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Thursday, December 18, 2025

बैंगन के दो पहलू व्यंजन या व्यंग स्वाद और हास्य मनोरंजन से भरा हुआ

बैंगन के दो पहलू 

सकारात्मक बैंगन: एक व्यंजन

बैंगन भारतीय रसोई का ऐसा व्यंजन है, जो सादगी में भी स्वाद का पूरा संसार समेटे रहता है। देखने में साधारण, पर पकने के बाद मसालों के संग ऐसा घुलता है कि थाली की शान बन जाता है। चाहे गाँव की मिट्टी की खुशबू हो या शहर की आधुनिक रसोई—बैंगन हर जगह अपनापन निभाता है।

भरवां बैंगन की बात ही अलग है। छोटे-छोटे बैंगनों में मूंगफली, तिल, धनिया और मसालों का भरावन जब धीमी आँच पर पकता है, तो खुशबू भूख को आवाज़ देने लगती है। वहीं बैंगन का भर्ता—आग में भूना हुआ, सरसों के तेल, लहसुन और हरी मिर्च के साथ—रोटी के साथ ऐसा लगता है जैसे स्वाद का उत्सव हो।

दक्षिण भारत में बैंगन सांभर और गोझू में, पूर्व में झोल और भाजी में, तो उत्तर में आलू-बैंगन की सब्ज़ी के रूप में रोज़मर्रा का साथी है। कम तेल में पकने वाला, पोषण से भरपूर और हर मौसम में उपलब्ध—बैंगन सच में बहुपयोगी व्यंजन है।

अक्सर उपेक्षित समझा जाने वाला बैंगन, सही तरीके से पक जाए तो मन बदल देता है। यह सिर्फ सब्ज़ी नहीं, भारतीय स्वाद परंपरा का अहम व्यंजन है—सादा, सुगंधित और संतोष देने वाला।


नकारात्मक बैंगन: एक व्यंग

सब्ज़ियों की दुनिया में अगर कोई सबसे ज़्यादा बदनाम है, तो वह है बैंगन। बेचारा न फल है, न फूल—और होने की कोशिश भी नहीं करता। फिर भी हर थाली में घुसने की अद्भुत योग्यता रखता है। लोग कहते हैं, “आज सब्ज़ी में बैंगन है,” और घर में ऐसा सन्नाटा छा जाता है मानो बिजली का बिल आ गया हो।

बैंगन की सबसे बड़ी समस्या उसकी पहचान है। कभी वह भरता हुआ बनता है, कभी भर्ता बनकर पिटता है, तो कभी भाजी में गुमनाम सा पड़ा रहता है। शादी-ब्याह में जाए तो लोग पूछते हैं, “सब्ज़ी कौन-सी है?” जवाब मिलता है—बैंगन। बस, आधे मेहमान उपवास का मन बना लेते हैं।

राजनीति में भी बैंगन का बड़ा योगदान है। हर बात पर लोग कह देते हैं—“अरे, ये तो बैंगन है!” न तर्क, न तथ्य—बस एक शब्द और पूरी बहस समाप्त। अगर बैंगन बोल पाता, तो कहता, “भाई, गलती मेरी क्या है?”

माँ जब बैंगन खरीद लाती है, तो बच्चे ऐसे देखते हैं जैसे रिज़ल्ट में सप्ली आ गई हो। पिता चुपचाप नमक ज़्यादा ढूँढने लगते हैं और दादी कहती हैं, “हमारे ज़माने में बैंगन नहीं खाते थे।” जबकि सच यह है कि उन्हीं के ज़माने में बैंगन सबसे ज़्यादा खाया गया।

बैंगन का रंग भी उसके खिलाफ साज़िश है—न पूरा काला, न ठीक बैंगनी। ऊपर से चमकदार, अंदर से सफ़ेद—बिल्कुल वैसा ही जैसा कुछ लोग बाहर से शरीफ़ और अंदर से… खैर, रहने दीजिए।

फिर भी बैंगन का आत्मविश्वास ग़ज़ब का है। गालियाँ सुनकर भी थाली में डटा रहता है। उसे पता है, आज नहीं तो कल—किसी न किसी रूप में उसे खाया ही जाएगा। आखिरकार बैंगन ही एक ऐसी सब्ज़ी है जो न पसंद होकर भी ज़िंदा है।

तो अगली बार जब थाली में बैंगन दिखे, उसे न कोसें। याद रखिए—बैंगन नहीं होता, तो व्यंग्य किस पर करते?


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