से ही पर कर सकते है अपनी जरूरत को काम कर के बुनियादी तौर पर सिर्फ जरूरत के सामान ही खरीदे

  

आज के समय की परिस्थिति में जितना लोग जिंदगी चलाने के लिए जद्दोजहद कर रहा है। 

समय की परिस्थिति और ऊपर से समय की महामारी ने लोगो के काम धंधे को और व्यापार को पूरी तरीके से उलट पलट कर के रख दिया है।

ऐसे समय में जिंदगी को चलाना  और  दिनचर्या  करना कितनी मुस्किल हो रहा  है।

ये सभी जानते है।  कोई बच्चे की पढ़ाई में दिक्कत महशुश कर रहा है।

तो कोई घर चलने में तो कोई समाज में चलने फिरने और दोस्तों से मिलाने में दिक़्क़त महशुश कर रहा है।

चुकी हर कोई समय के मर के आगे किसी  न किसी से कोई न कोई कर्ज जरूर ले रखा  है।

तो  ऐसे समय में लोग क्या करे।  

समय का तो यही कहना है। ये एक ऐसा समय है। 

जिसे सहन शक्ति के माध्यम से ही पर कर सकते है।

अपनी जरूरत को काम कर के बुनियादी तौर पर सिर्फ जरूरत के सामान  ही खरीदे। 

जहा  खुद की गाड़ी में सफर न कर के बस और रेलगाड़ी में सफर करे।

थोड़ी थोड़ी दूर जाने के लिए पैदल का ही इस्तेमाल करे।

इससे शरीर की ऊर्जा बानी रहती है। और फुर्ती भी खूब रहती है।  

खाने पीने  में  भी थोड़ा कराई रखे। स्वस्थबर्धक ही भोजन करे।

खूब कसरत करे। जो भी काम धाम कर रहे है। मन लगाकर करे।

ताकि सकारात्मक ऊर्जा का विकास को और नकारात्मक ऊर्जा कम हो सके

एक बार यदि सकरात ऊर्जा को पाने में सफलता मिल गई।

तो सब दुःख अपने दूर होने लगेंगे। तब कोई भी काम धंधा में मन जरूरत लगेगा।

मनोकामना जरूर पूरी होगी। यदि ऐसे समय में दुःख के साथ ले कर चलेंगे।

सोच विचार  को समय रहते नहीं बदलेंगे। तो इस समय से निकल  पाना बहुत मुश्किल होगा। 

       

समय की परिस्तिथि मे लोग समझते ही है की इस समय में लोगो ने जितना मुश्किल का सामना किया है।

समय की परिस्तिथि मे बीमारी कम हो रही है। लोग उबर रहे है।  अब भी भी कई देश ऐसे है जाहा  बीमारी काम होने का नाम नहीं ले रहा है। जानकर सरकार और इलाज करने वाले यही कह है। सावधानी  का पालन करे।  उचित रोक  थम रखे। यही हम सब अभी रोकथाम नहीं किये। तो आगे बहुत देर हो जाएगी।  फिर निकलना  तब बहूत मुश्किल हो जायेगा।

समय की परिस्थिति

विचार विस्तृत स्पष्टीकरण के साथ सोच से अधिक तपस्या क्यों पसंद हैं विचार हर संभव विषय वस्तु के बारे में कुछ न कुछ क्रिया या प्रतिक्रिया करता है

  

विचार मन में उठाने वाला एक ऐसा क्रिया है जो हर संभव विषय वस्तु के बारे में कुछ न कुछ क्रिया या प्रतिक्रिया करता है विचार विस्तृत स्पष्टीकरण के साथ। 

मन में उठाने वाले उचित और अनुचित ख्यालो को भी विचार कह सकते है। मन के अभिब्यक्ति को भी विचार कहते है। मन में उठने वाले बात को भी विचार कहते है। किसी को मन ही मन याद करते है वो भी विचार के माध्यम ही बनता है। वह हर समय मन मस्तिष्क में उठाने वाले सवाल जवाब जो स्वयं अपने मन में अविरल चलता रहता है विचार ही है। स्वयं के मन में उठाने वाला शब्द या दूसरो के बारे में अपने मन में उठाने वाला शब्द भी विचार ही है। 

विस्तृत विचार स्पष्टीकरण के साथ

विचार मन के सोच और कल्पना के अनुसार ही चरितार्थ होता है। ब्यक्ति जो सोच समझ रखता है, उसके अनुसार मन में कल्पना अपने कर्तब्य या कार्य के प्रति करता है। सोच समझ बाहरी मन से उत्पन्न होता है। जैसा सांसारिक भाव को मन स्वीकार करता है। जो जीवन में हासिल करना चाहता है। उस सांसारिक भाव को अंतर मन में कल्पना के जरिये मन में नवनिर्माण करता है। ताकि विषय वस्तु जीवन में स्थापित हो सके जिससे जीवन के निवाह का नया मार्ग मिले सके। विचार उसी कल्पना के अनुसार परिलक्षित होता है। विचार बहूत कुछ सिखाता भी है। ब्यक्ति अपने विचार के प्रति सजग हो जाए तो कल्पना से निर्मित विषय वस्तु के परिणाम को ही उजागर करते है।

बाहरी मन की बात कहे तो क्या सही और क्या गलत जिव्हा बाहरी मन के तौर बोल जाता है। विचार विस्तृत स्पष्टीकरण के रूप। 

समझ नहीं पते है बाद में परिणाम कुछ अलग निकलता है तो परिणाम में भी विचार आने लग जाते है। उस विचार से भी सजग हो जय तो जो कुछ बिगड़ रहा है या बिगड़ गया है। उसको ठिक करने का रास्ता मिल जाता है। मन लीजिये की कोई नकारात्मक विचार उत्पन्न हो रहा है तो सोचे की नकारात्मकता कहाँ उत्पन्न हुई है। विचार ही ज्ञान दिलाता है। मन कभी कभी ऐसा हो जायेगा की विचार विचार विस्तृत स्पष्टीकरण क्यों आ रहे है? मै नहीं चाह रहा हूँ की ऐसा विचार आये तब मन उस विचार से पीछा छुड़ाना चाहता है। विचार से भागना नहीं है। 

विचार में उत्पन्न हुए सवाल का जवाब खोजना है।

परिणाम तब कुछ ऐसा निकलेगा की मन जो प्राप्त करना चाह रहा है। उसमे क्या मुस्किल उत्पन्न होने वाला है? वो दर्शाता है। संघर्ष, करी मेहनत कर के सकारात्मक कार्य और कर्तब्य तो पूरा हो सकता है। नकारात्मक कार्य, नकारात्मक धारना, अनर्गल कार्य को सक्रिय करने से मन मस्तिष्क पर कुथाराघात भी पड़ सकता है। जिसका परिणाम लम्बे समय तक मन के विचार विचार विस्तृत स्पष्टीकरण में रह सकता है। जिससे पीछा चुराना बहूत मुस्किल भी पर सकता है, इसलिए विचार हमेशा सकारात्मक ही होना चाहिए                

मनुष्य सोच से अधिक तपस्या क्यों पसंद करते हैं?

सोच समझकर से कुछ करे तो ठिक है। सोच बहूत ज्यादा है तो कलपना भी ज्यादा होगा स्वाभाविक है। कल्पना के द्वारा अंतर मन को सोच के अनुसार कार्य और कर्तब्य के लिए प्रेरित किया जाता है। सोच बहूत ज्यादा है और कार्य कुछ नही कर रहे है तो कल्पना निरर्थक की होता रहेगा। सोच बाहरी मन की देन है, कल्पना अंतर मन में होता है। वर्त्तमान समय में सोच बहूत ज्यादा सक्रीय है। क्योकि कार्य ब्यवस्था को सक्रीय करने में प्रतिस्पर्धा का दौर चल रहा है। सब एक दुसरे से आगे निकलना चाह रहे है।

स्वाभाविक है की प्रतिस्पर्धा के दौर में सब तो एक जैसा आगे नहीं जायेगा।

कोई न कोई तो पीछे जरूर होगा। हो सकता है ऐसे ब्यक्ति सरल हो सांसारिक क्रिया कलाप उनको पसंद न हो, मगर जीवन जीने के लिए ब्यापार, सेवा, कार्य ब्यवस्था में सफल न हो तो अपने जीवन में कुछ परिवर्तन करना उनके लिए उचित लगता है। संसार में सब कोई एक जैसा नहीं होता है। प्रयास में जरूरी नहीं की सबको एक जैसा सफलता मिले। सफलता तो सोच समझ, बुध्दी विवेक, मन, काल्पन, कभी कभी चतुराई, साम, दाम, दंड, भेद सब के मिश्रण से प्राप्त होता है। सिधान्तवादी ब्यक्ति हर रास्ते को नहीं अपनाता है। जो उनके लिए उचित हो वो उसी रास्ते पर चलेंगे।

  विचार विस्तृत स्पष्टीकरण 

सिधान्तवादी ब्यक्ति सोच को कम परिणाम पर ज्यादा ध्यान देते है। 

तपस्या योग ध्यान होता ही है। कर्म के रास्ते पर चलना भी एक तपस्या ही है। जीवन के लिए नित्य कर्म होता है जिसमे सब कुछ समाहित होता है। जो जीवन से ज़ुरा हुआ होता है, सोच मिश्रित हो सकता है। कर्म अपने जीवन के सिधान्त पर चलना तपस्या होता है। ऐसे ब्यक्ति सोचने से अच्छा कर्म करना पसंद करते है। कर्म निस्वार्थ भाव होता है। ऐसे ब्यक्ति न सिर्फ अपने लिए बल्कि अपने से जुड़े  लोगो के हित का भी ख्याल रखते है। उनके ख़ुशी में अपना ख़ुशी समझते है। इसलिए ऐसे ब्यक्ति सोच से ज्यादा तपस्या पसंद करते है। ये सभी विचार विस्तृत स्पष्टीकरण के साथ समझ मे आता है। 

आमतौर पर ब्यक्ति कर्म रूपी तपस्या करे तो जीवन में भले कुछ हो न हो पर आतंरिक ख़ुशी अवस्य मिलता है। 

स्वयं के मन में झाकने से जीवन के परेशानियो से छुटकारा मिल सकता है। जीवन में सबकुछ प्राप्त करना ही ख़ुशी नहीं होता है। सांसारिक भोग विलाश में मनुष्य जीवन के वास्तविक रंग को भूल जाते है। जीवन में सबकुछ होते हुए भी लोग वास्तविक ख़ुशी से कभी कभी दूर हो जाते है। अंतर मन की ख़ुशी ही वास्तविक ख़ुशी है। इसलिए सिधान्तवादी ब्यक्ति सोच से अधिक तपस्या पसंद करते हैं।    

 

आप कैसे पहचानते हैं कि अगर कोई पक्षपाती या स्थिर तरीके से सोच रहा है तो आप बदलाव को कैसे प्रभावित करते हैं?

सोच जब किसी ब्यक्ति विशेष से जुड़ा हो और उसके हित को ध्यान में रख कर कार्य किया जा रहा हो भले वो अनैतिक कार्य ही क्यों न हो वो पक्षपात के दायरे में आता है। स्थिर तरीके के सोच से जो कार्य होता है उसमे स्वयं के साथ साथ अपने से जुड़े लोगो के हित का भी ख्याल रखा जाता है। जिस कार्य के करने से किसी का कोई नुकसान नहीं होता है तो उसको स्थिर सोच कहते है। जीवन में बदलाव को प्रभावित करने के लिए अपने से जुड़े लोगो के हित के बारे में जरूर सोचे। कुछ भी कार्य कर्तब्य करे तो लोगो के मान सम्मान का जरूर ख्याल रखे। कभी किसी की निंदा नहीं करे। स्वयं खुश रहे दूसरो को भी खुश रहने दे। कुछ कार्य निस्वार्थ भाव से भी करे तो जीवन में बदलाव को प्रभावित कर सकते है। 

वास्तविक ज्ञान मन मस्तिष्क के सोच समझ में बुद्धि विवेक का इस्तेमाल करना सब के लिए मान मर्यादा हो मन बुध्दी विवेक सक्रिय हो

  

वास्तविक ज्ञान

वास्तविक ज्ञान को देखा जाय तो आज के समय में लोग एक दूसरे के लिए कुछ नहीं कर पता है।

कही न कही एक दूसरे से जलष की भावना रहता है। ऐसा लगता है।

इस संसार में हर कोई प्रत्योगिता के दौर में एक दूसरे से आगे निकलने की कोर्शिस में एक दूसरे की मान मर्यादा जैसे भूल ही गये है।

वास्तव में ऐसा नहीं होना चाहिए।

 

वास्तविक ज्ञान मन में स्थिरता और करुणा की भावना से कुछ करे तो सफलता जरूर मिलेगी।

संसार सब के लिए है। सभी का बराबर अधिकार है।

कोई कम तरक्की करता है, कोई ज्यादा पर इससे कोई बात नहीं होना चाहिए।

यदि लोग एक दूसरे से मिलजुलकर रहे।

एक दूसरे के साथ दे तो जो कमजोर लोग है उनको थोड़ा सहारा मिल सकता है। 

 

वास्तविक ज्ञान में दया करुणा की भावना जब तक अपने मन के अंदर नहीं आयेगी, तब तक ये सब संभव नहीं है।

दया करुणा से ही मन को अशीम शांति मिलती है। 

जिसके पीछे इंसान भागता है। जब तक लोग एक दूसरे के लिए नहीं सोचना सुरु नहीं करेंगे। 

तब तक जीवन में शांति नहीं मिलेगी।  जिस दिन ऐसी भावना जागेगा। 

उस दिन से शांति महशुश होना सुरु हो जाइएगा। क्योकि शांति एक महशुस है।

शांति एक आभाष है। शांति कोई कितनी भी धन संपत्ति से नहीं खरीद सकता है।

वो स्वतः ही प्राप्त होता है।

वास्तविक ज्ञान कि परिभाषा भी कुछ ऐसे ही बाना है। जब तक हमारा मन मस्तिष्क शांत नहीं होगे।

तब तक शांति नहीं मिलेगी।  जब तक एक दूसरे से आत्मीयता से नही जुड़ेंगे। तब तक विचार का अदन प्रदान नही होगा। जब एक दूसरे के लिए नहीं सोचेंगे। तब तक कुछ संभव नहीं है।  मुख्य अशांति का कारण यही है। एक दूसरे को ठीक से नहीं समझना।  जिस दिन हम एक दूसरे को मन से ठीक से समझने लगेंगे। शांति अपने आप मिलने सुरु हो जाएगी।

वास्तविक ज्ञान मन के कल्पना सोच समझ में जिस दिन से शांति मिलनी सुरु हो जाएगी।

फिर नही कोई वाद न विवाद होगा। न झगड़ा न लड़ाई होगा। क्योकि तब तक सब एक दूसरे से जुड़ चुके होंगे। एक सम्पूर्ण परिवार की तरह। जहा एक सम्पूर्ण परिवार होता है। वहाँ लोग सजग और जानकार भी होते है। तभी वो परिवार चलता है। कोई गलती करता है। तो बड़े बुजुर्ग उसकी सहायता कर के उसकी गलती सुधाने में मदद करते है। जिससे उसका ज्ञान बढ़ता है। तरक्की करता है। 

वास्तविक ज्ञान जिस दिन होगा हम स्वयं शांति महशुस करने लगेंगे। अच्छा महाशुस करने लगेंगे। उस दिन से सब शांति महशुस करने लग जायेगा। सब अच्छ लगने लगेंगा। यही वास्तविक ज्ञान है।

वास्तविक ज्ञान में जीवन की कल्पना में सुख शांति होना चाहिये।

मन मस्तिष्क के सोच समझ में बुद्धि विवेक का पूरा इस्तेमाल करना चाहिये। जिसमे सब के लिए मान मर्यादा हो। स्वयं अपने मन पर पूरा नियत्रण हो। जो जरूरी हो। जरूरी विषय और कार्य को करना चाहिये जिससे मनबुध्दीविवेक सक्रिय हो।

  वास्तविक ज्ञान 

वास्तविक जीवन संघर्स से ही भरा हुआ है. ये जरूरी नहीं की कठिन परिश्रम के बाद पूरा सफलता मिले

  

जीवन और मौसम में अंतर

 

अपने जीवन और मौसम लगभग एक सामान ही होते है. 

जीवन में सुख दुःख होता है तो मौसम में भी पतझड़ और वसंत बहार होते है.

जीवन में कभी कभी बड़े दुःख का भी सामना करना पड़ता है.

जैसे इस कोरोना महामारी में सब भुगते थे.

वैसे ही मौसम में भी चक्रवाती तूफ़ान भी बहूर बड़ा नुकसान पहुचाता है. बाढ़ और सुनामी में बहूत कुछ बर्बाद हो जाता है.

 

जीवन में जैसे सुख के पल कम समय के लिए होते है. 

वैसे ही मौसम में वसंत ऋतू ही एक ऐसा समय है जो सबको अच्छा लगता है.

मौसम में लगातार परिवार्तन लोगो को झेलना पड़ता है.

वैसे ही जीवन में संघर्ष सबको करना पड़ता है.

 

प्रकृति के नियम सबके लिए एक सामान है. 

प्रकृति के नियम को सबको समझना चाहिए.

जैसे जीवन में कभी-कभी ख़ुशी, गम, सुख, दुःख लगा रहता है.

वैसे ही मौसम में समय दर समय परिवर्तन होता रहता है.

कभी लोगो को अच्छा लगता है तो कभी लोगो को परेशान भी करता है.

 

जीवन में कभी ऐसा भी होता है की बहूत परिश्रम में किया गया कार्य हर समय में कोई न कोई रूकावट आता ही रहता है. 

अंत में वो कार्य ख़राब भी हो जाता है. वैसे ही इस साल बिहार भारत में मौसम के कारन धान के खेती पर बहूत बड़ा प्रभाव पड़ा. सुरु में धान के बोआई में पानी नहीं बरसा, जिससे बिज ठीक से हुए नहीं मौसम भी बहूत गरम था. लोगो ने मशीन से पानी चलाये खतो में, कैसे भी कर के धान को उगाने का प्रयास किया. अंत में कुछ धन हुए पर खेत में धान के कटाई के बाद सूखने के दौरान तेज बारिस और पानी बरस जाने से सारे पके हुए धान खेत में उग गए. जिससे कारन सब धान कि खेती ख़राब हो गये.

 

वास्तविक जीवन तो संघर्स से ही भरा हुआ है. 

ये जरूरी नहीं की कठिन परिश्रम के बाद पूरा सफलता मिले. हो सकत है मन के अनुसार सफलता नहीं मिले पर एक किसान के जीवन को देखिये उनके जीवन में ख़ुशी के पल कम और पतझड़ ज्यादा होता है. इसका मतलब किसान खेती कारन नहीं छोड़ते है. क्योकि खेती ही उका जीवन होता है. यदि वो खेती नहीं करेंगे तो मनुष्य को भोजन कहाँ से मिलेगा. इसलिए जीवन में चाहे जीतना भी संघर्स करना पड़े, इससे भागना नहीं है. सफ़लत और असलता तो अपने कर्मो का होता है. जीवन सक्रीय होना चाहिए. आज पतझड़ है तो कल वसंत जरूर आयेगा.

 

जीवन के आयाम में सबको सब सुख प्राप्त नहीं है. 

किसी को कम तो किसी को ज्यादा. इससे घबराकर जीवन से भागना नहीं है. जीवन में आने वाले समय में सभी संघर्स को झेलना ही जीवन है. और यही जीवन है.

 जीवन और मौसम 

वास्तविक जीवन ज्ञान प्राप्त कर ले कई प्रकार के विशेषज्ञ भी बन जाये अपने काम धंदा के लिए उच्च से उच्च अध्ययन कर ले ये सभी ज्ञान अपने काम धंदा के लिए सिर्फ सहारा ही देता होता है

  

कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

जीवन में चाहे जितनी भी ज्ञान प्राप्त कर ले।

कई प्रकार के विशेषज्ञ भी बन जाये।

अपने काम धंदा के लिए उच्च से उच्च अध्ययन कर ले।

ये सभी ज्ञान हमें अपने काम धंदा के लिए सिर्फ सहारा ही देता होता है। 

ज्ञान के प्रमाण पत्र ज्ञान में सक्षमता के है। 

वास्तविक जीवन ज्ञान

कल्पना वास्तविक जीवन ज्ञान में वास्तविकता से तब सामना होता है। 

जब इस ज्ञान के माध्यम से कुछ करना होता है।

तब उस कार्य के लिए विशेष अनुभव की आवश्यकता होता है।

जब तक पूरी तारीके से अपने काम धंदा पर ध्यान नहीं देंगे।

चिंतन मनन नहीं करेंगे।  तब कुछ नहीं हो सकता है।  चाहे जितना ज्ञान क्यों न हो। 

ज्ञान सिर्फ उस कार्य को पूरा करने का माध्यम है। 

जिससे काम करने के लिए उपयुक्त साधन मिलते है।  जब तक स्वयं प्रयास नहीं करेंगे। 

कैसे कुछ होगा।  किसी कार्य को करने के लिए जब काम को अपनी जिम्मेवारी में लेते है। तो उससे जुड़े बहुत से दुविधाएं रूकावट पड़ेशानी भी आते है।  इसके लिए एक एक विषय पर चिंतन मनन करना पड़ता है।  उस कार्य के गहराई में जाने के लिए  मन में कल्पना करना पडता है। 

कल्पना के लिए एकाग्र होना जरूरी होता है चुकी सक्रिय काम में सकारात्मक कार्य का दबाव होता है इसमे एकाग्रता का पूरा सहारा मिल जाता है। 

मन में चिंतन करने के लिए  किताबी ज्ञान तो मस्तिष्क में होता ही है।  जब तक उस कार्य के बारे में नहीं सोचेंगे। तब तक  उससे जुड़े ज्ञान मस्तिष में कैसे उभरेगा। इसलिए अपने कार्य को करने के लिए  एक एक विषय पर चिंतन मनन करना पड़ता है।

मनन करने से मन कार्य के अनुकूल होता है। 

जिससे कल्पना में उस कार्य को एकाग्र कर के कार्य से जुड़े उपयुक्त साधन के बारे में विचार करने से उस कार्य को पूरा करने में सक्रियता बढ़ जाता है।  फिर मन कार्य के अनुसार कार्य करता है। जिससे वो काम पूरा होता है। इसलिए कल्पना सोच समझ ज्ञान से महत्वपूर्ण है।

  वास्तविक जीवन ज्ञान 

वास्तविक जीवन के ज्ञान में सभी के साथ और सभी के विकाश से ही जीवन में ख़ुशी और आनंद मिलता है

  

जीवन का समझौता जीवन की वास्तविक ख़ुशी

वास्तविक जीवन के आयाम में समझौता.

मानव जीवन में कई प्रकार के ख्वाइश होते है पर वो अपने जिम्मेवारी के तहत सभी इच्छा को पूरा नहीं करता है.

मानव जीवन का उद्देश्य कभी भी अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए नहीं है.

यदि ऐसा वो करते है तो सबसे बड़ी विडम्बना है की उनके स्वार्थ कभी भी पुरे नहीं होंगे.

खुद के लिए सोचना ठीक है पर स्वार्थवश कुछ सोचना बिलकुल भी उचित नहीं है.

जब मानव के इच्छा पुरे नहीं होते है तो वो घृणा और दुःख के सागर में डूबने लग लग जाता है.

जिससे जो जिम्मेवारी उसके ऊपर होते है.

उसको भी नहीं पूरा कर पाता है और असफलता ही अंत में हाथ लगता है.

 

जीवन की वास्तविक ख़ुशी तो जो जिम्मेवारी अपने ऊपर है उसको निभाने से मिलता है.

जिम्मेवारी से जो प्राप्त होता है वही सच्चा ख़ुशी है इस ख़ुशी में आनंद और हर्ष भी महशुश होता है.

जीवन के कला में ख़ुशी के पल को खोजने वाले अपने कर्तव्य में ख़ुशी को खोजते है.

तो उनको सालता के साथ साथ मान, सम्मान, इज्जत, प्रतिस्था सबसे बड़ी बात आदर सब जगह से मिलता है.

इतना पाने मात्र से ही जिम्मेदार इन्सान ख़ुशी से उत्साहित हो कर अच्छा करने का प्रयाश करता है दुनिया में वो अपना पहचान बनता है.

जीवन में कुछ प्राप्त करना ही है तो दूसरो के लिए कुछ न कुछ अच्छा करने के बारे में सोचने से सफलता जल्दी मिलता है.

 

जीवन के आयाम को ठीक से समझे तो यदि हम है और दुनिया में कोई नहीं है तो क्या होगा?

 

सब व्यर्थ ही होगा, कोई उद्देश्य ही नहीं होगा, न मन होगा, न सुख होगा, न दुःख होगा, न बोलने वाला कोई होगा, न जानने वाला कोई होगा, तब न कोई कुछ खरीदने वाला होगा, तब न कोई कुछ बेचनेवाला होगा.

तव कैसा जीवन होगा? सोच सकते है जीवन की वास्तविक ख़ुशी.

ऐसे माहोल में एक पल भी नहीं टिक पाएंगे और खुद का अकेलापन ही खुद को खाने लग जायेगा.

चाहे तो किसी शुनसान जगह पर एक दिन बिताकर देख सकते है.

 

वास्तविक जीवन के ज्ञान में सभी के साथ और सभी के विकाश से ही जीवन की वास्तविक ख़ुशी और आनंद मिलता है.

 

जीवन का डोर एक दुसरे से ही जुड़ा हुआ है.
 
एक दुसरे का सहारा बनकर ही मानव जीवन विकाश करके इस प्रगतिशील दुनिया को यहाँ तक लेकर आया है.
 
हमें और भी आगे तरक्की करने है.
 
वास्तविक ख़ुशी को दूसरो में देख्नेगे तो ख़ुशी का आयाम बढ़ने लग जायेगा जिसे हर्ष और उत्साह कहते है ये ख़ुशी से बहूत ऊपर है.
 
हर्ष और उत्साह में जीवन का वास्तविक ज्ञान है.
 
स्वयं के लिए सोचने से हर्ष और उत्साह कभी नहीं प्राप्त होता है.
 
इसे मात्र झूठी ख़ुशी कह सकते है जो ज्यादा समय तक नहीं टिकता है.
 
चुकी जीवन सुख दुःख का मिश्रित परिणाम भोगता है.
 
हर्ष और उल्लाश से जीवन का आयाम बढ़ता है.
 
खुद के लिए सोचने से आयाम घटने लग जाता है और अंत में आयाम छोटा हो कर अंतहीन दुःख ही देता है.
 
अपने दिल और दिमाग से सोच कर समझ सकते है.
  जीवन की वास्तविक ख़ुशी 

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हम ज्ञान साझा करने के माध्यम से सुधार करने या आगे बढ़ने के लिए क्या कार्रवाई कर सकता हूं?

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