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Wednesday, December 17, 2025

रहीम दास का जन्म सन् 17 दिसम्बर 1556 ई. में लाहौर में हुआ। उनके पिता बैरम ख़ान अकबर के संरक्षक और सेनानायक थे। प्रारंभिक जीवन में रहीमदास को राजसी वैभव, उच्च शिक्षा और संस्कार प्राप्त हुए।

रहीम दास जीवन, व्यक्तित्व और काव्य-दर्शन

हिंदी साहित्य के भक्ति-काल में जिन कवियों ने मानवता, नीति, प्रेम और व्यवहारिक जीवन-मूल्यों को अत्यंत सरल और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया, उनमें रहीमदास का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। रहीमदास केवल कवि ही नहीं थे, बल्कि वे एक महान सेनापति, कुशल प्रशासक, विद्वान, दानी और उदार हृदय के स्वामी भी थे। उनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना था। वे मुगल सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक थे और अकबर के प्रमुख सेनापति बैरम ख़ान के पुत्र थे। बावजूद इसके, उनकी पहचान सत्ता या वैभव से नहीं, बल्कि उनके नीति-काव्य और मानवीय मूल्यों से बनी।


रहीम दास का जन्म सन् 17 दिसम्बर 1556 ई. में लाहौर में हुआ। उनके पिता बैरम ख़ान अकबर के संरक्षक और सेनानायक थे। प्रारंभिक जीवन में रहीमदास को राजसी वैभव, उच्च शिक्षा और संस्कार प्राप्त हुए। उन्होंने अरबी, फ़ारसी, तुर्की और संस्कृत जैसी भाषाओं का गहन अध्ययन किया। यही कारण है कि उनकी रचनाओं में भारतीय और इस्लामी संस्कृति का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। रहीमदास का जीवन सुख-सुविधाओं से भरा होने के बावजूद संघर्षों से भी अछूता नहीं रहा। उनके जीवन में सत्ता, सम्मान, अपमान, वैभव और दरिद्रता—सभी अवस्थाएँ आईं, जिनका गहरा प्रभाव उनके काव्य पर पड़ा।


रहीम दास का व्यक्तित्व अत्यंत विनम्र और दयालु था। वे दानशीलता के लिए प्रसिद्ध थे। कहा जाता है कि वे कभी किसी याचक को खाली हाथ नहीं लौटाते थे। उनके दान की भावना इतनी प्रबल थी कि उन्होंने अपने जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी दूसरों की सहायता करना नहीं छोड़ा। यही दानशीलता और विनम्रता उनके दोहों में स्पष्ट रूप से झलकती है। वे स्वयं बड़े पद पर रहते हुए भी अहंकार से कोसों दूर थे।


रहीम दास की काव्य-रचनाएँ मुख्यतः दोहा छंद में हैं। उनके दोहे नीति, भक्ति, प्रेम, व्यवहार, मित्रता, दया, अहंकार-त्याग और मानव-मूल्यों पर आधारित हैं। रहीम के दोहे अत्यंत सरल भाषा में गूढ़ अर्थ प्रस्तुत करते हैं। यही कारण है कि उनके दोहे आज भी जन-जन की ज़बान पर हैं। उन्होंने अपने काव्य में संस्कृतनिष्ठ शब्दों के साथ-साथ लोक-भाषा का भी सुंदर प्रयोग किया है, जिससे उनकी रचनाएँ आम जनता के लिए सहज और बोधगम्य बन गईं।


रहीम दास का काव्य-दर्शन जीवन के यथार्थ अनुभवों पर आधारित है। उन्होंने जो कुछ लिखा, वह केवल शास्त्रीय ज्ञान का परिणाम नहीं था, बल्कि उनके स्वयं के जीवन के उतार-चढ़ावों से उपजा हुआ था। उन्होंने सत्ता के शिखर को भी देखा और पतन की पीड़ा को भी सहा। यही कारण है कि उनके दोहों में जीवन का गहरा अनुभव और सत्य झलकता है।


रहीम दास के काव्य में नीति का विशेष स्थान है। उन्होंने मनुष्य को विनम्र, संयमी और सदाचारी बनने की शिक्षा दी। उनके अनुसार अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। वे कहते हैं कि बड़ा बनने पर भी मनुष्य को नम्र रहना चाहिए, क्योंकि विनम्रता ही महानता की पहचान है। उनका प्रसिद्ध दोहा—


“रहिमन निज मन की व्यथा,

मन ही राखो गोय।”


मनुष्य के आंतरिक दुःख और संवेदनाओं को व्यक्त करने में अत्यंत प्रभावी है। यह दोहा बताता है कि हर पीड़ा को सबके सामने व्यक्त करना उचित नहीं होता।


रहीम दास ने प्रेम और मित्रता पर भी सुंदर विचार व्यक्त किए हैं। उनके अनुसार सच्चा प्रेम और मित्रता स्वार्थ से परे होती है। वे प्रेम को त्याग और सहनशीलता से जोड़ते हैं। उनके दोहे बताते हैं कि प्रेम वही है, जिसमें दूसरे के दुःख को अपना समझा जाए और अहंकार का त्याग किया जाए।


भक्ति-भावना भी रहीमदास के काव्य का एक महत्वपूर्ण पक्ष है। वे ईश्वर को सर्वशक्तिमान मानते हैं और उसके प्रति पूर्ण समर्पण का भाव रखते हैं। हालांकि वे मुस्लिम थे, फिर भी उनकी भक्ति-भावना पूरी तरह भारतीय भक्ति परंपरा से जुड़ी हुई है। उन्होंने राम, कृष्ण और हरि जैसे शब्दों का प्रयोग किया है, जो उनकी सांस्कृतिक उदारता को दर्शाता है। यही कारण है कि उन्हें सांस्कृतिक समन्वय का कवि भी कहा जाता है।


रहीम दास ने मानवता को सर्वोपरि माना। उनके अनुसार धर्म, जाति और संप्रदाय से ऊपर मनुष्य होना आवश्यक है। वे कहते हैं कि सच्चा धर्म वही है, जो मानव-कल्याण की भावना से प्रेरित हो। उनके दोहों में यह भाव बार-बार उभरकर आता है कि मनुष्य को दूसरों के प्रति करुणा, दया और सहानुभूति रखनी चाहिए।


रहीम दास का जीवन संघर्षों से भरा रहा। अकबर की मृत्यु के बाद उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनके पुत्रों की हत्या, संपत्ति का नाश और राजकीय अपमान ने उन्हें भीतर तक झकझोर दिया। परंतु इन विपत्तियों के बावजूद उन्होंने धैर्य नहीं छोड़ा। उन्होंने अपने दुःख को काव्य के माध्यम से व्यक्त किया और जीवन के यथार्थ को स्वीकार किया। उनके दोहे हमें यह सिखाते हैं कि जीवन में सुख और दुःख दोनों अस्थायी हैं।


रहीम दास की भाषा अत्यंत सरल और प्रभावी है। उन्होंने आम बोलचाल की भाषा में गहन विचार प्रस्तुत किए। यही कारण है कि उनके दोहे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उनके समय में थे। उनके काव्य में अलंकारों की चकाचौंध नहीं, बल्कि भावों की सच्चाई है।


रहीम दास का साहित्य केवल पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि जीवन में अपनाने के लिए है। उनके दोहे हमें व्यवहारिक जीवन की शिक्षा देते हैं। वे बताते हैं कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी संयम और विनम्रता बनाए रखी जाए। उनका साहित्य मनुष्य को बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देता है।


आज के युग में, जब समाज में स्वार्थ, अहंकार और दिखावा बढ़ता जा रहा है, रहीमदास की शिक्षाएँ और भी अधिक प्रासंगिक हो गई हैं। उनके दोहे हमें सिखाते हैं कि सच्ची महानता विनम्रता में है, सच्चा सुख दूसरों की सहायता में है और सच्चा धर्म मानवता में है।


निष्कर्षतः, रहीमदास हिंदी साहित्य के ऐसे कवि हैं, जिनका काव्य समय की सीमाओं से परे है। उनका जीवन और साहित्य हमें यह सिखाता है कि परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, मनुष्य को अपने मूल्यों से समझौता नहीं करना चाहिए। रहीमदास का काव्य मानव जीवन का दर्पण है, जिसमें हमें अपने व्यवहार, विचार और कर्मों का मूल्यांकन करने की प्रेरणा मिलती है। यही कारण है कि रहीमदास न केवल एक महान कवि हैं, बल्कि एक महान जीवन-दर्शन के प्रवक्ता भी हैं।

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रहीम दास का जन्म सन् 17 दिसम्बर 1556 ई. में लाहौर में हुआ। उनके पिता बैरम ख़ान अकबर के संरक्षक और सेनानायक थे। प्रारंभिक जीवन में रहीमदास को राजसी वैभव, उच्च शिक्षा और संस्कार प्राप्त हुए।

रहीम दास जीवन, व्यक्तित्व और काव्य-दर्शन हिंदी साहित्य के भक्ति-काल में जिन कवियों ने मानवता, नीति, प्रेम और व्यवहारिक जीवन-मूल्यों को अत्यं...