Wednesday, November 5, 2025

अगहन मास का परिचय अगहन नाम की उत्पत्ति इस मास का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भगवान श्री हरि विष्णु, लक्ष्मी जी और गंगा पूजन का वर्णन

अगहन मास (Agahan Maas)

लेख में मैं यह सभी प्रमुख भाग शामिल करूंगा:

  1. अगहन मास का परिचय
  2. अगहन नाम की उत्पत्ति
  3. इस मास का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
  4. भगवान श्री हरि विष्णु, लक्ष्मी जी और गंगा पूजन का वर्णन
  5. अगहन मास में प्रमुख व्रत, पर्व और त्यौहार
  6. ज्योतिषीय दृष्टि से अगहन मास
  7. अगहन मास में करने योग्य कर्म
  8. अगहन मास के उपाय, दान और स्नान की महिमा
  9. लोक परंपराएँ और ग्रामीण मान्यताएँ
  10. निष्कर्ष


अगहन मास का परिचय

भारतीय सनातन पंचांग के अनुसार वर्ष को बारह मासों में विभाजित किया गया है  चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, अगहन (मार्गशीर्ष), पौष, माघ और फाल्गुन। इन मासों में अगहन मास का विशेष स्थान है। यह मास कार्तिक मास के बाद आता है और शीत ऋतु के आरंभ का प्रतीक होता है। अगहन मास को मार्गशीर्ष मास भी कहा जाता है। वैदिक परंपरा में यह मास अत्यंत पवित्र माना गया है क्योंकि इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं “गीता” का उपदेश दिया था।

श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय 10, श्लोक 35) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं

“मासानां मार्गशीर्षोऽहम्।”
अर्थात्  “मासों में मैं मार्गशीर्ष (अगहन) मास हूँ।”

इससे स्पष्ट होता है कि यह महीना भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय मास है। इसी कारण इस महीने में श्री हरि विष्णु, लक्ष्मी माता, श्रीकृष्ण, और गंगा माता की विशेष पूजा की जाती है।

अगहन नाम की उत्पत्ति

“अगहन” शब्द संस्कृत के “अग्रहन्य” या “अग्र” शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है “सबसे श्रेष्ठ”।
यह मास वर्ष का श्रेष्ठ काल माना जाता है, क्योंकि इस समय देवताओं की उपासना का विशेष फल प्राप्त होता है। शीत ऋतु की शुरुआत के साथ इस मास में शरीर और मन दोनों साधना के अनुकूल होते हैं।

दूसरी ओर “मार्गशीर्ष” शब्द “मार्ग” (पथ) और “शीर्ष” (सर्वोत्तम) से बना है, अर्थात “सर्वोत्तम पथ का सूचक मास”।
यह मास धर्म, दान, तप, साधना, और ईश्वर उपासना का मार्ग दिखाने वाला है।

अगहन मास का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

सनातन परंपरा में अगहन मास का संबंध विष्णु पूजा, गंगा स्नान और दान-पुण्य से है।
इस मास में साधक प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।
मान्यता है कि इस मास में गंगा स्नान करने से व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वह मोक्ष की प्राप्ति करता है।

धर्मशास्त्रों में वर्णन

स्कंद पुराण, पद्म पुराण, नारद पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में अगहन मास की विशेष महिमा बताई गई है।
शास्त्रों के अनुसार 

“अगहन मासे स्नानं तु सर्वपापप्रणाशनम्।”
अर्थात अगहन मास में किया गया स्नान समस्त पापों को नष्ट करता है।

भगवान श्री हरि विष्णु और लक्ष्मी जी की आराधना

इस मास में श्री हरि विष्णु की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।
व्रत, उपवास और दीपदान के साथ इस समय लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है।
रात्रि में विष्णु सहस्रनाम का पाठ, तुलसी पूजा, और श्री नारायण का ध्यान करना शुभ फलदायक माना गया है।

पूजन विधि:

  1. प्रातःकाल स्नान कर पीले वस्त्र धारण करें।
  2. तुलसी दल और गंगाजल से विष्णु जी का अभिषेक करें।
  3. दीपदान करें और श्री हरि को पीले पुष्प अर्पित करें।
  4. भगवान श्रीकृष्ण को गीता के श्लोक पढ़कर अर्पित करें।
  5. ब्राह्मण या गरीबों को दान दें।

अगहन मास में प्रमुख व्रत, पर्व और त्यौहार

अगहन मास में अनेक पर्व और उत्सव मनाए जाते हैं। इनमें प्रमुख हैं:

  1. गीता जयंती  इस दिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
  2. दत्तात्रेय जयंती  त्रिदेव रूप भगवान दत्तात्रेय का जन्मदिन।
  3. अग्रहायण पूर्णिमा  इस दिन गंगा स्नान, दान और ब्राह्मण भोज का विशेष महत्व है।
  4. नारायण पूजा एवं तुलसी विवाह की स्मृति
  5. अन्नकूट उत्सव  अन्नदान और गोसेवा का महोत्सव।

इस मास में अन्नदान का विशेष पुण्य बताया गया है। कहा गया है 

“अगहन्यां तु यः कुर्यात् अन्नदानं सदा नरः।
स वै स्वर्गे महीयेत सर्वदेवैरपि पूजितः॥”

ज्योतिषीय दृष्टि से अगहन मास

अगहन मास का आरंभ सूर्य के वृश्चिक राशि में होने पर होता है।
चंद्रमा प्रायः इस मास में मृगशिरा नक्षत्र के समीप होता है, इसलिए इसे “मार्गशीर्ष” कहा गया।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह समय सकारात्मक ऊर्जा, आध्यात्मिक विकास और मानसिक शांति का प्रतीक है।

जो लोग इस मास में ध्यान, योग, मंत्रजप और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, उन्हें ग्रहदोषों से मुक्ति मिलती है।
गुरु और बृहस्पति ग्रह की कृपा भी इस मास में विशेष रूप से बढ़ जाती है।

अगहन मास में करने योग्य कर्म

  1. गंगा स्नान: प्रतिदिन या कम से कम पूर्णिमा के दिन अवश्य।
  2. दान: अन्न, वस्त्र, तिल, गुड़, घी, और सोने का दान श्रेष्ठ माना गया है।
  3. उपवास: एकादशी व्रत इस मास में विशेष फलदायक होता है।
  4. दीपदान: मंदिरों और घरों में दीप प्रज्वलित करना।
  5. भजन-कीर्तन: भगवान विष्णु, श्रीकृष्ण और लक्ष्मी जी की आराधना करना।
  6. तुलसी पूजा: तुलसी को जल अर्पित करना और प्रदक्षिणा करना।
  7. सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और संयम का पालन।

अगहन मास के उपाय, दान और स्नान की महिमा

दान के उपाय:

  • गरीबों को गर्म वस्त्र देना।
  • गौशाला में चारा और गुड़ दान करना।
  • ब्राह्मणों को अन्नदान करना।
  • मंदिरों में दीप जलाना।
  • जरूरतमंदों को भोजन कराना।

स्नान की महिमा:

गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा या किसी पवित्र जलाशय में स्नान करने से समस्त पाप धुल जाते हैं।
जो व्यक्ति इस मास में सूर्योदय से पहले स्नान करके भगवान विष्णु का स्मरण करता है, उसे सौ जन्मों का पुण्य प्राप्त होता है।

लोक परंपराएँ और ग्रामीण मान्यताएँ

ग्रामीण भारत में अगहन मास को “धान कटाई” और “नई फसल” का महीना भी कहा जाता है।
इस महीने किसानों के घर में नए अन्न का आगमन होता है, इसलिए कई स्थानों पर इसे “अग्रहायण” (अन्न का अग्र आगमन) कहा गया है।
गाँवों में अन्नकूट, तुलसी विवाह, और देव पूजन जैसे लोक उत्सव इसी माह में धूमधाम से मनाए जाते हैं।

कई क्षेत्रों में यह मास अन्नपूर्णा देवी की आराधना का समय भी माना जाता है।
ग्राम्य समाज में इस समय घर-घर में भजन, कथा और दीपदान की परंपरा होती है।

निष्कर्ष

अगहन मास केवल एक समय नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरण और ईश्वरीय कृपा का प्रतीक है।
यह महीना हमें सिखाता है कि जैसे ठंडी ऋतु में प्रकृति शांत और निर्मल होती है, वैसे ही मनुष्य को भी अपने भीतर शांति, श्रद्धा और संयम का भाव विकसित करना चाहिए।

इस मास में की गई पूजा, ध्यान, दान, और गीता का पाठ व्यक्ति को जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति की ओर ले जाता है।
यही कारण है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इसे “मासों में श्रेष्ठ” कहा।

अतः हमें अगहन मास में आत्मशुद्धि, गंगा स्नान, विष्णु पूजा, और दान-पुण्य में स्वयं को लगाना चाहिए ताकि जीवन में सुख, शांति और मोक्ष की प्राप्ति हो।


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