लक्ष्मी नारायण भगवान की कथा, स्वरूप, महत्व, अवतार, पूजन विधि, प्रतीकात्मक अर्थ और आध्यात्मिक दर्शन का संपूर्ण वर्णन है।
लक्ष्मी नारायण भगवान – एक पूर्ण दिव्य दर्शन
भूमिका
सनातन धर्म की विशाल परंपरा में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का संयुक्त स्वरूप “लक्ष्मी नारायण” के रूप में पूजित है।
यह स्वरूप केवल पति-पत्नी का दैवीय मेल नहीं, बल्कि सृष्टि की स्थिरता और समृद्धि का ब्रह्मीय संतुलन है।
जहाँ नारायण संरक्षण और पालन के प्रतीक हैं, वहीं लक्ष्मी समृद्धि, सौंदर्य और शुभता की अधिष्ठात्री देवी हैं।
इन दोनों की एकता संसार के हर अस्तित्व का मूल तत्व है।
लक्ष्मी नारायण की उत्पत्ति
(क) ब्रह्मांड की सृष्टि से पूर्व
पुराणों के अनुसार, जब सृष्टि का आरंभ नहीं हुआ था, तब केवल शेषशायी भगवान विष्णु ही अनंत सागर पर योगनिद्रा में स्थित थे।
उनकी नाभि से ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उनसे सृष्टि की रचना प्रारंभ हुई।
वह सृष्टि केवल स्थूल रूप में थी, उसमें आकर्षण, सौंदर्य और जीवन की गति का अभाव था।
तब भगवान की योगमाया से श्री लक्ष्मी जी प्रकट हुईं और तभी संसार में चेतना और समृद्धि का संचार हुआ।
(ख) लक्ष्मी का प्राकट्य
लक्ष्मी जी के उद्भव के कई प्रसंग हैं।
सबसे प्रसिद्ध कथा है समुद्र मंथन की।
जब देवता और दैत्य अमृत प्राप्ति के लिए क्षीर सागर का मंथन कर रहे थे, तब चौदह रत्न निकले, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण थी श्री लक्ष्मी देवी।
उन्होंने पुष्पों की माला लेकर भगवान विष्णु के गले में डाल दी, और तभी से वे उनकी अर्धांगिनी बन गईं।
लक्ष्मी नारायण का स्वरूप
(क) भगवान नारायण का स्वरूप
- चार भुजाएँ शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए।
- शेषनाग पर शयन करते हुए, क्षीरसागर में स्थित।
- करुणामय, शांत और तेजस्वी मुखमंडल।
- वस्त्र पीतांबर, मुकुट मणिमय।
(ख) माता लक्ष्मी का स्वरूप
- चार भुजाएँ कमल, स्वर्णपात्र, वरमुद्रा और अभय मुद्रा।
- कमलासन पर विराजमान, दोनों ओर हाथियों द्वारा अभिषेकित।
- सौंदर्य, शांति, माधुर्य और तेज का संगम।
(ग) संयुक्त स्वरूप “लक्ष्मी नारायण”
जब दोनों साथ पूजित होते हैं, तो वह स्वरूप संपूर्णता, सौंदर्य और धर्म का प्रतीक बन जाता है।
यह केवल वैवाहिक मिलन नहीं, बल्कि ऊर्जा (शक्ति) और पुरुष (चेतन) का अद्वैत संयोग है।
लक्ष्मी नारायण का वैदिक महत्व
वेदों और उपनिषदों में इन्हें परब्रह्म और माया के रूप में वर्णित किया गया है।
- नारायण उपनिषद कहता है
“नारायणः परो ज्योति आत्मा नारायणः परः।”
अर्थात् सृष्टि का आदि और अंत दोनों ही नारायण हैं। - श्रीसूक्त में कहा गया है
“महादेवीं विश्वमाता नमाम्यहम्।”
अर्थात् लक्ष्मी विश्व की माता हैं।
लक्ष्मी बिना नारायण अधूरे हैं, और नारायण बिना लक्ष्मी के निःसंग।
इसलिए उन्हें “लक्ष्मीपति” कहा गया है।
पुराणों में लक्ष्मी नारायण
(क) विष्णु पुराण
विष्णु पुराण में कहा गया है लक्ष्मी जी विष्णु की चिरसंगिनी हैं।
जहाँ भी विष्णु अवतरित होते हैं, वहाँ लक्ष्मी उनके साथ प्रकट होती हैं।
उदाहरणार्थ:
- रामावतार में सीता जी के रूप में।
- कृष्णावतार में रुक्मिणी जी के रूप में।
- वामनावतार में पद्मा के रूप में।
(ख) भागवत पुराण
भागवत में लक्ष्मी नारायण की महिमा अत्यंत अद्भुत कही गई है।
भगवान विष्णु कहते हैं “जो भक्त लक्ष्मी सहित मेरी उपासना करता है, वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों फल प्राप्त करता है।”
लक्ष्मी नारायण का दर्शन और पूजन
(क) पूजन विधि
- स्नान करके पीले वस्त्र धारण करें।
- पूर्व दिशा में आसन बिछाकर लक्ष्मी-नारायण की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- दीप प्रज्वलित करें।
- गंगाजल, अक्षत, पुष्प, चंदन, फल और तुलसी अर्पित करें।
- “ॐ लक्ष्मी नारायणाय नमः” का 108 बार जप करें।
- प्रसाद स्वरूप तुलसीपत्र और पंचामृत ग्रहण करें।
(ख) विशेष पर्व
- लक्ष्मी नारायण व्रत मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा।
- कार्तिक पूर्णिमा जब विष्णु और लक्ष्मी एक साथ पूजित होते हैं।
- वैष्णव एकादशी हर एकादशी को लक्ष्मी नारायण का ध्यान श्रेष्ठ माना गया है।
दार्शनिक दृष्टि से लक्ष्मी नारायण
(क) सृष्टि का संतुलन
नारायण का अर्थ है जो “नर” (जीवों) में व्याप्त हैं।
लक्ष्मी का अर्थ है जो “लक्षण” अर्थात् गुण और सौंदर्य देती हैं।
दोनों मिलकर जीवन को स्थायित्व और सम्पन्नता प्रदान करते हैं।
(ख) आध्यात्मिक प्रतीक
- नारायण = चेतना, व्यवस्था, धर्म।
- लक्ष्मी = ऊर्जा, कृपा, सौंदर्य।
उनका संयुक्त रूप दर्शाता है कि भक्ति और भौतिकता का संतुलन आवश्यक है।
लक्ष्मी नारायण के मंदिर और तीर्थ
भारत में अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं जहाँ लक्ष्मी नारायण पूजित हैं:
- लक्ष्मी नारायण मंदिर (बिड़ला मंदिर), दिल्ली – आधुनिक स्थापत्य का अद्भुत उदाहरण।
- लक्ष्मी नारायण मंदिर, भुवनेश्वर – कलिंग शैली में निर्मित।
- बदरी नारायण (उत्तराखंड) – चार धामों में प्रमुख।
- श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर (श्रीरंगम) – जहाँ भगवान शेषशायी रूप में हैं और लक्ष्मी माता उनके वक्षस्थल पर विराजमान।
- पद्मनाभ स्वामी मंदिर (केरल) – जहाँ नारायण शेषनाग पर लेटे हैं और लक्ष्मी माता उनके समीप हैं।
लक्ष्मी नारायण के अवतार
| अवतार | लक्ष्मी का रूप | उद्देश्य |
|---|---|---|
| रामावतार | सीता | अधर्म का नाश, रावण वध |
| कृष्णावतार | रुक्मिणी | धर्म की स्थापना, प्रेम और भक्ति का प्रसार |
| वामनावतार | पद्मा | बलि राजा को धर्ममार्ग पर लाना |
| नरसिंहावतार | लक्ष्मी (प्रत्यक्षा न होकर शक्ति रूप में) | भक्त प्रह्लाद की रक्षा |
लक्ष्मी नारायण की कृपा के फल
- धन और समृद्धि की प्राप्ति।
- मन की शांति और वैराग्य का संतुलन।
- भक्ति, धर्म और सत्य का पालन।
- पारिवारिक सुख और संतोष।
- कर्म में सफलता और मोक्ष की प्राप्ति।
लक्ष्मी नारायण का आधुनिक संदेश
आज की भौतिक दुनिया में भी लक्ष्मी नारायण का संदेश अत्यंत प्रासंगिक है
समृद्धि तभी स्थायी है जब वह धर्म के आधार पर हो।
नारायण धर्म हैं, लक्ष्मी धन हैं।
धन धर्म के बिना अधर्म की ओर ले जाता है, और धर्म धन के बिना टिक नहीं पाता।
अतः दोनों का संतुलन जीवन का परम सूत्र है।
भक्तों के प्रसिद्ध भजन और मंत्र
- “ॐ लक्ष्मी नारायणाय नमः”
- “श्री लक्ष्मी नारायण अष्टकम्”
- “जय लक्ष्मी नारायण जय लक्ष्मी नारायण”
- “श्री विष्णु सहस्रनाम”
- “श्री सूक्त” और “पुरुष सूक्त”
निष्कर्ष
लक्ष्मी नारायण केवल देवी-देवता नहीं, बल्कि जीवन के दो आधार स्तंभ हैं
- एक संरक्षण और धर्म का (नारायण),
- दूसरा समृद्धि और सौंदर्य का (लक्ष्मी)।
इन दोनों के समन्वय से ही जीवन में शांति, सम्पन्नता और मोक्ष की प्राप्ति संभव है।
भक्त जब लक्ष्मी नारायण का ध्यान करता है, तो उसके जीवन में सदाचार, प्रेम, करुणा और धन का प्रवाह स्वाभाविक हो जाता है।
अंतिम प्रार्थना:
“हे लक्ष्मी नारायण!
आपसे ही सृष्टि का आरंभ और अंत है।
हमारे जीवन में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों की कृपा बरसाइए।
हमारे हृदय में प्रेम, ज्ञान और वैराग्य का प्रकाश सदैव बना रहे।”
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