Sunday, August 15, 2021

मन की इच्छाएँ के दौरान कल्पना में नकारात्मक भावना नहीं होना चाहिए नहीं तो मस्तिष्क में विकार आ सकता है

मन की इच्छाएँ


मनुष्य के सोच में बहुत सारी मन की इच्छाएँ होते है


मन की इच्छाएँ पल भर में बदलते रहते है। एक पल में एक तो दूसरे पल में दूसरा इच्छा उत्पन्न होता है। जब एक इच्छा आता है। तो दूसरा इच्छा चला जाता है। क्या ये सब ठीक है? मनो जैसे मनुष्य इछाओ का साम्राज्य है। जब मर्जी जो इच्छा रख लिए। ये कौन सी बात हो गई? भाई जो चाहो वो सोच लो। दूसरे का क्या जाता है। सबकी अपनी मर्जी है। क्यों भाई अपनी मर्जी है न? इसमें तो किसी का कुछ नहीं जाता है। तो सवाल ये है, की इच्छा फिर बना ही किस लिए है? फिर तो ये सब व्यर्थ है। ये तो कोई काम का नहीं है। नहीं भाई ऐसा नही है। इच्छा नहीं इच्छा शक्ति होनी चाहिए। ताकि सब अपनी इच्छा पर डटे रहे और उसे व्यर्थ न जाने दे। वही सब कुछ करता है। इच्छा नहीं तो मनुष्य कुछ नहीं। इच्छा को नियंत्रित करे। उस दिशा में कार्य करे। वही सकारात्मक इच्छा है।


मन की इच्छाएँ के लिए सोच समझ अच्छी होनी चाहिए


मन की इच्छाएँ मे किसी का किसी प्रकार से कोई नुकसान न हो तो ही इच्छा कारगर है। कुछ भी सोचे कुछ भी करे ऐसा नहीं है। बिलकुल भी कभी कोई गलत इच्छा नही रखे वो टिक नहीं पायेगा। उस तरफ जा भी नहीं पाएंगे। क्योंकि अपने पास ज्ञान है। मान लीजिये की जो कर रहे है। काम काज या कोई अच्छा कार्य करते है। मन भी अच्छे से लगता है। सक्रीय कार्य को सफलता पूर्वक पूरा कर लेते है। यही सकारात्मक इच्छा शक्ति है। 


मन की इच्छाएँ में इच्छाशक्ति बहुत महत्वपूर्ण ज्ञान है 


मन की इच्छाएँ मनुस्य को अपने जीवनपथ पर आगे बढ़ने के लिए है। इच्छाशक्ति इतना आसानी से नहीं प्राप्त होता है। बहुत सरे इच्छाओ को पाल लेने से और एक के बाद दूसरा इच्छा कर लेने से तो कोई काम नहीं बनेगा। इच्छा पूर्ति लिए जीवन में सिद्धांत बनाना पड़ता है। अपनी इच्छाओ पर नियंत्रण पाना होता है। जिससे सकारात्मक इच्छा सोच सके कल्पना कर सके, विचार कर सके, कल्पना कर सके, बहुत सरे इच्छाओ के मिश्रण से अंतर्मन किसी भी संभावित नतीजे तक नहीं पहुंच पायेगा। किसी भी काम को पूरा करने में मन नहीं लगेगा। कार्य में सफलता मिल नहीं पायेगा। हो सकता है बहूर सरे इच्छाओ में सकारात्मक इच्छा और नकारात्मक इच्छा हो। इच्छाओ के बवंडर में मस्तिष्क में विकार भी आ सकता है। जिससे वविक्छिप्तता मन मे फ़ैल सकता है। जो की बिलकुल भी ठीक नहीं है।


मन की इच्छाएँ को जगाने के लिए मन के कल्पना में कोई एक चित्र बनाये 


मन की इच्छाएँ को बनाये रखने के लिए कल्पना मे सब कुछ संतुलित और संगठित होन चाहिए। मन के भावना सकारात्मक होना बहुत जरूरी है। नकारात्मक भावना अनिच्छा को उत्पन्न करता है। नकारात्मक प्रभाव से मन में गुस्सा और तृस्ना सवार हो जाता है। बात विचार प्रभावशाली नहीं रहता है। इसलिए मन की इच्छा सकारात्मक ही होना चाइये। 


मन की इच्छाएँ और कल्पना के दौरान किसी भी प्रकार का नकारात्मक भावना नहीं होना चाहिए


मन की इच्छाएँ में सोच कल्पनातीत भी नही होना चाहिए। ऐसा भी हो सकता है की कल्पना पुरा ही नहीं हो सके। ऐसा होने से भी मस्तिष्क में विकार आ सकता है। जिसका सीधे प्रभाव ह्रदय और मन पर पड़ता है। ऐसी हालत में भी कुछ नहीं कर पाएंगे। मन कल्पनातीत में बेलगाम घोड़ा हो जाता है। स्वियं नियंत्रण में करना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे मनुष्य आगे चलकर आलसी भी हो सकते है।


मन की इच्छाएँ से मन में सकारात्मक सोच समझ और कल्पना होने से विवेक बुद्धि संगठित रहता है 


मन की इच्छाएँ संतुलित और कल्पना के दौरान जो जरूरी विषय वस्तु है। उसपर ध्यान बराबर बना रहता है। यहाँ पर भी मन पर पूरा नियंत्रण होना चाहिए। संभावित विषय बस्तु को मन के कल्पना में निरंतर सकारात्मक बना रहे। मन उस विषय और कार्य में भी सकारात्मक कार्य करते रहे।  ऐसा होने से मन अपने सकारात्मक काम काज विषय बस्तु में कार्यरत रहेगा। तभी मन में किया गया इच्छा की कल्पना सकारात्मक बनकर इच्छा शक्ति बनेगा। उस कार्य या विषय में सफलता मिलेगा।


 

 

 

 

No comments:

Post a Comment

Post

Perceptual intelligence meaning concept is an emotion of the mind

   Perceptual intelligence meaning moral of the story is the victory of wisdom over might Perceptual intelligence meaning moral character ma...