Saturday, June 21, 2025

प्रभावी खुफिया जानकारी एकत्र करने के लिए विचार नेतृत्व संगोष्ठी.

  

बुद्धि और बुद्धिमान

मनुष्य को बुद्धिमान होना ही चाहिए.

जीवन निर्माण में मनुष्य के जन्म के साथ दिमाग भी मिला हुआ है,जिसकी देन बुद्धि है.

सकारात्मक मन के भाव में अच्छा और तीक्ष्ण बुद्धि होता है.

मन में किसी भी प्रकार के कुंथित्पना बुद्धि में विकार ला सकता है.

जिससे मस्तिष्क ठीक से काम नहीं करता है.

जिसकी उपज विक्क्षिप्त बुद्धि होता है.

जिससे कोई भी कार्य सफल नहीं होता है.

किसी भी कार्य को सफल होने के लिए तीक्ष्ण बुद्धि सकारात्मक होना चाहिए.

 

हिंदी में प्रभावी खुफिया जानकारी एकत्र करने के लिए विचार नेतृत्व संगोष्ठी.

किसी एक विषय पर काम करने के लिए यदि पेचीदा विषय है.

बहूत सोच समझकर काम करना होता है.

जहा विषय एक है और उसे पूरा करने के लिए कई लोगो की जरूरत है तो वहा किसी न किसी ऐसे जानकार का नेतृत्व जरूरी हो जाता है.

साथ में जानकर होने के साथ विशेषग्य भी हो तो उनका नेतृत्व बहूत जरूरी होता है.

जरूरी खुफिया जानकारी एकत्र करने के लिए कार्य से सभी व्यक्ति विश्वासपात्र होना चाहिए.

तीक्ष्ण बुद्धि वाला होना चाहिए. सभी हाजिर जवाब व्यक्ति होना चाहिए. कार्य बिलकुल संतुलित और बताये हुए मार्गदर्शन से ही करना चाहिए.

कार्य के लिए मनोनीत सभी व्यक्ति के अन्दर समन्वय सामान होना चाहिए.

इसमे बेहद जरूरी है की कोई भी व्यक्ति किसी को छोटा या बड़ा नहीं समझे. अपने मार्गदर्शक के हरेक बात का अनुशरण करना चाहिए. एक दुसरे के संपर्क में हमेशा रहना चाहिए. स्वयं पर पूर्ण विस्वास होना चाहिए.       

 

प्रथम बुद्धि परीक्षण के विकासकर्ता के रूप में किसे श्रेय दिया गया है?

1916 में अमेरिका के मनोवैज्ञानिक टर्मेन ने बिने के बुद्धि परीक्षण को अपने देश की परिस्थितियों के अनुकूल बनाकर इसका उचित प्रकाशन किया. यह परीक्षण स्टेनफोर्ड बिने परीक्षण कहलाता है. जिस परीक्षण का संशोधन स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर टर्मेन ने किया था. इस आधार पर इस परीक्षण को स्टेनफोर्ड बिने परीक्षण कहा गया है. प्रथम बुद्धि परीक्षण के विकाशकर्ता के रूप में अमेरिका के प्रोफेसर टर्मेन को श्रेय दिया गया है.

 

शिक्षा में बुद्धि परीक्षण के लाभ

शिक्षा मन से कापी और किताब से पढने और लिखने से होता है. जब तक पढाई के समय समय पर परीक्षा नहीं होगा, तब तक न बच्चे में जिम्मेवारी आएगी और न उनका तीक्ष्ण बुद्धि बढेगा. निम्न कक्षा से उच्च कक्षा में पदोन्नति परीक्षा माध्यम होता है. परीक्षा में प्राप्त अंक सामान्य अंक से कम होने पर पदोन्नति नहीं होता है. और एक साल फिर उसी कक्षा में बैठना पड़ता है. परीक्षा बच्चे का बुद्धि विवेक का एक परिक्षण है. जिसके प्रभाव से बच्चे में बुद्धि विवेक और जिम्मेवारी बढ़ता है. परीक्षा न केवल बुद्धि का विकाश करता है बल्कि बच्चे को स्वयं पर नियंत्रण करने का तरीका और ज्ञान भी सिखाता है.

 

  तीक्ष्ण बुद्धि 

प्रतियोगी परीक्षाएं अपने ज्ञान की परीक्षा लेती हैं बात सच है ज्ञान हासिल हम स्कूल और कॉलेज से करते है जो दुसरे ज्ञान को हासिल करने के लिए मदद करता है

  

क्या प्रतियोगी परीक्षाएं आपके ज्ञान की परीक्षा लेती हैं?

प्रतियोगी परीक्षाएं अपने ज्ञान की परीक्षा लेती हैं। ये बात सच है। ज्ञान हासिल हम स्कूल और कॉलेज से करते है। स्कूल और कॉलेज के ज्ञान हमें दुसरे ज्ञान को हासिल करने के लिए मदद करता है। स्कूल और कॉलेज से ज्ञान हासिल करके हम दुसरे ज्ञान किस माध्यम से प्राप्त करते है। इस बात पर आधारित होता है। हम ज्ञान के प्रति कितने जागरूक है।

कोई भी ज्ञान दुसरे ज्ञान को हासिल करने का माध्यम बनता है। जैसे रोज अख़बार पढना, पत्रिका पढना, किताब पढना, समाज में हो रहे क्रिया कलाप से क्या ज्ञान हासिल करते है। टीवी देखने से हम किस बात को ग्रहण करते है। टीवी सबसे बड़ा ज्ञान का माध्यम हो सकता है। उसमे सबकुछ सम्मिलित होता है। अब ये स्वयं को समझना होता है। हमारा मन टीवी से क्या सिख रहा है। ज्ञान इस बात पर आधारित होता है। टीवी में देश दुनिया के सब खबर समाचार के माध्यम से मिलते है। कार्यक्रम के माध्यम से बहूत ज्ञान मिलते है।

  प्रतियोगी परीक्षाएं 

टीबी के नाटक ज्ञान का माध्यम है की नहीं ये स्वयं समझ सकते है। टीवी नाटक बहुमुखी प्रतिभा का झलक है।

जीवन का सबसे बड़ा ज्ञान टीवी नाटक में भी है। प्रेरणात्मक ज्ञान टीवी नाटक में बहूत है। बात ये है की हम ज्ञान कहा कहा से हासिल करते है। यदि प्रतियोगी परीक्षाएं के पत्र या कुंजी में देखेंगे तो पता चलेगा की ये सब के सब सामान्य ज्ञान पर आधारित है। जो दैनिक जीवन में समाज में या देश में होता है। देश दुनिया के भूत और वर्त्तमान के ज्ञान पर प्रतियोगी परीक्षाएं के प्रश्न पत्र होते है।

इसलिए देश दुनिया के भूत और वर्त्तमान के खबरों से हम क्या क्या ज्ञान हासिल करते है? साथ में गणित हमारा कितना मजबूत है? जो हम स्कूल कॉलेज में सीखते है। हम अपने ज्ञान से गणित को कैसे समझते है। कितने कम समय में उत्तर देते है। सामान्य ज्ञान के प्रश्न के उत्तर को हम कितने समय में उत्तर देते है। ये सब हमारे अपने ज्ञान पर आधारित होता है। इसलिए प्रतियोगी परीक्षाएं अपने ज्ञान की भी परीक्षा लेता हैं।    

पैकिंग मटेरियल में सबसे ज्यादा कार्ड बोर्ड का इस्तेमाल होता है रद्दी पेपर को मशीन में रीसायकल करने के बाद ब्राउन पेपर का निर्माण किया जाता है

  

पैकिंग मटेरियलपैकिंग मटेरियलपैकिंग मटेरियल कार्टून बॉक्स

 

पैकिंग मटेरियल में सबसे ज्यादा कार्ड बोर्ड का इस्तेमाल होता है.

रद्दी पेपर को मशीन में रीसायकल करने के बाद ब्राउन पेपर का निर्माण किया जाता है.

जिससे कार्टून बनाया जाता है. कार्टून के लिए पेपर के कई तह को गोंड से चिपकाया जाता है.

जिसके दो प्लेन पेपर के बिच में धारीदार कोरोगेटेड पेपर लगाये जाते है.

कार्टून को रखने वाले वस्तु के आकर और वजन के अनुसार उसकी मोटाई तय की जाती है.

नरम या कड़क कार्टून के अनुसार उसमे गोंड की मात्र भी तय की जाती है.

जितना ज्यादा गोंड का मात्र होता है कार्टून उतना ही शक्त और मजबूत होता है.

 

कार्टून बनाने के लिए बड़े बड़े मशीन का उपयोग किया जाता है.

३ तह, ५ तह, ७ तह और जरूरत पड़ने पर इससे भी ज्यादा तह कार्टून बनाने में लगाया जाता है.

सभी तह के बिच में गोंड का इस्तेमाल किया जाता है.

सरे काम मशीन से किया जाता है. बने हुए पेपर के तह को प्रेस मशीन में चलाकर उसको ठीक से प्रेस किया जाता है.

इस दौरान उसमे गर्मी भी प्रबाहित ही जाती ही जिससे पेपर तुरंत चिपक कर और शक्त होकर मशीन से बहार निकले.   

 

कार्टून के कोरोगेटेड पेपर बनाने के लिए कोरोगेशन मशीन में दो रोल होते है.

पैकिंग मटेरियल कार्टून के कोरोगेशनमशीन के दोनों रोल में गियर के जैसा दांत बना होता है.

जो लम्बे लम्बे धारी के सामान होता है.

दोनों रोल के गियर के बिच से पेपर को इसमे से गुजरने के साथ इसमे थोडा गरमी उत्पन्न होने के लिए विद्युत् पवार से गरम करना पड़ता है.

जिससे दुसरे तरफ पेपर कोरोगेतेट हो कर बाहर निकले.

मशीन में ही कोरोगेतेट हुए पेपर को रोल किया जाता है.

जिससे कार्टून के लिए कोरोगेशनमें कोई प्रभाव नहीं पड़े और पेपर में उत्पन्न हुए गर्मी कुछ और समय तक बरक़रार रहे.

जिससे पेपर का कोरोगेशनकायदे से हो जाये और लम्बे समय तक कोरोगेशनबना रहे.

 

पैकिंग मटेरियल साइज़ के अनुसार कार्टून के कटिंग मशीन में कार्टून के बॉक्स को आकर देना

कार्टून कटिंग मशीन में कार्टून के बॉक्स को आकर के अनुसार कटिंग का काम होता है.

जरूरत पड़ने पर लेबल, नाम और सामान के विशेषता की प्रिंटिंग भी की जाती है.

जो कई रंग, रूप और चित्र के साथ भी हो सकता है.

वो भी मशीन से ही किया जाता है.

आकर के अनुसार कार्टून बोर्ड को मशीन कटिंग करता है.

मोरने वाले भाग को मोरने के लिए फिर प्रेस मशीन में भेजा जाता है.

मोरने वाले भाग के धारी बनया जाता है.

जिससे सभी कार्टून एक जैसा बनकर तयार हो जाता है.

 

कटिंग से बचे हुए बेकार टुकरे को फिर से रीसायकल किया जाता है.

बचे हुए बेकार टुकरे को फिर से रीसायकल कर के कार्ड बोर्ड बनाया जाता है. कोई भी पेपर का बेकार टुकरा फेका नहीं जाता है. बचे हुए पेपर के बेकार टुकरे को रीसायकल किया जाता है जिससे नया पेपर बन कर निकालता है जिसका नये कार्टून बनाने के लिए उपयोग किया जाता है. 

 

फोल्डिंग करने वाले मशीन में कार्टून बनाना

कार्टूनको अंत में बॉक्स का रूप देने के लिए फोल्डिंग मशीन में भेजा जाता है. जिससे बॉक्स आकर के अनुसार मुड़ कर बॉक्स बन जाता है. जरूरत के अनुसार बॉक्स बनाने में चपटी पिन वाला मशीनी स्टेपलर का उपयोग किया जाता है या ब्राउन टेप या सादे टेप से भी मशीन बॉक्स के निचले भाग को चिपका कर बॉक्स बनाकर बहार निकलता है.

 

कंप्यूटकृत मशीनी युग के चमत्कार से पैकिंग मटेरियल कार्टून बॉक्स बनाना हुआ आसान

सभी मशीनी काम स्वचालित और कंप्यूटकृत होते है. जिसे कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर से किया जाता है. जैसा कार्य करना वैसा प्रोगामिंग किया जाता है.

  पैकिंग मटेरियल 

पेन से लिखने के समय लगातार घूमता रहता है पीछे से इंक उसमे लगकर लिखने वाले जगह पर निशान बनता जाता है. जिसे बाल पेन का लिखावट कहते है

  

बॉल पेन

सदियों से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है.

पहले नरकट के कलम या साही के काटे, कबूतर, मोर के पंख इत्यादि उपयोग में लिए जाते थे.

जिसे स्याही के में डुबोकर लिखा जाता था.

परंपरा बदला उसके स्थान पर जीभ वाले कलम आ गए.

जिसके पीछे एक लम्बी डब्बी लगी रहती थी. आज के समय में जज इस पेन का उपयोग करते है.

समय बदला कलम के स्थान पर बॉल पेन ने अपना जगह बना लिए.

नित्य नए खोज से पहले के मुकाबले बाल पेन पहले से बहूत पतला लिखने में सफल हो गया है.

आमतौर पर प्लास्टिक के बने छरिनुमा पेन आता है.

जिसमे रिफिल भरा जाता है.

उससे भी अविष्कारक आगे बढ़ कर अब लिखो फेको पेन बना दिया है.

जो पतले होने साथ साथ बहुत सस्ता भी होता है.

इसमे न रिफिल की जरूरत न कोई ढक्कन के सिबाय तीसरा कोई वस्तु.

यदि पास में पेन नहीं तो अब ये किसी भी दुकान पर आराम से मिल जाता है.

भले किराणे की दुकान हो या छोटा मोटा कोई भी कटलेरी की दुकान सब जगह उपलब्ध है.

 

समय के अनुसार परंपरा बदला पर लिखाई के लिए अब भी पेन ही है पहले वो कोई अब पंख या नरकट का न हो कर लिखो फेको हो गया है. 

बात पेन के लीड की बनावट कहे तो वो मेटल का होकर स्टील पलिस किये होते है.

इसके शिर्ष पर एक बेहद छोटा छर्रा होता है.

जो पेन से लिखने के समय लगातार घूमता रहता है.

पीछे से इंक उसमे लगकर लिखने वाले जगह पर निशान बनता जाता है.

जिसे बॉल पेन का लिखावट कहते है.  

  बाल पेन 

पहनावे और वेशभूषा से व्यक्तित्व में निखार पहचान अच्छा बनता है। लोग जुड़ते भी है नामची लोग तो दिखावे पर बहुत पैसा भी खर्च करते है

  

मनुष्य खूबसूरती के पीछे बहुत भागता है

सोच समझकर देखा जाये।  आज के समय में मनुष्य खूबसूरती के पीछे बहुत भागता है। 

पहनावा अच्छा होना चाहिए।  वेशभूषा बेहतरीन होना चाहिए। 

ऊपर से नीचे तक उच्च कोटि का दिखावा होना चाहिए। 

महिलाओं में तो पहनावे की खूबसूरती के बहुत ज्यादा चलन है और होना भी चाहिए।

खूबसूरती से व्यक्तित्व में निखार आता है। 

आज के समय में समाज जीवन में खूबसूरती का बहुत ज्यादा चलन भी है। 

पहनावे से लोग अपना दिखावा करते है।

अपनी काबिलियत कितनी अहेमियत रखता है। 

पहनावे और वेशभूषा से व्यक्तित्व में निखार आता है। 

लोगो में पहचान अच्छा बनता है।  लोग जुड़ते भी लगते है। 

नामची लोग तो दिखावे पर बहुत पैसा भी खर्च करते है। 

पहनावे और खूबसूरती से लोगों का काम धंधा पनपता है

पहनावे और खूबसूरती के दौर मेंसोचे उन लोगों का काम धंधा पनपता है। जो पहनावे और खूबसूरती के व्यापार में शामिल होते है।  उनके घर परिवार भी कही न कही उनके पहनावे और दिखावे पर ही चलते है।  इसके लिए सहर में बड़े से बड़े दुकान खुलते है।  दुकान के सजावटी में लाखो खर्च होते है।  इससे उन कामगार और कारीगर का घर परिवार चलता है।  जो ऐसे सजावटी के काम धंदे में जीवन यापन करते है।  कई बार तो ये सोचता हूँ कि काश ये सब न होता तो और कितने लोगो को दिक्कत होती।  समय के हिसाब से बेरोजगरी ऐसे भी है।  इस माध्यम से लोगो का गुजर बसर तो हो रहा है।  कही न कही देखा जाय तो सब एक दूसरे से जुड़े हुए है। एक दूसरे के रोजी रोजगार के माध्यम ही तो है।

संसार में खुश रहने का हक़ सबको है 

मन कभी कभी सोचता है। लोग ये सब बाते क्यों नहीं समझते?  लोग क्यों नहीं एक दूसरे से जुड़ करसद्भाव से रहते है?  इससे तो सबका विकाश ही होगा।  नया निर्माण होगा। नए उद्योग धंधे पनपेंगे।  लोगो का रोजी रोजगार का माध्यम भी तो खुलेगा।  जो लोग बेरोजगार है।  उनको कोई काम धंधा भी तो मिल जायेगा।  उनको भी तो संसार में खुश रहने का हक़ है।  संसार उनके लिए भी तो है। 

लोगो को रोजी रोजगार में जरूर साथ दिए

दिमागी बात यही कहना चाहूंगा।  जैसे हम बाहरी दिखावे के माध्यम से अपने आप को अच्छा बताने के होर में लोगो को रोजी रोजगार में जरूर साथ दिए है।  इसके लिए तहेदिल से धन्यवाद है।  उन सभी को जो कही न कही रोजगार के माध्यम में साथ दे रहे है। उन सभी को धन्यवाद है

मनुष्य का मन साफ सुथरा सब को अच्छा ही लगेगा

दिमागी सोच की बात यही कहूंगा। जिस तरीके से हमसब साज सज्जा करते है।  बाहरी दिखावा करते है।  खुद को अच्छा दिखने के लिए।  वैसे ही मन में पड़े जो कुछ भी गंदगी है। जो हम किसी को बता नहीं सकते है। हम स्वीकार करते है।  हमारे अंदर भी कुछ न कुछ जरूर है।  जिसको एक एक करके बहार निकल दिया जाये। त हम सब एक दूसरे से जुड़ते जायेंगे।  क्यों न इस तरफ भी थोड़ा प्रयास किया जाए।  ये बात सबके लिए कह रहा हूँ।  सिर्फ प्रयास कर रहा हूँ।  सफलता में तो आपको साथ देना है।  फिर न कोई दिक्कत, न पड़ेशानी, न बेरोजगारी होगा। फिर तो सब खुश ही रहने लगेंगे। क्योकि गन्दगी तब किसी के अंदर नहीं रहेगा।  सब का मन साफ सुथरा हो जायेगा।  फिर तो सब को अच्छा ही लगेगा न। 

  पहनावे और वेशभूषा 

नेल्लईअप्पार मंदिर तमिलनाडु राज्य के तिरुनेलवेली में स्थित है। मंदिर में भगवन शिव की मंदिर ७वी शताब्दी में पांड्यों के द्वारा बनाया गया था।

  

खंभों से तबला के धुन जैसी मधुर ध्वनि निकलता है।

 

नेल्लई अप्पार मंदिर तमिलनाडु राज्य के तिरुनेलवेली में स्थित है

मंदिर में भगवन शिव की मंदिर ७वी शताब्दी में पांड्यों के द्वारा बनाया गया था। 

भगवान शिव की एक प्रतिमा इस मंदिर में स्थापित है। 

नेल्लईअप्पार मंदिर अपनी खूबसूरती और वास्तु कला का नायब नमूना है। 

मंदिर के खम्बे से संगीत के स्वर निकलते है। पत्थरो के बने खम्बे जो अन्दर से खोखला है.

ये बात का पता तब चला जब अंग्रेजो ने ये पता लगाने के लिए की स्वर कहाँ से आते है?

आजादी के पहले इसके दो खम्बे को तोड़े थे तो वो अन्दर से खोखला पाया गया था

 

नेल्लई अप्पार मंदिर 

नेल्लई अप्पार मंदिर का घेरा 14 एकड़ के क्षेत्र के चौरस फैला हुआ है

मंदिर का मुख्य द्वार 850 फीट लंबा और 756 फीट चौड़ा है मंदिर के संगीत खंभों का निर्माण निंदरेसर नेदुमारन ने किया था जो उस समय में श्रेष्ठ शिल्पकारी थे मंदिर में स्थित खंभों से मधुर धुन निकलता है जिससे पर्यटकों में कौतहूल का केंद्र बना हुआ है। इन खंभों से तबला के धुन जैसी मधुर ध्वनि निकलता है। आप इन खंभों से सात तरह के संगीत की धुन सा, रे, ग, म, प, ध, नि जैसे धुन पत्थरो के स्तम्ब को ठोकने पर निकलते हैं।

 

नेल्लई अप्पार मंदिर की वास्तुकला का विशेष उल्लेख है कि एक ही पत्थर से 48 खंभे बनाए गए हैं 

सभी 48 खंभे मुख्य खंभे को घेरे हुए है। मंदिर में कुल 161 खंभे हैं जिनसे संगीत की ध्वनि निकलती है। आश्चर्य की बात यह है कि अगर आप एक खंभे से ध्वनि निकालने की कोशिश करेंगे। तो अन्य खंभों में भी कंपन होने लगती है

 

नेल्लई अप्पार मंदिर के पत्थर के खंभों को तीन श्रेणी में बिभाजित गए हैं

जिनमें पहले को श्रुति स्तंभदूसरे को गण थूंगल और तीसरे को लया थूंगल कहा जाता है इनमें श्रुति स्तंभ और लया के बीच आपसी कुछ संबंध है। जिससे श्रुति स्तंभ पर कोई ठोकता है तो लया थूंगल से भी आवाज निकलता है उसी प्रकार लया थूंगल पर कोई ठोकता है तो श्रुति स्तंभ से भी ध्वनि निकलता है

  

लेपाक्षी मंदिर अनंतपुर आन्ध्र प्रदेश

 

अनेको रहस्य से भरा लेपाक्षी मंदिर जो की वीरभद्र मंदिर है. 

जो लेपाक्षी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. लेपाक्षी गाँव अनंतपुर आन्ध्र प्रदेश में स्थित है.

नजदीक प्रसिद्ध शहर बंगलौर से लगभग १४० किलोमीटर पर स्थित है.

आंध्र प्रदेश के अनंतपुर के पेनुकोंडा हिन्दुपुर से भी वीरभद्र मंदिर जाया जा सकता है.

वहा से लगभग ३५ किलोमीटर है.

 

वीरभद्र मंदिर का निर्माण १६ शताब्दी में किया गया था. 

लेपाक्षी मंदिर के नाम से भी नाना जाता है. मंदिर का निर्माण १५३० और १५४० दोनों समय का जिक्र है.

जिसे पेनुकोंदा में रहने वाले दो भाई विरुपन्ना नायक और वीरन्ना जो मूल रूप से कर्णाटक के निवासी थे.

उन्होंने मंदिर का निर्माण करवाया था.

जो राजा अच्युतराय के विजयनगर के सामाज्य में पेनुकोंदा में कार्यरत थे.

राजा के द्वारा उन्हें मंदिर के निर्माण का कार्य सौपा गया था.

 

लेपाक्षी मंदिर विजयनगर स्थापत्य कला और शैली के सबसे बड़ा उदाहरण है.

लेपाक्षी मंदिर प्रचीन मूर्तियों के लिए बहूत प्रसिद्ध है.

विजयनगर साम्राज्य के कारीगरों और कलाकारों द्वारा बनाए गए  वीरभद्रशिव जीभद्रकालीगणेश जी, विष्णु जी, लक्ष्मी जी नाग लिगम और नंदी की मूर्तियां हैं.

यहां भगवान शिव के अन्य रूप अर्धनारीश्वरकंकाल मूर्तिदक्षिणमूर्ति और त्रिपुरातकेश्वर भी मौजूद हैं.

 

लेपाक्षी मंदिर के पास स्थित जटायु के मूर्ति का रहस्य. 

रामायण में वर्णित कथा के अनुसार रावन के द्वारा सीता जी के हरण करने के बाद जटायु पक्षी ने रावन से युद्ध करते हुए प्राण त्याग दिये. 

इसी जगह लेपाक्षी मंदिर से १.२ किलोमीटर दूर पूरब के तरफ अपने प्राण त्याग दिए थे.

जटायु पक्षी सीता जी को बचाने के लिए बहूत प्रयास में असफल के बाद रावन दे द्वारा उसके तलवार से मारा गया था.

सीता जी के खोज करते हुए भगवन राम, भय्या लक्षमण और हनुमन जी को अधमरे हालत में जटायु पक्षी यही मिले.

करुनावश भगवान राम जी ने उस समय एक शब्द बोले थे.

जटायु के लिए वो था "ले पाक्षी" जिसके नाम पर उस गाँव का नाम लेपाक्षी पड़ा.

 

जटायु पक्षी के रूप में बहूत बड़ा पत्थर के उड़ाते हुए पक्षी की मूर्ति 

उड़ाते हुए पक्षी की मूर्ति  ठीक उसी जगह पर आज बना हुआ है.

एक उथली पहरी पर एक बड़ा सा चट्टान है जिसपर जटायु पक्षी पत्थर का बना हुआ है.

जिसपर जाने के लिए लोहे के सीरी बने हुए है.

जो रास्ते में लेपाक्षी मंदिर से १२०० मीटर पहले पड़ता है.  

 

नाग लिंगम शेषनाग वाला शिवलिंग लेपाक्षी मंदिर जो वीरभद्र मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है.

 

सात मुह वाला लिंगम लेपाक्षी मंदिर की मुख्या विशेषता है.

पुरे वीरभद्र मंदिर में कुल ५ लिंग है.

जिसमे से २ मंदिर के बहार है और ३ मंदिर के अन्दर है.

उसमे से ये विशेष महत्त्व वाला ७ मुह वाला शेष नाग पर विराजमान लिंग है.

बाहर वाला दूसरा लिंग मंदिर के पीछे विराजवान है.

जो आकर्षण का केंद्र भी बना हुआ है. छात्तेनुमा ७ नाग के फन के निचे लिंग स्थापित है.

इस लिंगम के बारे में कहा जाता है की जब कलाकार दोपहर के भोजन के लिए अपमे माँ का इंतजार कर रहे थे.

तब इस दौरान इस नाग लिंगम प्रतिमा का निर्माण हुआ था.

लिंगम प्रतिमा एक ही पत्थर को तरास कर बनाया गया है.

 

नंदी की पत्थर की मूर्ति शिवलिंग लेपाक्षी मंदिर जो वीरभद्र मंदिर के नाम से भी जाना जाता है यहाँ से १२०० मीटर दूर पशिम में है.

 

जटायु पक्षी के मूर्ति के ठीक सामने रोड के दुसरे किनारे पर नंदी का एक विशाल प्रतिमा बना हुआ है.

जो एक ही पत्थर को तरास कर बना हुआ है.

विश्व में इससे बड़ा कोई इकलौते पत्थर की मूर्ति नहीं है.

२७ फीट लम्बा और १५ फीट चौड़ा ये प्रतिमा एक बगीचे के बिच में मंदिर की ओर मुह कर के नंदी बैठा हुआ है.

बगीचा बहूत बड़ा है जो एक उद्यान की तरह है.

स्थापत्य कला ये एक अनूठा नमूना है. समय बिताने और शान को टहलने के लिए उद्यान बहूत अच्छा है.

 

लेपाक्षी मंदिर सदियों से एक टंगा हुआ पत्थर का स्तम्भ मंदिर वीरभद्र मंदिर के नाम से भी विख्यात है.

लेपाक्षी मंदिर में मुख्या मंदिर वीरभद्र जी का है साथ में भगवन विष्णु जी और भगवन शिव जी भी मंदिर में विराजवान है.

मंदिर ७० खम्बे का बना हुआ है. जिसे पंक्तिबद्ध तरीके से सजाया गया है.

बाहर से दूसरी पंक्ति में स्थित ८ फीट का स्तम्भ जो मंदिर के सतह से तकरीबन आधा इंच सदियों से ऊपर है.

जानकार का कहना है की लटकते हुए स्तम्भ को समजने के लिए ब्रिटिश काल में इनलैंड से आये ब्रिटिश इंजिनीयर यहाँ आये थे.

परिक्षण के दौरान इस स्तम्भ को हथौरे से मारकर थोडा हिलाया जिससे पूरी मंदिर की बुनियर और स्तम्भ में कम्पन पैदा हो गया था.

जीस के बाद वो ब्रिटिश इंजिनीअर यह समझकर की पुरे मंदिर का बुनियाद इसी स्तम्भ पर टिका है.

यह समझकर वो वहा से भाग गया.

बाद में फिर इस रहस्य का पता लगाने की किसी के अन्दर क्षमता नहीं हुई की ऐसा दोबारा किया जाये.

 

लेपाक्षी के वीरभद्र मंदिर में कल्याण मंडप.

लेपाक्षी के वीरभद्र मंदिर के प्रांगन में एक खुले जगह में कुछ स्तम्भ खड़े है जो अधुरा जैसा दीखता है.

इसके पीछे एक दर्द भरी रहस्यमई कहानी है. बात उन दिनों की है.

जब विजयनगर के राजा देशाटन पर थे.

उनके अनुपस्थिति में उस समय के कल्याण मंडप के निर्माणकर्ता लेखाकार ने कल्याण मंडप का निर्माण सुरु कर दिया था.

जिसमे राज्यकोस के बहूत सारा पैसे खर्च हो गए थे.

वापस आने के बाद जब राजा को इस अनुचित खर्च के बारे में बात का पता चला तो उन्होंने तत्काल कल्याण मंडप का निर्माण रोकवा दिए.

साथ में लेखाकार को सजा दे दिए, लेखाकार के दोनों आँख निकाल देने का फैसला सुना दिए.

इससे लेखाकार दुखी हो कर स्वयं ही अपने दोनों आँख निकलकर वीरभद्र मदिर के एक दीवार पर मार दिया.

जिससे दीवाल में दो निशान बन गए और एक निशान में रक्त के चिन्ह अभी भी देखे जा सकते है.   

 

लेपाक्षी के वीरभद्र मंदिर की विशेषताये.

वीरभद्र मंदिर वीरभद्र जी जो की भगवन शिव के एक रूद्र अवतार है उनको समर्पित है.

मंदिर के गर्भगृह ने ३ कक्ष है जिसमे भगवन शिव, भगवन विष्णु और मध्य में वीरभद्र का मंदिर में कक्ष है.

ऐसे से ही मंदिर ३ कक्ष में बिभाजित है जिसे मुख्या मंडप, अरदा मंतपा और गर्भगृह है.

 

गर्भगृह के प्रवेशद्वार पर भगवन शिव १४ अवतार के चित्र, दैविक प्राणी, संत, संगीतकार और नर्तकी के चित्र छत में चित्रित किये गए है. 

ऐसा विश्व में कही और किसी जगह नहीं मिला है.

इसे भित्ति चित्र कहते है. जिसे दीवाल पर या छत में बनाया जाता है.

इसका माप 23 फीटी x 13 फीट बताया गया है.

जिसे निचे से देखने के लिए ऊपर छत की ओर देखना पड़ता है.

बाकि पुरे मंदिर में रामायण महाभारत और पुरानो के पात्र के भित्ति चित्र छत में बने हुए है.

कही कोई जगह खली नहीं है.

 

वीरभद्र मंदिर में एक स्तम्भ पर भृंगी के ३ पैर वाले मूर्ति है. 

पार्वती जी के मूर्ति है. जिसको महिला परिचालक के साथ दिखाया गया है.

ब्रह्मा जी के मूर्ति एक ढोलकिया के साथ है.

नृत्य मुद्रा में भिक्षाटन जैसे देवी देवताओं के मूर्ति बने हुए है.   

 

लेपाक्षी मंदिर में रहस्य अविरल बहती जलधारा सीता जी के पदचिन्ह.

लेपाक्षी के वीरभद्र मंदिर के प्रांगन में एक जगह सीता जी के पदचिन्ह बने हुए है. एक विशाल पदचिन्ह उस समय बना था. जब दैत्य रावन सीता जी को उठा कर ले जा रहे थे. तब जटायु के बिच में आने के बाद कुछ समय के लिए दैत्य रावन को जटायु से युद्ध करने के लिए रुकना पड़ा था. तब जहा सीता जी रुकी थी वही ये विशाल पद चिन्ह बने थे.

 

हलाकि उस युद्ध में दैत्य रावन से जटायु हारकर घायल हो गये थे. 

तब दैत्य रावन के द्वारा सीता जी को ले जाने के बाद भगवन राम के आने के बाद घायल अवस्था में जटायु ने बताया जी सीता माता जो दैत्य रावण उठा ले गया है जो लंकापति है.

 

जटायु के मृतु के समय कुछ बात ऐसी भी हुई की भगवन राम के मुख से एक शब्द निकल गई "ले पाक्षि"  जिसके नाम से उस जगह का नाम लेपाक्षी पड गया.

 

लेपाक्षी में जहा सीता जी के पदचिन्ह है. 

पदचिन्ह हमेशा गिला ही रहता है. अभी तक ये कोई नही पता लगा सका है की इस रहस्यमय पदचिन्ह में पानी कहाँ से आता रहता है. भले बेहद गर्मी का समय ही क्यों न हो तब भी पानी नहीं सूखता है. 

  लेपाक्षी के वीरभद्र मंदिर 

धूर्त ये समझे की मैं जित गया हूँ और सामने वाला मेरे दर से हार गया है तो भी कोई बात नहीं है.

  

समझदार व्यक्ति अपनी समझदारी के वजह से चुप हो जाते है.

मुर्ख को लगता है कि मेरे दर के वजह से चुप हो गया है.

 

समझदारी समझदार व्यक्ति के सकारात्मक गुण है.

कभी कभी ऐसा भी होता है की कुछ मामले में चुप रहने में ही भलाई है.

भले चुप रहने से अपना कुछ नुकसान हो रहा तो भी फिक्र करने की जरूरत नहीं है.

ज्ञानवान व्यक्ति उसे दोबारा अर्जित कर सकते है.

पर धूर्त व्यक्ति से किसी विषय वस्तु पर उलझना कभी भी ठीक नहीं होता है.

ज्ञान सकारात्मकता को बढ़ावा देता है.

अज्ञान अंधकर की ओर धकेलता है. जिससे निकल पाना इतना आसन नहीं होता है.

 

ज्ञान ही साझदारी है, और समझदार व्यक्ति के लिए समझदारी ही ज्ञान है.

ज्ञान और समझदारी एक दुसरे से ऐसा संबंध रखते है मनो ये दोनों एक दुसरे के लिए ही बने हो.

जिनके अन्दर समझदारी है वही ज्ञानी भी है ऐसा समझना चाहिए. समझदारी कभी भी नहीं कहता है की नासमझ बनो.

जो काम शांति से बन सकता है उसमे उलझने की कोई जरूरत नहीं है.

यही व्यक्तित्व में मर्यादा भी होना चाहिए. जो काम सुलह से बन सकता है उसमे बहस करने से कोई मतलब नहीं है.

बहस करने में शक्ति परिक्षण होता है.

शक्ति का दुरूपयोग बिलकुल भी ठीक नहीं है इसके स्थान पर शक्ति का सकारात्मक उपयोग होना चाहिए.

जिससे मन को शांति मिले और सुलह कामयाब हो सुलह करने में भले अपना कुछ जाता है तो भी कोई बात नहीं है.

अपने पास शक्ति है तो वो दोबारा प्राप्त किया जा सकता है.

पर एक तुच्छ वस्तु के लिए किसी धूर्त से बहस करना बिलकुल भी ठीक नहीं है.

 

धूर्त ये समझे की मैं जित गया हूँ और सामने वाला मेरे दर से हार गया है तो भी कोई बात नहीं है. 

जगत विदित है की नकारात्मक प्रवृति वाले लोग के पास शक्ति ज्यादा होता है।

साथ में उसके शक्ति भी सक्रीय होते है पर वो किसी के भले के नहीं हो सकता है.

अच्छाई के लिए तो बिलकुल भी नहीं होता है. आमतौर पर ऐसे लोग जित ही जाते है.

चुकी एक भला इन्सान गलती कभी नहीं करता है उसके अन्दर सहनशीलता अपार होता है.

वो कुछ खो कर भी बहूत कुछ प्राप्त कर लेता है इससे उसका ज्ञान ही बढ़ता है.

सबसे बड़ी बात ये है की उसके हृदय में ख़ुशी और उत्साह के लिए जगह होता है.

जिसे वो कभी भी ख़राब नहीं कर सकता है.

 

इसके विपरीत धूर्त व्यक्ति निर्दय, क्रोधी, जिसके मन में दूसरो से लेने और छिनने की भवन होता है.

जो दिन प्रति दिन बढ़ता ही जाता है.

संभव हो तो ऐसे धूर्त लोगो को सदा निरादर करे इससे दुरी बना के रखे.

किसी भी तरह से उससे उलझे नहीं. ऐसे लोगो से कोई मतलब नहीं रखे.

यदि ऐसे लोगो को सजा देने या दिलाने में सक्षम है तो ऐसा जरूर करे.

इससे समाज कल्याण भी होगा धीरे धीरे बुराई भी घटने लगेगा. 

  समझदार व्यक्ति 

धनतेरस के दिन चांदी या धातु के वस्तु ख़रीदना सौभाग्य करक और लाभ दायक होता है

  

धनतेरस का महत्त्व

 

दिपावली के दो दिन पूर्व आने वाला त्योहार धनतेरस होता है 

कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष के त्रयोदसी के दिन ये त्यौहार मनाया जाता है.  इस दिन धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है और इनके लिए दीपक मंदिर में स्थापित किया जाता है.

 

यमराज के लिए  दीपक जलाया जाता है 

मृतु के देवता यमराज के लिए भी दीपक जलाया जाता है. पर ये दीपक घर में सबके खाना खाने के बाद सोने से पहके घर के गृहिणी घर के बहार इस दीपक को जलाते है और सोने चले जाते है.

 

कुबेर के लिए  दीपक जलाया जाता है धनतेरस का महत्त्व

मान्यता है की धनतेरस का दीपक घर के अन्दर कुबेर के लिए और घर के बहार यमराज के लिये दरवाजे पर जलाया जाता है.

 

धन्वन्तरी का अवतार और अमृत कलश  

इसी दिन धन्वन्तरी का अवतार हुआ था. जिस समय देवता और असुर दोनों मिलकर बिच समुद्र में मंथन कर रहे थे. जिस दिन धन्वन्तरी जो विष्णु के अंश अवतार मने जाते है. महान वैद्य के तौर पर स्वस्थ लाभ के लिए उनका अवतरण हुआ था. उस दिन भी कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष के त्रयोदसी के दिन ही थे.

 

अमृत कलश के साथ धनवंती अवतरित हुए 

शास्त्र में वर्णित कथा के अनुसार धन्वन्तरी का अवतार जो एक कलश ले कर प्रगट हुए थे स्वस्थ लाभ के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. अमृत कलश जिसमे अमरता का वरदान सिद्ध था. १३ १४ आखरी रत्न के तौर पर समुद्र मंथन के तेरहवे साल में अमृत कलश के साथ धनवंती अवतरित हुए थे.

 

समुद्र मंथन के लिए कुर्म अवतार कछुए के ऊपर मन्दराचल पर्वत को स्थापित किया गया

मन्दराचल पर्वत को मथानी बनाकर समुद्र मंथन हुआ था. जिसको कुर्म अवतार कछुए के ऊपर मन्दराचल पर्वत को स्थापित किया गया था. समुद्र मंथन में शेषनाग वासुकी के जरिये मंथन किया गया था. कहा जाता है की समुद्र मंथन १३ साल चला था.

 

सौभाग्य और समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन चांदी या धातु के वस्तु ख़रीदना सौभाग्य करक और लाभ दायक होता है.

  धनतेरस का महत्त्व 

दुःख क्यों होता है? दुःख क्या होता है? लोग सोचते बहुत है बुरा वक्त दुःख कुछ नहीं है सिर्फ ज्ञान का अभाव है

  

दुःख क्या होता है?

दुःख  कुछ नहीं है। यदि ऐसा कुछ नही करे जो की भविष्य में  दुःख का सामना करना पड़े तो दुःख क्या होता है? ये समझ मे आना चाहिए।

तो दुःख क्यों होगा। लोग सोचते बहुत है। पर ऐसा कुछ कभी नही सोचे जो की आगे परेशानी का सामना करना पड़े।

जब अच्छा समय होता है।  तो उस समय कुछ ऐसा भी कर देते है। जो नहीं करना होता है।

सोचते भी नहीं है की क्या कर रहे है।  फिर भी कर बैठते है।

जब उसका परिणाम गलत निकलता है।  तब सोच में पड़ जाते है की ऐसा किया ही क्यों था।

जो कभी नहीं करना था। जब वही बुरा वक्त लेकर आता है।

तो अपनी गलती सुधरने का प्रयास करते है। तब सही जानकारी मिलता है। तो कोई गलती करे ही क्यों?

दुःख का कारण क्या है? दुःख क्यों होता है?

वास्तविक ज्ञान की बात को समझे तो सब समझ में आता है।

मनुष्य जब तक कोई गलती नहीं करता है। तब तक वास्तविक ज्ञान नहीं मिलता है।

उसे ही ज्ञान का अभाव कहा जाता है। ज्ञान के कई आयाम होते है।

मनुष्य का तो पूरा जीवन ज्ञान के लिए ही है। यहाँ तक की जब तक वास्तविक ज्ञान नहीं होता है। तब तक मनुष्य कुछ उपार्जन भी तो नहीं कर पता है। जीवन में ज्ञान हर जगह आवश्यक है। किसी विषय वस्तु का दुःख मनुष्य को तब तक ही होता है। जब तक वास्तविकता से सामना नहीं होता है।

अपने मार्ग पर चलते चलते मनुष्य संघर्स भी करता है। मनुष्य मेहनत भी करता है। मनुष्य विवेक बुध्दी का इस्तेमाल भी करता है। मनुष्य सोचता भी है। मनुष्य समझता भी है। मनुष्य अपने आयाम के एक एक कर के परते खोलते हुए अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ता जाता है। धीरे धीरे अपने जीवन में ज्ञान के करी को जोड़ते हुए परिपक्वता के तरफ बढता है। जैसे जैसे ज्ञान बढ़ता है। वैसे वैसे अभाव सब दूर होता है। दुःख दूर होता है। गलतिया समाप्त होता है। तब मनुष्य परिपक्व होता है। ज्ञानवान होता है। इसलिए दुःख कुछ नहीं है सिर्फ ज्ञान का अभाव है।

दरवाजा गैस क्रेटर सोवियत रूस के वैज्ञानिकों ने परिक्षण के बाद निकर्ष नकला की इस जगह पर तेल का बहूत बड़ा भंडार है

  

रहस्य से भरा दरवाजा गैस क्रेटर

 

नरक का दरवाजा के नाम से मशहूर ये गैस क्रेटर तुर्कमेनिस्तान में दरवाज़ा नाम का जगह है. 

जहा ये १९७१ के बाद से लगातार एक बहूत बड़े गढ्ढे में दिन रात मीथेन गैस जल रहा है. जिससे ये एक जलते हुए बहूत बड़े कुए के सामान है. जो की नरक का दरवाजा के जैसा दिख रहा है इसलिए इसे नरक का दरवाजा भी कहा जाता है.

 

  दरवाजा गैस क्रेटर 

सोवियत रूस के वैज्ञानिकों ने परिक्षण के बाद निकर्ष निकला की इस जगह पर तेल का बहूत बड़ा भंडार है. 

तब विज्ञानिक वहा जाकर खुदाई करने लगे. खुदाई सुरु होने के कुछ दिन के बाद ही ये गढ्ढा निचे धस गया. जिससे २२६ फीट के व्यास और ९८ फीट गहरा बहूत बड़ा कुआ के आकर का बन गया. जिसमे से मीथेन गैस लगातार निकल रहे थे. जो की मनुष्य जीवन और पशु पक्षी के जीवन के लिए बेहद घातक थे. जिसके कारन वैज्ञानिक ने आपसी विचार से और वैज्ञानिक समूह के विचार से इसमे आग लगाना ही उचित समझा जिससे जिव, जंतु को खतरनाक मीथेन गैस जो की ज्वलनशील और जहरीला होता है. इस जहर को फैलने से बचाया जा सके.

 

वैज्ञानिकों का अंदाजा था की कुछ दिन तक मीथेन गैस जलकर ख़त्म हो जायेगा. 

पर उन्होंने आग लगाने के पीछे ये परिक्षण नहीं किया की यहाँ मीथेन गैस की मात्र कितना है. असीमित मात्र से भरा मीथेन गैस कुछ दिन के बाद भी नहीं बुझा तब से ये लगातार दिन रात जल रहा है.

 

सैलानियों और पर्यटक के लिए बाद में आकर्षण का केंद्र 

आकर्षण का केंद्र  बन गया जहा का रोमांच सिर्फ रात को देखने को मिलता है. दिन में आग जलते ही रहते है पर अँधेरी रात और सुनसान इलाका होने के कारन रात में जलते रौशनी देखने का नजारा कुछ और ही होता है.   

 

देश विदेश के पर्यटक यहाँ इस नरक के दरवाजा 

नरक के दरवाजा को तुर्कमेनिस्तान के दरवाज़ा में देखने आते है. जो की रहस्य से भरा दरवाज़ा गैस क्रेटर है. जो की अब विश्वविख्यात हो चूका है.  

ज्यादाकर मन में समय के नकारात्मक भाव ही नजर आते हैं कुछ ही बाते जो अच्छे होते हैं वो बाते सकारात्मक होते है बारंबर याद करने को मन करता है

  

जिन चीजों से मुझे आप से नफरत है 

जब आपके मन में झाकते है तो बहुत कुछ जीवन में समझ में आने लग जाता है

जब अपने मन में झाकते है। बहुत कुछ समझ में आने लग जाता है। 

ज्यादाकर मन में समय के नकारात्मक भाव ही नजर आते हैं।

कुछ ही बात जो अच्छे होते हैं। जो बाते सकारात्मक होते है।

उन्हें बारंबर याद करने को मन करता है। जो बात मन को अच्छे नहीं लगते हैं।

उन बातो से किनारा करना कभी कभी बहुत मुश्किल हो जाता है। 

तब गुसा भी ऐसा ही आता है।  जब कुछ पुरानी बात मन को झकझोर देता है। 

तब नकारात्मक बाते ही मन में उठने लगते हैं।  ऐसा मन का प्रबृत्ति होता है।

वास्तविक जीवन के आयाम में सकारात्मक बातो के लिए कम जगह होता है

अक्सर जीवन के आयाम में सकारात्मक बातो के लिए कम जगह होता है। इसके पीछे कार ये है की ज्यदाकर मिलाने जुलने वाले लोगो का भावना कोई  कोई इच्छा से जुड़ा होता है। ज्यादाकर लोगो की इच्छा नकारात्मक ही होते है।  जिसका प्रभाव दोनों के मनपर पड़ता है। जिसके कार बात सुनानेवाला और बात कहने वाला दोनों के मन पर नकारात्मक इच्छा का प्रभाव पड़ता है।  इसलिए कल्पना के दौरानया कोई विशेष कार्य के लिए कुछ सोचते है। तो उससे जुड़ा हुआ भावना चरितार्थ होता है। इस प्रकार के जो नकारात्मक बाते जब मन में उठाते है। तो गुस्सा भी बहुत आता है। साथ में अपने सोच और कल्पना पर अपना प्रभाव डालता है।

जीवन में उन्नति के लिए प्रबृत्ति सकारात्मक होना बहुत जरूरी है

अपने जीवन की प्रबृत्ति सकारात्मक होना बहुत जरूरी है।  वास्तव में सकारात्मक सोच में स्वयं के इच्छा के लिए कोई जगह नहीं होता है। यदि स्वयं के लिए कुछ  सोचते है। वह सोच के भावना में या कल्पना में लालच भी आता है। जो की एक निम्न प्रबृत्ति है। जिससे स्वयं के इच्छा  कुछ सोचना या कल्पना करना पूरी तरह से सार्थक नहीं होता है।  इसलिए सोच या कल्पना में कुछ प्राप्त करना चाहते है। तो कल्पना में जिस विषय पर सोच रहे है। मन का झुकाव उसी विषय वस्तु पर होना चाहिये। जिससे उस विषय वस्तु के कार्य में पूरा सफलता मिले। जब वह कार्य सफल हो जाता है। तब उस कार्य के परिणाम से फायदा मिलता है।  वही वास्तविक सफलता होता है। इसलिए कभी भी सोच और कल्पना में अपनी इच्छा को उजागर नही होने देना चाहिए।   

 जीवन के आयाम 

ज्ञानी कबीर दास जी के ज्ञान के अनुसार जो ब्यक्ति हमें कोई रास्ता बताता है. ज्ञान देता है ज्ञान से सब कुछ होता है. ज्ञान ही कर्म की जननी है.

  

कबीर दास जी इस दोहे के माध्यम से कहते हैं.

कबीर दास जी के अनुसार अगर हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े है. तो आप किनके चरण स्पर्श करेंगे गुरु ने अपने ज्ञान के माध्यम से ही हमें अध्यात्म और भगवान से मिलने का रास्ता बताया है. इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर होता है. हमें गुरु के चरण स्पर्श करना चाहिए।

कबीर दास जी के ज्ञान के अनुसार

जो ब्यक्ति हमें कोई रास्ता बताता है. ज्ञान देता है. वही ज्ञानी ब्यक्ति गुरु हमारे जीवन में महत्त्व महत्पूर्ण होता है.

ज्ञान से सब कुछ होता है.

संज्ञान ही कर्म की जननी है. ज्ञान है तो उपार्जन जरूर होगा. ज्ञान है तो कर्म और सत्कर्म होगा. जब ज्ञान हमारे लिए इतना उपयोगी है. तो हम ज्ञान से ही ईश्वर की प्राप्ति कर सकते है. इसलिए ज्ञान देने वाले ज्ञानी ब्यक्ति गुरु ही हमारे लिए सबसे महत्पूर्ण है.

ज्ञान बचपन से अपने बच्चे को सिखाना चाहिए. ज्ञान सबसे पहले माता पिता से मिलना चाहिए.

ज्ञान भले जीवन में किसी से भी क्यों न मिले. ज्ञान हर किसी से सीखना चाहिए. ज्ञान ये मायने नहीं रखता है की ज्ञान देने वाला ब्यक्ति अच्छा है या बुरा है.

वास्तविक ज्ञान वही है

जिसको अछे और बुरे की पहचान हो. ज्ञान बुराइयो से सामना करना सिखाता है. ज्ञान समझ का फेर है की कौन सा ज्ञान हम ग्रहण कर रहे है.

ज्ञान के माध्यम से खुद को सामझ जायेंगे तो गलती क्यों होगी.

सकारात्मक ज्ञान के रास्ते पर चलेंगे तो और भी ज्ञानी महापुरुस मिलेंगे. हर ज्ञानि को गुरु बनाते हुए. जीवन को ज्ञान से भरते हुए. जो भी कर्म कार्य करेंगे सफलता निश्चित मिलेगी. इसलिए ज्ञानी ब्यक्ति गुरु ही हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण है. इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर होता है. हमें गुरु के चरण स्पर्श करना चाहिए।

ज्ञान हमें सिखाता है की विश्वास हमें बहुत सोच समझकर करना चाहिए

  

कोई विश्वास तोड़े तो उसका भी धन्यवाद करना चाहिए, क्योकि वही हमें सिखाता है की विश्वास हमें बहुत सोच समझकर करना चाहिए.

 

विश्वास एक बहूत बड़ी चिज है. इसपर पूरी दुनिया कायम है. 

आमतौर पर बगैर सोचे समझे जो मन को अच्छा लगा तो उस पर विश्वास कर लेते है. परिणाम जब बाद में कुछ और निकलता है तो ज्ञान होता है की हमने क्या कर बैठा. इससे अपना ज्ञान ही बढ़ता है साथ में समझ भी बढ़ता है. जीवन का मुख्य पहलू ज्ञान हासिल होना चाहिए। अच्छे बुरे का ज्ञान से समझ बढ़ता है। अच्छाई को बढ़ाते हुए बुराई को कम करने का प्रयश ही ज्ञान का मार्ग है। सबसे पहले अपने मन के बुराई को  समाप्त कर के मन मे अच्छे ज्ञान भर्ना चाहिए। जीवन मे मनुष्य कई बार धोखा खाता है। इससे ज्ञान लेकर आगे बढ़ता है ऐसा दोबारा न हो इस बात का धन रखता है। 

 

समझदारी का एहसास होता है.

मन चलायेमान होता है. हर किसी चीज को अपने तरफ आकर्षित करता है. भले बाद में दिल टूट जाये तो पता चलता है की हृदय पर कितना बड़ा आघात लगा है. फिर भी मन विश्वास करने से हटता नहीं है ये ज्ञान ही है. इससे समझ बढ़ता है की क्या सही है? क्या गलत है? मन सही गलत नहीं समझता है. उसे जो अच्छा लगे उस तरफ आकर्शित हो ही जाता है. गलती करने से ही विवेक बुद्धि बढ़ता है और सही गलत का अनुमान लगता है. एक बार गलती हो जाने के बाद उस गलती का एहसास हो जाता है और बाद में वो गलती दोबारा नहीं होता है.

  विश्वास सोच समझकर 

ज्ञान समानार्थी शब्द गुण अर्थ वास्तविकता से परिचय ज्ञान का उच्चारण ज्ञान प्रश्न के उठाते भाव

  

ज्ञान हिंदी में जानकारी ज्ञान के समानार्थी शब्द

जिससे कोई अनुभव हो जो जीवन में उठने वाले सवाल का जवाब मिलता हो।  हिंदी का महत्व भाषा से है। भारत देश का भाषा मुख्या तौर पर हिंदी में बोला जाता है। ज्ञान गुण है।ज्ञान के तरफ भागना सक्रियता है। भाषा हिंदी बोलचाल की भाषा है। 

 

प्रस्न के उठाते भाव 

ज्ञान प्रश्न के उठाते भाव का जवाब ज्ञान के माध्यम से मिल जाता है समय समय पे उठाने वाले हर सवाल का हल ज्ञान से ही हो सकता है इसलिए ज्ञान बहूत जरूरी है। 

 

ज्ञान के समानार्थी शब्द 

गुण, बिद्य, शिक्षण, शिक्षा, अध्ययन, पांडित्य, परिचय, विद्वता, विवेक, आत्मज्ञान, पढाई, लिखाई, अच्छा बोलना, अच्छा सुनना, अच्छाई, समझदारी, सहज भाव, समभाव, बुध्दी, भाव, आध्यात्म। 

 

ज्ञान का अर्थ 

वास्तविकता से परिचय जो जीवन में जरूरी है. अच्छा क्या है? बुरा क्या है? एक एक भाव का अनुभव जो अच्छाई का प्रतिक हो। उस तरफ अपने रस्ते को मोड़ लेना। हर संभव वास्तविकता को समझते हुए आगे बढ़ना। 

 

  ज्ञान के समानार्थी शब्द 

ज्ञान क्या है? 

पीडीफ़ ज्ञान एक अनुभव है।  पीडीफ़ एक कंप्यूटर के एक संसकरण है। जिसमे एक समूह के चित्र या पंक्ति लिखावट को एक कर के जोड़ दिया जाता है। कंप्यूटर उसको पीडीफ़  में एक साथ एक पेज में सब बारी बारी से दिखता है या जो जरूरी है। उसे पेज के माध्यम से देख सकते है। वैसे ही जीवन के पीडीफ़ में ज्ञान में अछे शब्द और अच्छा ज्ञान संग्रह होना चाहिए। जिस ज्ञान का जरूरत है।उसके अनुसार उस ज्ञान को समझ कर उपयोग करना चाहिए। 

 

ज्ञान का उच्चारण कैसे करें? 

सहज भाव से, नम्रता से, आदर से, ध्यान से, ख़ुशी से, प्रसन्नता से उच्चारण करे। 

Friday, June 20, 2025

जीवन क्यों दुखी रहता है।

परमात्मा दिया हुआ मानव जीवन सुख दुख से घिरा रहता है मानव जीवन में सुख दुख दोनों बारी बारी आता है। परमात्मा ने मनुष्य को अंतहीन दुख और बेपनाह खुशिया भी प्रदान किया है जिससे दुख का ज्ञान लेकर मनुष्य मजबूत और साहसी होता है अपितु सुख मनुष्य को आंतरिक दृष्टि से कमजोर भी करता है। खुशियों से मन बेलगाम घोड़ा हो जाता है सही गलत का ज्ञान उसके भौतिक खुशी के करण दिखाता नहीं है जब की परमात्मा का दिया हुआ मानव जीवन आत्म के ज्ञान के लिए होता है। दुख मनुष्य को शोध और संघर्ष के तरफ बढ़ावा देता है। जिससे वो उत्कर्ष हो कर भले भौतिक खुशी प्राप्त नहीं करता पर आत्मिक खुशी जरूर प्राप्त करता है।
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