Tuesday, November 4, 2025

कार्तिक पूर्णिमा धार्मिक, आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, सामाजिक और वैज्ञानिक महत्व है।

कार्तिक पूर्णिमा धार्मिक, आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, सामाजिक और वैज्ञानिक महत्व है। 


कार्तिक पूर्णिमा 


भूमिका

भारतीय संस्कृति में हर तिथि, हर पर्व का एक विशिष्ट आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष के बारह महीनों में कार्तिक माह को अत्यंत पवित्र और पुण्यदायी माना गया है। इस माह की पूर्णिमा तिथि, जिसे कार्तिक पूर्णिमा कहा जाता है, धार्मिक दृष्टि से सर्वोच्च स्थान रखती है। इसे त्रिपुरी पूर्णिमा, देव दीपावली, गुरु नानक जयंती, भिष्म पंचक समापन, तुलसी विवाह का समापन और कार्तिक स्नान का अंतिम दिन जैसे अनेक पवित्र कारणों से विशेष माना गया है।

कार्तिक पूर्णिमा न केवल हिन्दू धर्म में बल्कि सिख धर्म में भी महान पर्व के रूप में मनाई जाती है, क्योंकि इसी दिन गुरु नानक देव जी, सिखों के प्रथम गुरु, का जन्म हुआ था। यह तिथि धर्म, भक्ति और प्रकाश का प्रतीक है। इस दिन गंगा स्नान, दीपदान, दान-पुण्य, भगवान विष्णु और शिव की उपासना का अत्यधिक फल प्राप्त होता है।


कार्तिक माह का महत्व

हिन्दू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास अश्विन मास के बाद आता है। यह शरद ऋतु का समय होता है — जब प्रकृति अत्यंत सुंदर और शांत दिखाई देती है। वर्षा समाप्त हो चुकी होती है, आकाश निर्मल और नदियाँ स्वच्छ जल से भरी होती हैं।

वैदिक ग्रंथों में कहा गया है —

"कार्तिकं नाम मासानां पुण्यं पापप्रणाशनम्।"
अर्थात्, कार्तिक माह सभी महीनों में सबसे अधिक पुण्यदायी और पापों को नष्ट करने वाला होता है।

यह महीना व्रत, उपवास, स्नान और दीपदान का महीना माना गया है। कार्तिक मास के आरंभ से ही तुलसी पूजा, दीपदान, भगवान विष्णु की आराधना तथा गंगा स्नान का विशेष विधान बताया गया है।


कार्तिक पूर्णिमा का पौराणिक महत्व

1. त्रिपुरासुर वध

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार तीन असुर भाई — त्रिपुर, तारकाक्ष और कमलाक्ष — ने भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था कि वे तीन नगरों (त्रिपुर) में निवास करेंगे और केवल वह देवता उन्हें मार सकेगा जो एक ही बाण से तीनों नगरों को नष्ट कर दे। इन तीनों ने देवताओं पर अत्याचार प्रारंभ कर दिए।

देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया। यह वध कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा या त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस अवसर पर देवताओं ने दीप जलाकर आनंद मनाया, और तभी से देव दीपावली की परंपरा प्रारंभ हुई।

2. देव दीपावली की उत्पत्ति

कार्तिक पूर्णिमा को देवताओं की दीपावली कहा जाता है। मान्यता है कि दीपावली मानवों की होती है जबकि देव दीपावली देवताओं की। जब त्रिपुरासुर का वध हुआ, तब समस्त देवताओं ने स्वर्ग में दीप प्रज्ज्वलित किए और भगवान शिव की स्तुति की। इसी कारण गंगा तटों पर इस दिन लाखों दीप जलाए जाते हैं। विशेष रूप से काशी (वाराणसी) में यह पर्व भव्य रूप से मनाया जाता है।

3. भगवान विष्णु का विशेष पूजन

पुराणों में वर्णन है कि कार्तिक मास में शालिग्राम और तुलसी की पूजा का अत्यंत महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु को दीपदान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।


सिख धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का महत्व

कार्तिक पूर्णिमा सिख धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र दिन है क्योंकि इसी दिन सिखों के प्रथम गुरु – श्री गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। उनका जन्म 1469 ईस्वी में तलवंडी (अब पाकिस्तान में ननकाना साहिब) में हुआ था।

इस दिन सिख समुदाय गुरुपर्व या गुरु नानक जयंती के रूप में बड़े हर्ष और उत्साह से पर्व मनाता है। गुरुद्वारों में अखंड पाठ, कीर्तन, लंगर, और प्रकाश उत्सव आयोजित होते हैं।

गुरु नानक देव जी ने "एक ओंकार सतनाम" का उपदेश दिया और सभी धर्मों में एकता, प्रेम, और समानता का संदेश फैलाया। अतः कार्तिक पूर्णिमा का दिन सत्य, करुणा और मानवता का प्रतीक बन गया।


गंगा स्नान और दान का महत्व

शास्त्रों में वर्णन है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी, कावेरी, और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

“कार्तिके पूर्णिमायां तु यः स्नायात् जलधारया।
स याति परमं स्थानं विष्णुलोकं सनातनम्॥”

अर्थात्, जो कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान करता है, वह विष्णु लोक की प्राप्ति करता है।

इस दिन दान-पुण्य, अन्नदान, दीपदान, वस्त्रदान, तिलदान, और गौदान का विशेष महत्व बताया गया है।


तुलसी विवाह और कार्तिक पूर्णिमा

कार्तिक मास में तुलसी विवाह का आयोजन देवोत्थान एकादशी से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। तुलसी को भगवान विष्णु की पत्नी के रूप में माना जाता है। पूर्णिमा तक तुलसी विवाह का समापन होता है। यह विवाह धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है।


भिष्म पंचक का समापन

महाभारत के अनुसार, पितामह भीष्म ने अपने शरशय्या पर सूर्य के उत्तरायण होने तक प्रतीक्षा की थी। उन्होंने पाँच दिनों का व्रत बताया जिसे भिष्म पंचक व्रत कहा जाता है। यह व्रत कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक चलता है। अतः कार्तिक पूर्णिमा इस व्रत का अंतिम दिन होता है।


देव दीपावली का भव्य उत्सव

वाराणसी में देव दीपावली

वाराणसी की देव दीपावली विश्व प्रसिद्ध है। इस दिन गंगा घाटों पर लाखों दीप जलाए जाते हैं। दशाश्वमेध घाट, असी घाट, मणिकर्णिका घाट आदि पर दीपों की अद्भुत श्रृंखला से पूरा शहर स्वर्ग समान लगता है।

हजारों श्रद्धालु गंगा में स्नान करते हैं, आरती करते हैं और दीप प्रवाहित करते हैं। घाटों पर संगीत, नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं।

अन्य स्थानों पर आयोजन

अयोध्या, प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और रांची जैसे शहरों में भी इस दिन दीपदान और स्नान का विशेष आयोजन होता है।


भगवान शिव की आराधना

भगवान शिव ने इस दिन त्रिपुरासुर का वध किया था, अतः उन्हें त्रिपुरारी नाम से पूजा जाता है।
इस दिन शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र चढ़ाकर “ॐ नमः शिवाय” का जप किया जाता है।
त्रिपुरारी महादेव को दीप अर्पित करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।


वैज्ञानिक दृष्टि से कार्तिक पूर्णिमा

भारतीय परंपराओं में प्रत्येक पर्व के पीछे वैज्ञानिक तर्क भी छिपा हुआ है।
कार्तिक पूर्णिमा के समय चंद्रमा पृथ्वी के निकट होता है, जिससे उसकी किरणें जल में पड़कर शरीर को शुद्ध और ऊर्जावान बनाती हैं। इस समय स्नान करने से शरीर के विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैं।

इसके अतिरिक्त, इस दिन सामूहिक रूप से दीप प्रज्ज्वलन से पर्यावरण में प्रकाश और ऊष्मा का संतुलन बना रहता है।


उपवास और पूजा-विधान

व्रत-विधान

कार्तिक पूर्णिमा का व्रत करने वाले व्यक्ति को प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए।
उसके बाद भगवान विष्णु, शिव और तुलसी का पूजन करें।
दीपदान करें और दान-पुण्य करें।
दिनभर उपवास रखकर सायंकाल दीप जलाकर आरती करें।

दीपदान का महत्व

एक दीप से हजार दीप जलाना ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक है।
कार्तिक पूर्णिमा को दीपदान करने से अंधकार (अज्ञान) का नाश होता है।
कहा गया है —

“दीपं देवान् प्रियं चित्तं, दीपं पापहरं परम्।”
अर्थात् दीपदान देवताओं को प्रिय और पाप नाशक है।


आध्यात्मिक संदेश

कार्तिक पूर्णिमा केवल धार्मिक अनुष्ठान का पर्व नहीं है, बल्कि यह आत्मशुद्धि और आंतरिक प्रकाश का प्रतीक है।
यह हमें सिखाता है कि जैसे दीप अंधकार मिटाता है, वैसे ही ज्ञान और सद्कर्म जीवन के अंधकार को दूर करते हैं।


सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व

भारत के विभिन्न राज्यों में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मेले लगते हैं — जैसे पुष्कर मेला (राजस्थान), वाराणसी देव दीपावली मेला, हरिद्वार गंगा महोत्सव, और गुरुपर्व के जुलूस
इन आयोजनों से समाज में एकता, सहयोग और सद्भावना का वातावरण बनता है।


लोककथाएँ और जनमान्यताएँ

कई लोककथाओं में कहा गया है कि इस दिन देवता पृथ्वी पर आते हैं और मानवों के साथ दिव्य आनंद मनाते हैं।
कहीं-कहीं यह भी कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा की रात को जो दीप जलाकर घर, मंदिर या नदी किनारे रखता है, उसके घर में लक्ष्मी और विष्णु का वास होता है।


कार्तिक पूर्णिमा और ज्योतिष

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस दिन चंद्रमा वृषभ राशि में होता है, जो सुख, समृद्धि और शांति का सूचक है।
इस समय भगवान विष्णु और चंद्रमा दोनों की कृपा से मानसिक संतुलन और शुद्धता बढ़ती है।


निष्कर्ष

कार्तिक पूर्णिमा भारतीय संस्कृति की सबसे सुंदर झलक प्रस्तुत करती है —
यह दिन धर्म, दया, दान, प्रेम, और प्रकाश का संगम है।
इस पर्व का मूल संदेश यही है कि अंधकार मिटाकर ज्ञान और सद्भावना का दीप जलाएँ।

चाहे यह दिन भगवान शिव की विजय का प्रतीक हो, या गुरु नानक देव जी के जन्म का, या देवताओं की दीपावली का —
हर रूप में यह हमें सिखाता है कि भक्ति, प्रकाश और सच्चाई ही जीवन का सर्वोच्च मार्ग है।


संक्षेप में (मुख्य बिंदु सारांश):

  1. तिथि: कार्तिक माह की पूर्णिमा
  2. अन्य नाम: त्रिपुरी पूर्णिमा, देव दीपावली, गुरु नानक जयंती
  3. मुख्य देवता: भगवान शिव (त्रिपुरारी), भगवान विष्णु, तुलसी माता
  4. मुख्य अनुष्ठान: स्नान, दीपदान, उपवास, दान
  5. सांस्कृतिक आयोजन: वाराणसी देव दीपावली, पुष्कर मेला, गुरुपर्व
  6. संदेश: प्रकाश, प्रेम और आत्मिक शुद्धि

निष्कर्षतः, कार्तिक पूर्णिमा केवल एक तिथि नहीं, बल्कि धर्म और आध्यात्मिकता का महापर्व है, जो हमें यह सिखाता है कि सच्चा दीप बाहर नहीं, भीतर जलाना चाहिए — क्योंकि भीतर का प्रकाश ही सच्चा देव दीपावली है।


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