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Sunday, December 7, 2025

शरद ऋतु का आगमन भारतीय उपमहाद्वीप में एक अद्भुत सौंदर्य लेकर आता है। वर्षा की थकान से निढाल पृथ्वी जब हल्की ठंडक की चादर ओढ़ने लगती है।

 


शरदी का समय प्रकृति, मन और जीवन का उजास

शरद ऋतु का आगमन भारतीय उपमहाद्वीप में एक अद्भुत सौंदर्य लेकर आता है। वर्षा की थकान से निढाल पृथ्वी जब हल्की ठंडक की चादर ओढ़ने लगती है, तो लगता है जैसे प्रकृति स्वयं एक उत्सव की तैयारी में जुट गई हो। बादलों के बोझिल झुंड अब छँट चुके होते हैं, आकाश का विस्तार गाढ़े नीले रंग में चमकने लगता है और सूरज अपनी उजली, निर्दोष किरणों से धरती को स्नान कराता सा प्रतीत होता है। यह समय केवल मौसम का परिवर्तन नहीं, बल्कि मानसिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी मानव-जीवन में एक नए अध्याय का उद्घाटन है।

शरद वह ऋतु है जिसमें वातावरण की शुद्धता अपने चरम पर होती है। हेमंत की ठिठुरन और ग्रीष्म की तपन से दूर, यह मौसम अपने संतुलित तापमान के लिए जाना जाता है। दिन धीरे-धीरे सुहावने होते जाते हैं और रातें कोमल ठंडक से भरने लगती हैं। प्रातःकालीन ओस की बूँदें जब घास की नोकों पर चमकती हैं, तो लगता है जैसे किसी अनदेखे कलाकार ने अनगिनत कांच के मोतियों से पृथ्वी को सजा दिया हो। यह दृश्य मानव मन को एक ऐसी ताजगी देता है जो किसी औषधि से कम नहीं।

इस समय खेतों में फसलों का रंग बदलने लगता है। धान की बालियाँ सुनहरी आभा लिए मंद हवा के स्पर्श से झूमने लगती हैं। किसान के चेहरे पर आशा के नए रेखाचित्र उभर आते हैं। शरद का सौंदर्य केवल प्रकृति में ही नहीं, बल्कि मनुष्य के श्रम और आशा के मेल में भी दिखता है। खेतों में चलती हल्की हवा किसान को आने वाले दिनों की खुशहाली का संकेत देती है। इसी ऋतु में कई क्षेत्रों में नई फसल की पूजा होती है, जिसे अन्नकूट, नवधान्य या नववर्ष आरंभ का प्रतीक माना जाता है।

शरद, हिंदी साहित्य में भी अत्यंत प्रिय ऋतु है। कवियों और लेखकों ने इसे शांति, पवित्रता और उजास का प्रतीक माना है। आकाश की स्वच्छता को मन की निर्मलता का रूपक बनाया गया है। दिन की उजली धूप को आशा और व्यापकता का संकेत बताया गया है। चंद्रमा की शीतल, पूर्ण कलाओं वाली रातों में प्रेम, करुणा और सौंदर्य का अमृत छलकता सा महसूस होता है। शरद पूर्णिमा की रात तो मानो चंद्रमा का उत्सव होती है—जहाँ उसकी शीतल रोशनी पृथ्वी पर दूधिया धार की तरह बिखर जाती है। ऐसा लगता है जैसे आकाश स्वयं धरती के लिए कोई उपहार लेकर उतरा हो।

इस मौसम में पर्व-त्योहारों की भरमार रहती है। नवरात्रि, दशहरा, शरद पूर्णिमा, करवाचौथ, धनतेरस, दीपावली—सब इसी समय के आसपास आते हैं। शरद ऋतु केवल प्रकृति का परिवर्तन नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक चेतना का भी उजास है। घरों में सजावट, पूजा, संगीत, दीप, मिठाइयाँ और पारिवारिक मिलन—सब मिलकर इस मौसम को जीवन के सबसे आनंदमय समयों में बदल देते हैं। दीपावली की रात जब छोटे-बड़े शहरों और गाँवों में दीपों की श्रृंखला जगमगाती है, तो यह दृश्य केवल सौंदर्य ही नहीं, बल्कि अंधकार पर प्रकाश की विजय का संदेश भी देता है।

शरदी हवा में कुछ ऐसा खिंचाव होता है जो मन को स्थिर भी करता है और उत्साह से भर भी देता है। यह समय आत्मचिंतन, आत्मसंयम और साधना के लिए सर्वोत्तम माना गया है। योग और ध्यान करने वाले साधकों के लिए यह मौसम विशेष प्रिय है, क्योंकि इस समय वातावरण में नमी और तापमान दोनों ही संतुलित रहते हैं। कहा जाता है कि शरद की रातों में ध्यान करने से मन अधिक एकाग्र होता है और प्रकृति के सूक्ष्म स्पंदन से मनुष्य शीघ्र जुड़ जाता है।

यह मौसम साहित्य और कला के विकास के लिए भी अनुकूल है। कवि, लेखक, चित्रकार और संगीतकार—सब इस समय प्रकृति के नवपरिवर्तन से प्रेरणा पाते हैं। नीले विस्तृत आकाश, पारदर्शी चाँदनी, हवा की धीमी गूँज, और दूर तक पसरी शांति—यह सब मिलकर रचनात्मकता के द्वार खोल देता है। इसलिए कई महान काव्य, गीत और चित्र इसी ऋतु की पृष्ठभूमि में रचे गए हैं।

शरद का समय सामाजिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। यह फसल कटाई की शुरुआत का संकेत देता है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नया जोश आता है। ग्रामीण मेले, हाट, बाजार—सब इस मौसम में अधिक सक्रिय होते हैं। लोग वर्षा में रुके हुए कामों को आगे बढ़ाते हैं। शादी-विवाह और शुभ संस्कारों का आरंभ भी प्रायः इसी समय से माना जाता है, क्योंकि शरद तुलसी विवाह के बाद मंगलकारी महीना माना जाता है।

इस मौसम की शीतलता और सुंदरता के बावजूद, शरद कुछ चुनौतियाँ भी लेकर आता है। आकाश के साफ हो जाने से दिन में धूप कुछ तेज महसूस हो सकती है, और कई स्थानों में रात-दिन के तापमान में अंतर से शरीर पर प्रभाव पड़ सकता है। फिर भी, इन चुनौतियों की तुलना में इसके सौंदर्य और लाभ कहीं अधिक हैं। यही कारण है कि भारतीय ऋतु-चक्र में शरद को विशेष स्थान दिया गया है। इसे संतुलन, सौम्यता और पवित्रता की ऋतु कहा गया है।

शरद को अक्सर “स्वच्छता का दूत” भी कहा जाता है। वर्षा के बाद उठी मिट्टी की सुगंध जब धीरे-धीरे शांत होने लगती है, तो वातावरण अधिक स्वच्छ और पारदर्शी हो जाता है। हवा में धूल-गर्द कम हो जाती है, जिससे दूर तक के दृश्य स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं। पर्वत, नदियाँ, खेत, वन—सब अपनी असली चमक में लौट आते हैं। यह मौसम प्रकृति के असली रूप का एहसास कराता है, जो वर्षा में छुपा रहता है और ग्रीष्म में धूप की तीव्रता से दबा रहता है।

शरदी समय में खास बात यह है कि इसमें न तो वर्षा का भय होता है और न ही सर्दी की कठोरता। यह सहज, मधुर और आनंददायक होता है। लोग सुबह-सुबह टहलने निकलते हैं। खेत-खलिहान की ओर जाते किसान, सड़कों पर दौड़ लगाते विद्यार्थी, पार्कों में योग-ध्यान करते बुजुर्ग—ये सभी दृश्य इस मौसम की जीवन्तता को दर्शाते हैं। शरद के दिनों में हवा मानो कहती है — “चलो, जीवन को फिर से नए रंग में जिया जाए।”

इस मौसम का चंद्रमा तो विशेष चर्चा योग्य है। शरद पूर्णिमा की रात को जब चाँद पूरे सौंदर्य से खिला होता है, तब कहा जाता है कि उसकी रोशनी अमृत तुल्य होती है। कई लोग इस रात को खीर बनाकर चाँदनी में रखते हैं और सुबह प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। यह परंपरा केवल धार्मिक नहीं, वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। इसमें चाँदनी के शीतल प्रभाव को स्वास्थ्य के लिए उत्तम माना गया है।

शरदी समय का प्रभाव केवल मानव-जीवन तक सीमित नहीं है। पशु-पक्षी भी इस मौसम की ताजगी से प्रभावित होते हैं। गाय-भैंसें अच्छी हरियाली मिलने से अधिक पोषक चारा खाती हैं। पक्षियों की चहचहाहट इस मौसम में अधिक मधुर सुनाई देती है। प्रवासी पक्षियों का आगमन भी शरद में ही आरंभ होता है, जो प्राकृतिक संतुलन और जैव विविधता का महत्वपूर्ण संकेत है।

शरद ऋतु की रातें विशेष रूप से शांत होती हैं। हवा में हल्की ठंडक, वातावरण में मधुर सुगंध और दूर कहीं जलती दीपक की लौ—ये सब मिलकर वातावरण को आध्यात्मिक बनाते हैं। कई लोग इस समय को साधना, पूजा-पाठ और व्रत-उपवास के लिए श्रेष्ठ मानते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों का महत्व भी इसी मौसम की पवित्रता से जुड़ा है। यह समय न केवल देवी-भक्ति का, बल्कि आत्मशुद्धि और संयम का भी प्रतीक है।

शरद ऋतु मनोवैज्ञानिक रूप से भी मनुष्य को सकारात्मकता प्रदान करती है। साफ नीला आकाश और उजली धूप मन में ऊर्जा भरते हैं। वातावरण की स्पष्टता मन में भी स्पष्टता लाती है। यह मौसम उन भावनाओं को जन्म देता है जो जीवन को गहराई से देखने की प्रेरणा देती हैं। यही कारण है कि शरद को “विवेक की ऋतु” भी कहा गया है—जहाँ मनुष्य बाहरी संसार के सौंदर्य के साथ-साथ अपने भीतर के सौंदर्य को पहचानने की ओर प्रवृत्त होता है।

शरदी समय को भारतीय संस्कृति में “ऋतुओं का राजा” भी कहा गया है। यह न तो अत्यधिक गर्म होता है, न ही अत्यधिक ठंडा। इसमें जीवन के सभी रंग समाहित होते हैं—उत्सव, आध्यात्मिकता, श्रम, फल, सौंदर्य, प्रेम और शांति। शरद का सौंदर्य किसी एक रूप में नहीं, बल्कि अनेक रूपों में प्रस्फुटित होता है—कहीं खेतों की सुनहरी लहरों में, कहीं आकाश की निर्मलता में, कहीं चंद्रमा की दूधिया आभा में और कहीं दीपावली की जगमगाहट में।

इस ऋतु का महत्व हमारे जीवन के उन पहलुओं को उजागर करता है जिन पर हम अक्सर ध्यान नहीं देते। शरद हमें सिखाता है कि संतुलन जीवन का मूल है। प्रकृति जब संतुलित होती है, तभी उसका सौंदर्य अपने चरम पर होता है। उसी प्रकार जब मनुष्य अपने भीतर संतुलन स्थापित करता है—गति और शांति के बीच, श्रम और विश्राम के बीच, विचार और भावनाओं के बीच—तभी जीवन का असली सौंदर्य प्रकट होता है।

अंत में, शरदी समय का वास्तविक अर्थ उसके सौंदर्य में नहीं, बल्कि उसके संदेश में है। यह हमें याद दिलाता है कि जीवन में हर परिवर्तन एक नई शुरुआत लेकर आता है। वर्षा की अशांति के बाद जब शरद की शांति आती है, तो वह हमें सिखाती है कि संघर्ष के बाद सुकून संभव है। यह हमें धैर्य, आशा और सकारात्मकता का पाठ पढ़ाती है। शरद का प्रकाश केवल धरती को नहीं, मनुष्य के भीतर के अंधकार को भी दूर करने का सामर्थ्य रखता है।


Saturday, July 31, 2021

मन के ज्ञान से देखे तो बीती यादें में भवनाओ का असर होता है। मन की आदत वैसे ही बानी हुई रहती है। अच्छी चिजे निकल जाती है। क्योकि उसमे भावनाओ का असर होता है।

मन के ज्ञान में दिन प्रति दिन समय बीतते चला जा रहा है। 

मन के ज्ञान में देखे तो  बच्चे जन्म लेते है। बड़े होते है। अब हम सब बुढ़े होते जा रहे है। कई बार हम ये सोचते है की जिस तारीके से दिन बीतते जा रहा है। ऐसे गतिशील समय में ऐसा लगता है। कुछ सोचे तो कुछ और होता है। जो सोचते है वो फलित नहीं होता है। ऐसा लग रहा है जैसे सरे सोच व्यर्थ होते जा रहे है। उस सोच को पूरा होते देख कर हम अक्सर दुखी ही रहते है। आखिर ये सब का कारण क्या है। जो सोचते है। वो होता नहीं है। होता वो है। जिसके बारे में सोचते नहीं है। ऊपर से इन सभी के कारण दुःख का भाव। तो इसका रास्ता क्या निकलेगा। 

मन के ज्ञान में अपने मन से मजबूर होने पर भाई इसका कोई रास्ता नहीं निकलेगा। और नहीं निकलने वाला है। जो समय पीछे छूट गया है। उसे पूरी तरह से छोड़ दे। तो ही जीवन में फिर से ख़ुशी आयेगी। जो समय हमे आगे मिला हुआ है। कम से कम उसका सदुपयोग करे। और पुरानी  बाते को मन से निकला दे। तो ख़ुशी ऐसे ही हमें मिलाने लगेगी। हमें पता है। की ख़ुशी मिलने से ही हमें ताकत भी मिलती है। ख़ुशी से हमें ऊर्जा मिलता है। तो क्यों हम ख़ुशी के तरफ ही भागे। और पुरानी बाते को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ते जाय। जो बित गया उससे कुछ मिलाने वाला नहीं है। पिछली बात के बारे में जितना सोचेंगे दुःख के अलावा कुछ नहीं मिलाने वाला है 

मन के ज्ञान में बीती यादें में भवनाओ का असर होता है। मन की आदत वैसे ही बानी हुई रहती है। अच्छी चिजे निकल जाती है। क्योकि उसमे भावनाओ का असर होता  है। अच्छी चीजे वो है। जिसमे कोई भाव नहीं होता है। सिर्फ ख़ुशी का एहशास होता है। वो रुकता नहीं है। आगे जा कर दुसरो को ख़ुशी देता है। वो सब के लिए है। भावनाये तो वास्तव में उसका होता है। जो हमारे मन में पड़ा हुआ है। तीखी कील की तरह चुभता रहता है। तो ऐसे भाव को रख कर क्या मतलब होगा जो दुःख ही देने वाला है। 

मन के ज्ञान में निरर्थक भाव भावाना से बच कर ही रहे। तो सबसे अच्छ है। जो बित गया उसे भूल जाए। आगे का जीवन ख़ुशी से गुजारे। नए जीवन की प्रकाश ओर बढे। उसमे हमें क्या मिल पा रहा है। उस ओर कदम बढ़ाये। नए रस्ते चले। जहा पिछली कोई यादो का पिटारा ही हो। जहा पिछला कोई भाव भावना नहीं होना चहिये

मन के ज्ञान में समय दिन प्रति दिन भागते जा रहा है। हर पल को ख़ुशी समझ कर बढ़ते रहे। अच्छी चीजे को ग्रहण करे। जिसमे कोई पड़ेशानी कोई दुःख या कोई ब्यवधान हो। तो उसको पार करते हुए। अपनी मंजिल तक पहुंचे। दुविधाओ को मन से हटा के चले। जीवन में बहुत कुछ आते है। बहुत कुछ जाते है। उनसे ज्ञान लेकर आगे बढ़ते रहे।  खुशी से रहे, प्रसन्नचित रहे, आनंदित रहे।  

मन के ज्ञान में दुविधाए कुछ नहीं होता है। मन का भ्रम होता है।  सही सूझ बुझ से अपने कार्य को विवेक बुद्धि से करे तो हर रूकावट दूर होता रहता है। सय्यम  रखे। किसी भी प्रकार के विवाद को मन पर हावी ही होने दे। मन में सय्यम रखते हुए बुद्धि का उपयोग करे।  हर  कार्यो में सफलता अवस्य मिलेगा। 

मन के ज्ञान में विवेक बुद्धि दिमाग के सकारात्मक पहलू होने चाहिए मन जब सकारात्मक होता है। तो शांत होता है। एकाग्र होता है। एकाग्र मन में सकारात्मक विचार होते है। जिससे सकारात्मक तरंगे दिमाग में जाते है। दिमाग ऊर्जा का क्षेत्र होता है। जो सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ता है। विवेक बुद्धि इससे सकारात्मक होता है। यदि विवेक बुद्धि सकारात्मक नहीं हो तो उसे विक्छिप्त माना जाता है।विक्छिप्त प्राणी के मन में भटकन होता है। उसके मन के उड़न बहुत तेज ख्यालो में रहता है। जिसको कभी पूरा नहीं कर सकता है। निरंतर ख्याल, विचार, मस्तिष्क में होने पर सक्रियता समाप्त होने लगता है। जो की थिक नहीं है। सक्रिय सकारात्मक सोच विचार ही कार्य को पूरा करने में मदत करता है। जिससे मन शांत रहता है। जरूरी कार्य में मदत करता है। कार्य पूरा होता है।  


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