जीवन का अस्तित्व में सक्रिय कल्पना
सक्रिय कल्पना मे अपने जीवन का अस्तित्व में कल्पना के संसार में मनुष्य का जीवन का अस्तिव कल्पना के संसार में मनुष्य का जीवन पनपता है।
कल्पना चाहे छोटा हो या बड़ा हर कोई कल्पना के संसार में विचरण करता है।
कल्पना के अनुरूप अपना कार्य करता है।
जीवन में आवश्यक कार्य के लिए चिंतन करता है। कार्य के प्रति सक्रीय रहता है।
जीवन में सक्रियता तो देता ही है। साथ में मन मस्तिष्क को भी सक्रीय बनाये रखता है।
चुस्ती फुर्ती से कल्पना सक्रीय होता है।
जीवन की सक्रियत रहने के लिए सबसे पहले शरीर, मन, बुद्धि, विवेक का सक्रीय होना जरूरी है।
शरीर चुस्त दुरुस्त रहेगा तो मन में भरपूर सकारात्मक ऊर्जा होगा।
मन सकारात्मक होगा तो ब्यक्ति बुद्धिमान बनेगा।
बुद्धिमान ब्यक्ति के सोच समझ सकारात्मक ही होंगे।
लिहाजा ऐसे ब्यक्ति के कल्पना भी सक्रीय होगे।
जीवन का अस्तीत्व में सक्रीय कल्पना तब ज्यादा फायदेमंद जब वो सकारात्मक हो
जीवन का अस्तीत्व सक्रीय कल्पना तब ज्यादा फायदेमंद होता है। जब ब्यक्ति उस तरफ पुरे मन से कार्य करता है। ऐसा न हो की कल्पना का संसार बना लिए और कार्य के नाम पर कुछ नहीं किये। तब कल्पना का दुश्य परिणाम ही निकलता है। कल्पना वही तक सही है। जहा तक कल्पना के अनुरूप कार्य करे। कल्पना कोई भी हो बहुत सक्रीय होते है। कल्पना का पूरा प्रभाव मन और मस्तिष्क पर पड़ता है। यदि कल्पना के अनुसार सक्रीय हो कर कल्पना से जुड़े कार्य में ब्यस्त है। तो इससे सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। सक्रीय कार्य समय पर पूरा होगा।
कल्पना के अनुसार कार्य में सक्रियता नहीं है तो मन सुस्त होने लगेगा।
मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। बाद में मन भी नकारात्मक होने लग जायेगा। सक्रियता सकारात्मकता को बढ़ाता है। सुस्तपना नकारात्मक प्रबृति है। कार्यहीनता भी नकारात्मक प्रबृति है। कर्महिनाता से बिलकुल बचकर रहना चाहिये। मस्तिष्क ऊर्जा का क्षेत्र है। मस्तिस्क मन से प्रभावित होता है। मन का लगना सकारात्मक प्रबृति है। मन का किसी कार्य में नहीं लगना नकारात्मक प्रबृति है।
कल्पना सक्रीय है। जब कल्पना सक्रीय होता है।
तब मन भी सक्रीय होता है। परिणाम मस्तिष्क में दिमाग भी सक्रीय होता है। मन सुस्त पड़ गया तो जरूरी नहीं की कल्पना और दिमाग भी सुस्त पड़ेगा। वो चलता ही रहेगा। मनुष्य सचेतन में रहता है। जिसे सचेत मन कहते है। कल्पना अवचेतन मन की प्रकृति है। अवचेतन मन का संपर्क अंतरमन से है। सचेत मन सक्रीय नहीं रहा तो अचेतन को बढ़ा देगा। जो नकारात्मक प्रबृति है।
सक्रिय कल्पना मे मस्तिष्क में दिमाग के दो भाग होते है।
ऊर्जा की दृस्टि से समझा जाए तो दिमाग में दो प्रकार के ऊर्जा का प्रवाह होता है। जिसे सकारात्मक ऊर्जा और नकारात्मक ऊर्जा कहते है। मन के स्वभाव से ऊर्जा कार्य करता है। मन की जैसी प्रकृति होगा। ऊर्जा वैसा कार्य करेगा। मन और उर्जा का संगम होता है। इसलिए मन सदा सकरात्मक होन चाहिए।
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