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Wednesday, August 11, 2021

जीवंत कल्पना जीवन के विकास के लिए कुछ योजना वर्त्तमान में क्या चल रहा बिता हुआ समय कैसा आने वाला भविष्य कैसा हो तरक्की उन्नति और विकास कैसे हो?

जीवंत कल्पना

 

जीवंत कल्पना खुशहाल जीवन के कल्पना में मनुष्य अपने अस्तित्व में आना

खुशहाल जीवन के कल्पना में। जब मनुष्य अपने अस्तित्व में आता है। अपने जीवन के विकास के लिए कुछ योजना बनता है। वर्त्तमान में क्या चल रहा है। बिता हुआ समय कैसा था?  आने वाला भविष्य कैसा होगा? तरक्की, उन्नति और विकास कैसे हो? जब ब्यक्ति ऐसा कुछ विचार कर के सोचता है।  भविष्य के जीवन के लिए खुशहाली की कामना करता है। जीवंत कल्पना मनुष्य को करना ही चाहिये। जब तक मनुष्य सोचेगा नहीं तब तक कुछ करने का भावना जागेगा नहीं। सोचना कल्पना करना किसी निर्माण के बुनियाद से काम नहीं होता है।

 

जीवंत कल्पना जिस विषय या कार्य पर सक्रिय होते है। कार्य की सफलता के लिए। जब सक्रीय हो कर विचार करते है। जीवंत कल्पना होता है।  जीवंत कल्पना करना ही चाहिए। 

 

जीवंत कल्पना में युवावस्था में अक्सर लोग जीवन में आकर्षण के लिए जीवंत कल्पना करते है

जीवंत कल्पना में युवावस्था में अक्सर लोग सकारात्मक सोच रखते है। जीवन में आकर्षण के लिए खासकर ऐसे युवा जीनके कोई प्रेमिका हो प्रसन्नचित मन के लिए  युवा जीवंत कल्पना करते है।  हालाकि कल्पना की दृस्टि से देखा जाए। तो उचित नहीं है। सोच समझ और कल्पना में जितना मनुष्य सरल और सहज हो कर संतुलित कल्पना करेगा।  उतना ही अच्छा है।  मन को जीवंत कल्पना में मनोरंजक करना। उतना ही तक ठीक है। बस वो कल्पना हो। कल्पनातीत नही होना चाहिए। क्योकि ये सब जीवंत कल्पना के दायरे में ही आते है। बहुत ज्यादा सक्रीय होते है। बहुत तेज गति से दिल और दिमाग पर प्रभाव डालते है।

जीवंत कल्पना सबसे अच्छा है। अपने मन, दिल, दिमाग, विवेक, बुद्धि, सोच, समझ के विकास और संतुलन के लिए करे। तो जीवंत कल्पना उपयोगी है।


Tuesday, August 10, 2021

ज्यादाकर मन में समय के नकारात्मक भाव ही नजर आते हैं कुछ ही बाते जो अच्छे होते हैं वो बाते सकारात्मक होते है बारंबर याद करने को मन करता है

जिन चीजों से मुझे आप से नफरत है


जब आपके मन में झाकते है तो बहुत कुछ जीवन में समझ में आने लग जाता है

जब अपने मन में झाकते है। बहुत कुछ समझ में आने लग जाता है।  ज्यादाकर मन में समय के नकारात्मक भाव ही नजर आते हैं। कुछ ही बात जो अच्छे होते हैं। जो बाते सकारात्मक होते है। उन्हें बारंबर याद करने को मन करता है। जो बात मन को अच्छे नहीं लगते हैं। उन बातो से किनारा करना कभी कभी बहुत मुश्किल हो जाता है।  तब गुसा भी ऐसा ही आता है।  जब कुछ पुरानी बात मन को झकझोर देता है।  तब नकारात्मक बाते ही मन में उठने लगते हैं।  ऐसा मन का प्रबृत्ति होता है।

 

वास्तविक जीवन के आयाम में सकारात्मक बातो के लिए कम जगह होता है

अक्सर जीवन के आयाम में सकारात्मक बातो के लिए कम जगह होता है। इसके पीछे कार ये है की ज्यदाकर मिलाने जुलने वाले लोगो का भावना कोई कोई इच्छा से जुड़ा होता है। ज्यादाकर लोगो की इच्छा नकारात्मक ही होते है।  जिसका प्रभाव दोनों के मन पर पड़ता है। जिसके कार बात सुनाने वाला और बात कहने वाला दोनों के मन पर नकारात्मक इच्छा का प्रभाव पड़ता है।  इसलिए कल्पना के दौरान या कोई विशेष कार्य के लिए कुछ सोचते है। तो उससे जुड़ा हुआ भावना चरितार्थ होता है। इस प्रकार के जो नकारात्मक बाते जब मन में उठाते है। तो गुस्सा भी बहुत आता है। साथ में अपने सोच और कल्पना पर अपना प्रभाव डालता है।

 

जीवन में उन्नति के लिए प्रबृत्ति सकारात्मक होना बहुत जरूरी है

जीवन की प्रबृत्ति सकारात्मक होना बहुत जरूरी है।  वास्तव में सकारात्मक सोच में स्वयं के इच्छा के लिए कोई जगह नहीं होता है यदि स्वयं के लिए कुछ  सोचते है। वह सोच के भावना में या कल्पना में लालच भी आता है। जो की एक निम्न प्रबृत्ति है। जिससे स्वयं के इच्छा  कुछ सोचना या कल्पना करना पूरी तरह से सार्थक नहीं होता है।  इसलिए सोच या कल्पना में कुछ प्राप्त करना चाहते है। तो कल्पना में जिस विषय पर सोच रहे है। मन का झुकाव उसी विषय वस्तु पर होना चाहिये। जिससे उस विषय वस्तु के कार्य में पूरा सफलता मिले। जब वह कार्य सफल हो जाता है। तब उस कार्य के परिणाम से फायदा मिलता है।  वही वास्तविक सफलता होता है। इसलिए कभी भी सोच और कल्पना में अपनी इच्छा को उजागर नही होने देना चाहिए।   

Monday, August 9, 2021

कबीर दास जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा दया लेकिन जब मैंने खुद अपने मन के अंदर में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई इंसान नहीं है दुनिया में

कबीर दस जी कहते है। कि मैं सारा जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा दया। लेकिन जब मैंने खुद अपने मन के अंदर में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई इंसान नहीं है दुनिया में। मैं ही सबसे स्वार्थी और बुरा हूँ। हम लोग दूसरों की बुराइयां बहुत देखते हैं। लेकिन अगर हम खुद के मन के अंदर झाँक कर देखेंगे तो पाएंगे कि हमसे बुरा कोई इंसान इस दुनिया में नहीं है।

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दूध और पानी को अलग करने की क्षमता होती है। यह विश्वास भले ही वैज्ञानिक दृष्टि से सत्य न हो, परंतु इसके पीछे छिपा दार्शनिक और नैतिक अर्थ अत्यंत गहरा और प्रेरणादायक है।

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