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Wednesday, August 18, 2021

सकारात्मक संकल्प शक्ति से ही इच्छा शक्ति बढ़ता है सकारात्मक संकल्प शक्ति का होना बहुत बड़ा योगदान होता है

सकारात्मक संकल्प शक्ति के बारे में  कभी सोचा है


सकारात्मक संकल्प शक्ति खुद से जुड़ा हुआ है। 

सकारात्मक संकल्प शक्ति अपने जीवन का हिस्सा है  अपने बारे में क्या जानते है? कभी हमने सोचा है की हम क्या है? हम कहा है?  क्यों हम अपने पर इतना गर्व करते है? किस बात के लिए गर्व करते है? हम ये है! हम ऐसे है! हम ऐसा कर सकते है! हम ये सब भी कर सकते है! यहाँ तक की हम कुछ भी चाहे वो सब कर सकते है! आखिर इतना गर्व आखिर क्यों? ऐसा नहीं होना चाहिए। यदि हम ऐसा सोचते है। दुनिया बहुत बड़ी है। हम तो दुनिया को इतना भी नहीं देखे है। इतना भी हमारे पास समय नहीं है। पूरी दुनिया देख सके और समझ सके। याद रहे की हम उत्पन्न हुए है। एक न एक दिन हमें मिटना भी है। ये बात एक बार मन में घर कर जाय तो हमारी इच्छा सुधर जाएगी। हम अभी जो कर रहे है। उससे और भी अच्छा कर सकते है। हमारी इच्छा शक्ति सही होनी चाहिए। हम और भी तो क्या जो चाहे वो अच्छा से अच्छा कर सकते है।


सकारात्मक संकल्प शक्ति में इच्छा शक्ति सकारात्मक होता है 

सकारात्मक संकल्प शक्ति ज्ञान है हम अपने घमंड के मधमस्त हो कर बहुत सरे इच्छा को मन में पाल लेते है। जिससे भविष्य में अनिच्छा ही नजर आता है। क्योकि इच्छा सब पुरे नहीं होते है। इच्छा पूरा होता है जो कारगर हो। जिस इच्छा में कर्म की भावना हो। जो इच्छा सकारात्मक हो। जिस इच्छा में किसी और के लिए कोई गलत भवन न हो। कोई इच्छा किसी और के मान मर्यादा को ठेस नही पंहुचा रहा हो। ऐसा इच्छा सकारात्क इच्छा कहलाता है। जो जरूर पूरा होता है। निस्वार्थ सेवा भाव से जो कार्य किया जाता है। जिसमे स्वयं के लिए कोई फायदा नहीं होता है। ऐसा कार्य करने से मन प्रफुल्लित होता है। जिससे कार्य छमता और संकल्प शक्ति बढ़ता है। किसी भी कार्य या सेवा को पूरा करने लिए के सकारात्मक संकल्प शक्ति का होना बहुत बड़ा योगदान होता है। सकारात्मक संकल्प शक्ति से ही इच्छा शक्ति बढ़ता है।


सकारात्मक संकल्प शक्ति से अनैतिक इच्छा पूर्ण नहीं होता है

सकारात्मक संकल्प शक्ति के जरिये कभी भी अनैतिक इच्छा पूर्ण नहीं होता है। अनैतिक इच्छा इंसान की गर्क की ओर ले जाता है। जो बिलकुल भी उचित नहीं है। आमतौर पर लोगो के अनैतिक इच्छा पूर्ण नहीं होते है। जो ऐसे भावना रखते है। उनके बुद्धि विवेक सकरात नहीं रहते है। उनके हर बात विचार में गुस्सा, तृष्णा, लालच, ठगी का भावना नजर आता है। कई बार लोग अपने शक्ति के घमंड और आत्मविश्वास में ऐसे निर्णय ले लेते है। जिसमे ऐसी नकारात्मक भावनाए होते है। जिससे मस्तिष्क में विकार आने का दर हो जाता है। जिससे बुद्धि विवेक विक्छिप्त होने लगता है। गुस्सा मस्तिष्क में सवार रहता है। गुस्सा बहुत कुछ बिगड़ सकता है। स्मरण शक्ति पर प्रभाव डालता है। जिससे सकारात्मक ज्ञान का हनन होता है। संकल्प शक्ति कमजोर होकर समाप्त हो जाते है। ब्यक्ति निम्न से निम्नस्तर तक गिर जाता है। इसलिए ऐसे भावनाये को मन पर हावी नहीं होने देना चाहिए।

Sunday, August 15, 2021

मन की इच्छाएँ के दौरान कल्पना में नकारात्मक भावना नहीं होना चाहिए नहीं तो मस्तिष्क में विकार आ सकता है

मन की इच्छाएँ


मनुष्य के सोच में बहुत सारी मन की इच्छाएँ होते है


मन की इच्छाएँ पल भर में बदलते रहते है। एक पल में एक तो दूसरे पल में दूसरा इच्छा उत्पन्न होता है। जब एक इच्छा आता है। तो दूसरा इच्छा चला जाता है। क्या ये सब ठीक है? मनो जैसे मनुष्य इछाओ का साम्राज्य है। जब मर्जी जो इच्छा रख लिए। ये कौन सी बात हो गई? भाई जो चाहो वो सोच लो। दूसरे का क्या जाता है। सबकी अपनी मर्जी है। क्यों भाई अपनी मर्जी है न? इसमें तो किसी का कुछ नहीं जाता है। तो सवाल ये है, की इच्छा फिर बना ही किस लिए है? फिर तो ये सब व्यर्थ है। ये तो कोई काम का नहीं है। नहीं भाई ऐसा नही है। इच्छा नहीं इच्छा शक्ति होनी चाहिए। ताकि सब अपनी इच्छा पर डटे रहे और उसे व्यर्थ न जाने दे। वही सब कुछ करता है। इच्छा नहीं तो मनुष्य कुछ नहीं। इच्छा को नियंत्रित करे। उस दिशा में कार्य करे। वही सकारात्मक इच्छा है।


मन की इच्छाएँ के लिए सोच समझ अच्छी होनी चाहिए


मन की इच्छाएँ मे किसी का किसी प्रकार से कोई नुकसान न हो तो ही इच्छा कारगर है। कुछ भी सोचे कुछ भी करे ऐसा नहीं है। बिलकुल भी कभी कोई गलत इच्छा नही रखे वो टिक नहीं पायेगा। उस तरफ जा भी नहीं पाएंगे। क्योंकि अपने पास ज्ञान है। मान लीजिये की जो कर रहे है। काम काज या कोई अच्छा कार्य करते है। मन भी अच्छे से लगता है। सक्रीय कार्य को सफलता पूर्वक पूरा कर लेते है। यही सकारात्मक इच्छा शक्ति है। 


मन की इच्छाएँ में इच्छाशक्ति बहुत महत्वपूर्ण ज्ञान है 


मन की इच्छाएँ मनुस्य को अपने जीवनपथ पर आगे बढ़ने के लिए है। इच्छाशक्ति इतना आसानी से नहीं प्राप्त होता है। बहुत सरे इच्छाओ को पाल लेने से और एक के बाद दूसरा इच्छा कर लेने से तो कोई काम नहीं बनेगा। इच्छा पूर्ति लिए जीवन में सिद्धांत बनाना पड़ता है। अपनी इच्छाओ पर नियंत्रण पाना होता है। जिससे सकारात्मक इच्छा सोच सके कल्पना कर सके, विचार कर सके, कल्पना कर सके, बहुत सरे इच्छाओ के मिश्रण से अंतर्मन किसी भी संभावित नतीजे तक नहीं पहुंच पायेगा। किसी भी काम को पूरा करने में मन नहीं लगेगा। कार्य में सफलता मिल नहीं पायेगा। हो सकता है बहूर सरे इच्छाओ में सकारात्मक इच्छा और नकारात्मक इच्छा हो। इच्छाओ के बवंडर में मस्तिष्क में विकार भी आ सकता है। जिससे वविक्छिप्तता मन मे फ़ैल सकता है। जो की बिलकुल भी ठीक नहीं है।


मन की इच्छाएँ को जगाने के लिए मन के कल्पना में कोई एक चित्र बनाये 


मन की इच्छाएँ को बनाये रखने के लिए कल्पना मे सब कुछ संतुलित और संगठित होन चाहिए। मन के भावना सकारात्मक होना बहुत जरूरी है। नकारात्मक भावना अनिच्छा को उत्पन्न करता है। नकारात्मक प्रभाव से मन में गुस्सा और तृस्ना सवार हो जाता है। बात विचार प्रभावशाली नहीं रहता है। इसलिए मन की इच्छा सकारात्मक ही होना चाइये। 


मन की इच्छाएँ और कल्पना के दौरान किसी भी प्रकार का नकारात्मक भावना नहीं होना चाहिए


मन की इच्छाएँ में सोच कल्पनातीत भी नही होना चाहिए। ऐसा भी हो सकता है की कल्पना पुरा ही नहीं हो सके। ऐसा होने से भी मस्तिष्क में विकार आ सकता है। जिसका सीधे प्रभाव ह्रदय और मन पर पड़ता है। ऐसी हालत में भी कुछ नहीं कर पाएंगे। मन कल्पनातीत में बेलगाम घोड़ा हो जाता है। स्वियं नियंत्रण में करना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे मनुष्य आगे चलकर आलसी भी हो सकते है।


मन की इच्छाएँ से मन में सकारात्मक सोच समझ और कल्पना होने से विवेक बुद्धि संगठित रहता है 


मन की इच्छाएँ संतुलित और कल्पना के दौरान जो जरूरी विषय वस्तु है। उसपर ध्यान बराबर बना रहता है। यहाँ पर भी मन पर पूरा नियंत्रण होना चाहिए। संभावित विषय बस्तु को मन के कल्पना में निरंतर सकारात्मक बना रहे। मन उस विषय और कार्य में भी सकारात्मक कार्य करते रहे।  ऐसा होने से मन अपने सकारात्मक काम काज विषय बस्तु में कार्यरत रहेगा। तभी मन में किया गया इच्छा की कल्पना सकारात्मक बनकर इच्छा शक्ति बनेगा। उस कार्य या विषय में सफलता मिलेगा।


 

 

 

 

Thursday, August 5, 2021

कल्पना और यथार्थ में बहुत अंतर होता है। मन की उड़ान ज्यादा हो तो अंतर और बढ़ जाता है।अपने इच्छ और मन पर नियंत्रण होना चाहिए।

वास्तविक कल्पना 

वास्तविक जीवन ज्ञान

कल्पना और यथार्थ में बहुत अंतर होता है। मन की उड़ान ज्यादा हो तो अंतर और बढ़ जाता है।अपने इच्छ और मन पर नियंत्रण होना चाहिए सकारात्मक सोच से इच्छा शक्ति काम करने लग जाता है।  सकारात्मक सोच से मन की कल्पना यथार्थ में परिवर्तित होने लग जाता है। 


कल्पना कैसे होता है? 

कल्पना क्या है? मन के सकारात्मक कल्पना जीवन के महत्वपूर्ण करि है। कल्पना मनुष्य को  अंतर मन से बाहरी मन को और बाहरी मन को अंतर मन से जोड़ता है।  मन के बाहरी हाव भाव से अंतर  मन को संकेत मिलता  है।  जिसके कारण बाहरी मन के भाव  गहरी सोच से  मन में कल्पना घटित होता है।  कल्पना से अंतर मन प्रभावित होता है। जिससे मनुष्य का  कल्पन बढ़ जाता है।  कल्पना को सही और सकारात्मक रहने के लिए मन का भाव सकारात्मक और संतुलित रहना चाहिए।  जिससे अंतर्मन अपने कल्पना को सही ढंग से स्थापित करे।  कल्पना में कोई नकारात्मक भाव प्रवेश करता है। तो उससे अपने मन की भावना में परिवर्तन आता है। जिससे गतिशील कल्पना बिगड़ने लगता है।  इसलिए कल्पना के दौरान या मन में कभी कोई नकारात्मक भावना उत्पन्न नही होने देना चाहिए। 

 

कल्पना कैसे काम करता है?

मन एकाग्र करके जब कुछ सोचते है।  कल्पना का भाव अंतर मन अवचेतन मन तक जाता है।  बारम्बार किसी एक बिषय पर विचार करने से वह विचार सोच कल्पना के धारणा बन जाते है। कुछ दिन के बाद उससे जुड़े विचार स्वतः आने लग जाते है। उस दौरान अपने कल्पना को साकार करने के के लिए मन में सोचने लगते है।  कुछ नागतिविधि भी शुरू कर देते है।  कल्पना और कर्म साथ साथ चलने लगता है।  मन में नकारात्मक भाव भी उत्पन्न होते है। मन नकारात्मक भव के तरफ भी गतिविधि करता है। 

 

दिमाग का समझ क्या है? 

सही और गलत का ज्ञान अपने दिमाग से प्राप्त होता है। तब दिमाग के सकारात्मक पहलू को अनुशरण कर के आगे बढ़ना चाइये।  दिमाग के समझ दो प्रकार के होते है। एक सकारात्मक दूसरा नकारात्मक दिमाग के समझ है। उसमे से सकात्मक समझ को ग्रहण कर के आगे बढ़ना चाहिये। नकारात्मक भाव भी दिमाग में रहते ही है। दिमाग हर विचार भाव को दो भाग में कर देते है। तब मन को निर्णय लेना होता है। कौन से भव, कल्पना, समझ सकारत्मक है।  सकारात्मक समझ की ओर बढना चाहिए।   

 

कल्पना के दौरान दिमाग के समझ कैसे होते है? 

कल्पना और दिमाग के समाज बहुत जटिल होते है।  कल्पना के दौराम दिमाग हर वक्त समझ को दो भाग में कर देता है।  एक सकारात्मक समझ दूसरा नकारात्मक समझ।  कभी कभी दोनों समझ साथ में चलते है तो मन में उत्पीड़न होने लगता है। लाख चाहने के बाद भी नकारात्मक समझ को हटाना मुश्किल पड़ जाता है। ज्ञान के दृस्टी से देखे तो समझ एक बहुत बड़ा ज्ञान।  जो  कल्पना कर रहे होते है। वह कल्पना संतुलित न हो कर कल्पनातीत होता जाता है। तब नकात्मक समझ बारम्बार आते है।  संतुलित कल्पना के लिए एकाग्रता शांति, निश्चल मन, संतुलित दिल और दिमाग, मन में किसी व्यक्ति विशेष के प्रति कोई बैर भाव न हो। गलत धारणाये पहले से मन में बैठा न हो। स्वयं पर पूरा नियंत्रण हो। बहुत सजग रहना पड़ता है। तब कल्पना सकारात्मक होते है। कल्पना साकार होते है। कल्पना फलित होते है। कर्म का भाव जागता है। मन के सकारात्मक सोच कल्पना के भाव कि ओर बढ़ता है। तब कल्पना साकार होता है। कल्पना फलदायक होता है। 

 

सकारात्मक कल्पना और सकारात्मक सोच समझ के लिए क्या करना चाहिए  ? 

बहुत सजग रहने की आवश्यकता है। 

बड़े हो या छोटे, अपने हो या पराये, सब के लिए एक जैसा भाव होना होता है।

मन में कोई गन्दगीगलत भावनाए, धारणाये पड़े हुआ है तो निकलना पड़ता है।   

मन में दया का भाव होना चाहिए। 

हर विषय वस्तु के प्रति सजग रहना चाहिए। 

सक्रिय रहना चाइये।  

किसी भी काम को अधूरा नहीं रखना चाहिए। 

कर्म के भाव मन में होना चाहिए।  

रात के समय पूरा नींद लेना चाहिए , देर रात तक जागना नहीं चाइयेदिन में कभी सोना नहीं चाहिए।

लोगो के साथ आत्मीयता से जुड़ना चाहिए। 

सकारात्मक बात विचार करना चाहिए। 

हर बात के प्रति सजग रहना चाहिए। 

किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए। 

 

सकारात्मक कल्पना के दिल और दिमाग पर क्या प्रभाव पड़ता है?

मन सकारात्मक हो कर प्रफुल्लित होता है। 

मन के भाव सकारात्मक होते है। 

सोच समझ सकारात्मक होते है। 

विचार उच्च होते है।  

अध्यात्मिल शक्ति बढ़ते है।  

मन शांत और एकाग्र होता है। 

जीवन से अंधकार दूर होता है।  

आत्म प्रकाश और आत्मज्ञाम बढ़ता है।   

नकारात्मक भाव समाप्त हो जाते है। 

मन सकारात्मक रहता है। 

सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होता है। 

दिमाग शांत और सक्रिय रहता है। 

वास्तविक जीवन ज्ञान प्राप्त होता है

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