Wednesday, June 18, 2025

आपत्ति और विपत्ति मे संचित धन ही काम आता है

  

आपत्ति और विपत्ति मे संचित धन ही काम आता है।

अमीरों को ये नहीं भूलना चाहिए की धन मे चंचलता होता है।

वो कभी भी समाप्त हो सकता है।

जीवन के निर्वाह मे संतुलन के लिए और भविष्य के लिए धन का संचय और रक्षा बहूत जरूरी है।

माना की वर्तमान समय अपना अच्छा चल रहा है।

पर ये कभी भी नहीं भूलना चाहिए की समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता है।

समय मे उतार चढ़ाओ आते ही रहते है।

आज अपना समय ठीक है पर भविष्य मे अपना समय कैसा होगा ये कोई नहीं कह सकता है।

इन सभी प्रकार के मुसीबत से बचने के लिए वर्तमान मे कमाए धन मे से थोड़ा धन भविष्य मे लिए बचाकर रखना चाहिए।

जिससे आगे के समय मे किसी भी प्रकार के आर्थिस तंगी का सामना नहीं करना पड़े

 

धनवान व्यक्ति कहता है की मेरे पास धन संचित है। मुझे कभी मुसीबत पड़ ही नहीं सकता है।

वास्तव मे ऐसा नहीं होता है।

धनी व्यक्ति के पास धन होने के साथ साथ उनके खर्चे भी उतने ही होते है।

एक साधारण व्यक्ति के पास बहूत मुसकिल आज के समय मे अपना घर होता है।

जिसमे वो अपना गुजर बसर करता है। जब की धनवान व्यक्ति के आने वाले आमदनी के साथ खर्चे भी होते है। जिसमे निरंतर खर्च होता रहता है।

आलीशान घर मे बिजली बत्ती सजावट रहने के तरीके मे दिन प्रति दिन बढ़ोतरी  होता रहता है।

जिसे धन के द्वारा ही अर्जित किया जाता है।

समय के बदलाओ के साथ आने वाले आमदनी मे कमी के संभावना से ये सभी आलीशान जौर जरूरत की चिजे को प्राप्त करने मे दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है।

तब अपने जरूरतों को पूरा करने के लिए संचित धन भी खर्च होने लग जाएंगे और अंत मे मुसीबत आना तय है।

मनुष्य को कभी भी नहीं भूलना चाहिए की धन मे चंचलता होता है।

धन की प्रकृति इस्थिर नहीं रहता है। धन आना जाना लगा रहता है।

आज एक के पास तो कल दूसरे के पास आता जाता रहता है।

आर्थिक दृस्टी से कभी समय अच्छा तो कभी समय बुरा होता है।

चाहे जितना भी धन कमा ले फिर भी समय से उम्मीद नहीं कर सकते है की अपना आगे का समय वर्तमान के जैसा हो।

हो सके तो वर्तमान मे कमाए धन मे से थोड़ा धन भविष्य के लिए जरूर बचाकर रखना चाहिए।

कई बार तो ऐसा भी देखा गया है की भविष्य के लिए बचाए धन भी खर्च हो कर समाप्त हो जाते है।

मुसीबर कब किसपर आ जाए ये कोई नहीं जनता है।

धन की चंचलता और बेबुनियाद खर्च एक न एक दिन संचित धन को समाप्त कर देता है।

  संचित धन 

आध्यात्म क्या है।

  

आध्यात्म क्या है? ईश्वर की साधना से सही रास्ते पर चलने का ज्ञान मिलता है।

अपने मन के अंदर झकने से पता चलता है की हम कहा तक सही और गलत है। गलत और असत्य चीज को निकालने कला आध्यात्म से जुड़ा है। मन के घृणापन, दुख, गंदी भावनाए से खुद को बचाकर जीवन जीने की कला सत्य के रास्ते पर चलने से मिलता है। प्यार, दुलार, आदर, सत्कार करने की भावना आध्यात्म सिखाता है। अपने ईस्ट देव के भक्ति भावना से मन को सलतापन मिलता है जिसका पालन अपने वास्तविक जीवन मे करते है।

 

ईश्वर की साधना से सही रास्ते पर चलने का ज्ञान मिलता है।

मन के अंदर भरे हुए गंदगी से छुटकारा पाने का रास्ता मिलता है। जीवन के निर्वाह मे सही रास्ते पर चलने का ज्ञान मिलता है। आपसी व्यवहार मे सरलता का व्याख्या आध्यात्म से सीख जाता है।

 

ईश्वर साधना मात्र मन को सकारात्मक और संतुलित करने का माध्यम है। साधना मे अपने ईस्ट देव से कुछ मांगने से मन का भाव बढ़ता है। जिससे मन संसार के अच्छे बुरे मोह मे इंसान फसते जाता है। साधना के दौरान सरल रहना चाहिए जैसे वो सब खुशी हमे प्राप्त है जो परमात्मा ने हमे दिया है। इससे मन का सलतापन बढ़ता है। मन के सहज होने से मन मे अच्छे ख्याल आते है। विचार साफ और संतुलित होता है। मन के गंदगी के साफ होने के साथ जीवन का प्रकाश बढ़ता है। जिससे जीवन का आयाम बढ़ते जाता है।

 

मन के दुखी होने से निष्ठुरता का विकाश होता है। जिससे मन जिद्दी और अड़ियल होते जाता है। ये सभी नकारात्मक प्रवृत्ति है।  जिससे मन जीवन को दुख की ओर धकेलते जाता है।

 

आध्यात्म की साधना मे जरूरी नहीं की ध्यान ही किया जाए।

मन के भाव को सहज कर के व्यवहार करने से मन सकारात्मक होता है। कम, क्रोध, लोभ, मोह, माया के त्याग से मन शांत होता है। दुशरो को तकलीफ न देखर उसको खुशी देने से अपना अन्तर्मन उत्साहित होता है। जरूरत पड़ने पर सही के लिए अड़ियल रहना ही जीवन का संतुलन है। बाहरी उथल पुथल से मन को बचाकर रखने से जीवन मे निडरता का आभास होता है। सही के लिए गलत से लड़ना पड़ता है। दुखी मजलूम को मदद करने से हृदय उत्साहित रहता है। जीवन मे जो भी उपलब्ध है उससे दूसरों को मदद करने से ही जीवन सकारात्मक रहता है।

 

आध्यात्म क्या है खुद के लिए सोचने से जीवन मे मोह बढ़ता है। जो की नकारात्मक प्रवृत्ति है। खुशी और उत्साह बगैर लालच कर के जो जीवन मे प्राप्त होता है वो नीव का पत्थर कहलाता है। सकारात्मक प्रवृत्ति ही सबसे बड़ा आध्यात्म है।

आधुनिक दिनों में ज्ञान को समृद्ध करने में डाक टिकट संग्रह की भूमिका. ज्ञान हर हाल में मनुष्य को प्रेरित ही करता है. मन के सकारात्मक पहलू ज्ञान ही है जो समय और अवस्था के अनुसार उजागर होते रहते है.

  

आधुनिक दिनों में प्रत्यक्ष ज्ञानको समृद्ध करने में डाक टिकट संग्रह की भूमिका.

प्रत्यक्ष ज्ञान हर हाल में मनुष्य को प्रेरित ही करता है.

मन के सकारात्मक पहलू ज्ञान ही है जो समय और अवस्था के अनुसार उजागर होते रहते है.

मन के विचार और मस्तिस्क के सोच से ज्ञान ही मिलता है.

सबसे बड़ा ज्ञान का माध्यम प्रकृति और विचारवान व्यक्ति होते है.

जिनके चर्चा देश और दुनिया भी करता है.

महापुरुष के प्रेरणादायक विचार और ज्ञान लोगो को प्रेरित करता है.

आमतौर पर डाक टिकट में या तो महापुरुस के तस्वीर होते हा या प्रकृति से जुड़े तस्वीर या निशान होते है.

अक्सर देख गया है की जो व्यक्ति किसी महापुरुस के बात से या प्रकृति से प्रेरित होते है.

उनसे जुड़े हुए निशानी संग्रह करते है. जैसे नोट, सिक्के, तस्वीर, डाक टिकट, लेख इत्यादि इन साभी में सबसे ज्यादा लोग डाक टिकट संग्रह करते है.

डाक से आये पत्र में से डाक टिकट कट कर कही चिपका कर रख लेते है.

ज्ञान को समृद्ध करने में डाक टिकट संग्रह की भूमिका सिर्फ और सर्फ प्रेरणादायक उनके विचार और ज्ञान जो उन्हें समृद्धि देता है.       

 

अपने प्रत्यक्ष ज्ञान के विभिन्न प्रकार क्या हैं?

प्रत्यक्ष ज्ञान में जब हम कुछ करते है और उस कार्य को करने का पूरा ज्ञान नहीं होता है.

तो अपने से होने वाला गलती ही हमें सही दिशा में काम करने का रास्ता बताता है.

ज्ञान के तौर पर कहे तो सबसे ज्यादा ज्ञान तो हमें गलती कर के मिलता है.

जो भविष्य में सुधर कर लेते है.

जब तक इन्सान ज्ञान के तलाश में या कुछ कर गुजरने के लिए गलती नहीं करेगा तब तक वास्तविक ज्ञान का अनुभव नहीं होगा.

यदि हम सोचेंगे की हमसे कोई भी गलती नहीं हो तो फिर अपना ज्ञान सिमित ही होगा.

इससे ज्ञान में विस्तार नहीं होगा.

 

प्रेरणादायक विचार और विद्वान व्यक्ति के सोच से उत्पन्न ज्ञान अनुशरण करने पर अपना ही प्रत्यक्ष ज्ञान बढ़ता है.

स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाले पुस्तक में किसी न किसी विषय के ज्ञानी के ही विचार और सिखने का तरीका होता है.

भले शिक्षा के बाद भी बहूत लोग पुस्तके पढना जरूरी समझते है. वो ज्ञान के ही माध्यम है.

 

किसी कार्य हो होते देखने से समझ बढ़ता है.

अध्ययन में पुस्तक पढ़ने लिखने के साथ विषय वस्तु के प्रयोग से ज्ञान का विस्तार होता है.

जिससे अपन प्रयास बढ़ता है. 

किसी भी प्रकार के गलती करने के बाद निराश न हो कर सुधर के लिए आगे बढ़ने और संघर्स करने से ज्ञान के बारिकियत समझ में आता है.   

 

+2 वाणिज्य के बाद प्रवेश परीक्षा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए मुझे कौन सी वेबसाइट स्थापित करनी चाहिए

प्रत्यक्ष ज्ञान नाम के लिए मोहताज नहीं होता है.

जो ज्ञान हासिल करने के इक्छुक है वो तिनके से भी ज्ञान प्राप्त कर सकते है.

अब रहा बात वेबसाइट स्थापित करने के लिए जो सरकार या पाठ्यकर्म सुझाव देता है उसको स्थापित करे.

ये कोई जरूरी नहीं की कोई नामी वेबसाइट ही अच्छा ज्ञान देगा.

ज्ञान तो वो होता है. जो हलके समझ से भी ज्ञान के रोशनी जले जो सबको प्रकाशित करे. 

   प्रत्यक्ष ज्ञान 

आत्म प्रेरणा उद्धरण

  

आत्म प्रेरणा उद्धरण

जीवन मे प्रेरणा अपने माता पिता के साथ अध्यापक से मिलता है।

प्रेरणा जीवन और मन को परिवर्तित करने के लिए आधार स्तम्भ का काम करता है।

शिक्षा के माध्यम से जो अपने मन को अच्छा लगता है उससे मिलने वाला उपलब्धि का कारण आत्म प्रेरणा होता है।

जीवन मे अच्छे कार्य करने से मन और आत्मा को संतुसती मिलना है। अच्छा कार्य भी आत्म प्रेरणा का कारण बनता है।

अपने जीवन मे होने वाले गलती को सुधार कर जो अच्छा प्रतिबिंब जीवन मे ढालता है

आत्म प्रेरणा का प्रमुख उद्देश्य होता है।

गलती कौन नहीं करता है? पर जो गलती कर के अपने जीवन मे परिवर्तन लाता है।

कुछ अच्छा करने के लिए आगे बढ़ता है तो स्व प्रेरणा से ही होता है।

    आत्म प्रेरणा उद्धरण 

सही गलत का पहचान कर के जो अपने जीवन सही रास्ता अपनाता है।

सत्य के रास्ते पर चलता है। विपरीत परिसतिथी मे घबराता नहीं है।

लोगो को अच्छे कार्य के लिए प्रेरित करता है। वो सब आत्म प्रेरणा के कारण ही होता है।

जब तक व्यक्ति गलती नहीं करता है तब तक सही और गलत का यहसास नहीं होता है।

जीवन को सही ढंग से जीने और आगे के भविष्य को संभालने के लिए जरूरी कदम।

जीवन को संतुलित और अर्थपूर्ण होना आवश्यक है। अपने अस्तित्व मे सही ढंग से जानकारी प्राप्त करने के लिए मन के अंदर झकना पड़ता है। मन मे पड़े हुए उतार चढ़ाओ को समझ कर जीवन के जरूरी अध्याय को उभारते हुए नकारत्मक प्रब्रिति को जीवन से निकालना होता है। जैसे जैसे मन से गंदगी दूर है। वैसे वैसे जीवन उत्थान के तरफ बढ़ता है। इन सभी प्रक्रिया मे खुद पर विश्वास रखते हुए खुद को प्ररित करते हुए। अपने आयाम को नियंत्रित कर के संतुलन प्राप्त किया जाता है। उपलब्धि अपने खुद के प्रेरणा से ही प्राप्त किया जाता है। जीवन के संतुलन को यदि खुद के प्रेयराना से प्राप्त करते है तो वो अपने आयाम मे विकसित होते जाते है। खुद के जिंदगी को संभालने के लिए सबसे पहले खुद को अच्छे मार्ग पर चलने के लिए प्ररित करना पड़ता है। तब जीवन मे सफलता प्राप्त होता है।

अहंकार मनुष्य के एकाग्रता सूझ बुझ समझदारी सरलता सहजता विनम्रता स्वभाव को ख़त्म कर सकता है

  

अहंकार मनुष्य के एकाग्रता सूझ बुझ समझदारी सरलता सहजता विनम्रता स्वभाव को ख़त्म कर सकता है  

अहंकारी स्वभाव यह एक ऐसी प्रवृत्ति है  जिसमे इंसान खुद को डुबो कर अपना सब कुछ ख़त्म करने के कगार पर आ जाता है  इसका परिणाम जल्दी तो नहीं मिलता है, पर मिलता जरूर है.  जब इसका परिणाम मिलता है  तब तक बहुत देर हो चुकी होती है  फिर कोई रास्ता नहीं बचता है.  इस अहंकार के वजह से पहले तो उनके अपना पराया उनसे छूट जाते है  क्योकि वो कभी किसी की क़द्र नहीं करता है.  

अपने घमंड में समाज में वो आपने  को सबसे बड़ा समझता है तो वाहा से भी लोग उससे किनारा कर लेते है. 

भले ताकत और हैसियत के वजह से कोई उनके सामने तो कुछ नहीं कहता है पर उनसे किनारा जरूर कर लेता है.  इसका परिणाम घर में भी नजर आता है.  जैसा स्वभाव उनका होता है वैसे ही घर के सभी लोगो का भी होता जाता है.  तो उनसे भी लोग किनारा करने लग जाते है ये हकीकत है.  समाज में इस प्रकार के स्वभाव के लोगो को देखा गया है.  हम किसी  ब्यक्ति विशेष का जिक्र नहीं कर रहे हैं  अहंकारी स्वभाव का जिक्र कर रहे है।  

अहंकारी स्वभाव का एक परिभाषा है 

जो जीवन के राह में देखते आया हूँ  ऐसे लोगों के बारे में सुनता हूँ  समझता हूँ  कि ऐसे लोगों का आखिर होगा क्या?  सब कुछ तो है उनके पास सिर्फ सरलता नहीं  सहजता नहीं  मिलनसार नहीं  एक दूसए के दुःख दर्द में साथ देने वाला नहीं  जो सिर्फ अपने मतलब के लिए जीता है।  

जीवन में सब कुछ करे, खूब तरक्की करे, नाम बहुत कमाए 

लोगो से खूब जुड़े जरूरतमंद की मदत करे  जिनके पास कुछ नहीं है  उनके लिए   मददगार बने ऐसा करने से ये भावना ख़त्म हो जाएगा  जीवन की निखार सहजता और सरलता से आते है  इससे मन प्रसन्न होता है  उदारता बढ़ता है  उदारता से जीवन का आयाम में विकास होता है  जिससे आत्मिक उन्नति होता है।  

वास्तव में मन का सीधा संपर्क तो आत्मा से होता  है

बाहरी उन्नति के साथ  आत्मिक विकास में बहुत अंतर होता है दोनों साथ साथ चलता है  अंतर्मन में घामड़ जैसी कोई भवन घर कर ले तो  जीवन में खलबली ला देता है  इससे मन की ख़ुशी समाप्त होने लगता  है, वाहा पर सब कुछ होते हुए भी जीवन निराश लगने लगता है  इसलिए निराश जीवन को सही करने के लिए सरलता और अहजता की जरूरत होता है, ईस से मन और आत्मा दोनों प्रसन्न होता वही वास्तविक ख़ुशी और प्रस्सनता है। 

अहंकार क्या होता है? यह एक ऐसी प्रवृत्ति है जिसमे इंसान खुद को डुबो कर अपना सब कुछ ख़त्म करने के कगार पर आ जाता है इसका परिणाम जल्दी तो नहीं मिलता है

  

अहंकार मनुष्य के एकाग्रता सूझ बुझ समझदारी सरलता सहजता विनम्रता स्वभाव को ख़त्म कर सकता है 

अहंकार क्या होता है?  यह एक ऐसी प्रवृत्ति है  जिसमे इंसान खुद को डुबो कर अपना सब कुछ ख़त्म करने के कगार पर  जाता है  इसका परिणाम जल्दी तो नहीं मिलता है. पर मिलता जरूर है.  जब इसका परिणाम मिलता है.  तब तक बहुत देर हो चुकी होती है  फिर कोई रास्ता नहीं बचता है.  इस अहंकार के वजह से पहले तो उनके अपना पराया उनसे छूट जाते है.  क्योकि वो कभी किसी की क़द्र नहीं करता है. 

अपने घमंड में समाज में वो आपने  को सबसे बड़ा समझता है  तो वाहा से भी लोग उससे किनारा कर लेते है  भले ताकत और हैसियत के वजह से कोई उनके सामने तो कुछ नहीं कहता है. पर उनसे किनारा जरूर कर लेता है.  इसका परिणाम घर में भी नजर आता है.  जैसा स्वभाव उनका होता है. वैसे ही घर के सभी लोगो का भी होता जाता है.  तो उनसे भी लोग किनारा करने लग जाते है.  ये हकीकत है.  समाज में इस प्रकार के स्वभाव के लोगो को देखा गया है.  हम किसी   ब्यक्ति विशेष का जिक्र नहीं कर रहे हैं.  अहंकारी स्वभाव का जिक्र कर रहे है।  

अहंकार क्या होता है ये अहंकारी स्वभाव का एक परिभाषा है.  

जो जीवन के राह में देखते आया हूँ.  ऐसे लोगों के बारे में सुनता हूँ.  समझता हूँ.  कि ऐसे लोगों का आखिर होगा क्या?  सब कुछ तो है. उनके पास सिर्फ सरलता नहीं,  सहजता नहीं,  मिलनसार नहीं,  एक दूसए के दुःख दर्द में साथ देने वाला नहीं  जो सिर्फ अपने मतलब के लिए जीता है। 

जीवन में सब कुछ करेखूब तरक्की करेनाम बहुत कमाए  लोगो से खूब जुड़े जरूरतमंद की मदत करे.  जिनके पास कुछ नहीं है.  उनके लिए   मददगार बने ऐसा करने से ये भावना ख़त्म हो जाएगा.  जीवन की निखार सहजता और सरलता से आते है.  इससे मन प्रसन्न होता है.  उदारता बढ़ता है.  उदारता से जीवन का आयाम में विकास होता है.  जिससे आत्मिक उन्नति होता है। 

वास्तव में मन का सीधा संपर्क तो आत्मा से होता  है. 

बाहरी उन्नति के साथ  आत्मिक विकास में बहुत अंतर होता है. दोनों साथ साथ चलता है.  अंतर्मन में घमंड जैसी कोई भवन घर कर ले तो  जीवन में खलबली ला देता है.  इससे मन की ख़ुशी समाप्त होने लगता  है. वाहा पर सब कुछ होते हुए भी जीवन निराश लगने लगता है.  इसलिए निराश जीवन को सही करने के लिए सरलता और अहजता की जरूरत होता है ईससे मन और आत्मा दोनों प्रसन्न होता वही वास्तविक ख़ुशी और प्रसन्नता है। 

असमय आ रहे गुस्सा को नियंत्रित किया जा सके समय समय पर व्यायाम अवस्य करे इससे भी मन शांत रहता है

  

गुस्सा क्यों आता है?

गुस्सा क्यों आता है?  सहनशीलता की कमी ही गुस्सा का मुख्या कारण है. विषय को न समझना भी गुस्सा का कारण हो सकता है. समझ की कमी भी गुस्सा का कारण होता है. विषय वस्तु को पूरी तरह से नहीं समझ आने पर भी गुस्सा आता है. कोई कार्य अपने समय पर पूरा नहीं हुआ तो भी गुस्सा आता है. किसी कार्य में व्यवधान आने पर भी गुस्सा आता है. किसी कार्य में मन का ठीक से नहीं लगने पर भी गुस्सा आता है. मन के अनुसार कोई कार्य नहीं हुआ तो भी गुस्सा आता है.

गुस्सा मन का एक नकारात्मक भाव है जिसे बुद्धि विवेक से कार्य लेने पर और सहज बोध अपनाने पर गुस्सा कम होने लग जाता है.

किसी कार्य में मन का लगाना बहूत जरूरी है मन को समझे और बुद्धि विवेक से कार्य करे तो गुस्सा कम होने लग जाता है. मन जिद्दी होता है. इसलिए मन में थोडा उदार भाव लाये इससे मन का दायरा बढेगा. इसका मतलब ये नहीं की जिस बात से गुस्सा आ रहा है उसके बारे में सोचे, कुछ ऐसा भी सोचे जिससे मन को अच्छा और प्रसन्नता महशुस हो तो गुस्सा कम होने लग जाता है.  

   गुस्सा क्यों आता है 

हर्बल और ऑर्गेनिक तेल सिर पर लगाने से दिमाग ठंडा रहता है.

खासकर जो तेल ठंडा महशुश कराये ऐसे तेल सिर में जरूर लगाना चाहिए. जिससे असमय आ रहे गुस्सा को नियंत्रित किया जा सके समय समय पर व्यायाम अवस्य करे इससे भी मन शांत रहता है. मन के शांति के लिए मैडिटेशन सबसे अच्छा जरिया है, रोज करने से मन शांति से रहने देता है. 

अवधारणात्मक गति खुफिया उदाहरण

  

कहानी का नैतिक है पराक्रम पर बुद्धि की जीत

अवधारणात्मक गति मे नैतिक चरित्र मनुष्य को सहज और सजग बनता है. सहज होने से बहूत कुछ सरल हो जाता है. इसलिए इन्सान को सरल ही रहना चाहिए. सहजता से सरलता का विकाश होता है. सरल भाव में मनुष्य पर सुख दुःख का उतना प्रभाव नहीं पड़ता है, जितना मानसिक भाव में पड़ता है. मानसिक होना कदापि ठीक नहीं है. कभी कभी मानसिकता काम और व्यवस्था को बिगाड़ भी सकता है. मन के चलने का भाव कही न कही दुःख का ही कारन होता है. इसलिए मन को कभी भी बेलगाम नहीं होने देना चाहिए. वो वास्तविकता से इन्सान को दूर कर देता है. सहजता और सजगता से बुद्धि प्रबल होता है. और मन को सहज बनाने में मदद करता है. जब की मन पराक्रम भी कर सकता है. नैतिक चरित्र ही पराक्रम पर जीत हासिल करता है.

अवधारणात्मक गति खुफिया उदाहरण

अवधारणा मन का एक ऐसा भाव है जो मनघडंत बात मन में जगह बनाकर उसको वास्तविकता में देखने का पुरजोर प्रयास करता है. ये हर किसी के मन में हो सकता है. सही का ज्ञान होने के बाबजूद भी अपने मन के हरकतों से वाज नहीं आता है. जानते हुए की ऐसा कुछ नहीं हो सकता, फिर भी उन अवधारणा को मन में हवा देता रहता है. ये भी कल्पना का ही एक रूप ही है. पर ये धरना बिलकुल गलत है. यही कारन है की मनुष्य के जीवन में अचेतन ९० प्रतिशत है और सक्रीय मन सचेतन सिर्फ १० प्रतिशत है.

ज्ञान को सही मानते हुए अक्सर लोग ऐसे बाते को किसी को नहीं बताता है. क्योकि वो उनके मन की बात होते है. यही कारन है की अवधारणात्मक गति मन में ही खुफिया रहता है. उदाहरण के तौर पर अनैतिक इच्छा, दुष्कर्म, अपराध जो निरंतर मन में चलता रहता है. किसी में कम तो किसी में ज्यादा ऐसा अवधारणा हर किसी के मन में पनपता है. स्तिथि और हालत के अनुसार सही रस्ते पर चलने वाले के मन में ज्यादा देर टिकता नहीं है और जो लोग इन अवधारणा के आदि है. गलत राह पकड़ लेते है.   

बुद्धि के लिए क्या पुरस्कार?

बुद्धिमान होना स्वयं एक बहूत बड़ा पुरस्कार है. बुद्धि से सब कुछ संभव है जो सकारात्मक और सहज है. विरल और कठिन कार्य में संघर्स होता है पर समय के अनुसार और संघर्स के पृष्ठभूमि पर बुद्धि विवेक पर खरा उतरता है. बुद्धि सक्रीय ज्ञान है. अच्छा अनुभव सकारात्मक रहने पर मिलता है. सकारात्मक मन में अपार उर्जा होता है जो बुद्धि को हवा देता है. इसलिए बुद्धिमान होना स्वयं में सर्वोच्च पुरस्कार है.  

अभिनय के कला के माध्यम से अपने मन की बात रखने में बहूत सहूलियत होता है.

  

मन की वह अवस्था जहाँ अभिनय के लिए मनुष्य महत्वपूर्ण है

 

कला के माध्यम अभिनय एक मन की कला है। 

अभिनय के कला में माहिर लोग इस कला के माध्यम से व्यक्ति को अपने तरफ आकर्षित करने की क्षमता रखते है.

मन के संतुलित भाव होने पर जहा दुनियादारी के लिए इस कला का इस्तेमाल किया जाता है.

आम तौर पर सभी के अन्दर होता है पर किसी में कम तो किसी में ज्यादा होता है.

जिस व्यक्ति में अभिनय की कला का अभाव होता है या कम होता है।

वैसे लोग अपने किसी भी क्षेत्र में या जो कार्य कर रहे है उसमे भी सफलता बहूत मुश्किल से मिलता है.

इसलिए अभिनय की कला पे पारंगत होना बहूत जरूरी है. 

 

अभिनय के कला के माध्यम से अपने मन की बात रखने में बहूत सहूलियत होता है.

अपने अभिनय कला बात करने के साथ साथ व्यक्ति के भाव में भी अभिनय के कला होने से लोग उसके तरफ आकर्षित होते है.

प्रचार प्रसार के लिए अभिनेता का इस्तेमाल लम्बे समय से होता रहा है।

भले वो किसी विषय का प्रचार करना हो या किसी वस्तु का प्रचार अभिनेता बाखूभी से इसे कर के उत्पाद या विषय के प्रति लोगो का मन आकर्षित करते है.

 

अभिनय के कला से मन के इच्छा को बड़े आराम से पूरा कर सकते है.

अपने उत्साह को अभिनय बनाकर लोगो के बिच में अपने बात विचार के माध्यम से इच्छा को रखकर अपने प्रति आकर्षित कर सकते है.

इससे परिणाम सकारात्मक निकलने का पूरा संभावना रहता है.

नेता के अन्दर अभिनय के कला के होने से लोगो के बिच अपने बात को रखने के लिए धरा प्रबाह भासन देने से लोगो पर प्रभाव पड़ता है। 

जिससे लोग चुप चाप अपने नेता का भाषण सुनते रहते है.

 

अभिनय के कला से मन के विचार को संतुलित रखने में मदद मिलता है.

व्यक्ति के अन्दर बहूत सारे ख्याल और विचार पनपते रहते है.

जिससे व्यक्ति सुख दुःख भी महशुश करता है.

यदि अपने मन के बात को जो दुःख देने वाला है अभिनय और कला के माध्यम से लोगो के बिच रखा जाये तो उसका प्रभाव कम होने लग जाता है।

साथ में उससे जुड़ा हुआ विचार और उपाय भी सुनाने में मिलता है। 

जिसके माध्यम से उस दुःख भरे हालत और विचार से निकलने का रास्ता मिल जाता है.

जब तक अपने दुःख और तकलीफ को लोगो के बिच नहीं रखेंगे तब तक वो कम नहीं होगा.

हो सकता है लोगो के विचार अच्छे भी लगे और ख़राब भी लगे पर जो जरूरी है उसे अपनाना है.

लोगो के विचार अक्सर मिश्रित होते है उसमे से क्या जरूरी है? और क्या जरूरी नहीं है?

ये अपने मन से समझकर उसक उपयोग कर के अपने दुःख और तकलीफ से बहार निकल सकते है.

मनुष्य का कोई भी हालात उसे ज्ञान देने के लिए ही है। 

अब क्या अपनाता है? क्या नहीं अपनाता है?

इसी पर सुख दुःख निर्धारित करता है.

जैसे जैसे ज्ञान बढ़ता है वैसे वैसे दुःख दूर होते जाता है.   

   कला के माध्यम 

अपने काम की कल्पना जीवन के उत्थान और सफलता व्यवहारिक जीवन में सकारात्मक महत्त्व रखता है

  

काम पर कल्पना

अपने काम की कल्पना करना आज के समय के हालत के अनुशार से बहुत जरूरी हो गया है।

एक तरफ महा बीमारी ने अपना जगह बना लिया है।

तो दूसरी तरफ उद्योग कही न कही सब नुकसान झेल रहे है।

कुछ ही उपक्रम ठीक चल रहे है। ऐसे माहौल में बेरोजगारी उत्पन्न होना कोई नई बात नहीं रह गया है।

 

कर्मचारी हो या तकनिकी विशेषज्ञ कही न कही बेरोजगारी के वज़ह से पड़ेशान है।

ऐसे हालात में आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी हो गया है।

अपने काम की कल्पना मे काम धंदा के प्रगति के लिए कल्पना करने के लिए बहुत ऐसे विषय है।

जो अपने अपने क्षेत्र से जुड़े हुए है। हर ब्यक्ति किसी न किसी क्षेत्र में कुछ जानकर या विशेषज्ञ जरूर है।

अपने प्रतिभा को माध्यम बनाकर आगे बढ़ना चाहिये।

कोई भी व्यवसाय या उपक्रम एका एक आगे नहीं बढ़ता है।

व्यवसाय धीरे धीरे बढ़ता होता है। पहले कोई एक शुरुआत करता है।

 

मेहनत और लगन से आगे बढ़ता है। धीरे धीरे प्रगति करता है।

जो कार्य व्यवसाय अपने मन को अच्छा लगता है। उसकी कल्पना प्रयास को बढाता है। कही न कही से व्यवसाय क्यों नहीं मिलेगा? मेहनत और प्रयास कभी ब्यर्थ नहीं जाता है। जैसा कल्पना घटित होता है। मन का झुकाओ भी उसी क्षेत्र में होता है। मन एक बार अपने कार्य में लग जाए। तो उत्पादन अवश्य होगा। इससे जीवन में उन्नति होगा ही। इसलिए अपने काम व्यवसाय सेवा से जुड़े हुए क्षेत्र में प्रगति के लिए कामना करना ही चाहिये।   

  अपने काम की कल्पना 

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