Thursday, June 19, 2025

जीआरसी का काम को पश्चिमी देश में प्रीकास्ट कहते है. कही कही पर जी. आर. सी. वर्क को जी. ऍफ़. आर. सी. वर्क भी कहते है. GRC और GFRC में ज्यादा अंतर नहीं होता है

  

जीआरसी डिजाईन आज के आधुनिक समय में वाइट सीमेंट और सिलिका सैंड से बना पादर्थ है

 

जी आर सी डिजाईन जिसमे वाटर प्रूफिंग के लिए सोलुसन को मिश्रित कर के बनाया जाता है. 

जीआरसी का काम मे मजबूती के लिए फाइबर ग्लास के मैट का बहूत ज्यादा इस्तेमाल ही जी. आर. सी. डिजाईन को मजबूती और टिकाऊ बनता है.

बेहद खुबसूरत फिनिशिंग के लिए सफ़ेद सीमेंट का इस्तेमाल किया जाता है।

जो काले वाले सीमेंट से ज्यादा मजबूत और बारीक़ होता है.

धलाई को मजबूत बनाने के लिए सिलिका सैंड उपयोगी होता होता है.

घर के बहार और अन्दर के सजावटी वस्तु को बनाने के लिए मिट्टी और प्लास्टर से डिजाईन को बनाया जाता है.

सांचे को बनाने के लिए फाइबर ग्लास का इस्तेमाल होता है.

आमतौर पर तयार मॉल अफेद रंग का  निकालता है

जिसे पालिश पेपर से सफाई और सफ़ेद सीमेंट के बने पुट्टी के भाराइ के बाद मनमोहक फिनिशिंग डिजाईन में आता है.

किसी भी प्रकार के जी. आर. सी. डिजाईन के लिए संपक सबसे पहले डिज़ाइनर से करना चाहिए.

आर्किटेक्ट स्वयं एक आर्टिस्ट होता है. जिसके समझ से डिजाईन डिजाईन के उभार को समझकर मॉडल को बनता है.

सब तारीके से सुसज्जित डिजाईन ही बिल्डिंग और घर में लगता है. प्रोडक्शन करने वाले डिजाईन नहीं कर सकते है। 

वे सिर्फ डिजाईन के मोल्ड को बाजार से खरीदकर उत्पादन कर सकते है और फिनिशिंग और फिटिंग करते है.

आकर और डिजाईन को नए रूप और रंग देने की काबिलियत डिज़ाइनर के पास ही होता है.

जो की कम से कम मिटटी के खुबसूरत डिजाईन को आकर और उभार के अनुसार रूप देकर डिजाईन को सुसज्जित कर सके.

 

  जीआरसी का काम 

जीआरसी का काम को पश्चिमी देश में प्रीकास्ट कहते है. 

जीआरसी का कामको कही कही पर जी. आर. सी. वर्क को जी. ऍफ़. आर. सी. वर्क भी कहते है. GRC और GFRC में ज्यादा अंतर नहीं होता है. इंडस्ट्रियल कार्य करने वाले इसे GFRC कहते है, जब की हाथ से काम करने वाले इसे GRC वर्क कहते है या GRC डिजाईन कहते है. डॉन एक ही है.इंडस्ट्रीज में बड़े बड़े आकर के सांचे में आधुनिक मशीन से ढलाई स्प्रे से किया जाता है जिसमे उच्च क्षमता के हवा के प्रेसर के साथ स्प्रे में GFRC मटेरियल को भर कर सांचे में धलाई किया जाता है.

 

शादी के सजावट में उपयोग होने वाले फाइबर ग्लास GRC और GFRC के सामग्री के डिज़ाइनर और निर्माता विस्वविख्यात उद्यम पिछले १५ साल से एक्सपोर्ट मार्किट में सप्लाई करने वाले एक मात्र डिज़ाइनर 

 

Ramnath Kalarathi Enterprise

For designing of wedding mandap stage in fiberglass and stage set up

Grc design work for construction and house interior exterior designing work

durgakalarathi@gmail.com

https;//www.weddingmandapdesigner.com

चाहे काम काज छोटा हो या बड़ा हो काम कम फायदे वाला हो या ज्यादा फायदे वाला हो उस काम काज के समझ का तजुर्बा कम नहीं होता है।

  

कोई भी काम काज या काम काज का ज्ञान कोई छोटी बात नहीं है

हमेशा कोई भी काम काज या काम काज का ज्ञान कोई छोटी बात नहीं है।

चाहे काम काज छोटा हो या बड़ा हो। काम कम फायदे वाला हो या ज्यादा फायदे वाला हो।

उस काम काज के समझ का तजुर्बा कम नहीं होता है। जिस काम के तजुर्बे में शामिल है। 

उसकी बारिकियत को जितना आका जय उतना ही कम है।

कोई भी तजुर्बा जिसके गहराई में पहुंचे तो काम काज के ज्ञान का समझ और तजुर्बा ज्यादा बढ़ता है।

बस कमी तो यही है की सही मार्गदर्शन करने वाला। या तो कम है।

कोई उन तक पहुंच ही नहीं पता है। वास्तव में यदि किसी को सही मार्गदर्शन करने वाला मिल जाय

उनकी रह पर चल कर उनके समझ और ज्ञान पर भरोसा कर के सीखते रहे। तो फिर किसी जानकारी की कमी नहीं रहेगी। 

कोई भी काम के बारीकियत का समझ बहुत बड़ा महत्त्व होता है

कोई भी काम के बारीकियत का समझ बहुत बड़ा महत्त्व होता है।

मन लगाकर यदि किसी भी काम को जानकर के सानिध्य में करे।

तो उसकी गहराई में जाकर नए रूप रंग को दे सकते है। 

इससे अपना ज्ञान और भी बढ़ेगा। जब तक किसी काम में अपना मन लगा लेते है।

मन वास्तव में लगकर जब काम करने लग जाता है। इससे मन की एकाग्रता का विकास होता है।

सोचने समझने की शक्ति बढ़ता है।  जिससे शरीर कभी थकता नहीं है

कोई बाहरी बातचित से उसमे रूकावट नहीं पड़ता है। 

मन लगातार अपने काम में ब्यस्त रहता है।  इससे अपना ज्ञान और बढ़ता जाता है। 

बाद में मन को काम काज करने की आदत लग जाती।

ये कोई छोटा मोटा ज्ञान नहीं है

ये कोई छोटा मोटा ज्ञान नहीं है। बहुत बड़ी कर्म की परिभाषा है। जिस रस्ते पे चलकर सब अपने योग्यता को प्राप्त करते है। समाज में घर परिवार में देश में अपना नाम करते है।  

काम छोटा हो या बड़ा ये मायने रखता है की उसमे ज्यादा फ़ायद है या नहीं

अब बात ये रहा काम छोटा हो या बड़ा। ये मायने रखता है की उसमे ज्यादा फ़ायद है या नहीं उसका भी महत्व है। एक सफाई कर्मचारी दिन भर झाड़ू मार कर रोड की सफाई करता है। उसमे भी वही ज्ञान है। जिसने मन लगाकर अपना काम किया। तो साफसुथरा जल्दी हो जाता है। और जिसने मन नहीं लगाया तो जल्दी सफाई भी नहीं होती है। सब बिखड़ा बिखड़ा सा नजर आता है। साफ सफाई देख कर अपने को भी उतना ही अच्छ लगता है। जितना सफाई कर्मचारी को क्योंकी वो उसका काम है। उसका कर्म है। और उस काम में उसका मन भी लगता है। इसलिए वो सबको अच्छ लगता है। और वही जब सब बिखड़ा बिखड़ा सा रहत है। तब वो किसी को अच्छा नहीं लगता है। 

कर्म के ही रूप है 

वैसेही जब कोई बहुत बड़ा विख्यात ब्यक्ति अपने काम काज को अच्छे तारीके से करता है। तो वो सब लोग और जान कल्याण के लिए बहुत फायदेमंद साबित होता है। वही उलट यदि उनसे कोई गलत काम हो जाती है। जिसमे मन अच्छे से नहीं लगा हुआ होता है। तो उसका परिणाम उलट जाता है। जिससे लोगो का बड़ा नुकसान होता है। समाज का भी नुकसान होता है। जिसका खामियाजा उनसे जुड़े हुए सब को भुगतना पड़ता है। ये सब कर्म के ही रूप है।  

कोई भी काम करे सोच समझ कर करे

इसलिए कभी भी कोई भी काम करे। सोच समझ कर करे। भूल होने की स्थिति में किसी न किसी जानकर से मदत जरूर ले। ताकि गड़बड़ी का कोई नामोनिशान नही हो। अच्छा काम करे। मन लगाकर करे। मन लगाकर किया हुआ काम सफलदाई सिद्ध होती है। जिससे सबको अच्छा लगता है।  

गरीब स्थान मंदिर ३०० साल पुराना है दन्त कथाओ के अनुसार इस मंदिर के जगह पर एक समय ७ पीपल के पेड़ थे

  

गरीब स्थान मुजफ्फरपुर बिहार

(Garibsthan Muzaffarpur Bihar) 

मान्यताओ के अनुसार गरीब स्थान मनोकामना शिव जी का मंदिर है।

शिवलिंग यहाँ स्थापित है. बिहार के देव घर के नाम से भी प्रचलित है.

श्रावण महीने में पूरा महिना यहाँ भक्तो और श्रधालुओ का भीड़ लगा रहता है.

डाकबम और बोलबम वाले और कवर उठाने वाले शिव भक्त हाजीपुर, सोनपुर, पटना में स्थित गंगा नदी जो पहलेजा में पड़ता है। 

वहां से गंगा जल लेकर ७० किलोमीटर पैदल चल कर २४ घंटे में गरीब स्थान मुज़फ्फरपुर पहुचते है.

शिव भक्त बाबा को गंगा जल अर्पित करके खुद को बेहद खुशनुमा महशुशकरते है.   

गरीब स्थान मंदिर ३०० साल पुराना है 

दन्त कथाओ के अनुसार इस मंदिर के जगह पर एक समय ७ पीपल के पेड़ थे।

जिन्हें लोगो ने जब कटा तो इसमे से रक्त के जैसा कोई तरल लाल पदार्थ निकला था। 

बाद में जमीन के मालिक को बाबा स्वप्न में दर्शन दिए थे और बताये थे। 

यहाँ पर एक बड़ा शिवलिंग है.

खुदाई कर के शिवलिंग प्राप्त हुआ था।

तब वहा पर शिवलिंग के स्थानपर मंदिर का निर्माण ३ शताब्दी पहले गरीब स्थान मंदिर का निर्माण हुआ.

  गरीब स्थान mandir 

अन्य दन्त कथाओ के अनुसार बहूत समय पहले वह पर एक बरगद का पेड़ था जो अभी भी है. 

बाबा के मंदिर के ठीक सामने बाये तरफ बरगद का पेड़ है. वही बाबा के मंदिर स्थान के सामने एक नंदी भी विराजमान है. कहा जाता है की इस बरगद के पेड़ को जब जमींदार कटवा रहा था तो उसमे से लाल पानी निकला था जिसके बाद पेड की कटाई रोक दी गई. खुदाई के दौरान शिव लिंग को जमीन से प्राप्त हुआ जो की क्षत बिक्षत हालत में था. फिर जमींदार को बाबा स्वप्न में आये और बताये की चुकी मेरा खुदाई एक गरीब आदमी के द्वारा हुआ है इसलिए इसे गरीब नाथ के नाम से स्थापित करो. तब यहाँ मंदिर गरीब स्थान के नाम से मंदिर बना.

मनोकामना पूर्ण कने वाला बाबा के कृपया से बहूत लोगो के मनवांछित इच्छा पुरे हुए है. बिहार के मुजफ्फरपुर में देवघर के नाम से प्रचलित बाबा गरीब नाथ सबके मनोकामना पूर्ण करते है.

भक्ति के रस में डूबे शिव भक्त दूर दूर से गरीब स्थान मंदिर घुमने आते है.

साल भर यहाँ शिव भक्त का ताता लगा हुआ रहता है. शादी ब्याह में मुजफ्फरपुर के गाँव में रहने वाले लोग अपने बाल बच्चे के शादी ब्याह अवसर पर विशेष सत्यनारायण भगवन की पूजा यहाँ जरूर करते है. जिसके लिए मंदिर प्रशासन के द्वारा शेष व्यवस्था मदिर पहले और दुसरे मंजिल पर किया गया है. गरिब स्थान यहाँ के लोगो के विशेष आस्था रहने से मुजफ्फरपुर के नजदीक रहने वाले लोग यहाँ दिनभर में एक बार जरूर दर्शन करने आते है. 

गरीब स्थान देव घर जाने के लिए 

मुजफ्फरपुर स्टेशन से इस्लामपुर या कंपनी बाग़ होते हुए १.५ किलोमीटर पड़ता है. बेहद नजदीक है. दोनों रस्ते से जाया जा सकता है. 

खुद की कल्पना करो कल्पना के साम्राज्य में बहुत कुछ समाहित है जीवन के एक एक छन कल्पना से घिरा हुआ है

  

खुद की कल्पना करो

खुद की कल्पना के साम्राज्य में बहुत कुछ समाहित है।

जीवन के एक एक छन कल्पना से घिरा हुआ है।

जैसा सोचते है वैसा करते है। सोच कल्पना ही रूप है। कल्पना तो करना ही चाइये।

प्रगति का रास्ता तो कल्पना से ही खुलता है।

जब तक कल्पना नहीं करेंगे मन में उस चीज के लिए भावना नहीं उठेगी।

सांसारिक कल्पना के साथ साथ खुद की भी कल्पना करना चाइये।

सके बगैर ज्ञान अधुरा भी रह सकता है। 

सांसारिक कल्पना में सकारात्मक और नकारात्मक कल्पना दोनों ही होते है।

कुछ इच्छा पूर्ण होते है। कुछ इच्छा बाकी रह जाते है। यद्यपि कल्पना के अनुरूप कार्य भी करते है। सांसारिक कल्पना संतुलित है या असंतुलित इसका ज्ञान स्वयं के बारे में कल्पना करने से ही पता चलेगा। नहीं तो कल्पना कल्पनातीत भी हो सकता है। 

फिर वो इच्छा कभी भी पूरा नहीं हो पायेगा। जैसे संतुलन घर मेंबहारसमाज मेंलोगो के बिचकाम धंधा में बना के रखते है। वैसे ही कल्पना को भी संतुलित बनाकर रखना चाहिए। स्वयं के बारे में कल्पन करने से एक एक चीज के बारे में ज्ञान होगा। पता चलेगा की कहाँ पर क्या गलती हो रहा है। क्या सही चल रहा है।

किस ओर सक्रीय होना चाहिए। जो गलत हो रहा है।

कौन से कार्य गतिविधि को बंद कारना होगा। ये चीजें का एहसास खुद के बारे में कल्पना करने से ही होगा। जीवन में संतुलन बनाये रखने के साथ साथ अपने कल्पना को भी संतुलित रखना चाहिये।  

  खुद की कल्पना 

खाते के लेखनी और ज्ञान के लिए, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, पुस्त्पालन, सचिव अध्ययन और गणित का अच्छा ज्ञान बहूत जरूरी है

  

ज्ञान के क्षेत्र मे स्रोत के रूप में पाठ्यपुस्तक के चयन के लिए मानदंड.

 

ज्ञान के क्षेत्र मे किसी भी पुस्तक से शिक्षा मिल सकता है.

विद्वानों सिर्फ और सिर्फ ज्ञान के लिए ही लिखते है.

ताकि उनके अन्दर जो भी ज्ञान है वो दूसरो के लिए मिले.

ज्ञान आदान प्रदान के लिए भी होता है.

ऐसा नहीं की ज्ञान अपने पास है और वो दूसरो को दिया नहीं जाए तो वो ज्ञान किसी काम का नहीं होता है.

ज्ञान जब तक उजागर नहीं होगा, तब तक न हमें फायदा होगा और नहीं दूसरो को ही.

मान लीजिये की हमें कुछ करने या बनाने का ज्ञान है.

और हम दूसरो से बचा कर रखे है.

ताकि दूसरो को पता ही नहीं चले की हम क्या क्या कर सकते है.

तो फिर वो ज्ञान अपने लिए भी कोई काम का नहीं होगा.

 

अपने पास ज्ञान है और उसका उपयोग ही नहीं कर रहे है.

तो फिर वो किस काम का होगा. अच्छा ज्ञान होने के बाबजूद भी वो परिपक्व नहीं होगा.

अपने पास कोई ज्ञान छुपा कर रखेंगे तो न वो किसी वस्तु के निर्माण में काम आएगा.

न किसी को उसके उपयोग के बारे में पता चलेगा.

इसलिए अपने पास कोई भी ज्ञान है तो उसका उपयोग जरूर करना चाहिए.

शिक्षा और ज्ञान के लिए आध्यात्मिक पुस्तक, धार्मिक पुस्तक, प्रेरणा दायक पुस्तक जिसमे बड़े बड़े विद्वानों के विचार और ज्ञान लिखे होते है.

जो शिक्षा और ज्ञान को बढाता है.

निति नियम के लिए क़ानूनी पुस्तक, संवैधानिक पुस्तक, एतिहासिक पुस्तक.

जिसमे बड़े बड़े राजा और उनके विचारक के विचार और ज्ञान को समझने का मौका मलता है.

जिससे अपने दायरे और निति नियम के बारे में पता चलता है.

विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाले के लिए या ज्ञान हासिल करने के लिए रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, जिव विज्ञान और प्राणी विज्ञान के पुस्तके बहूत उपयोगी होते है.

 

लेखक के लिए भाषा का ज्ञान बहूत जरूरी है

कम से कम क्षेत्रीय भाषा, राज्य की भाषा, देश की भाषा, और अंतररास्ट्रीय का अच्छा ज्ञान आवाश्यक है तभी सभी शब्द का चयन लेखक सही ढंग से कर सकता है. निति नियम, ज्ञान, अच्छा विचार, बात करने का तरीका और सलीका बहूत जरूरी है. इसके लिए उचित पुस्तकों का अध्ययन बहूत जरूरी है. किसी भी भाषा में लेखनी के लिए आदर और अदब जरूर होना चाहिए.  

 

खाते के लेखनी और ज्ञान के क्षेत्र, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, पुस्त्पालन, सचिव अध्ययन और गणित का अच्छा ज्ञान बहूत जरूरी है. जिससे लेखनी का काम और उससे जुड़े हर प्रकार का ज्ञान इन विषयों के पुस्तकों से मिलता है और ज्ञान बढ़ता है.

 ज्ञान के क्षेत्र 

Wednesday, June 18, 2025

कौशल जहां जानना और सोचना समझना सफल प्रदर्शन के मुख्य निर्धारक हैं

  

कौशल ज्ञान सीखना दो प्रकार से प्रचलित है.

एक पुस्तक पढ़कर, लिखकर और विद्वान ब्यक्ति के ज्ञान से भरी बाते को सुनकर अपने ज्ञान को बढाया जाता है.

जिसे शिक्षा कहते है. दूसरा होता है अध्ययन जिसमे लिखने पढने के साथ प्रयोग और कुछ करने की भूमिका हो ज्ञान सीखना कहते है.

वास्तविक ज्ञान में मानव जीवन में जब तक कुछ करने की क्षमता नहीं होगा.

तब तक वो एक सफल इन्सान नहीं बनेगा.

प्रयोग और वस्तु निर्माण ही उसे उपार्जन का माध्यम दे सकता है.

सेवा और वस्तु के निर्माण में जब योग्यता बढ़ता है तो उसे कौशल कहते है.

कौशल एक पूर्ण ज्ञान हो सकता है, वही तक जहा तक वो वस्तु सफल तरीके से निर्मित हो.

बारिकियत और गुणवत्ता का कोई अंत नहीं होता है.

ऐसे कौशल वाले महान पुरुस होते है. कौशल हर क्षेत्र में होता है.

विशेषता और गुणवत्ता बढ़ने से उसका स्तर उचा होता है. यही कौशल है.

 

कौशल जहां जानना और सोचना समझना सफल प्रदर्शन के मुख्य निर्धारक हैं.

ज्ञान अनंत है. सोचने और समझने से ज्ञान बढ़ता है.

इससे कुछ निर्माण करते है तो वो उसके कौशल का पहचान बनता है.

किसी विषय वस्तु के अच्छी पहचान और हरेक पहलू को दर्शाना जिससे देखने वाले को उसके बारिकियत का अंदाजा लगा सके तो उसे विशिस्थ कौशल कहते है.

जिसके लिए परिश्रमी व्यक्ति दिन-रात मेहनत कर के कुछ सीखते है और अपने कार्य में पारंगत होते है.

तभी गुणवत्तापूर्ण कौशल जीवन में स्थापित होता है.

इसके लिए मन की एकाग्रता है के साथ जानने, सोचने, समझने का अच्छा ज्ञान होना अतिआवश्यक है.

तभी अपने कौशल के प्रदर्शन को लोगो के बिच प्रदर्शित कर सकते है. यही कौशल का ज्ञान है.  

 

सह छात्रों की सोच कौशल ज्ञान सीखना

विद्याथी एक समूह में तभी होते है जब सबके विचार और सोच एक जैसे होते है. जब एक साथ कई विद्याथी कौशल ज्ञान सीखना और शिक्षा के बारे में विचार विमर्स करते है, तो सभी के बात विचार में जो सहमति बनता है वो उत्क्रिस्थ होता है. जो सभी के लिए गुणकारक भी होता है. इससे भी कौशल का निर्माण होता है. सोच भी एक ज्ञान है. जब कई लोग के विचार से एक मजबूत बिंदु मिलता है वही सटीक निश्कर्ष निकालता है. इसलिए सह छात्रों की सोच कौशल का काम करता है.

 

  कौशल ज्ञान सीखना 

कल्पनाशील गुण सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के सोच समझ और मन की क्रियाओ पर पूर्ण आधारित होता है जैसा मन का भाव सोच समझ भी वैसा ही प्रभाव देता है

  

क्या कल्पनाशील एक सकारात्मक या नकारात्मक गुण है?

कल्पनाशील गुण मे सोच समझ और मन की क्रियाओ पर पूर्ण आधारित होता है। जैसा मन का भाव होता है। सोच समझ भी वैसा ही प्रभाव देता है। जिसका परिणाम कल्पना पर पड़ता है। कल्पना आतंरिक मन का भाव होता है। जिसको बाहरी मन के भाव को कल्पना के माध्यम से अंतर्मन को संकेत देता है। कल्पना का प्रभाव बाहरी मन पर पड़ता है। कल्पना के अनुसार बाहरी मन कार्य करता है। कल्पना सकारात्मक हो रहा है या नकारात्मक मन के क्रियाओ पर आधारित होता है। मनुष्य बाहरी मन सचेत मन में रहता है।

कल्पनाशील गुण सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के होते है। 

 सचेत मन सक्रीय होता है। बाहर के समस्त घटनाओ का प्रभाव बाहरी सचेत मन पर पड़ता है। मनुष्य के जीवन में प्रभाव ज्ञान के अनुसार पड़ता है। जैसा मनुष्य का ज्ञान होता है, जो उसका बाहरी सचेत मन स्वीकार करता है, उसी के अनुरूप उसका भाव हो जाता है। समय के अनुसार सकारात्मक या नकारात्मक भाव दोनों हो सकता है। बाहरी सचेत मन के भाव से मन कार्य करता है। कल्पना गतिशील कार्य को बढ़ने का कार्य करता है।

  कल्पनाशील गुण 

जब ब्यक्ति कल्पना करता है तो बाहरी मन का प्रभाव कल्पना पर भी पड़ता है। जिससे कल्पना में रुकावट या बारम्बार विषय का बदलना मन को न अच्छा लगनेवाला विषय सामने आना। इस प्रकार के बहूत से प्रभाव कल्पना में बारम्बार होता है। जो की नकारात्मक गुण है। कल्पना के दौरान हो रहे घटना से सचेत रहने वाला ब्यक्ति जिसके अन्दर ज्ञान होता है। क्या सही क्या गलत है? तो हो रहे घटना से सचेत रहकर घटना को देखते हुए आगे बढ़ता जाता है। उसे पता है क्या स्वीकार करना है। और क्या छोड़ते जाना है।

संतुलित और सकारात्मक कल्पना होता है।

ऐसे ब्यक्ति के बाहरी घटना से मन को सचेत कर के रखते है। कल्पना को साफ और संतुलित रखने के लिए मन को संतुलित होना अति आवश्यक है। चाहे बाहरी मन हो या अंतर मन सक्रीय दोनों होते है, कार्य तभी सफल होता है जब बाहरी मन और अंतर मन एक जैसा होते है। तो उस कार्य में कोई रुकावट नहीं होता है। निरंतर चलता रहता है। अंतर्मन और बाहरी मन का असंतुलन कार्य में रुकावट पैदा करता है।

कल्पना अंतर मन और बाहरी मन का संपर्क सूत्र जो सोच से उत्पन्न होता है। जिससे दोनों मन को नियंत्रित करने का प्रयाश जो क्रिया और घटना के अनुसार होता है। इसलिए ज्ञान के माध्यम से बाहरी मन को सचेत रखा जाता है। जिससे कल्पना में कोई रुकावट या बाधा न आये। ज्ञान से बाहरी मन को नियंत्रित किया जा सकता है। इसलिए मनुष्य को सदा ज्ञान के तरफ बढ़ना चाहिए। इस प्रकार से कल्पनाशील एक सकारात्मक और नकारात्मक दोनों गुण हो सकते है।  

कल्पनाशील एक सकारात्मक या नकारात्मक गुण है? कल्पना सकारात्मक गुण है या नकारात्मक सोच समझकर अनुमान लगा सकते है

  

कल्पना जीवन के उत्थान और मुलभुत आवश्यकता को पूरा करने और जीवन में अपने इच्छा स्थापित करने के लिए अतिआवश्यक है।

कल्पनाशील सकारात्मक या नकारात्मक गुण है? शौक, इच्छा को सोच समझ में सामिल कर के मन को एकाग्र करके कल्पना किया जाता है। कल्पना के जरिये अंतर मन में शौक, इच्छा को जीवन में स्थापित करना कल्पना है। किसी कार्य ब्यवस्था के पूर्वानुमान का कल्पना कर सकते है। एक ब्यवस्था जिसमे कार्य का अनुमान कल्पना में कर सकते है। जीवन का अवलोकन कलना में कर सकते है। जीवन के सपने को कल्पना में देख सकते है। मन के इच्छा का कल्पना में विचार कर सकते है। वह हरेक विषय वस्तु जो भविष्य में चाहिए उसके लिए कल्पना कर सकते है। जीवन के विकास के बारे में कल्पना कर सकते है। कार्य व्यवस्था के उन्नति का कल्पना कर सकते है।  

क्या कल्पनाशील एक सकारात्मक या नकारात्मक गुण है?

कल्पना सकारात्मक गुण है या नकारात्मक सोच समझकर अनुमान लगा सकते है। वह हरेक विषय वस्तु जो जीवन के लिए उपयोगी होने के साथ जरूरी है। सकारात्मक कल्पना कर सकते है। समाज में कर्म के उद्देश्य से निस्वार्थ भाव से कुछ करने की कल्पना कर रहे है तो सकारात्मक कल्पना है। जीवन के आध्यात्मिक विकाश के लिए सकारात्मक कल्पना ही करना चाहिए। दुखी गरीब के लिए कुछ करने की कल्पना सकारात्मक कल्पना है। जीवन में संतुलन बनाये रखने के लिए घटित कल्पना सकारात्मक कल्पना है। सिधान्त्वादी ब्यक्ति सकारात्मक कल्पना करने पर महत्त्व देते है। अनैतिक कल्पना नकारात्मक ही होते है। स्वयं के स्वार्थ के लिए किया जाने वाला कल्पना नकारात्मक है। इस कारण से समय और पात्र के अनुसार कल्पनाशील एक सकारात्मक या नकारात्मक गुण दोनों होते है।

जीवन के कल्पना के उपकरण उदाहरण

कल्पना अंतर मन में घटिक होने वाली घटना है। कल्पना के घटित होने के लिए एकाग्रता मन और बुध्दि का ही इस्तेमाल है। इसे ही कल्पना के उपकरण का उदाहरण दे सकते है। वास्तविक उदाहरण के तौर पर कोई सुरीली संगीत सुन सकते है। एकाग्रता के लिए जो कल्पना में सहायक है। लेकिन कल्पना के दौरान संगीत संगीत भी कल्पना में रुकावट उत्पन्न कर सकता है। एकाग्रता ही मुख्य जरिया है। कल्पना को घटित होने के लिए मन और बुध्दि सहायक है।     

कल्पना का आधुनिक तरीका क्या है?

समय और पात्र के अनुसार कल्पना घटित होता है। जैसा बाहरी मन बुद्धि का भाव होगा। कल्पना वैसा ही घटित होगा। आधुनिक दौर में कल्पना भी आधुनिक विषय वस्तु के प्राप्ति के लिए घटित होगा। एकाग्रता का मतलब कोई एक जैसा भाव होता है। आधुनिक कल्पना के तरीका में भी एक जैसा एकाग्रता का भाव होना चाहिए। तभी कल्पना घटित होगा। सब कुछ सकारात्मक होगा।    

कल्पना से परे होने का अर्थ जीवन सकारात्मक कल्पना से भरा हुआ हो सोच समझ कभी भी कल्पना से परे नहीं होना चाहिये जीवन में सोच और कल्पना संतुलित हो तो बहुत अच्छा है

  

आपकी कल्पना से परे

कल्पना से परे होने का अर्थ

जीवन सकारात्मक कल्पना से भरा हुआ होना ही चाहिये।

सोच समझ कभी भी कल्पना से परे नहीं होना चाहिये।

जीवन में सोच और कल्पना संतुलित हो तो बहुत अच्छा है।

इससे जीवन में संतुलन बना हुआ रहता है।

अपनी कल्पना से परे होने का मतलब जीवन अपनी जगह है।  

कल्पना सातवे स्थान पर विचरण कर रहा होता है।

मन का बहुत ज्यादा चलना भी अपनी कल्पना से परे होता है।

अपनी कल्पना से परे सोचने से मन बेलगाम घोडा हो जाता है।

जीवन में जो कुछ चल रहा होता है। 

वास्तविक जीवन के संसार में वो मंद पड़ जाता है।

जहाँ मन को अपने वास्तविक संसार में होना चाहिये।

जो सक्रीय चल रहा होता है।

तब मन अपने ही कल्पना के संसार में विचरण कर रहा होता है।

इससे वास्तविक जीवन का संसार बिगड़ने लगता है।

जो कल्पना में चल रहा होता है।

कोई बाहरी सक्रियता नहीं होने के वजह से मन बेलाग हो जाता है।

सक्रीय कार्य सुस्त पड़ जाता है।

बात वही हुई जरूरत से ज्यादा खाना खाने से शरीर और मन दोनों में थकान लगता है।

कोई काम करने के काविल नहीं होता है।

तबियत ख़राब जैसा लगने लगता है।

जो काम कर रहे होते है। 

उसे भी तबियत ठीक होने तक छोड़ना पड़ता है।

आमतौर पर जायदा खाना खाने से जो तबियत बिगड़ता है।

जल्दी ठीक हो जाता है। पर मन के ख़राब होने पर जीवन पर प्रभाव पड़ता है।

आपकी कल्पना से परे होने पर मन वास्तव में ख़राब होता जाता है। 

आने मन के ख़राब होना से किसी कार्य में मन नहीं लगना है।  

मन में उदाशी होनाएकाग्रता भंग होनाबिना कारन के गुस्सा आनाकिसी से बात नहीं करनाहमेशा तनाव में रहनालोगो का बात अच्छा नहीं लगना।

मन के ख़राब होने से इनमे से कोई भी प्रभाव या कई प्रभाव जीवन पर हमेशा के लिए पड़ है।

हर शारीरक विमारी का इलाज डॉक्टर के पास है।

पर मन के विमारी का इलाज किसी भी डॉक्टर के पास नहीं है।

इसलिए आपकी कल्पना से परे कभी नहीं जाना चाहिये।

कल्पना का अर्थ

आपकी कल्पना से परे होने अच्छा है।

आपकी कल्पना से परे जीवन में सोच, समझ, बुध्दी, विवेक में संतुलन होना बहूत जरूरी है।

जीवन वाही अच्छा है। जिसमे सब जरूरी क्रिया कलाप को ही लोग महत्त्व दे।

जरूरत से जायदा सोचना या कुछ करना यदि जीवन के विकास में कोई करी जोर रहा है तो वो सकारात्मक है।

बिना मतलब के कार्य या किसी से मिलना जुलना बिलकुल भी ठीक नहीं है।

आपकी कल्पना से परे काम करने से या किसी से बात करने से व्यवस्था और मर्यादा दोनों बिगड़ता है।

मन को गहरा ठेस पहुचता है। इसलिए जीवन में संतुलन बनाये रखे खुश रहे।  

मन के सोच भावानये के साथ 

व्यक्ति हर पल अपने मन में कुछ न कुछ सोच रहा होता है.

पुराणी यादें को याद कर के कभी खुश होता है तो कभी दुखी होता है.

वर्त्तमान में अपने उन्नति और जीवन में आगे बढ़ने के लिए सोचता है.

भविष्य की चिंता में कुछ बचाने के लिए सोचता है.

कभी सोचता है की कल हम क्या थे और हम क्या है?

ये भी सोचता है की आने वाले समय में हम कैसे होने.

व्यक्ति चाहे कुछ भी करे पर मिले हुए एकाकी समय में सोचना लगातार चलते रहता है.

 

व्यक्ति के मन के सोच कभी कभी सातवे आसमान पर भी चला जाता है.

मन की कलपनाये के साथ रहने वाला व्यक्ति का सोच कभी कभी सोच से पड़े होकर अपने मार्ग से भी अलग हो कर सोचता है.

ये भी मन के कल्पना की कला है. दुखी और निराश इन्शान जब अपने जीवन में सफल नहीं हो पता है

तो वो उस उर सोचने लग जाता है जो कभी जीवन में हो ही नहीं सकता है.

वास्तविकता तो ये है की ऐसे सोच से उसको थोड़े समय के लिए अपने दुखी मन के भाव से अलग हो तो जाता है.

कल्पना के पृष्ठभूमि पर गलत और कल्पना से परे सोच भले उसे कुछ समय के लिए दिलशा दिला दे पर वास्तविक जीवन वो सोच सबसे बुरे पहलू को भविष्य में जन्म देता है.

परिणाम स्वरुप वो जो सोचता है कभी करने का प्रयाश नहीं करता है.

जिससे खुशीके बिच में निराशा अपना जगह बनाने लग जाता है.

जो अपने जीवन के पृष्ठभूमि पर कर रहा होता है उसमे सफलता से दूर होता जाता है.

आने वाले समय समय में जब अपने जीवन के पृष्ठभूमि पर जब निराश होता है.

तो वही गलत और कल्पना से परे सोच उसके लिए दुःखदाई बन जाता है.

अनैतिक सोच, गलत और कल्पना से परे सोच की पृष्ठभूमि गुप्त होता है

व्यक्ति कभी दुसरे को बता नहीं पता है.

ऐसे ब्यक्ति गुप्त रूप से गलत राह पकड़ कर अपने जीवन को बर्बाद भी कर लेता है.

इसका परिणाम उसके घर वाले पत्नी और बच्चे को ज्यादा भुगतना पड़ता है.

अक्सर लोग गलत कार्य के लिए गुप्त मार्ग क प्रयोग करते है.

जिससे जानकर और समझदार लोगो को इसकी कभी भनक नहीं लगता है की व्यक्ति क्या कर रहा है?

गलत कार्य के वजह से वो लोगो से दुरी रखने लग जाता है.

समाज से भी भिन्न रहने लग जाता है.

जिससे समाज के लोगो के बिच उसके पहचान मिटने लग जाते और अनजान बनकर रहने लग जाता है.

कहने का मतलब की कल्पना से परे सोच कभी पूर्णता की और नहीं जाता है.

इस मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति अपने पहचान को छुपाने से सब जगह बचता रहता है.

जिससे कारन इनके कार्य और मार्ग सिमित होते है.

पर जिस दिन इनके कार्य का बखान उजागर होता है.

तो परिणाम समाज और शासन से भी इन्हें ही भुगतना होता है.

कल्पना से परे सोच जरूरी नहीं की गलत हो.

कल्पना से परे व्यक्ति कभी उस मार्ग पर चलने का प्रयाश नहीं करना है जो एक दिन निराशा का कारन ही बनता है.

जो सिर्फ मन को ही दुखी करता है साथ में सफलता का तो कोई अर्थ ही नहीं है जहा प्रयाश ही नहीं हुआ तो वहा सफलता कहा हो सकता है.

कहने का मतलब की कल्पना से परे वो चीजे है.

जिसको व्यक्ति कही प्राप्त करने का प्रयाश ही नहीं करता है.

कल्पना में रहकर मन को झूठी ख़ुशी देखर प्रसन्न तो हो जाता है पर उसका कोई पृष्ठभूमि नहीं बन पाता है.

जिसका परिणाम सक्रीय जीवन पर भी पड़ता है वहा सफलता कम हो जाते है.

सोचता कुछ और है करता कुछ और है तो परिणाम भी तो भिन्न ही निकालेंगे.

ऐसे में तो वास्तविक जीवन में निराशा आना तय ही है.   

  कल्पना से परे

कल्पना में हर किसी को अपने अपने अनुसार से जिंदगी जीने का मौका किसी का समय आज तो किसी का बाद में अच्छा समय हर किसी के जीवन में जरूर नसीब होता है

  

भविष्य की कल्पना

भविष्य की कल्पना में हर किसी को अपने अपने अनुसार से जिंदगी जीने का मौका मिलता है।

किसी का समय आज आता है।

तो किसी का बाद में आता है।

पर अच्छा समय हर किसी के जीवन में जरूर नसीब होता है।

यही जीवन का इस संसार में नियम है।

हा कभी कवाल मनुष्य को अपने अपने अनुसार से दुःख का भी सामना करना पड़ता है।

भले उसमे उसकी कोई गलती हो या न हो।

ये जरूरी नहीं हम अच्छा कर रहे है।

तो हमेशा हमारे साथ अच्छा ही होगा।

पर जीवन में कुछ बुरा होता है।

तो उसमे भी संसार का ही नियम है।

जब तक मनुष्य उस दौर से नहीं गुजरेगा।

तब तक उसका ज्ञान अधूरा ही रहता है।

जब मनुष्य विपरीत दौर से गुजरता है।

उसे और अच्छा ज्ञान और तजुर्बा होता है।

भविष्य की कल्पना जीवन के उत्थान के लिए सब प्रकार के ज्ञान के लिए ही होता है।

मनुष्य जीवन सुख दुःख से घिरा रहता है। यही सुख दुःख के मिश्रण में जीवन को जीते हुए। जो अपने मुकाम तक पहुँचता है। ये क्या हैये ज्ञान ही है। जो ब्यक्ति सुख दुःख का सामना करते हुए अपने जीवन में आगे बढ़ता है। वही जीवन का सच्चा सारथी होता है। सबके अपने अपने समय के बात करे तो सब को अपना अपना समय मिलता है। फिर बाद में दुसरो को जिसके पास जैसा ज्ञान है। जैसे जैसे ज्ञान के श्रेणी में चढ़ता है। प्रखर होता जाता है।

कभी किसी को ऐसा नहीं सोचना चाहिए। मेरा समय आता ही नहीं है। हर किसी को हर चीज नहीं प्राप्त होता है। क्योकि वो प्राप्त कर के क्या करेगा। एक न एक दिन उसे अपने मुकाम पे ही जाना है। जो उससे बचता है। उसके आश्रितों को जाता है। जिसका वो भोग विलाश करता है। जिसको अपने पूर्वज से मिलता है। अक्सर वो कुछ नहीं कर पता है। क्योकि उसके पास सबकुछ होता है।जिसमें जिंदगी के थपेड़े को जिसने नहीं झेला। भला उसको क्या ज्ञान होगा। ज्ञान समय और अवस्था के साथ की मिलता है। क्योकि सुख दुःख तो उसको भी भोगना है। क्योंकि सुख में सरे एहसास नहीं होते है। दुःख में एक एक अनुभव का एहसास होता है। यही जीवन का ज्ञान है। इसी में जीवन के ज्ञान का रास्ता निकलता रहता है। जीवन के कल्पना में ज्ञान प्राप्त करते रहते है।

   भविष्य की कल्पना 

कल्पना में जब तक कोई मॉडल या प्रतिबिम्ब नही हो तो कल्पना घटित ही नहीं हो सकता तो कल्पना एक घटना ही हो सकता है

  

कल्पना मे मॉडल का प्रयोग किस प्रकार  किया जाता है ?

अपने कल्पना में मॉडल प्रयोग कल्पना में जब तक कोई मॉडल या प्रतिबिम्ब नही हो तो कल्पना घटित ही नहीं हो सकता है। कल्पना एक घटना ही हो सकता है। जब तक की कल्पना स्वतः घटित नहीं होता है। तब तक कल्पना को कल्पना नहीं कह सकते है। जब तक कल्पना में स्वतः प्रतिबिम्ब के धुन्दले चित्र नजर नहीं आ जाते है। कल्पना को प्रभावशाली बनाने के लिए कल्पना के मॉडल या प्रतिबिम्ब के अनुरूप कार्य सुरु करना पड़ता है। कल्पना के एक एक इकाइयों के अनुसार जीवन में कार्य को आरंभ करना पड़ता है। जब तक की कही न कही से कुछ न कुछ सुरुआत नहीं करेंगे। तब तक कल्पना का कोई मतलब ही नहीं रहेगा। फिर कल्पना निरर्थक ही साबित होगा।

कल्पना जब कभी भी घटित होता है। तब कल्पना मन को क्रियाशीलता के तरफ प्रेरित करता है।

सकारात्मक कल्पना के अनुरूप मन को सक्रिय होना बहूत आवश्यक है। कल्पना पूर्वानुमान घटना है। क्रियाशीलता वर्तमान में घटित होने वाला घटना है। कार्य की सक्रियता कल्पना का परिणाम है। कल्पना घटित होता है तो उससे जुड़े हुए कार्य का पृष्ठभूमि तयार होता है। सोच कल्पना को घटित करता है, इसलिए जीवन के विकाश में सकारात्मक सोच होना ही चाहिए, सोचना मन का प्रकृति है, सोच का आरंभ बाहरी मन में विवेक बुध्दी से होता है, सोच यदि सकारात्मक है। तो अंतर मन काल्पन के रूप में घटित करता है। सोच के लिए प्रयाश करना पर सकता है।

कल्पना में मॉडल प्रयोग कल्पना में पूर्वानुमान को देखते ही मन वर्त्तमान में महशुश करता है।

सब कुछ ठीक रहा तो कल्पना गतिशील हो जाता है। मन को प्रतिबिम्ब दिखाना शुरु कर देता है। कार्य के सक्रियता कल्पना के प्रतिबिम्ब मॉडल के अनुसार काम करना सुरु कर देता है। इसलिए सफलता के लिए सोच और काल्पन से ज्यादा कार्य में सक्रियता अतिअवश्यक है।      

कल्पना नाम की राशि क्या है? राशी जन्म कुंडली का एक भाग है. जिन्हें चन्द्र कुंडली में देखा जाता है. सूर्य कुंडली में लग्न देखा जाता है

  

लोगों की कल्पना के लिए कौन से विषय सहायक हैं?

 

कल्पना जीवन में उतना ही जरूरी है जितना लोग तरक्की करना चाह रहा है. 

लोगों की कल्पना किसी विषय वस्तु के निर्माण के लिए पृष्ठभूमि है.

जिसपर विचार विमर्श करते है स्वतः में वही कल्पना है.

विषय वस्तु के सोच और कुछ करने के पहले जो कायदे का निर्माण करते है वह सोच भी एक कल्पना ही है.

जिसे अपने कार्य और व्यस्था बनाने में मदद मिलता है.

लोगों की कल्पना के लिए सकारात्मक सोच से बड़ा विषय कोई नहीं हो सकता है.

इसके अलावा जिस कार्य को कर रहे है या व्यस्त कार्य के बारे में खाली समय में सोच विचार कल्पना होना ही चाहिए.

सोच से विचार उत्पन्न होते है. विचार के गहराई का बोध कल्पना से है.

वास्तव में सोच और विचार से बाहरी मन प्रभावित होता है.

कल्पना अंतर मन के गहराई तक प्रवेश करता है.

सोच विचार का निचोर ही कल्पना है. 

 

कल्पना नाम की राशि क्या है?

राशी जन्म कुंडली का एक भाग है. जिन्हें चन्द्र कुंडली में देखा जाता है.

सूर्य कुंडली में लग्न देखा जाता है. वैसे कहा जाये तो भाग्य को चन्द्र कुंडली में देखते है.

जिससे अपने भविष्य के बारे में पता चलता है.

लग्न कुंडली में अपने कर्म को देखते है.

राशी के अनुसार अपना कर्म क्या है जो जीवन में कर्मफल प्राप्त है. देखा जाये तो राशी में लग्न के देखने से अपने जीवन का ज्ञान मिलता है. आशावादी लोग चन्द्र कुंडली देखते जिन्हें अपने भाग्य पर भरोषा होता है. संसार में दोनों ही प्रकार के लोग होते है. जिनके लिए चन्द्र कुंडली और सूर्य कुंडली बना है. जिन्हें अपने कर्म पर विस्वास है, वो भविष्य की चिंता नहीं करते है. अपने कर्म में व्यस्त रहते है. जिससे वे उन्नति करते है. वे कुंडली देखना जरूरी नहीं समझते है. भविष्य और भाग्य के चिंता करने वाले लोग अपने कुंडली के हरेक पहलू पर खोज करते है. जिनके लिए ज्योतिषी से विचार विमर्स करते है.

कल्पना नाम के लिए राशी मिथुन है

 

कल्पना के उपकरण उदाहरण

अपने कल्पना के लिए या कल्पना करने के लिए कोई उपकरण की आवश्यकता नहीं है. कल्पना, बुद्धि, विवेक, सोच, समझ जागरूकता, अच्छा ज्ञान, सकारात्मक दृस्तिकोन जैसे गुण पर आधारित है. कल्पना मन और दिमाग की उपज है. ये कोई उपकरण नहीं है. ये मनुष्य के गुण है.

 लोगों की कल्पना 

कल्पना जीवन में इच्छा का विस्तार करना कल्पना है इच्छा संगठित मन में गहन सकारात्मक विचार संग्रह करना

  

सकारात्मक कल्पना का अर्थ

कल्पना जीवन में अपने सही और संतुलित इच्छा को विस्तार करने के महत्त्व को सकारात्मक कल्पना का अर्थ कहते है।

इच्छा को संगठित करके मन में गहन सकारात्मक विचार संग्रह करना।

मन के इच्छा को पूर्ण करने के दिशा में जाना।

इच्छा पूर्ण करना कल्पना का अर्थ कहते है। कल्पना सिर्फ करना ही नहीं होता है।

रचनात्मक कल्पना को साकार करने के लिए परिश्रम भी करना पड़ता है।

सकारात्मक सोच से रचनात्मक कल्पना पूर्ण होता है।

मन के सकारात्मक इच्छा पूर्ण होता है।

कल्पना का मुख्य उद्देश्य सकारात्मक इच्छा को संगठित करके मन में इच्छा पूर्ण करने के लिए सकारात्मक दिशा में कार्य किया जाता है।

उठो मन अपने सकारात्मक इच्छा को पूर्ण करने की दिशा में आगे बढ़ो। मन को सक्रीय किया जाता है।

सकारात्मक इच्छा को पूर्ण करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं करना पड़ता है।

चुकी सकारात्मक इच्छा के कल्पना संतुलित होते है। जो समय, पात्र और योग्यता के अनुसार उचित होते है।

कल्पना का भाव सकारात्मक और संतुलित होने से मन में सकारात्मक इच्छा सक्रय हो जाते है।

कोई रूकावट या व्यवधान नहीं आता है।

कर्म का भाव सकारात्मक इच्छा को पूर्ण करने की दिशा में आगे बढ़ जाता है।

कल्पना में इच्छा सत्कर्म से ही ज़ुरा होना चाहिए।

वास्तविक मन का भाव सकारात्मक ही होता है।

मन में चलने वाले हर तरह के इच्छा पर भरोसा नहीं कर सकते है।

इच्छा पर बाहरी मन का छाप होता है।

इसलिए इच्छा सकारात्मक, नकात्मक या मिश्रित भी हो सकता है।

सक्रिय मन के लिए कल्पना का अर्थ मन में उठाने वाला इच्छा को मन के भाव से सक्रीय करना ही कल्पना होता है।

 

   सकारात्मक कल्पना का अर्थ 

कल्पना के जरिये ज्ञान को अपने जीवन में स्थापित किया जाता है मन लीजिये की पढाई लिखाई कर रहे है परीक्षा देना पढाई लिखाई का मुख्या उद्देश होता है

  

कल्पना ज्ञान से बेहतर है 

कल्पना ज्ञान से बेहतर ही है ज्ञान हासिल करना ही चाहिये 

ज्ञान से ही सब कार्य होते है। जब तक ज्ञान नहीं होगा।

तब तक कोई कम को पूरा भी नहीं कर सकते है।

चाहे छोटा हो या बड़ा काम सब ज्ञान से जुड़ा हुआ है।

पढाई लिखाई से ज्ञान मिलता है।

खेलने कूदने से भी बहूत ज्ञान मिलता है। शारीर चुस्त दुरुस्त रहता है।

मन साफ रहता है। शारीर के तंत्रिका तंत्र सक्रीय रहते है।

खेलने कूदने से शारीर में चुस्ती फुर्ती मिलता है।

कही न कही खेलने कूदने से ज्ञान ही मिलता है।

भले वो भौतिक ज्ञान है। सबसे पहले शारीर होता है।

शरीर से ही सब कुछ जुड़ा हुआ है। ज्ञान ही है।

समाज में लोगो से बात विचार करने से भी नए नए ज्ञान मिलता है।

क्या अच्छा है? क्या बुरा है? अछे बुरे का ज्ञान होता है।

घर में संस्कार का ज्ञान मिलता है। आदर भाव का ज्ञान मिलता है।

माता बच्चे को प्यार दुलार कर के अच्छे बात सिखाते है। ये भी ज्ञान ही है।

 

कल्पना ज्ञान से बेहतर क्यों है? सवाल बहूत अच्छा है 

कल्पना के जरिये ज्ञान को अपने जीवन में स्थापित किया जाता है।

मन लीजिये की पढाई लिखाई कर रहे है।

परीक्षा देना पढाई लिखाई का मुख्या उद्देश होता है।

जिससे की आगे के कक्षा में स्थान मिले। अच्छा अंक मिले।

इसके लिए विषय के पाठ को याद करना होता है।

जब विषय के पाठ याद नहीं होता है।

तब बारम्बार अपने पाठ को पढ़ा जाता है।

अपने मन में विषय के पाठ को याद करने का प्रयाश किया जाता है।

याद करने का प्रयास करना कल्पना ही है। जब कल्पना करते है।

तब विषय के पाठ के शब्द मन में उभरने लगते है।

क्योकि मन विषय के पाठ को कई बात पढ़ चूका होता है।

तब कल्पना कर के याद को ताजा किया जाता है। ज्ञान एक बार में मिल जाता है।

जब तक ज्ञान को तजा नहीं करेंगे।

तब तक ज्ञान कोई कम का नही है। ज्ञान है।

तो ज्ञान सक्रीय होना चाहिए। जब तक ज्ञान सक्रीय नहीं होगा।

तब तक ज्ञान किस काम का होगा।

ज्ञान को सक्रीय करने के लिए कल्पना करना ही होगा।

इसलिए कल्पना ज्ञान से बेहतर है।        

  कल्पना ज्ञान से बेहतर 

कल्पना का आधुनिक तरीका का प्रभाव से मन मस्तिष्क के काम करने का रफ़्तार बढ़ जाता है जैसा सोच और समझ सक्रिय होता है परिणाम वैसा ही मिलता है

  

कल्पना का आधुनिक तरीका क्या है?

अपने जीवन के कल्पना का आधुनिक तरीका जीवन के विकाश के कल्पना के लिए है.आधुनिक समय में कल्पना का उतना ही महत्त्व है.जितना पौराणिक समय में हुआ करता था. सन्दर्भ तो सच्ची भावना और सकारात्मक विचार धारना पर निर्भर करता है.

कल्पना करना आधुनिक समय में जो ब्यक्ति अपने काम काज के प्रति और अपने कर्तब्य के प्रति जिम्मेवार है।

उनके लिए कल्पना करना आसान है। पहले के मुकाबले कल्पना करना और खुद को प्रगतिशील विचार्धारना में रखना पहले से आसान जरूर है। कर्तब्य और कार्य के विकाश के कल्पना में आज के समय में एक सबसे बड़ा समस्या है रोजगारकम धंदा को प्रगति के रास्ते पर लाना। मनुष्य दिन प्रति दिन अपने काम धंदा में तरक्की के लिए नए नए रास्ते निकलते रहते है। और प्रयोग करते रहते है। सबको पता है की मार्केट में खड़ा रहने के लिए और अपने बुनियाद को मजबूत करने के लिए दिन रात मेहनत करन पड़ता है। मेहनत कभी ब्यर्थ नहीं जाता है। जैसा सोच और कार्य होता है। परिणाम वैसा ही मिलता है। उससे बड़ा समस्या तब होता है। जब मार्केट में खड़ा रहने के लिए प्रतियोगिता के दौर में सब एक दुसरे से आगे बढ़ने में सक्रीय होते है। अब सवाल उठता है? कल्पना का आधुनिक तरीका क्या है 

कल्पना का आधुनिक तरीका कल्पनाएकाग्रतासोचसमझविवेकबुध्दीज्ञान सब सक्रीय गुण है। एक दुसरे से गहरा संबंध रखते है।

किसी चीज के प्राप्ति के लिए सक्रीय हो कर संघर्ष करने से सक्रीय गुण जरूर मददगार होते है। किसी भी चीज के प्राप्ति के लिए सक्रियता न सिर्फ नकारात्मक प्रभाव को कम करता है। साथ में सजगता को भी बढ़ता है। एकाग्रता को कायम रखता है। सक्रियता सकारात्मक प्रभाव है। मनुष्य अपने कार्य और कर्तब्य के प्रति जीतना सक्रीय रहेगा सफलता उतना ही साथ देगा। सक्रीय कल्पना को साकार करने के लिए सोच सबसे पहले सक्रीय होना चाहिए। जब जरूरत निश्चित और महत्वपूर्ण होता है। तब सोच स्वतः ही सक्रीय हो जाता है।

कल्पना का आधुनिक तरीका मे सक्रीय सोच सिर्फ मन को एकाग्र ही नहीं रखता है। मन पर नियंत्रण भी रखता है।

जरूरत जब महत्वपूर्ण होता है। तब कार्य के हर रस्ते पर प्रतियोगिता हो तो सक्रियता बढ़ाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बच जाता है। प्रतियोगिता में इस बात का हर पल एहसास रहता है। सफलता हासिल करना है। तो जीतोर मेहनत करना ही पड़ेगा। और दूसरो से आगे निकलना है।जब तक सक्रीय नहीं होने। तब तक सफलता बहूत दूर है। यही कारण है की आधुनिक समय में कल्पना करना आसान है।

पौरानिक समय के अनुरूपजीवन में कमी जरूरत को दर्शाता है।

जरूरत सक्रियता बढ़ता है। सक्रियता कर्तब्य और कार्य को बढ़ता है। वैसे ही सक्रीय सोच हो तो कल्पना भी सक्रीय हो जाता है। जिसके प्रभाव से मन मस्तिष्क के काम करने का रफ़्तार बढ़ जाता है। फिर जैसा सोच और समझ सक्रिय होता है। परिणाम वैसा ही मिलता है। इसका प्रभाव कार्य और कर्तव्य पर पडता है।

कल्पना और यथार्थ में बहुत अंतर होता है। मन की उड़ान ज्यादा हो तो अंतर और बढ़ जाता है।अपने इच्छ और मन पर नियंत्रण होना चाहिए।

  

वास्तविक कल्पना 

वास्तविक कल्पना और यथार्थ में बहुत अंतर होता है।

मन की उड़ान ज्यादा हो तो अंतर और बढ़ जाता है।

अपने इच्छ और मन पर नियंत्रण होना चाहिए

सकारात्मक सोच से इच्छा शक्ति काम करने लग जाता है। 

सकारात्मक सोच से मन की कल्पना यथार्थ में परिवर्तित होने लग जाता है। 

वास्तविक कल्पना कैसे होता है? 

कल्पना क्या है? मन के सकारात्मक कल्पना जीवन के महत्वपूर्ण करि है।

कल्पना मनुष्य को  अंतर मन से बाहरी मन को और बाहरी मन को अंतर मन से जोड़ता है। 

मन के बाहरी हाव भाव से अंतर  मन को संकेत मिलता है। 

जिसके कारण बाहरी मन के भाव  गहरी सोच से  मन में कल्पना घटित होता है। 

कल्पना से अंतर मन प्रभावित होता है। जिससे मनुष्य का  कल्पन बढ़ जाता है। 

कल्पना को सही और सकारात्मक रहने के लिए मन का भाव सकारात्मक और संतुलित रहना चाहिए। 

जिससे अंतर्मन अपने कल्पना को सही ढंग से स्थापित करे। 

कल्पना में कोई नकारात्मक भाव प्रवेश करता है।

तो उससे अपने मन की भावना में परिवर्तन आता है। जिससे गतिशील कल्पना बिगड़ने लगता है।

  इसलिए कल्पना के दौरान या मन में कभी कोई नकारात्मक भावना उत्पन्न नही होने देना चाहिए। 

वास्तविक कल्पना कैसे काम करता है?

मन एकाग्र करके जब कुछ सोचते है। 

कल्पना का भाव अंतर मन अवचेतन मन तक जाता है। 

बारम्बार किसी एक बिषय पर विचार करने से वह विचार सोच कल्पना के धारणा बन जाते है।

कुछ दिन के बाद उससे जुड़े विचार स्वतः आने लग जाते है। 

उस दौरान अपने कल्पना को साकार करने के के लिए मन में सोचने लगते है। 

कुछ नागतिविधि भी शुरू कर देते है।  कल्पना और कर्म साथ साथ चलने लगता है।

मन में नकारात्मक भाव भी उत्पन्न होते है। मन नकारात्मक भव के तरफ भी गतिविधि करता है। 

दिमाग का समझ क्या है? 

सही और गलत का ज्ञान अपने दिमाग से प्राप्त होता है।

तब दिमाग के सकारात्मक पहलू को अनुशरण कर के आगे बढ़ना चाइये। 

दिमाग के समझ दो प्रकार के होते है। एक सकारात्मक दूसरा नकारात्मक दिमाग के समझ है।

उसमे से सकात्मक समझ को ग्रहण कर के आगे बढ़ना चाहिये।

नकारात्मक भाव भी दिमाग में रहते ही है। 

दिमाग हर विचार भाव को दो भाग में कर देते है।

तब मन को निर्णय लेना होता है। कौन से भव, कल्पना, समझ सकारत्मक है। 

सकारात्मक समझ की ओर बढना चाहिए।   

कल्पना के दौरान दिमाग के समझ कैसे होते है? 

अपने कल्पना और दिमाग के समाज बहुत जटिल होते है। 

कल्पना के दौराम दिमाग हर वक्त समझ को दो भाग में कर देता है। 

एक सकारात्मक समझ दूसरा नकारात्मक समझ। 

कभी कभी दोनों समझ साथ में चलते है तो मन में उत्पीड़न होने लगता है।

लाख चाहने के बाद भी नकारात्मक समझ को हटाना मुश्किल पड़ जाता है।

ज्ञान के दृस्टी से देखे तो समझ एक बहुत बड़ा ज्ञान।  जो  कल्पना कर रहे होते है।

वह कल्पना संतुलित न हो कर कल्पनातीत होता जाता है।

तब नकात्मक समझ बारम्बार आते है।  संतुलित कल्पना के लिए एकाग्रता शांति, निश्चल मन, संतुलित दिल और दिमाग, मन में किसी व्यक्ति विशेष के प्रति कोई बैर भाव न हो। गलत धारणाये पहले से मन में बैठा न हो। स्वयं पर पूरा नियंत्रण हो। बहुत सजग रहना पड़ता है। तब कल्पना सकारात्मक होते है। कल्पना साकार होते है। कल्पना फलित होते है। कर्म का भाव जागता है। मन के सकारात्मक सोच कल्पना के भाव कि ओर बढ़ता है। तब कल्पना साकार होता है। कल्पना फलदायक होता है। 

सकारात्मक कल्पना और सकारात्मक सोच समझ के लिए क्या करना चाहिए  ? 

बहुत सजग रहने की आवश्यकता है। 

बड़े हो या छोटे, अपने हो या पराये, सब के लिए एक जैसा भाव होना होता है।

मन में कोई गन्दगी, गलत भावनाए, धारणाये पड़े हुआ है तो निकलना पड़ता है।   

मन में दया का भाव होना चाहिए। 

हर विषय वस्तु के प्रति सजग रहना चाहिए। 

सक्रिय रहना चाइये।  

किसी भी काम को अधूरा नहीं रखना चाहिए। 

कर्म के भाव मन में होना चाहिए।  

रात के समय पूरा नींद लेना चाहिए , देर रात तक जागना नहीं चाइये, दिन में कभी सोना नहीं चाहिए।

लोगो के साथ आत्मीयता से जुड़ना चाहिए। 

सकारात्मक बात विचार करना चाहिए। 

हर बात के प्रति सजग रहना चाहिए। 

किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए। 

सकारात्मक कल्पना के दिल और दिमाग पर क्या प्रभाव पड़ता है?

मन सकारात्मक हो कर प्रफुल्लित होता है। 

मन के भाव सकारात्मक होते है। 

सोच समझ सकारात्मक होते है। 

विचार उच्च होते है।  

अध्यात्मिल शक्ति बढ़ते है।  

मन शांत और एकाग्र होता है। 

जीवन से अंधकार दूर होता है।  

आत्म प्रकाश और आत्मज्ञाम बढ़ता है।   

नकारात्मक भाव समाप्त हो जाते है। 

मन सकारात्मक रहता है। 

सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होता है। 

दिमाग शांत और सक्रिय रहता है। 

वास्तविक जीवन ज्ञान प्राप्त होता है

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