Wednesday, June 18, 2025

अपने अनुभव और ज्ञान के बल पर किसी भी प्रकार के दुःख तकलीफ के बिच भी प्रगति कर सकते है.

 

 सांसारिक जीवन वास्तव में उतना आसन नहीं होता है जितना समझा जाता है.

समझकर जीवन को जीने से ही जीवन में उन्नति होता है. घर बैठे मखमली बिस्तर पर आराम करने से कुछ प्राप्त नहीं होता है. जीवन संघर्स के नाम होना चाहिए. संसारिक जीवन नश्वर है ये एक न एक दिन स्वयं के मृतु के बाद कुछ बचने वाला नहीं है. मृतु तो इस पंचतत्व के बने शारीर का होता है आत्मा कभी नहीं मरता है. मन का भाव भी मृतु के साथ ही ख़त्म हो जाता है. प्राण पखेरू उड़ जाने के बाद शारीर ब्यर्थ होने लग जाता है. घर वाले और रिश्तेदार को भले तकलीफ होता है पर वो भी अपने प्रिय जो मृतु को प्राप्त होने के बाद उसको एक दिन भी नहीं रखना चाहता है. ये सृष्टि का नियम है. जो ख़त्म हो गया है वो व्यर्थ है उसका मोह करने से कुछ नहीं मिलाने वाला है.

 

सांसारिक जीवन में सुख प्राप्त करने के लिए मानव बहूत कुछ करता है. सच्चे ह्रदय वाले व्यक्ति हमेशा अच्छे कार्य करते है. लोगो की भलाई करते है. अपने कर्मो को करते हुए जगत कल्याण का भी कार्य करते है. उनको पता है की ऐसा करने से कोई भौतिक सुख प्राप्त नहीं होता है पर मन को अतुलित आनंद मिलता है. भले ऐसा करने से लोग उसको मना भी करते है पर संसार में ऐसे लोग किसी की परवाह किये बगैर अपने सत्कर्म को नहीं छोड़ते है. ऐसे ही व्यक्ति अपने जीवन में आगे बढ़कर जीवन के आयाम में आध्यात्मिक उन्नति करते है. भक्ति भावना में लीन व्यक्ति जब तक सत्कर्म नहीं करता है तब तक उसको वास्तविक आध्यात्मिक उन्नति नहीं मिलाता है.

अपनी कल्पना का सही इस्तेमाल करें अपनी कल्पना के मौजूदा समय में सकारात्मक कल्पना का इस्तेमाल करें सय्यम रखे

  

अपनी कल्पना का इस्तेमाल करें

कल्पना के मौजूदा समय में जैसा समय ख़राब चल रहा है।

खासकर इस महामारी में जहा पूरा दुनिया अस्त ब्यस्त है।

सेवाब्यवसाय सब उथल पुथल चल रहा है।

कुछ ही उपक्रम ठीक से चल रहे है। रोजमर्रा का समय बिताना मुश्किल पड़ रहा है।

ऐसे हालात में सेवा ब्यवसाय को चलने के लिए अन्तर आत्मा पर ही विस्वास करना होगा।

जहा कई प्रकार का कल्पना पनपता है। जहा कोई भी कल्पना ठीक नहीं चल रहा हो। सकारात्मक कल्पना करे।

सोचे समझे नकारात्मक पहलू कहा उजागर हो रहा है।

उस नकारात्मक पहलू पर विचार करे।

ऐसा क्या रास्ता अपनाये की उस नकारात्मक पहलू में परिवर्तन हो सके।

 

कल्पना में मन की बात सुने।

उठाते सवाल का हल ढूंढने का प्रयास करे।

जब तक कि उसका कोई उपाय नही मिले।

विचार विमर्श करे। फिर भी नही समझ में आ हो तो जानकर से मिले।

जो आपके सवाल दे सके। हर परिवर्तन में नया ज्ञान हासिल करना ही पड़ता है। 

तभी जीवन में नया परिवर्तन आता है।

 अपनी सकारात्मक कल्पना का इस्तेमाल करें

सकारात्मक कल्पना का इस्तेमाल करें। जैसा उपाय समझ में आ रहा है।

बुद्धि विवेक को सक्रीय कर के आगे बढ़े।  मन को सकारात्मक बनाकर रखे।

कोई भी नया सवाल खड़ा हो रहा है। तो उसका हल ढूंढे। 

मन मस्तिष्क में हर सवाल का जवाब होता है। परिणाम कही न कही से अवश्य मिलता है। 

सही दिशा में कार्य करते रहे। संय्यम रखे स्वयं पर पूर्ण विश्वास रखे। 

निरंतर प्रयास और मेहनत के साथ विश्वास कभी भी ब्यर्थ नहीं जाता है।

समय के थपेड़े से कभी घबराना नहीं चाहिए। 

जीवन में उतार चढ़ाओ आते ही रहते है।

समय की अवस्था को समझते हुए परिबर्तन जरूरी हो जाता है। 

 

अपनी कल्पना का इस्तेमाल करते समय सय्यम रखे 

कल्पना का इस्तेमाल करते समय सय्यम जरूर बरतना चाहिये। जिस विषय पर कार्य कर रहे है। मेहनत और समय अपने कार्य पर ही देना चाहिये। अपने कार्य के सफलता के लिए चिंतन जरूर करना चाहिये। जब तक चिंतन सकारात्मक नहीं होगा। मन एक जगह टिकेगा ही नहीं। मन को एक जगह टिकने के लिए अपने कार्य के सफलता के लिए कल्पना जरूर करना चाहिये। अपने कल्पना का इस्तेमाल इस तरह से कर सकते है। सफलता जरूर मिलगी।  

कल्पना का इस्तेमाल

अन्तः अनुशासन अपने मन के अंदर होने वाले क्रिया कलाप है।

 अन्तः अनुशासनात्मक का अर्थ

अन्तः मन से बाहरी मन को उद्घोसित करता है।

अंतर मन बाहरी मन को प्रभावित करने के लिए क्रिया कलाप को प्रेरित करता है।

सहज जीवन जीने के लिए बाहर से अनुशासन होने के साथ अंतर मन मे भी अनुशासन होना बहूत जरूरी है।

बाहरी मन का क्रिया कलाप अन्तर्मन से ही प्रभावित होकर बढ़ता है।

जब तक अंतर मन अंदर से साफ सुथरा नहीं रहेगा तब तक बाहरी मन को शांति और एकाग्रता नहीं मिलेगा।

अच्छे चीज को ग्रहण करने के लिए मन का किताब साफ सुथरा होना चाहिए।

एक ऊर्जा का प्रभाव दूसरे ऊर्जा पर पड़ता है।

ज्ञान ऊर्जा के माध्यम से अंतर मन मे जाता है।

ऊर्जा को निरी आँख से नहीं देख सकते है पर मन पर होने वाला प्रभाव समझ मे आने लगता है।

 

जीवन को संतुलित और अनुशासित रखने के लिए बाहरी मन के साथ अन्तःकरण को भी साफ रखना चाहिए।

   अन्तः अनुशासनात्मक का अर्थ अंतर मन बाहरी मन को प्रभावित करने के लिए क्रिया कलाप को प्रेरित करता है 

अंतर मन मे वही चिजे रहना चाहिए जो जीवन के लिए जरूरी है। व्यर्थ और नकारात्मक क्रिया कलाप बाहरी मन के साथ अन्तर्मन को भी गंदा करता है जो जीवन के अनुशासन के विपरीत होता है। इसका प्रभाव जल्दी और अनिस्तकारी होता है। मन बहूत तेजी से नकारात्मक चिजे सोचने लग जाता है। सही दिशा मे चलता हुआ कार्य भी बिगड़ने लगता है। इन सभी का कारण अंतर मन के गंदा होने से होता है।

जीवन का संतुलन बाहरी मन को नियंत्रित करने के लिए अंतरमन पर अनुशासन करने से होता है।

अन्तः अनुशासनात्मक का अर्थ अंतरमन मे हो रहे हर प्रकार के विचार को समझ कर उचित और अनुचित का निर्णय लेकर अपने मन को नियंत्रण मे रख सकते है। एक बार अंतर मन मे नियंत्रण प्राप्त हो जाने पर मन को सहज भाव मिलता है जिससे प्रसन्नता बना रहता है। बाहरी जीवन को नियंत्रित करने के लिए अन्तः अनुशासन होना जरूरी है। यही अन्तः अनुशासनात्मक है।

अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और भूमिका जो स्वयं को अपने नियम के तहत चलाना होता है जो मनुष्य अपने जीवन में कुछ नियम का पालन करता है

  

अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और भूमिका मे कार्यक्षेत्र में मानव का विकाश 

अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और भूमिका मे ज्ञान का मुख्य पहलू है। 

स्वयं को अपने नियम के तहत चलाना होता है।

जो मनुष्य अपने जीवन में कुछ नियम का पालन करता है।

जिसके अनुसार अपना दिनचर्या निर्धारित करता है।

उसको अनुशासनात्मक ज्ञान कहते है।

स्वयं के ऊपर अनुशासन कर के सुबह जल्दी उठता हैजो जरूरी कार्य हैउसको पूरा कर के अपने काम धाम में लग जाता है।

जो भी कार्य करता है स्वयं के बनाये हुए नियम से ही करता है।

भले वो नियन दूसरो को अच्छा लगे या नहीं लगे पर अपने नियम पर चलना ही ज्ञान है।

अनुशासनात्मक ज्ञान के तहत स्वयं का नियम सकारात्मक होना चाहिए।

तभी अनुशासन बरक़रार रहता है।

 

नियम सकारात्मक होगा तो सब अच्छा और समय पर होगा।

सुबह जल्दी उतना। स्नान आदि करके दिनचर्या करना।

नास्ता समय पर करना।

अपने काम पर समय पर जाना।

दोपहर का भोजन समय पर खाना।

अपने काम काज को नियम के तहत कायदे से करना।

लोगो से सकारात्मक हो कर मिलना।

अच्छा व्यावहार करना।

माता पिता की सेवा करना।

बच्चो के पढाई लिखाई का ख्याल रखना।

घर में सबके आदर करना।

सभी से प्यार से बात करना।

बड़े बुजुर्गो को आदर भाव देना। मन सम्मान देना।

मेहनतकश बने रहना।

रात का भोजन समय से खाना।

समय से रात को सोना।

ताकि दुसरे दिन फिर नए दिन की सुरुआत करना होता है।

अनुशासनात्मक ज्ञान के तहत ऐसा दिनचर्या रख सकते है।

 

अनुशासनात्मक ज्ञान का अर्थ में प्रकृति के नियम बहूत अटल होते जाते है

जिसको कोई परिवर्तन नहीं कर सकता है।

समय समय पर प्रकृति में परिवर्तन स्वयं होता है।

पर जल्दी प्रकृति में परिवर्तन नहीं होता है।

कुछ परिवर्तन होता है।

जैसे शर्दी के बाद गर्मी।

गर्मी के बाद बरसात।

फिर बरसात के बाद फिर शर्दी और दिन-रात ये मुख्या प्रकृति के परिवर्तन है।

पर ये भी प्रकृति के नियम ही है।

जो सबको संतुलित कर के रखता है।

वैसे ही मनुष्य के नियम मनुष्य को संतुलित और संघठित रखता है।

संगठन और संतुलन में किसी  परिवर्तन की आवश्यकता नहीं होता है। मनुष्य के अन्दर सकारात्मक ज्ञान होगा तो ये स्वयं ही चरितार्थ होगा। चुकी मनुष्य को ज्ञान ही नियम बनाने के लिए प्रेरित करता है। जब प्रकृति के नियम संतुलित है।मनुष्य के भी नियन संतुलित हो कर संघठित होने चाहिए। तभी मनुष्य का जीवन चलेगा। मनुष्य के जीवन के  बहूत सरे आयाम होते है। समस्त आयाम को संतुलित होकर संघठित होना ही एक सफल ब्यक्ति की पहचान है।

 

कार्यक्षेत्र में अनुशासन बहूत जरूरी आयाम रखता है

अपने जीवन में अनुशासित होने के साथ साथ प्रकृति के नियम के अनुसार आगे बढ़ना। जिसके जरिये ब्यक्ति उपार्जन करता है। कमाता खाता है। जिसके जरिये अपने परिवार का भरण पोसन करता है। कार्यक्षेत्र में कामगार और कारीगर को काम धाम देता है। जीवन में अनुशासन के साथ साथ कार्यक्षेत्र में भी अनुशासन होना बहूत  अनिवार्य है। जब तक कार्यक्षेत्र में अनुशासन नहीं होगा। तब तक कार्यक्षेत्र में सफलता नहीं मिलेगा।

अनुशासित ब्यक्ति का व्यावहार संतुलितव्यवस्थित और संघठित होता है। जिससे कार्यक्षेत्र में संपर्क ज्यादा बनता है। बात विचार संतुलित होने से संपर्क करने वाले को अच्छा लगता है। जिससे संपर्क में आने वाला ब्यक्ति आकर्षित होता है। प्रतिष्ठान में अछे लोग जुड़ते है। जिससे कार्यक्षेत्र का विकाश और उन्नति होता है। कारीगर और कामगार के बिच संतुलन बना रहता है। सबके हित का ख्याल रखा जाता है। जिससे कारीगर और कामगार अछे से अपना काम मन लगाकर करते है। अनुशासनात्मक ज्ञान कार्यक्षेत्र में इसलिए जरूरी है। तब जा कर अनुशासित ब्यक्ति सफल और विकशित होता है।

 

अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति से जीवन प्रभावित होता है 

अनुशासनात्मक किसी बस्तु को बिलकुल उसी रूप में पहचानना ही ज्ञान है वह किस रूप में है? कैसा दिख रहा है? उसके गुन क्या है? ये अनुशासनात्मक ज्ञान के पहलू है। इसी प्रकार जीवन को भी अपने उसी रूप में पहचानना चाहिए। हम अपने जीवन में क्या कर रहे है? क्या सोच रहे है? अपना जीवन कैसा है? क्या जीवन कल्पना के अनुरूप चल रहा है या किसी और दिशा में आगे बढ़ रहा है? उस और ध्यान दे कर जीवन अपने सही मार्ग में अनुशासन के अनुरूप ढाल कर आगे बढ़ना ही वास्तविक जीवन है।   

 

स्कूली विषय में अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और भूमिका हिंदी भाषा में

विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्व, अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और भूमिका के द्वारा विद्यार्थी के अन्दर ज्ञान का विकाश स्कूल के विषय बच्चो के ज्ञान के विकाश के लिए होता है। जिससे बुद्धि सक्रीय हो और एकाग्रता से किसी कार्य के करने के लिए मन लगे। विषय के ज्ञान में जीवन के उपलब्धि के रहस्य छुपे रहते है।जिसे पढ़कर और शिक्षक से समझकर जीवन का गायन भी बढ़ता है। 

हिंदी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषा के विषय में भाषा के सिखने के साथ साथ जीवन के उतार-चढ़ाव, सुख-दुःख, उन्नति-अवनिति का ज्ञान कहानी के माध्यम से सिखाया जाता है। किसी भी प्रकार के माहौल में जीवन यापन कैसे होता है? सभी शब्द भेद भाषा के किताब के माध्यम से बच्चे को बचपन में सिखाया जाता है। जिससे आगे के जीवन में आने वाले परेशानी दुःख तकलीफ में कैसे जीना होता है इन सभी बात का ज्ञान भाषा के किताब से ही शिक्षक के द्वारा कराया जाता है 

 

वास्तविक जीवन के ज्ञान में जीवन के भूमिका का बहूत बड़ा योगदान है

बचपन से बच्चो में अनुशासन के प्रति सजगता का अभ्यास माता पिता बड़े बुजुर्ग और अध्यापक के द्वारा कराया जाता है। जिसे बच्चे का मन कही और किसी अनुचित विषय में न लग जाये। इन सभी बातो को उजागर करने के लिए। बच्चे के भाषा के किताब का चयन कर के, शिक्षा विभाग के द्वारा बच्चो के उम्र और कक्षा के अनुसार डिजाईन और प्रकाशित किया जाता है। कौन से उम्र में कौन सा ज्ञान आवश्यक है ये ये विशेषग्य के द्वारा ही चयनित किया जाता जिसे बच्चे का मन भाषा के किताब में लगा रहे है। 

छोटे बच्चो को कार्टून के माध्यम से सही और गलत का पाठ भाषा के किताब में छपे रहते है जिसे पढने, लिखने और याद करने से सही गलत के ज्ञान का विकाश होता है। बच्चो के उम्र बढ़ने के साथ साथ कक्षा में भी उन्नति होती है। इसके अनुसार आगे के भाषा के किताब में ज्ञान का आयाम और समझदारी का दायरा बढाकर बच्चो में जीवन के प्रतेक पहलू को उजागर कर के शिक्षा में दायरा बढाकर बच्चो को ज्ञान कराया जाता है।  

 

जीवन के ज्ञान के आयाम में प्रकृति और जीवन के भूमिका का अध्ययन

बच्चो के उच्च कक्षा में जाने के साथ साथ उम्र के बढ़ते आयाम में शिक्षा में जरूरी के अनुसार विषय का चयन में गणित जिसे जोड़ने, घटाने, गुना और भाग करने के विभिन्न तरीके का विकाश कराया जाता है। जिससे बच्चे हिसाब किताब के मामले में भी होशियार और बुद्धिजीवी बने अंक गणित और रेखा गणित से विषय वास्तु के मापने समझने बनाने का अभ्यास कराया जाता है। जिससे बच्चे अपने मापन पद्धति में किसी भी प्रकार के खरीद फरोक्त में कमी महाश्सुश नहीं करे और हिसाब किताब सही से समझ सके। 

ऐसे ही विज्ञान और उसके तीन भाग जिव विज्ञानं, प्राणी विज्ञानं, भौतिकी विज्ञानं और रसायन विज्ञानं के जरिये विषय वस्तु के समझ और ज्ञान कराया जाता है। विषय वस्तु का ज्ञान से ही बच्चो में समझ का आयाम बढ़ता है। गुणधर्म प्रकृति स्वभाव, जीवित और निर्जीव प्रकृति का अध्यन भी इसी विषय इ होता है।प्राणी का ज्ञान से समझ में आता है। कौन से प्राणी खतरनाक और कौन से प्राणी फायदेमंद है? उसके स्वभाव और प्रकृति समझाया जाता है। ऐसे ही समाज में क्या हो रहा है? पौराणिक और वर्तमान में क्या अंतर है? विशिस्थ लोगोग ने क्या किये है? भोगोलिक प्रकृति क्या है? ये समझ शास्त्र में समझाया जाता है।   

  अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति 

अनजान बृक्ष भी यही पर सीता रपटन, मंडला, मध्य प्रदेश में है. जिस पेड़ के निचे वाल्मीकि जी तपस्या किये थे और रामायण की रचना भी इसी पेड़ के निचे वाल्मीकि जी किये थे

  

सीता रपटन मध्य प्रदेश के मंडला जिला में स्थित है.

पौराणिक काल में सीता रपटन का नाम नाम रामगढ था. 

जो १९५१ में नाम बदल कर डिण्डोरी कर दिया गया.

बाद में इसका नाम फिर से बदल कर १९८८ में मंडला कर दिया गया.

अब यह जिला माडला के नाम से ही प्रसिद्ध है. सीता रपटन मंडला जिले में ही पड़ता है.

वाल्मीकि ऋषि का आश्रम भी इसी जगह सीता रपटन में है. 

जहा भगवन राम की पत्नी सीता को महल से निष्कासित कर दिया गया. 

सीता जी वनवास के दौरान वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में रही थी.

वनवास मे  सीता जी ने दो पुत्र लव और कुस को यही जन्म दिया था.

 

अनजान बृक्ष भी यही पर मंडला, मध्य प्रदेश में है. 

जिस पेड़ के निचे वाल्मीकि जी तपस्या किये थे.

रामायण की रचना भी इसी पेड़ के निचे वाल्मीकि जी किये थे.

इस पेड़ के बारे में आज तक कोई भी वनस्पति वैज्ञानिक कुछ भी पता नहीं लगा सके है। 

अनजान कौन से प्रजाति का  पेड़ है ये कोई नहीं जनता है?

यहाँ पर ऐसे दो पेड़ है जो आमने सामने है. एक पेड़ के निचे सीता जी की कुटिया बना हुआ है.

जो छोटा गुफा जैसा है. दुसरे पेड़ सामने है. इसमे ३ बार पतझड़ आता है.

नया पत्ता कब आ जाता है पता नहीं चलता है.

झड़ने वाले पत्ते कहाँ उड़ जाते है ये बी पता नहीं है. पत्ते झाड़ते हुए आज तक किसी ने नहीं देखा है.   

एक पहाड़ है जो बेहद ऊपर से निचे फिसलने वाला है.

जैसा बच्चे के लिए उद्यान में खेलने के लिए बना होता है, जिसपर बच्चे चढ़कर बाद में फिसलकर निचे आते है.

जो काले पत्थर का है. थोड़ी खुरदुरी पर कोई भी इसपर फिसल कर निचे आ सकता है.

बच्चे और बड़े बड़े मौज से इस प्राकृतिक रपटन पर ऊपर से फिसलकर निचे आते है.

पौराणिक समय में एक बार सीता जी पानी भरने के दौरान इसी जगह से मटका लेकर पीछे फिसल गई थी जिससे इसका नाम सीता रपटन पड़ा है.    

वाल्मीकि ऋषि का आश्रम मध्य प्रदेश मांडला मे सीता रपटन 

अनजान बाबा के वृक्ष पर रविवार और मंगलवार को रात को १२ बजे से भीड़ लगने सुरू हो जाते है जो सुबह तक लोग बृक्ष के पत्ते के दूध लेने के लिए आते है

 अनजान बाबा और अनजान बाबा वृक्ष का रहस्य

रहस्यमय अनजान बाबा के वृक्ष के पत्ते से दूध से सभी प्रकार के चार्म रोग, कुष्ट रोग और सफ़ेद दाग आदि एक सप्ताह में ठीक हो जाते है.

अनजान बाबा का वृक्ष कानपुर के दौलतपुर और गोपाल पुर के बच स्तिथ अनजान बाबा का पेड़ आज कल बेहद चर्चा में है.

कुछ समय पहले राउतपुर के रहने वाली दो विकलांग लड़की में से एक ने कुछ सपना देखा.

तब उन्होंने अपने पिता जी को बुलाकर रात में ही पेड़ के पास आये.

पत्ते के दूध का उपयोग किया जिससे एक सप्ताह में उनका विकलांगता दूर हो गया.

तब उस परिवार ने आकर वहा पूजा अर्चन किये और झंडा लगा दिए.

 

अभी तक इस बात का पता नहीं चला है की ये अंजान वृक्ष कौन सा है.

काफी जाच पड़ताल के बाद भी अभी तक वृक्ष का रहस्य बरक़रार है.

दिन में वृक्ष के पत्ते से कम दूध निकलते है और रात में ज्यादा दूध निकलते है.

अनजान बाबा के वृक्ष पर रविवार और मंगलवार को रात को १२ बजे से भीड़ लगने सुरू हो जाते है.

जो सुबह तक लोग वृक्ष के पत्ते के दूध लेने के लिए आते है.

दूध से सभी प्रकार के चार्म रोग, कुष्ट रोग और सफ़ेद दाग आदि एक सप्ताह में ठीक हो जाते है.

 

अनजान बाबा का रहस्य ये है की बहूत दिन पहले कोई बाबा इस बृक्ष के पास आये थे.

काफी दिन तक इस बृक्ष के निचे रहे और बाद में वह से गायब हो गए.

फिर दोबारा किसी को नहीं मिले. अनजान बाबा बारे में कोई कुछ नहीं जनता है.

 

ये बात कहाँ तक सत्य है कह नहीं सकते है लोगो से सुना गया है अन्धविश्वास भी हो सकता है.

ये घटना सत्य है पर पर पत्ते के उपचार से ये सब हो रहा है इसकी पुस्ति किसी ने नहीं है।

विश्वास से सब कुछ होता है परिवर्तन भी आता है पर इसकी आधिकारिक पुस्ति नहीं हुई है।

पत्ते के दूध से ये सब हुआ है इसे कोई प्रमाणित नहीं किया है।

अंधविसवास के होड मे हो सकता है पर वास्तविकता मे ऐसा कुछ नहीं है।

अध्ययन के परिणामस्वरूप विद्यार्थी में किस प्रकार का ज्ञान बढ़ रहा है? किस क्षमता का विकाश हो रहा है? विषय को याद रखने की क्षमता कितना है?

 छात्रों की क्षमता को मापने के लिए ज्ञान और प्रदर्शन महत्वपूर्ण हैं

 

स्कूली शिक्षा छात्रो के अध्ययन से निर्मित ज्ञान के क्षमता को प्रदर्शन के माध्यम से मापना महत्वपूर्ण है.

छात्र विद्यालय में पढ़ते है. समझ और ज्ञान से अध्ययन बढ़ता है.

अध्ययन के परिणामस्वरूप विद्यार्थी में किस प्रकार का ज्ञान बढ़ रहा है?

किस क्षमता का विकाश हो रहा है?

विषय को याद रखने की क्षमता कितना है?

पाठ्य पुस्तक के अन्धरुनी शब्द कहाँ तक याद रहता है?

लेखन में साफ सफाई और सुन्दर लिखावट में कितना विकाश हो रहा है?

इन सभी कारणों का अध्ययन करने के लिए और स्कूली शिक्षा में विकाश करने के लिए स्कूल समय समय पर टेस्ट परीक्षा लेते रहते है.

विद्यार्थी लम्बे समय तक पुस्तक के ज्ञान को कहाँ तक याद रखता है?

इसके लिए वार्षिक और अर्धवार्षिक परीक्षा साल में ६ महीने पर होता है.

इसमे उन्नति होने पर ही आगे के कक्षा में पारित किया जाता है.

जिससे विद्यार्थी के आगे के शिक्षा का विकाश कराया जाता है. 

 

स्कूली शिक्षा न सिर्फ पाठ्य पुस्तक के ज्ञान को बढ़ता है जब की जीवन के विकाश में भी शिक्षा का ज्ञान काम में आता है.

शिक्षा हर तरह से जीवन के वास्तविक ज्ञान को विकशित करने के लिए ही होता है. विषय वस्तु के समझ और उसके गुणधर्म से वस्तु के प्रति ज्ञान जागरूक होता है. जीवन में विकाश में विषय वस्तु बहूत महत्पूर्ण है. शिक्षा में कमी है तो विषय और वस्तु के समझ में अंतर बहूत होता है. स्कूली शिक्षा का आयाम ज्ञानी और विद्वान के जरिये बढाया जाता है. जिनको मनुष्य जीवन के बारे में सही और गलत क्या है? क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए? ये सभी ज्ञान और समझ पाठ्य पुस्तक में दर्ज किया जाता है, जिसे समय समय पर अध्याय के माध्यम से विद्यार्थी को समझाया जाता है.

 

स्कूली शिक्षा मे समय समय पर होने वाले परीक्षा के माध्यम.

विद्यार्थी अपने प्रश्न पत्र का जवाब अपने उत्तर पुस्तक में कैसे प्रदर्शित करते है? विषय के ज्ञान से वो क्या समझे है? कैसे लिखते है? लिखाई में खुबशुरती कैसा है? शिक्षा के मापदंड को ध्यान में रखकर अध्यापक के द्वारा उचित और सही अंक देकर सभी विषय का तुलनात्मक अध्ययन से विद्यार्थी के क्षमता को विद्यार्थी के प्रदर्शन के माध्यम से परखा जाता है. विद्यार्थी के शिक्षा के ज्ञान का प्रदर्शन इसलिए अत्यंत महत्वपूर्ण है विद्यार्थी के ज्ञान और उसके परिणाम का भी अध्यन प्रदर्शन से होता है.

  स्कूली शिक्षा 

अच्छी बारिस किसानो ने जब खेत की तयारी भी नहीं किये थे धान के बिज लगाने के तब मई महीने के अच्छी बारिस हो गई

 जलवायु परिवर्तन सुख कम दुःख ज्यादा

 

किसानो के लिए कई साल से जलवायु परिवर्तन देखा जा रहा है 

जलवायु परिवर्तन खास कर बारिस का मौसम उतना फायदेमंद नही हो कर नुकसान ही दे रहा है. भारत में मुख तौर पर दो साल ये देखा जा रहा है की अच्छी बारिस के होने बाबजूद भी धन के फसल या तो बरबाद हो रहा है या फसल हो ही नहीं पाता है.

 

समय से पहले अच्छी बारिस

किसानो ने जब खेत की तयारी भी नहीं किये थे धान के बिज लगाने के तब मई महीने के अच्छी बारिस हो गई. जिससे भुरभुरी मिट्टी कठोर हो गए और जिसमे बारम्बार मशीन से खेत जोतवाने पड़े. समय से पहले होने वाले बारिस ने मिटटी को जमा दिया जिसे किसानो को मशीन चलवाकर खेत की जोताई करना पड़ा.

 

इस साल तो हद ही हो गया

बिहार में खास कर इस साल जिस समय धान के बोआई होते है. उस समय उतना अच्छा से पानी बरसने से धान के बिज ठीक से तयार नहीं हुए. धान के बिज बोने के साथ पानी बरसने से बहूत सरे बिज पीले पड़कर ख़राब हो गए. जिनको यूरिया के जरिये कुछ हद तक सुधर हुआ. पर अधिकांश धान के बिज ख़राब ही हो गए जो पूरी तरह से पानी में डूब गए थे. कुछ तयार भी हुए तो उसमे किसान को उस बिज को शक्त जमीं से ठीक से निकालाना पड़ा जिसमे कई धान के बिज ख़राब हो गए.

 

महँगी लागत उपज कम

जैसे तैसे आंशिक बिज से किसानो ने धान के खेती किये. अच्छी बारिस होने बाद ही धान के बिज को खेत में गहरे पानी में लगाया जाता है. धान के बिज के रोपाई के दौरान बारिस का पानी अच्छा मिला जिससे खेतो में धान के बिज लगाये गए.

 

अच्छी बारिस पड़ी मुसीबत, ऊपर से नदी के बाढ़

आंशिक धान के बीजो को खेत में लगाये जाने के बाद भी बारिस नहीं रुकी और उनमे से निचले इलाके के खेतो में पानी भर जाने से धान के बिज ही डूब गए. सिर्फ उथले जगह पर कुछ धान की खेती लग पाया. आने वाले बढ़ के पानी ने उन सभी को ही डुबो दिया. कुछ सौभाग्यशाली खेत थे जहा बढ़ के पानी नहीं जा पाया सो वो सब बच गए. उनमे लगातार बारिस के पानी से खेती भी अच्छी हुई.

 

अंत में जो बचा था वो भी गया

धान के फसल के पकने के बाद उसको कटा गया. जिनके फसल बचे थे उन किसान ने अपना फसल को काटा. धान के फसल को खेत में सूखने के लिए कुछ दिन तक छोड़ा जाता है. इस दौरान ३ दिन लगातार बारिस हो गई. जिससे सभी खेत के उपजे धान खेत में उग गए. रही सही पूरी फसल इस तरह से बर्बाद हो गए. कहा जाता है की जितने बिज उगाये गए थे उसमे से सिर्फ १५ या २० प्रतिशत की धान के फसल हुए और बाकि फसल बारिस और बढ़ से बर्बाद हो गए. 

   अच्छी बारिस 

अंजान ब्यक्ति के ज्ञान को कैसे समझे? हाज़िर जवाब बात चित के ज्ञान में क्या है? मनुष्य के ज्ञान को कैसे समझे?

  

मनुष्य के ज्ञान को कैसे समझे?

मनुष्य के ज्ञान में अक्सर कहा जाता है कि इंसान को नहीं उनके ज्ञान को समझना चाहिए।

हम तो कहते है की ज्ञान के माध्यम से इंसान को समझना चाहिए।

उसके मन में क्या है?  क्या ख़ासियत है की वो सब मे महान है?

उसके अंदर क्या अहमियत है? वो सबका प्यारा क्यों है?

क्यों उसके तरफ हर कोई आकर्षित होता रहता है?  उसका स्वछन्द सोच विचार ही है।

सबको अपने तरफ आकर्षित करता है।  ये मायने नहीं रखता है की वो अमीर है या गरीब है।

ये भी मायने नहीं रखता है। वो छोटा है या बड़ा है।  यहाँ तक की हम कह रहे है।

ये भी मायने नहीं रखता है की वो अपना है या पड़ाया है।

मायने तो यही रखता है की वो क्या बात रहा है। हम क्या उनसे ज्ञान का अनुशरण कर रहे है।

यदि उनकी बाते हमारी मन को छु जाती है। हमारे मन को अच्छी लगती है।

जिससे हमें खुशी महशुस होती है। वास्तव में वो ज्ञानी है।  जो सबको आकर्षित किये हुए है।

इसलिए वे महान है।  कभी भी हमें ऐसे व्यक्ति की उसके शारीरिक दशा से नहीं आंका जाना चाहिए।

ऐसे ब्यक्ति को ज्ञान से आका जाना चाहिए।  जो वास्तव में वो सबको ज्ञान के माध्यम से समझना चाह रहा है।

क्यों की वो हमें सिर्फ और सिर्फ ज्ञान हि देते है। हमें उनका अनुसरण भी करना चाहिए।

कही न कही किसी न किसी रास्ते पर अक्सर मिलते है।

हम अज्ञानवश उनको समझ नहीं पाते है।  बाद में पछताना होता है।

अंजान ब्यक्ति के ज्ञान को कैसे समझे?

अंजान ब्यक्ति के ज्ञान में कभी भी किसी अनजान व्यक्ति या कोई चाहे कही भी मिले।

उनको तुरंत जवाब नही दीजिये। जब तक की वो पूरी तरीके से अपने बारे में न बता दे।

उनकी मंसा क्या है। आपसे मिलाने के कुछ देर बाद बात करने के बाद वो हमें समझ आने लग जायेगा।

इससे फायदा ये होगा की वो कोई ज्ञानी है या कोई धूर्त है।

कही वो हमें अपने जाल में तो नहीं फ़सा रहा है।  इससे एक और फायदा होगा।

अपने बारे में उनको पता नहीं लगेगा। और उनकी बातो को हम समझने लगेंगे।

वो वास्तव में क्या है।  यदि कोई शंका हो तो उनसे किनारा कर लीजिये।

यदि उनकी कोई अच्छी बात अच्छी लगे तो और सुनिए।  कोई भी इंसान अपने से मिलेगा।

यदि वो लालच भरी बाते कर रहा है। तो उनसे किनारा करे।

अपने रास्ते पर चलते रहिये। कई बार ऐसा होता है। लोग उनके जाल में फस कर अपना बहुत कुछ गवा लेते है।

हाज़िर जवाब बात चित के ज्ञान में क्या है?

हाज़िर जवाब बात चित के ज्ञान में वही तक सही जहाँ हम अच्छी तरह से एक दूसरे को जानते है।  जिनके बारे में हमें पूरा पता होता है।  और हम एक दूसरे के मनोरंजन के लिए ही हाज़िर जवाब का इस्तेमाल करते है। जरूरी सोच समझ के लिए हमें भी बहुत समझना होता है। क्या सही है। क्या गलत है। ये हम सभी जानते है।

   मनुष्य के ज्ञान 

Attitude of life is very important to be positive, in fact there is a place for one's own desire in positive thinking, if one thinks something for himself, then greed also comes in the spirit of thinking or imagination

  

The things I hate about you

Attitude to life meaning when you look in your mind a lot starts to make sense. Most of the time, negative feelings of time are seen in the mind. Few things are good. Things that are positive. He wants to remember them again and again. The things that do not please the mind. Sometimes it becomes very difficult to shrug off those things. Then the anger comes in the same way. When some old thing shakes the mind. Then only negative things start rising in the mind. Such is the nature of the mind.

 

Often there is a work place for positive things in the dimension of life 

Often there is less room for positive things in the dimension of life. Attitude to life meaning reason behind this is that the feeling of the people who mix more is associated with some desire or the other. Most of the people's desires are negative. Which affects the mind of both. Due to which there is an effect of negative desire on the mind of both the speaker and the talker. Therefore, during the imagination or for a particular task, one thinks something. So the feeling attached to it is realized. When such negative things are raised in the mind. So there is a lot of anger too. Together it affects your thinking and imagination.

 

The attitude of life is very important to be positive

It is very important to have a positive attitude in life. In fact, positive thinking has no place for self-will. If you think for yourself. Greed also comes in the spirit of thinking or in the imagination. Which is a low trend. Due to which thinking or imagining something of one's own will is not entirely meaningful. Therefore want to achieve something in thinking or imagination. So what are you thinking about in the imagination? The inclination of the mind should be on that subject matter. So that there will be complete success in the work of that subject matter. When that task is successful. Then the result of that work is beneficial. That is the real success. Therefore, one should never allow one's desire to be exposed in thinking and imagination.

 attitude to life meaning 

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