Sunday, December 7, 2025

अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन मानव सभ्यता के सबसे प्रभावशाली, परिवर्तनकारी और व्यापक आयामों में से एक है।

अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन दिवस 

अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन मानव सभ्यता के सबसे प्रभावशाली, परिवर्तनकारी और व्यापक आयामों में से एक है। आकाश में उड़ने का स्वप्न मनुष्य ने सदियों से देखा था, किंतु बीसवीं सदी में यह स्वप्न न केवल साकार हुआ, बल्कि उसने पूरे विश्व की दिशा और गति को ही बदल दिया। आज नागरिक उड्डयन केवल यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने का साधन नहीं है, बल्कि यह आधुनिक अर्थव्यवस्था की रीढ़, वैश्विक कूटनीति का माध्यम, सांस्कृतिक आदान–प्रदान का सेतु और वैश्वीकरण का वास्तविक इंजन बन चुका है। अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन दिवस हर वर्ष 7 दिसंबर को इसी महत्त्व को स्मरण करने, उपलब्धियों को रेखांकित करने और सुरक्षित व स्थायी भविष्य के लिए प्रण लेना का अवसर प्रदान करता है।

नागरिक उड्डयन का इतिहास मूलतः उस क्षण से आरंभ होता है जब राइट बंधुओं ने 1903 में पहली नियंत्रित, स्थायी और मोटर-संचालित उड़ान भरी। यह उड़ान एक अत्यंत छोटा कदम थी, परंतु इसके अर्थ अत्यंत विशाल थे—मानव ने पहली बार गुरुत्वाकर्षण की प्राकृतिक सीमा को चुनौती देकर स्वयं को एक नए आयाम में प्रवेश कराया। यही वह क्षण था जिसने आगे आने वाले वर्षों में न केवल युद्ध, व्यापार या अन्वेषण को बदल दिया, बल्कि मानव जीवन, समय, दूरी और गति की परिभाषाओं को ही पुनर्लेखित कर दिया। प्रारंभिक वर्षों में विमान केवल साहसी खोजकर्ताओं या सैन्य अभियानों तक सीमित थे, किंतु धीरे–धीरे तकनीकी सुधारों, सुरक्षित इंजन, लंबी दूरी के विमानों और बेहतर संचालन प्रणालियों ने इसे जनसामान्य के लिए सुलभ बनाया।

अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन को संगठित स्वरूप देने का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय 1944 में "शिकागो सम्मेलन" से आरंभ हुआ। द्वितीय विश्वयुद्ध के अंतकाल में 52 देशों ने यह समझ लिया था कि आने वाले समय में हवाई यात्रा न केवल बढ़ेगी, बल्कि इसके सुचारु संचालन, नियमों की एकरूपता, सुरक्षा मानकों और अंतरराष्ट्रीय मार्गों की परिभाषा के लिए एक वैश्विक संस्था की आवश्यकता होगी। इसी सम्मेलन के परिणामस्वरूप 1947 में ICAO – International Civil Aviation Organization अस्तित्व में आई। ICAO ने न केवल हवाई यात्रा को सुव्यवस्थित किया, बल्कि विश्वभर के देशों के बीच एक ऐसा तंत्र स्थापित किया जो सीमाओं से परे जाकर सहयोग, सुरक्षा और सतत विकास का प्रतीक बन गया।

सुरक्षा, नागरिक उड्डयन का पहला और सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है। विमानन उद्योग में प्रत्येक प्रक्रिया—चाहे वह पायलट प्रशिक्षण हो, विमान निर्माण हो, वायु यातायात नियंत्रण हो या हवाई अड्डा संचालन—सैकड़ों सुरक्षा मानकों से गुजरती है। ICAO ने सुरक्षा के लिए "सार्स" (SARPs—Standards and Recommended Practices) जैसी विस्तृत अधिसूचनाएं जारी कीं, जिन्हें सभी सदस्य देश लागू करते हैं। आधुनिक हवाई यात्रा इतनी सुरक्षित है कि सांख्यिकीय रूप से विमान दुर्घटनाओं की संभावना सड़क दुर्घटनाओं की तुलना में अत्यंत कम है। यह प्रगति तकनीकी नवाचारों, रडार प्रणालियों, उपग्रह–आधारित नेविगेशन, स्वचालित नियंत्रण तंत्र, प्रशिक्षण के आधुनिक तरीकों और अंतरराष्ट्रीय सहयोग का प्रतिफल है।

नागरिक उड्डयन केवल यात्रा नहीं है; यह देशों की आर्थिक और सामाजिक उन्नति का भी आधार है। विश्व की लगभग एक तिहाई व्यापारिक वस्तुएँ, विशेषकर उच्च–मूल्य वाले इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाएँ, मशीनरी और नाजुक सामग्री, हवाई मार्ग से परिवहन की जाती हैं। पर्यटन उद्योग, जो अनेक देशों की अर्थव्यवस्था में प्रत्यक्ष योगदान देता है, विमानन के बिना असंभव है। एक अध्ययन के अनुसार नागरिक उड्डयन विश्व अर्थव्यवस्था में खरबों डॉलर का योगदान करता है और करोड़ों लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार उपलब्ध कराता है। एयरलाइंस, हवाई अड्डे, ग्राउंड स्टाफ, इंजीनियर्स, पायलट्स, केबिन क्रू, कैटरिंग सर्विस, सुरक्षा विभाग—ये सभी मिलकर एक विशाल आर्थिक ईकोसिस्टम का निर्माण करते हैं।

अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन ने दुनिया को छोटा बना दिया है। पहले जो दूरी महीनों में तय होती थी, अब कुछ घंटों में पूरी हो जाती है। इससे न केवल व्यापार बढ़ा, बल्कि मानव संबंधों में भी अभूतपूर्व परिवर्तन आया। परिवार अधिक जुड़े, संस्कृति का आदान–प्रदान सहज हुआ, अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों, शिक्षा, स्वास्थ्य और आपदा प्रबंधन में भी विमानन ने अमूल्य योगदान दिया। प्राकृतिक आपदाओं के समय राहत सामग्री, बचाव दल और दवाओं को तुरंत प्रभावित क्षेत्रों तक पहुँचाने में एयरलिफ्ट ऑपरेशन्स महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

पर्यावरणीय चुनौतियाँ आधुनिक नागरिक उड्डयन के सामने सबसे बड़ी परीक्षा के रूप में खड़ी हैं। विमानों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम करना, वैकल्पिक ईंधन जैसे—सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (SAF), इलेक्ट्रिक विमान, हाइड्रोजन–संचालित प्रणालियाँ—ये सभी भविष्य की दिशा तय करते हैं। विश्वभर की एयरलाइंस और हवाई अड्डे कार्बन–न्यूट्रल बनने की दिशा में काम कर रहे हैं। ICAO ने "CORSIA" कार्यक्रम के माध्यम से कार्बन ऑफसेटिंग के अंतरराष्ट्रीय मानक बनाए हैं, जो विमानन को पर्यावरण–अनुकूल बनाने का मार्ग खोलते हैं।

तकनीकी प्रगति ने नागरिक उड्डयन को निरंतर बदलते रहने वाला क्षेत्र बना दिया है। पहले जहां नेविगेशन पृथ्वी के चिह्नों पर आधारित था, वहीं आज उपग्रह–आधारित प्रणालियाँ अत्यंत सटीक मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। उड़ान इंजनों में सुधार ने ईंधन खपत कम की है, हवाई अड्डों का डिज़ाइन अधिक व्यवस्थित हुआ है, और आधुनिक स्कैनर सुरक्षा को तेज और प्रभावी बनाते हैं। डिजिटल टिकटिंग, स्वचालित चेक-इन, बायोमेट्रिक बोर्डिंग, एआई आधारित ट्रैफिक मैनेजमेंट—ये सभी नागरिक उड्डयन की दक्षता बढ़ाने वाले नवाचार हैं।

भारत के संदर्भ में नागरिक उड्डयन की यात्रा अत्यंत प्रेरक है। आज भारत विश्व के सबसे तेजी से बढ़ते विमानन बाज़ारों में से एक है। UDAN (“उड़े देश का आम नागरिक”) जैसी योजनाओं ने छोटे शहरों को हवाई नेटवर्क से जोड़ा, जिससे सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा मिला। नए अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों का निर्माण, एयरलाइंस का विस्तार, ड्रोन नीति, और आधुनिक नेविगेशन प्रणाली—ये सब भारत को वैश्विक उड्डयन के प्रमुख केंद्रों में शामिल कर रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन दिवस केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक संदेश भी है—कि मनुष्य की प्रगति तब संभव है जब दुनिया एक साथ आगे बढ़े। विमानन सीमाओं को नहीं मानता; यह सहयोग, सद्भाव, गतिशीलता और मानवता के साझा भविष्य का प्रतीक है। इस दिन हम उन पायलटों, इंजीनियरों, वैज्ञानिकों, वायु यातायात नियंत्रकों, सुरक्षा कर्मियों, विमान निर्माण विशेषज्ञों और उन सभी लोगों को सम्मान देते हैं जिनके योगदान से वैश्विक आकाश सुरक्षित और सक्रिय रहता है।

आधुनिक दुनिया की गति नागरिक उड्डयन पर निर्भर है। हम चाहे वैश्विक अर्थव्यवस्था की बात करें, सांस्कृतिक संबंधों की चर्चा करें, वैज्ञानिक खोजों की बात करें या फिर मानवीय सहायता की—हर क्षेत्र में विमानन अग्रणी भूमिका निभा रहा है। यह केवल मशीनों और इंजनों की कहानी नहीं, बल्कि मानव साहस, नवाचार, सहयोग और प्रगति का महाकाव्य है। नागरिक उड्डयन हमें यह याद दिलाता है कि जब मनुष्य सपनों को पंख देता है, तो आकाश भी सीमा नहीं रह जाता।


शरद ऋतु का आगमन भारतीय उपमहाद्वीप में एक अद्भुत सौंदर्य लेकर आता है। वर्षा की थकान से निढाल पृथ्वी जब हल्की ठंडक की चादर ओढ़ने लगती है।

 


शरदी का समय प्रकृति, मन और जीवन का उजास

शरद ऋतु का आगमन भारतीय उपमहाद्वीप में एक अद्भुत सौंदर्य लेकर आता है। वर्षा की थकान से निढाल पृथ्वी जब हल्की ठंडक की चादर ओढ़ने लगती है, तो लगता है जैसे प्रकृति स्वयं एक उत्सव की तैयारी में जुट गई हो। बादलों के बोझिल झुंड अब छँट चुके होते हैं, आकाश का विस्तार गाढ़े नीले रंग में चमकने लगता है और सूरज अपनी उजली, निर्दोष किरणों से धरती को स्नान कराता सा प्रतीत होता है। यह समय केवल मौसम का परिवर्तन नहीं, बल्कि मानसिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी मानव-जीवन में एक नए अध्याय का उद्घाटन है।

शरद वह ऋतु है जिसमें वातावरण की शुद्धता अपने चरम पर होती है। हेमंत की ठिठुरन और ग्रीष्म की तपन से दूर, यह मौसम अपने संतुलित तापमान के लिए जाना जाता है। दिन धीरे-धीरे सुहावने होते जाते हैं और रातें कोमल ठंडक से भरने लगती हैं। प्रातःकालीन ओस की बूँदें जब घास की नोकों पर चमकती हैं, तो लगता है जैसे किसी अनदेखे कलाकार ने अनगिनत कांच के मोतियों से पृथ्वी को सजा दिया हो। यह दृश्य मानव मन को एक ऐसी ताजगी देता है जो किसी औषधि से कम नहीं।

इस समय खेतों में फसलों का रंग बदलने लगता है। धान की बालियाँ सुनहरी आभा लिए मंद हवा के स्पर्श से झूमने लगती हैं। किसान के चेहरे पर आशा के नए रेखाचित्र उभर आते हैं। शरद का सौंदर्य केवल प्रकृति में ही नहीं, बल्कि मनुष्य के श्रम और आशा के मेल में भी दिखता है। खेतों में चलती हल्की हवा किसान को आने वाले दिनों की खुशहाली का संकेत देती है। इसी ऋतु में कई क्षेत्रों में नई फसल की पूजा होती है, जिसे अन्नकूट, नवधान्य या नववर्ष आरंभ का प्रतीक माना जाता है।

शरद, हिंदी साहित्य में भी अत्यंत प्रिय ऋतु है। कवियों और लेखकों ने इसे शांति, पवित्रता और उजास का प्रतीक माना है। आकाश की स्वच्छता को मन की निर्मलता का रूपक बनाया गया है। दिन की उजली धूप को आशा और व्यापकता का संकेत बताया गया है। चंद्रमा की शीतल, पूर्ण कलाओं वाली रातों में प्रेम, करुणा और सौंदर्य का अमृत छलकता सा महसूस होता है। शरद पूर्णिमा की रात तो मानो चंद्रमा का उत्सव होती है—जहाँ उसकी शीतल रोशनी पृथ्वी पर दूधिया धार की तरह बिखर जाती है। ऐसा लगता है जैसे आकाश स्वयं धरती के लिए कोई उपहार लेकर उतरा हो।

इस मौसम में पर्व-त्योहारों की भरमार रहती है। नवरात्रि, दशहरा, शरद पूर्णिमा, करवाचौथ, धनतेरस, दीपावली—सब इसी समय के आसपास आते हैं। शरद ऋतु केवल प्रकृति का परिवर्तन नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक चेतना का भी उजास है। घरों में सजावट, पूजा, संगीत, दीप, मिठाइयाँ और पारिवारिक मिलन—सब मिलकर इस मौसम को जीवन के सबसे आनंदमय समयों में बदल देते हैं। दीपावली की रात जब छोटे-बड़े शहरों और गाँवों में दीपों की श्रृंखला जगमगाती है, तो यह दृश्य केवल सौंदर्य ही नहीं, बल्कि अंधकार पर प्रकाश की विजय का संदेश भी देता है।

शरदी हवा में कुछ ऐसा खिंचाव होता है जो मन को स्थिर भी करता है और उत्साह से भर भी देता है। यह समय आत्मचिंतन, आत्मसंयम और साधना के लिए सर्वोत्तम माना गया है। योग और ध्यान करने वाले साधकों के लिए यह मौसम विशेष प्रिय है, क्योंकि इस समय वातावरण में नमी और तापमान दोनों ही संतुलित रहते हैं। कहा जाता है कि शरद की रातों में ध्यान करने से मन अधिक एकाग्र होता है और प्रकृति के सूक्ष्म स्पंदन से मनुष्य शीघ्र जुड़ जाता है।

यह मौसम साहित्य और कला के विकास के लिए भी अनुकूल है। कवि, लेखक, चित्रकार और संगीतकार—सब इस समय प्रकृति के नवपरिवर्तन से प्रेरणा पाते हैं। नीले विस्तृत आकाश, पारदर्शी चाँदनी, हवा की धीमी गूँज, और दूर तक पसरी शांति—यह सब मिलकर रचनात्मकता के द्वार खोल देता है। इसलिए कई महान काव्य, गीत और चित्र इसी ऋतु की पृष्ठभूमि में रचे गए हैं।

शरद का समय सामाजिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। यह फसल कटाई की शुरुआत का संकेत देता है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नया जोश आता है। ग्रामीण मेले, हाट, बाजार—सब इस मौसम में अधिक सक्रिय होते हैं। लोग वर्षा में रुके हुए कामों को आगे बढ़ाते हैं। शादी-विवाह और शुभ संस्कारों का आरंभ भी प्रायः इसी समय से माना जाता है, क्योंकि शरद तुलसी विवाह के बाद मंगलकारी महीना माना जाता है।

इस मौसम की शीतलता और सुंदरता के बावजूद, शरद कुछ चुनौतियाँ भी लेकर आता है। आकाश के साफ हो जाने से दिन में धूप कुछ तेज महसूस हो सकती है, और कई स्थानों में रात-दिन के तापमान में अंतर से शरीर पर प्रभाव पड़ सकता है। फिर भी, इन चुनौतियों की तुलना में इसके सौंदर्य और लाभ कहीं अधिक हैं। यही कारण है कि भारतीय ऋतु-चक्र में शरद को विशेष स्थान दिया गया है। इसे संतुलन, सौम्यता और पवित्रता की ऋतु कहा गया है।

शरद को अक्सर “स्वच्छता का दूत” भी कहा जाता है। वर्षा के बाद उठी मिट्टी की सुगंध जब धीरे-धीरे शांत होने लगती है, तो वातावरण अधिक स्वच्छ और पारदर्शी हो जाता है। हवा में धूल-गर्द कम हो जाती है, जिससे दूर तक के दृश्य स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं। पर्वत, नदियाँ, खेत, वन—सब अपनी असली चमक में लौट आते हैं। यह मौसम प्रकृति के असली रूप का एहसास कराता है, जो वर्षा में छुपा रहता है और ग्रीष्म में धूप की तीव्रता से दबा रहता है।

शरदी समय में खास बात यह है कि इसमें न तो वर्षा का भय होता है और न ही सर्दी की कठोरता। यह सहज, मधुर और आनंददायक होता है। लोग सुबह-सुबह टहलने निकलते हैं। खेत-खलिहान की ओर जाते किसान, सड़कों पर दौड़ लगाते विद्यार्थी, पार्कों में योग-ध्यान करते बुजुर्ग—ये सभी दृश्य इस मौसम की जीवन्तता को दर्शाते हैं। शरद के दिनों में हवा मानो कहती है — “चलो, जीवन को फिर से नए रंग में जिया जाए।”

इस मौसम का चंद्रमा तो विशेष चर्चा योग्य है। शरद पूर्णिमा की रात को जब चाँद पूरे सौंदर्य से खिला होता है, तब कहा जाता है कि उसकी रोशनी अमृत तुल्य होती है। कई लोग इस रात को खीर बनाकर चाँदनी में रखते हैं और सुबह प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। यह परंपरा केवल धार्मिक नहीं, वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। इसमें चाँदनी के शीतल प्रभाव को स्वास्थ्य के लिए उत्तम माना गया है।

शरदी समय का प्रभाव केवल मानव-जीवन तक सीमित नहीं है। पशु-पक्षी भी इस मौसम की ताजगी से प्रभावित होते हैं। गाय-भैंसें अच्छी हरियाली मिलने से अधिक पोषक चारा खाती हैं। पक्षियों की चहचहाहट इस मौसम में अधिक मधुर सुनाई देती है। प्रवासी पक्षियों का आगमन भी शरद में ही आरंभ होता है, जो प्राकृतिक संतुलन और जैव विविधता का महत्वपूर्ण संकेत है।

शरद ऋतु की रातें विशेष रूप से शांत होती हैं। हवा में हल्की ठंडक, वातावरण में मधुर सुगंध और दूर कहीं जलती दीपक की लौ—ये सब मिलकर वातावरण को आध्यात्मिक बनाते हैं। कई लोग इस समय को साधना, पूजा-पाठ और व्रत-उपवास के लिए श्रेष्ठ मानते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों का महत्व भी इसी मौसम की पवित्रता से जुड़ा है। यह समय न केवल देवी-भक्ति का, बल्कि आत्मशुद्धि और संयम का भी प्रतीक है।

शरद ऋतु मनोवैज्ञानिक रूप से भी मनुष्य को सकारात्मकता प्रदान करती है। साफ नीला आकाश और उजली धूप मन में ऊर्जा भरते हैं। वातावरण की स्पष्टता मन में भी स्पष्टता लाती है। यह मौसम उन भावनाओं को जन्म देता है जो जीवन को गहराई से देखने की प्रेरणा देती हैं। यही कारण है कि शरद को “विवेक की ऋतु” भी कहा गया है—जहाँ मनुष्य बाहरी संसार के सौंदर्य के साथ-साथ अपने भीतर के सौंदर्य को पहचानने की ओर प्रवृत्त होता है।

शरदी समय को भारतीय संस्कृति में “ऋतुओं का राजा” भी कहा गया है। यह न तो अत्यधिक गर्म होता है, न ही अत्यधिक ठंडा। इसमें जीवन के सभी रंग समाहित होते हैं—उत्सव, आध्यात्मिकता, श्रम, फल, सौंदर्य, प्रेम और शांति। शरद का सौंदर्य किसी एक रूप में नहीं, बल्कि अनेक रूपों में प्रस्फुटित होता है—कहीं खेतों की सुनहरी लहरों में, कहीं आकाश की निर्मलता में, कहीं चंद्रमा की दूधिया आभा में और कहीं दीपावली की जगमगाहट में।

इस ऋतु का महत्व हमारे जीवन के उन पहलुओं को उजागर करता है जिन पर हम अक्सर ध्यान नहीं देते। शरद हमें सिखाता है कि संतुलन जीवन का मूल है। प्रकृति जब संतुलित होती है, तभी उसका सौंदर्य अपने चरम पर होता है। उसी प्रकार जब मनुष्य अपने भीतर संतुलन स्थापित करता है—गति और शांति के बीच, श्रम और विश्राम के बीच, विचार और भावनाओं के बीच—तभी जीवन का असली सौंदर्य प्रकट होता है।

अंत में, शरदी समय का वास्तविक अर्थ उसके सौंदर्य में नहीं, बल्कि उसके संदेश में है। यह हमें याद दिलाता है कि जीवन में हर परिवर्तन एक नई शुरुआत लेकर आता है। वर्षा की अशांति के बाद जब शरद की शांति आती है, तो वह हमें सिखाती है कि संघर्ष के बाद सुकून संभव है। यह हमें धैर्य, आशा और सकारात्मकता का पाठ पढ़ाती है। शरद का प्रकाश केवल धरती को नहीं, मनुष्य के भीतर के अंधकार को भी दूर करने का सामर्थ्य रखता है।


अखुरथ संकष्टी चतुर्थी व्रत हिंदू धर्म में भगवान गणेश के पूजन का एक अत्यंत शुभ, फलदायी और मंगलकारी पर्व है

 

अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत 

अखुरथ संकष्टी चतुर्थी व्रत हिंदू धर्म में भगवान गणेश के पूजन का एक अत्यंत शुभ, फलदायी और मंगलकारी पर्व है, जिसका उल्लेख प्राचीन पुराणों, संहिताओं और लोकग्रंथों में भिन्न-भिन्न नामों के साथ मिलता है। ‘संकष्टी’ शब्द स्वयं में संकटनाशक, संकटों से मुक्ति देने वाला और जीवन में आने वाली बाधाओं का अंत करने वाला सूचक है, जबकि ‘अखुरथ’ भगवान गणेश का एक विशिष्ट नाम है, जिसका अर्थ है “जो अपने भक्तों के सभी कष्टों को असाधारण ढंग से दूर कर उनकी जीवन-यात्रा को सुगम बनाता है।” यह व्रत मुख्य रूप से पौष मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है, किन्तु पंचांग की परंपरा व विविध संप्रदायों में इसे मार्गशीर्ष और माघ कृष्ण चतुर्थियों से भी जोड़ा गया है। संकष्टी चतुर्थी मास में एक बार आती है, लेकिन जब यह मंगलवार या रविवार के दिन पड़ती है तो उसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है। अखुरथ नाम इसलिए जुड़ा कि माना जाता है इसी तिथि पर प्रथम पूज्य श्री गणेश जी सभी प्रकार के दुखों को अखंड रूप से काट कर भक्त को एक नई आध्यात्मिक दिशा देते हैं।

भारत के विभिन्न क्षेत्रों महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, उत्तर भारत, ओडिशा और नेपाल तक इस व्रत का पालन अलग-अलग विधियों, परंपराओं और सांस्कृतिक रंगों में देखने को मिलता है। महाराष्ट्र में इसे ‘संकष्टी’ और ‘अंगारकी’ के साथ जोड़कर देखा जाता है, जबकि उत्तर भारत में इसे संकट निवारक चतुर्थी के रूप में पूजा जाता है। दक्षिण भारतीय परंपरा में यह व्रत चंद्र-दर्शन और विशेष नैवेद्य के कारण प्रसिद्ध है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह व्रत स्त्रियों द्वारा अपने परिवार की दीर्घायु, संतान सुख, घर की उन्नति और गणेश-कृपा की प्राप्ति के लिए किया जाता है, जबकि शहरी समाज में भी इस व्रत का प्रभाव और श्रद्धा उतनी ही दुर्लभ और गहन है।

अखुरथ संकष्टी चतुर्थी व्रत का सबसे बड़ा आकर्षण है

उपवास, गणेश पूजन, चंद्र-दर्शन और रात्रि अनुष्ठान, जिनका पालन अत्यंत श्रद्धा और नियमपूर्वक किया जाता है। इस व्रत में भगवान गणेश के ‘अखुरथ’ स्वरूप का ध्यान किया जाता है, जिसे पुराणों में संकट मोचन, विघ्नहर्ता, ज्ञानवर्धक और बुद्धि प्रदायक स्वरूप के रूप में वर्णित किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन भगवान गणेश पृथ्वी के वातावरण में अत्यधिक सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं, जिससे मनुष्य की मानसिक, आध्यात्मिक और सांसारिक बाधाएँ एक-एक कर दूर होने लगती हैं।

व्रत का प्रारंभ प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर संकल्प लेने से होता है। महिलाएँ अक्सर लाल या पीले वस्त्र धारण करती हैं, जो गणेश जी का प्रिय रंग माना जाता है। संकल्प करते समय भक्त अपने मन की इच्छा, लक्ष्य और प्राकृतिक कष्टों से मुक्ति की कामना कर सकते हैं। व्रत की मूल भावना संयम, आत्मशुद्धि और पूर्ण समर्पण पर आधारित होती है। ‘व्रत’ का अर्थ केवल भोजन न करना नहीं, बल्कि मन को पवित्र करना, इंद्रियों पर नियंत्रण करना और अपनी आत्मा को उच्चतर स्तर पर ले जाना है।

पूजन विधि के दौरान भगवान गणेश की प्रतिमा को लाल वस्त्र, दुर्वा, मोदक, लड्डू, रोली और अक्षत अर्पित किए जाते हैं। संकष्टी चतुर्थी की पूजा में विशेष रूप से ‘चतुर्थी व्रत कथा’ सुनना अनिवार्य माना गया है, क्योंकि यह कथा भगवान गणेश द्वारा अपने भक्तों के संकट हरने की दिव्य गाथाएँ बताती है। कथा सुनने से भक्त के चित्त में श्रद्धा, कर्तव्यबोध और दिव्य प्रेरणा का संचार होता है।

इस व्रत का सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है रात्रि का चंद्र-दर्शन। चंद्रमा को इस दिन गणेश जी का विशेष वाहन और शक्ति का स्रोत माना गया है। प्राचीन कथा के अनुसार, गणेश जी ने चंद्रमा को श्राप दिया था, और संकष्टी के दिन उसी श्राप का निवारण हुआ था। इसीलिए इस दिन चंद्र-दर्शन अत्यंत शुभ माना गया है। व्रती चंद्रमा को जल अर्पित कर, मोदक और मिठाई दिखाकर फिर प्रसाद ग्रहण करते हैं और उपवास का समापन करते हैं।

अखुरथ संकष्टी चतुर्थी के व्रत का आध्यात्मिक महत्व गहन है। यह व्रत मनुष्य के भीतर धैर्य, विश्वास, सहनशीलता और दृढ़ संकल्प का बीज बोता है। उपवास के माध्यम से शरीर हल्का रहता है, मन शांत होता है और आत्मा की शक्ति बढ़ती है। गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है, इसलिए यह व्रत जीवन के हर क्षेत्र में बाधाओं को दूर करने में सहायक माना गया है चाहे वह स्वास्थ्य से जुड़ी हों, शिक्षा, व्यापार, संतान, गृहस्थी, नौकरी, मानसिक तनाव या किसी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा।

इस व्रत के पीछे वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है। उपवास, गहरी श्वास, मंत्र-जप और ध्यान मनुष्य की न्यूरोलॉजिकल गतिविधियों को संतुलित करते हैं। चंद्र-दर्शन से मन में शांति और हार्मोनल संतुलन उत्पन्न होता है। धार्मिक और आध्यात्मिक शक्ति के साथ-साथ यह व्रत जीवन में अनुशासन स्थापित करने वाला भी माना गया है।

सांस्कृतिक दृष्टि से देखें तो यह व्रत भारतीय समाज में महिला शक्ति, परिवार-केन्द्रित संस्कृति और सामाजिक मूल्यों को मजबूत करता है। व्रत में सामूहिक पूजा, कथा, भजन और प्रसाद वितरण सामाजिक एकता को बढ़ाता है। घर में गणेश जी का पूजन वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।

पुराणों में कहा गया है कि जिसने भी अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत श्रद्धापूर्वक किया, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं। गणेश जी उसे ज्ञान, धन, बुद्धि, यश, समृद्धि और संतोष प्रदान करते हैं।

अखुरथ संकष्टी चतुर्थी की कथा में एक प्रमुख प्रसंग आता है—राजा हरिश्चंद्र के वंशज सत्यव्रत का। सत्यव्रत पर कई प्रकार के संकट आ पड़े थे, और एक महर्षि ने उन्हें इस व्रत का पालन करने की सलाह दी। सत्यव्रत ने पूरी श्रद्धा से व्रत किया, कथा सुनी और चंद्र-दर्शन कर उपवास समाप्त किया। परिणामस्वरूप उनके सभी संकट दूर हुए, राज्य की शुभता लौट आई और उनके जीवन में नया प्रकाश आया। इसी कथा से प्रेरणा लेकर भक्त इस व्रत का पालन करते हैं।

एक अन्य कथा में वर्णन आता है कि भद्रकाली नामक एक राक्षसी से पृथ्वी को मुक्ति दिलाने के लिए देवताओं ने गणेश जी का आह्वान किया। गणेश जी ने अखुरथ रूप धारण कर राक्षसी के आतंक का अंत किया। इसी विजय के प्रतीक रूप में यह व्रत मनाया जाता है।

आज के समय में यह व्रत अधिक लोकप्रिय हुआ है। लोग इसे केवल धार्मिक कारणों से ही नहीं, बल्कि मानसिक शांति, आत्मविश्वास, सकारात्मक ऊर्जा और पारिवारिक सुख-समृद्धि के लिए भी करते हैं। गणेश जी का प्रतीक ही बुद्धि, सफलता और शुभारंभ का है, इसलिए संकष्टी चतुर्थी व्रत जीवन में नए अवसरों का मार्ग खोलने वाला माना जाता है।

व्रत के दौरान भक्त ‘ॐ गं गणपतये नमः’, ‘गणेश गायत्री मंत्र’, ‘वक्रतुंड महाकाय’ और ‘संकटनाशन गणेश स्तोत्र’ का जप करते हैं। इन मंत्रों का प्रभाव मन और वातावरण दोनों को शुद्ध करता है।

निष्कर्षतः, अखुरथ संकष्टी चतुर्थी व्रत एक ऐसा आध्यात्मिक पर्व है जो व्यक्ति को भक्ति, अनुशासन, संतोष, संयम, शक्ति और सकारात्मकता प्रदान करता है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक जीवन-दर्शन है जो बताता है कि संकट जीवन का हिस्सा हैं, परंतु भक्तिगुण, धैर्य, सदाचार और संकल्प से उन्हें पार किया जा सकता है। गणेश जी के इस दिव्य रूप की कृपा से भक्त का जीवन सुख, समृद्धि, शांति और आनंद से भर जाता है।


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