Wednesday, June 18, 2025

आपत्ति और विपत्ति मे संचित धन ही काम आता है

  

आपत्ति और विपत्ति मे संचित धन ही काम आता है।

अमीरों को ये नहीं भूलना चाहिए की धन मे चंचलता होता है।

वो कभी भी समाप्त हो सकता है।

जीवन के निर्वाह मे संतुलन के लिए और भविष्य के लिए धन का संचय और रक्षा बहूत जरूरी है।

माना की वर्तमान समय अपना अच्छा चल रहा है।

पर ये कभी भी नहीं भूलना चाहिए की समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता है।

समय मे उतार चढ़ाओ आते ही रहते है।

आज अपना समय ठीक है पर भविष्य मे अपना समय कैसा होगा ये कोई नहीं कह सकता है।

इन सभी प्रकार के मुसीबत से बचने के लिए वर्तमान मे कमाए धन मे से थोड़ा धन भविष्य मे लिए बचाकर रखना चाहिए।

जिससे आगे के समय मे किसी भी प्रकार के आर्थिस तंगी का सामना नहीं करना पड़े

 

धनवान व्यक्ति कहता है की मेरे पास धन संचित है। मुझे कभी मुसीबत पड़ ही नहीं सकता है।

वास्तव मे ऐसा नहीं होता है।

धनी व्यक्ति के पास धन होने के साथ साथ उनके खर्चे भी उतने ही होते है।

एक साधारण व्यक्ति के पास बहूत मुसकिल आज के समय मे अपना घर होता है।

जिसमे वो अपना गुजर बसर करता है। जब की धनवान व्यक्ति के आने वाले आमदनी के साथ खर्चे भी होते है। जिसमे निरंतर खर्च होता रहता है।

आलीशान घर मे बिजली बत्ती सजावट रहने के तरीके मे दिन प्रति दिन बढ़ोतरी  होता रहता है।

जिसे धन के द्वारा ही अर्जित किया जाता है।

समय के बदलाओ के साथ आने वाले आमदनी मे कमी के संभावना से ये सभी आलीशान जौर जरूरत की चिजे को प्राप्त करने मे दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है।

तब अपने जरूरतों को पूरा करने के लिए संचित धन भी खर्च होने लग जाएंगे और अंत मे मुसीबत आना तय है।

मनुष्य को कभी भी नहीं भूलना चाहिए की धन मे चंचलता होता है।

धन की प्रकृति इस्थिर नहीं रहता है। धन आना जाना लगा रहता है।

आज एक के पास तो कल दूसरे के पास आता जाता रहता है।

आर्थिक दृस्टी से कभी समय अच्छा तो कभी समय बुरा होता है।

चाहे जितना भी धन कमा ले फिर भी समय से उम्मीद नहीं कर सकते है की अपना आगे का समय वर्तमान के जैसा हो।

हो सके तो वर्तमान मे कमाए धन मे से थोड़ा धन भविष्य के लिए जरूर बचाकर रखना चाहिए।

कई बार तो ऐसा भी देखा गया है की भविष्य के लिए बचाए धन भी खर्च हो कर समाप्त हो जाते है।

मुसीबर कब किसपर आ जाए ये कोई नहीं जनता है।

धन की चंचलता और बेबुनियाद खर्च एक न एक दिन संचित धन को समाप्त कर देता है।

  संचित धन 

आध्यात्म क्या है।

  

आध्यात्म क्या है? ईश्वर की साधना से सही रास्ते पर चलने का ज्ञान मिलता है।

अपने मन के अंदर झकने से पता चलता है की हम कहा तक सही और गलत है। गलत और असत्य चीज को निकालने कला आध्यात्म से जुड़ा है। मन के घृणापन, दुख, गंदी भावनाए से खुद को बचाकर जीवन जीने की कला सत्य के रास्ते पर चलने से मिलता है। प्यार, दुलार, आदर, सत्कार करने की भावना आध्यात्म सिखाता है। अपने ईस्ट देव के भक्ति भावना से मन को सलतापन मिलता है जिसका पालन अपने वास्तविक जीवन मे करते है।

 

ईश्वर की साधना से सही रास्ते पर चलने का ज्ञान मिलता है।

मन के अंदर भरे हुए गंदगी से छुटकारा पाने का रास्ता मिलता है। जीवन के निर्वाह मे सही रास्ते पर चलने का ज्ञान मिलता है। आपसी व्यवहार मे सरलता का व्याख्या आध्यात्म से सीख जाता है।

 

ईश्वर साधना मात्र मन को सकारात्मक और संतुलित करने का माध्यम है। साधना मे अपने ईस्ट देव से कुछ मांगने से मन का भाव बढ़ता है। जिससे मन संसार के अच्छे बुरे मोह मे इंसान फसते जाता है। साधना के दौरान सरल रहना चाहिए जैसे वो सब खुशी हमे प्राप्त है जो परमात्मा ने हमे दिया है। इससे मन का सलतापन बढ़ता है। मन के सहज होने से मन मे अच्छे ख्याल आते है। विचार साफ और संतुलित होता है। मन के गंदगी के साफ होने के साथ जीवन का प्रकाश बढ़ता है। जिससे जीवन का आयाम बढ़ते जाता है।

 

मन के दुखी होने से निष्ठुरता का विकाश होता है। जिससे मन जिद्दी और अड़ियल होते जाता है। ये सभी नकारात्मक प्रवृत्ति है।  जिससे मन जीवन को दुख की ओर धकेलते जाता है।

 

आध्यात्म की साधना मे जरूरी नहीं की ध्यान ही किया जाए।

मन के भाव को सहज कर के व्यवहार करने से मन सकारात्मक होता है। कम, क्रोध, लोभ, मोह, माया के त्याग से मन शांत होता है। दुशरो को तकलीफ न देखर उसको खुशी देने से अपना अन्तर्मन उत्साहित होता है। जरूरत पड़ने पर सही के लिए अड़ियल रहना ही जीवन का संतुलन है। बाहरी उथल पुथल से मन को बचाकर रखने से जीवन मे निडरता का आभास होता है। सही के लिए गलत से लड़ना पड़ता है। दुखी मजलूम को मदद करने से हृदय उत्साहित रहता है। जीवन मे जो भी उपलब्ध है उससे दूसरों को मदद करने से ही जीवन सकारात्मक रहता है।

 

आध्यात्म क्या है खुद के लिए सोचने से जीवन मे मोह बढ़ता है। जो की नकारात्मक प्रवृत्ति है। खुशी और उत्साह बगैर लालच कर के जो जीवन मे प्राप्त होता है वो नीव का पत्थर कहलाता है। सकारात्मक प्रवृत्ति ही सबसे बड़ा आध्यात्म है।

आधुनिक दिनों में ज्ञान को समृद्ध करने में डाक टिकट संग्रह की भूमिका. ज्ञान हर हाल में मनुष्य को प्रेरित ही करता है. मन के सकारात्मक पहलू ज्ञान ही है जो समय और अवस्था के अनुसार उजागर होते रहते है.

  

आधुनिक दिनों में प्रत्यक्ष ज्ञानको समृद्ध करने में डाक टिकट संग्रह की भूमिका.

प्रत्यक्ष ज्ञान हर हाल में मनुष्य को प्रेरित ही करता है.

मन के सकारात्मक पहलू ज्ञान ही है जो समय और अवस्था के अनुसार उजागर होते रहते है.

मन के विचार और मस्तिस्क के सोच से ज्ञान ही मिलता है.

सबसे बड़ा ज्ञान का माध्यम प्रकृति और विचारवान व्यक्ति होते है.

जिनके चर्चा देश और दुनिया भी करता है.

महापुरुष के प्रेरणादायक विचार और ज्ञान लोगो को प्रेरित करता है.

आमतौर पर डाक टिकट में या तो महापुरुस के तस्वीर होते हा या प्रकृति से जुड़े तस्वीर या निशान होते है.

अक्सर देख गया है की जो व्यक्ति किसी महापुरुस के बात से या प्रकृति से प्रेरित होते है.

उनसे जुड़े हुए निशानी संग्रह करते है. जैसे नोट, सिक्के, तस्वीर, डाक टिकट, लेख इत्यादि इन साभी में सबसे ज्यादा लोग डाक टिकट संग्रह करते है.

डाक से आये पत्र में से डाक टिकट कट कर कही चिपका कर रख लेते है.

ज्ञान को समृद्ध करने में डाक टिकट संग्रह की भूमिका सिर्फ और सर्फ प्रेरणादायक उनके विचार और ज्ञान जो उन्हें समृद्धि देता है.       

 

अपने प्रत्यक्ष ज्ञान के विभिन्न प्रकार क्या हैं?

प्रत्यक्ष ज्ञान में जब हम कुछ करते है और उस कार्य को करने का पूरा ज्ञान नहीं होता है.

तो अपने से होने वाला गलती ही हमें सही दिशा में काम करने का रास्ता बताता है.

ज्ञान के तौर पर कहे तो सबसे ज्यादा ज्ञान तो हमें गलती कर के मिलता है.

जो भविष्य में सुधर कर लेते है.

जब तक इन्सान ज्ञान के तलाश में या कुछ कर गुजरने के लिए गलती नहीं करेगा तब तक वास्तविक ज्ञान का अनुभव नहीं होगा.

यदि हम सोचेंगे की हमसे कोई भी गलती नहीं हो तो फिर अपना ज्ञान सिमित ही होगा.

इससे ज्ञान में विस्तार नहीं होगा.

 

प्रेरणादायक विचार और विद्वान व्यक्ति के सोच से उत्पन्न ज्ञान अनुशरण करने पर अपना ही प्रत्यक्ष ज्ञान बढ़ता है.

स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाले पुस्तक में किसी न किसी विषय के ज्ञानी के ही विचार और सिखने का तरीका होता है.

भले शिक्षा के बाद भी बहूत लोग पुस्तके पढना जरूरी समझते है. वो ज्ञान के ही माध्यम है.

 

किसी कार्य हो होते देखने से समझ बढ़ता है.

अध्ययन में पुस्तक पढ़ने लिखने के साथ विषय वस्तु के प्रयोग से ज्ञान का विस्तार होता है.

जिससे अपन प्रयास बढ़ता है. 

किसी भी प्रकार के गलती करने के बाद निराश न हो कर सुधर के लिए आगे बढ़ने और संघर्स करने से ज्ञान के बारिकियत समझ में आता है.   

 

+2 वाणिज्य के बाद प्रवेश परीक्षा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए मुझे कौन सी वेबसाइट स्थापित करनी चाहिए

प्रत्यक्ष ज्ञान नाम के लिए मोहताज नहीं होता है.

जो ज्ञान हासिल करने के इक्छुक है वो तिनके से भी ज्ञान प्राप्त कर सकते है.

अब रहा बात वेबसाइट स्थापित करने के लिए जो सरकार या पाठ्यकर्म सुझाव देता है उसको स्थापित करे.

ये कोई जरूरी नहीं की कोई नामी वेबसाइट ही अच्छा ज्ञान देगा.

ज्ञान तो वो होता है. जो हलके समझ से भी ज्ञान के रोशनी जले जो सबको प्रकाशित करे. 

   प्रत्यक्ष ज्ञान 

आत्म प्रेरणा उद्धरण

  

आत्म प्रेरणा उद्धरण

जीवन मे प्रेरणा अपने माता पिता के साथ अध्यापक से मिलता है।

प्रेरणा जीवन और मन को परिवर्तित करने के लिए आधार स्तम्भ का काम करता है।

शिक्षा के माध्यम से जो अपने मन को अच्छा लगता है उससे मिलने वाला उपलब्धि का कारण आत्म प्रेरणा होता है।

जीवन मे अच्छे कार्य करने से मन और आत्मा को संतुसती मिलना है। अच्छा कार्य भी आत्म प्रेरणा का कारण बनता है।

अपने जीवन मे होने वाले गलती को सुधार कर जो अच्छा प्रतिबिंब जीवन मे ढालता है

आत्म प्रेरणा का प्रमुख उद्देश्य होता है।

गलती कौन नहीं करता है? पर जो गलती कर के अपने जीवन मे परिवर्तन लाता है।

कुछ अच्छा करने के लिए आगे बढ़ता है तो स्व प्रेरणा से ही होता है।

    आत्म प्रेरणा उद्धरण 

सही गलत का पहचान कर के जो अपने जीवन सही रास्ता अपनाता है।

सत्य के रास्ते पर चलता है। विपरीत परिसतिथी मे घबराता नहीं है।

लोगो को अच्छे कार्य के लिए प्रेरित करता है। वो सब आत्म प्रेरणा के कारण ही होता है।

जब तक व्यक्ति गलती नहीं करता है तब तक सही और गलत का यहसास नहीं होता है।

जीवन को सही ढंग से जीने और आगे के भविष्य को संभालने के लिए जरूरी कदम।

जीवन को संतुलित और अर्थपूर्ण होना आवश्यक है। अपने अस्तित्व मे सही ढंग से जानकारी प्राप्त करने के लिए मन के अंदर झकना पड़ता है। मन मे पड़े हुए उतार चढ़ाओ को समझ कर जीवन के जरूरी अध्याय को उभारते हुए नकारत्मक प्रब्रिति को जीवन से निकालना होता है। जैसे जैसे मन से गंदगी दूर है। वैसे वैसे जीवन उत्थान के तरफ बढ़ता है। इन सभी प्रक्रिया मे खुद पर विश्वास रखते हुए खुद को प्ररित करते हुए। अपने आयाम को नियंत्रित कर के संतुलन प्राप्त किया जाता है। उपलब्धि अपने खुद के प्रेरणा से ही प्राप्त किया जाता है। जीवन के संतुलन को यदि खुद के प्रेयराना से प्राप्त करते है तो वो अपने आयाम मे विकसित होते जाते है। खुद के जिंदगी को संभालने के लिए सबसे पहले खुद को अच्छे मार्ग पर चलने के लिए प्ररित करना पड़ता है। तब जीवन मे सफलता प्राप्त होता है।

अहंकार मनुष्य के एकाग्रता सूझ बुझ समझदारी सरलता सहजता विनम्रता स्वभाव को ख़त्म कर सकता है

  

अहंकार मनुष्य के एकाग्रता सूझ बुझ समझदारी सरलता सहजता विनम्रता स्वभाव को ख़त्म कर सकता है  

अहंकारी स्वभाव यह एक ऐसी प्रवृत्ति है  जिसमे इंसान खुद को डुबो कर अपना सब कुछ ख़त्म करने के कगार पर आ जाता है  इसका परिणाम जल्दी तो नहीं मिलता है, पर मिलता जरूर है.  जब इसका परिणाम मिलता है  तब तक बहुत देर हो चुकी होती है  फिर कोई रास्ता नहीं बचता है.  इस अहंकार के वजह से पहले तो उनके अपना पराया उनसे छूट जाते है  क्योकि वो कभी किसी की क़द्र नहीं करता है.  

अपने घमंड में समाज में वो आपने  को सबसे बड़ा समझता है तो वाहा से भी लोग उससे किनारा कर लेते है. 

भले ताकत और हैसियत के वजह से कोई उनके सामने तो कुछ नहीं कहता है पर उनसे किनारा जरूर कर लेता है.  इसका परिणाम घर में भी नजर आता है.  जैसा स्वभाव उनका होता है वैसे ही घर के सभी लोगो का भी होता जाता है.  तो उनसे भी लोग किनारा करने लग जाते है ये हकीकत है.  समाज में इस प्रकार के स्वभाव के लोगो को देखा गया है.  हम किसी  ब्यक्ति विशेष का जिक्र नहीं कर रहे हैं  अहंकारी स्वभाव का जिक्र कर रहे है।  

अहंकारी स्वभाव का एक परिभाषा है 

जो जीवन के राह में देखते आया हूँ  ऐसे लोगों के बारे में सुनता हूँ  समझता हूँ  कि ऐसे लोगों का आखिर होगा क्या?  सब कुछ तो है उनके पास सिर्फ सरलता नहीं  सहजता नहीं  मिलनसार नहीं  एक दूसए के दुःख दर्द में साथ देने वाला नहीं  जो सिर्फ अपने मतलब के लिए जीता है।  

जीवन में सब कुछ करे, खूब तरक्की करे, नाम बहुत कमाए 

लोगो से खूब जुड़े जरूरतमंद की मदत करे  जिनके पास कुछ नहीं है  उनके लिए   मददगार बने ऐसा करने से ये भावना ख़त्म हो जाएगा  जीवन की निखार सहजता और सरलता से आते है  इससे मन प्रसन्न होता है  उदारता बढ़ता है  उदारता से जीवन का आयाम में विकास होता है  जिससे आत्मिक उन्नति होता है।  

वास्तव में मन का सीधा संपर्क तो आत्मा से होता  है

बाहरी उन्नति के साथ  आत्मिक विकास में बहुत अंतर होता है दोनों साथ साथ चलता है  अंतर्मन में घामड़ जैसी कोई भवन घर कर ले तो  जीवन में खलबली ला देता है  इससे मन की ख़ुशी समाप्त होने लगता  है, वाहा पर सब कुछ होते हुए भी जीवन निराश लगने लगता है  इसलिए निराश जीवन को सही करने के लिए सरलता और अहजता की जरूरत होता है, ईस से मन और आत्मा दोनों प्रसन्न होता वही वास्तविक ख़ुशी और प्रस्सनता है। 

अहंकार क्या होता है? यह एक ऐसी प्रवृत्ति है जिसमे इंसान खुद को डुबो कर अपना सब कुछ ख़त्म करने के कगार पर आ जाता है इसका परिणाम जल्दी तो नहीं मिलता है

  

अहंकार मनुष्य के एकाग्रता सूझ बुझ समझदारी सरलता सहजता विनम्रता स्वभाव को ख़त्म कर सकता है 

अहंकार क्या होता है?  यह एक ऐसी प्रवृत्ति है  जिसमे इंसान खुद को डुबो कर अपना सब कुछ ख़त्म करने के कगार पर  जाता है  इसका परिणाम जल्दी तो नहीं मिलता है. पर मिलता जरूर है.  जब इसका परिणाम मिलता है.  तब तक बहुत देर हो चुकी होती है  फिर कोई रास्ता नहीं बचता है.  इस अहंकार के वजह से पहले तो उनके अपना पराया उनसे छूट जाते है.  क्योकि वो कभी किसी की क़द्र नहीं करता है. 

अपने घमंड में समाज में वो आपने  को सबसे बड़ा समझता है  तो वाहा से भी लोग उससे किनारा कर लेते है  भले ताकत और हैसियत के वजह से कोई उनके सामने तो कुछ नहीं कहता है. पर उनसे किनारा जरूर कर लेता है.  इसका परिणाम घर में भी नजर आता है.  जैसा स्वभाव उनका होता है. वैसे ही घर के सभी लोगो का भी होता जाता है.  तो उनसे भी लोग किनारा करने लग जाते है.  ये हकीकत है.  समाज में इस प्रकार के स्वभाव के लोगो को देखा गया है.  हम किसी   ब्यक्ति विशेष का जिक्र नहीं कर रहे हैं.  अहंकारी स्वभाव का जिक्र कर रहे है।  

अहंकार क्या होता है ये अहंकारी स्वभाव का एक परिभाषा है.  

जो जीवन के राह में देखते आया हूँ.  ऐसे लोगों के बारे में सुनता हूँ.  समझता हूँ.  कि ऐसे लोगों का आखिर होगा क्या?  सब कुछ तो है. उनके पास सिर्फ सरलता नहीं,  सहजता नहीं,  मिलनसार नहीं,  एक दूसए के दुःख दर्द में साथ देने वाला नहीं  जो सिर्फ अपने मतलब के लिए जीता है। 

जीवन में सब कुछ करेखूब तरक्की करेनाम बहुत कमाए  लोगो से खूब जुड़े जरूरतमंद की मदत करे.  जिनके पास कुछ नहीं है.  उनके लिए   मददगार बने ऐसा करने से ये भावना ख़त्म हो जाएगा.  जीवन की निखार सहजता और सरलता से आते है.  इससे मन प्रसन्न होता है.  उदारता बढ़ता है.  उदारता से जीवन का आयाम में विकास होता है.  जिससे आत्मिक उन्नति होता है। 

वास्तव में मन का सीधा संपर्क तो आत्मा से होता  है. 

बाहरी उन्नति के साथ  आत्मिक विकास में बहुत अंतर होता है. दोनों साथ साथ चलता है.  अंतर्मन में घमंड जैसी कोई भवन घर कर ले तो  जीवन में खलबली ला देता है.  इससे मन की ख़ुशी समाप्त होने लगता  है. वाहा पर सब कुछ होते हुए भी जीवन निराश लगने लगता है.  इसलिए निराश जीवन को सही करने के लिए सरलता और अहजता की जरूरत होता है ईससे मन और आत्मा दोनों प्रसन्न होता वही वास्तविक ख़ुशी और प्रसन्नता है। 

असमय आ रहे गुस्सा को नियंत्रित किया जा सके समय समय पर व्यायाम अवस्य करे इससे भी मन शांत रहता है

  

गुस्सा क्यों आता है?

गुस्सा क्यों आता है?  सहनशीलता की कमी ही गुस्सा का मुख्या कारण है. विषय को न समझना भी गुस्सा का कारण हो सकता है. समझ की कमी भी गुस्सा का कारण होता है. विषय वस्तु को पूरी तरह से नहीं समझ आने पर भी गुस्सा आता है. कोई कार्य अपने समय पर पूरा नहीं हुआ तो भी गुस्सा आता है. किसी कार्य में व्यवधान आने पर भी गुस्सा आता है. किसी कार्य में मन का ठीक से नहीं लगने पर भी गुस्सा आता है. मन के अनुसार कोई कार्य नहीं हुआ तो भी गुस्सा आता है.

गुस्सा मन का एक नकारात्मक भाव है जिसे बुद्धि विवेक से कार्य लेने पर और सहज बोध अपनाने पर गुस्सा कम होने लग जाता है.

किसी कार्य में मन का लगाना बहूत जरूरी है मन को समझे और बुद्धि विवेक से कार्य करे तो गुस्सा कम होने लग जाता है. मन जिद्दी होता है. इसलिए मन में थोडा उदार भाव लाये इससे मन का दायरा बढेगा. इसका मतलब ये नहीं की जिस बात से गुस्सा आ रहा है उसके बारे में सोचे, कुछ ऐसा भी सोचे जिससे मन को अच्छा और प्रसन्नता महशुस हो तो गुस्सा कम होने लग जाता है.  

   गुस्सा क्यों आता है 

हर्बल और ऑर्गेनिक तेल सिर पर लगाने से दिमाग ठंडा रहता है.

खासकर जो तेल ठंडा महशुश कराये ऐसे तेल सिर में जरूर लगाना चाहिए. जिससे असमय आ रहे गुस्सा को नियंत्रित किया जा सके समय समय पर व्यायाम अवस्य करे इससे भी मन शांत रहता है. मन के शांति के लिए मैडिटेशन सबसे अच्छा जरिया है, रोज करने से मन शांति से रहने देता है. 

अवधारणात्मक गति खुफिया उदाहरण

  

कहानी का नैतिक है पराक्रम पर बुद्धि की जीत

अवधारणात्मक गति मे नैतिक चरित्र मनुष्य को सहज और सजग बनता है. सहज होने से बहूत कुछ सरल हो जाता है. इसलिए इन्सान को सरल ही रहना चाहिए. सहजता से सरलता का विकाश होता है. सरल भाव में मनुष्य पर सुख दुःख का उतना प्रभाव नहीं पड़ता है, जितना मानसिक भाव में पड़ता है. मानसिक होना कदापि ठीक नहीं है. कभी कभी मानसिकता काम और व्यवस्था को बिगाड़ भी सकता है. मन के चलने का भाव कही न कही दुःख का ही कारन होता है. इसलिए मन को कभी भी बेलगाम नहीं होने देना चाहिए. वो वास्तविकता से इन्सान को दूर कर देता है. सहजता और सजगता से बुद्धि प्रबल होता है. और मन को सहज बनाने में मदद करता है. जब की मन पराक्रम भी कर सकता है. नैतिक चरित्र ही पराक्रम पर जीत हासिल करता है.

अवधारणात्मक गति खुफिया उदाहरण

अवधारणा मन का एक ऐसा भाव है जो मनघडंत बात मन में जगह बनाकर उसको वास्तविकता में देखने का पुरजोर प्रयास करता है. ये हर किसी के मन में हो सकता है. सही का ज्ञान होने के बाबजूद भी अपने मन के हरकतों से वाज नहीं आता है. जानते हुए की ऐसा कुछ नहीं हो सकता, फिर भी उन अवधारणा को मन में हवा देता रहता है. ये भी कल्पना का ही एक रूप ही है. पर ये धरना बिलकुल गलत है. यही कारन है की मनुष्य के जीवन में अचेतन ९० प्रतिशत है और सक्रीय मन सचेतन सिर्फ १० प्रतिशत है.

ज्ञान को सही मानते हुए अक्सर लोग ऐसे बाते को किसी को नहीं बताता है. क्योकि वो उनके मन की बात होते है. यही कारन है की अवधारणात्मक गति मन में ही खुफिया रहता है. उदाहरण के तौर पर अनैतिक इच्छा, दुष्कर्म, अपराध जो निरंतर मन में चलता रहता है. किसी में कम तो किसी में ज्यादा ऐसा अवधारणा हर किसी के मन में पनपता है. स्तिथि और हालत के अनुसार सही रस्ते पर चलने वाले के मन में ज्यादा देर टिकता नहीं है और जो लोग इन अवधारणा के आदि है. गलत राह पकड़ लेते है.   

बुद्धि के लिए क्या पुरस्कार?

बुद्धिमान होना स्वयं एक बहूत बड़ा पुरस्कार है. बुद्धि से सब कुछ संभव है जो सकारात्मक और सहज है. विरल और कठिन कार्य में संघर्स होता है पर समय के अनुसार और संघर्स के पृष्ठभूमि पर बुद्धि विवेक पर खरा उतरता है. बुद्धि सक्रीय ज्ञान है. अच्छा अनुभव सकारात्मक रहने पर मिलता है. सकारात्मक मन में अपार उर्जा होता है जो बुद्धि को हवा देता है. इसलिए बुद्धिमान होना स्वयं में सर्वोच्च पुरस्कार है.  

अभिनय के कला के माध्यम से अपने मन की बात रखने में बहूत सहूलियत होता है.

  

मन की वह अवस्था जहाँ अभिनय के लिए मनुष्य महत्वपूर्ण है

 

कला के माध्यम अभिनय एक मन की कला है। 

अभिनय के कला में माहिर लोग इस कला के माध्यम से व्यक्ति को अपने तरफ आकर्षित करने की क्षमता रखते है.

मन के संतुलित भाव होने पर जहा दुनियादारी के लिए इस कला का इस्तेमाल किया जाता है.

आम तौर पर सभी के अन्दर होता है पर किसी में कम तो किसी में ज्यादा होता है.

जिस व्यक्ति में अभिनय की कला का अभाव होता है या कम होता है।

वैसे लोग अपने किसी भी क्षेत्र में या जो कार्य कर रहे है उसमे भी सफलता बहूत मुश्किल से मिलता है.

इसलिए अभिनय की कला पे पारंगत होना बहूत जरूरी है. 

 

अभिनय के कला के माध्यम से अपने मन की बात रखने में बहूत सहूलियत होता है.

अपने अभिनय कला बात करने के साथ साथ व्यक्ति के भाव में भी अभिनय के कला होने से लोग उसके तरफ आकर्षित होते है.

प्रचार प्रसार के लिए अभिनेता का इस्तेमाल लम्बे समय से होता रहा है।

भले वो किसी विषय का प्रचार करना हो या किसी वस्तु का प्रचार अभिनेता बाखूभी से इसे कर के उत्पाद या विषय के प्रति लोगो का मन आकर्षित करते है.

 

अभिनय के कला से मन के इच्छा को बड़े आराम से पूरा कर सकते है.

अपने उत्साह को अभिनय बनाकर लोगो के बिच में अपने बात विचार के माध्यम से इच्छा को रखकर अपने प्रति आकर्षित कर सकते है.

इससे परिणाम सकारात्मक निकलने का पूरा संभावना रहता है.

नेता के अन्दर अभिनय के कला के होने से लोगो के बिच अपने बात को रखने के लिए धरा प्रबाह भासन देने से लोगो पर प्रभाव पड़ता है। 

जिससे लोग चुप चाप अपने नेता का भाषण सुनते रहते है.

 

अभिनय के कला से मन के विचार को संतुलित रखने में मदद मिलता है.

व्यक्ति के अन्दर बहूत सारे ख्याल और विचार पनपते रहते है.

जिससे व्यक्ति सुख दुःख भी महशुश करता है.

यदि अपने मन के बात को जो दुःख देने वाला है अभिनय और कला के माध्यम से लोगो के बिच रखा जाये तो उसका प्रभाव कम होने लग जाता है।

साथ में उससे जुड़ा हुआ विचार और उपाय भी सुनाने में मिलता है। 

जिसके माध्यम से उस दुःख भरे हालत और विचार से निकलने का रास्ता मिल जाता है.

जब तक अपने दुःख और तकलीफ को लोगो के बिच नहीं रखेंगे तब तक वो कम नहीं होगा.

हो सकता है लोगो के विचार अच्छे भी लगे और ख़राब भी लगे पर जो जरूरी है उसे अपनाना है.

लोगो के विचार अक्सर मिश्रित होते है उसमे से क्या जरूरी है? और क्या जरूरी नहीं है?

ये अपने मन से समझकर उसक उपयोग कर के अपने दुःख और तकलीफ से बहार निकल सकते है.

मनुष्य का कोई भी हालात उसे ज्ञान देने के लिए ही है। 

अब क्या अपनाता है? क्या नहीं अपनाता है?

इसी पर सुख दुःख निर्धारित करता है.

जैसे जैसे ज्ञान बढ़ता है वैसे वैसे दुःख दूर होते जाता है.   

   कला के माध्यम 

अपने काम की कल्पना जीवन के उत्थान और सफलता व्यवहारिक जीवन में सकारात्मक महत्त्व रखता है

  

काम पर कल्पना

अपने काम की कल्पना करना आज के समय के हालत के अनुशार से बहुत जरूरी हो गया है।

एक तरफ महा बीमारी ने अपना जगह बना लिया है।

तो दूसरी तरफ उद्योग कही न कही सब नुकसान झेल रहे है।

कुछ ही उपक्रम ठीक चल रहे है। ऐसे माहौल में बेरोजगारी उत्पन्न होना कोई नई बात नहीं रह गया है।

 

कर्मचारी हो या तकनिकी विशेषज्ञ कही न कही बेरोजगारी के वज़ह से पड़ेशान है।

ऐसे हालात में आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी हो गया है।

अपने काम की कल्पना मे काम धंदा के प्रगति के लिए कल्पना करने के लिए बहुत ऐसे विषय है।

जो अपने अपने क्षेत्र से जुड़े हुए है। हर ब्यक्ति किसी न किसी क्षेत्र में कुछ जानकर या विशेषज्ञ जरूर है।

अपने प्रतिभा को माध्यम बनाकर आगे बढ़ना चाहिये।

कोई भी व्यवसाय या उपक्रम एका एक आगे नहीं बढ़ता है।

व्यवसाय धीरे धीरे बढ़ता होता है। पहले कोई एक शुरुआत करता है।

 

मेहनत और लगन से आगे बढ़ता है। धीरे धीरे प्रगति करता है।

जो कार्य व्यवसाय अपने मन को अच्छा लगता है। उसकी कल्पना प्रयास को बढाता है। कही न कही से व्यवसाय क्यों नहीं मिलेगा? मेहनत और प्रयास कभी ब्यर्थ नहीं जाता है। जैसा कल्पना घटित होता है। मन का झुकाओ भी उसी क्षेत्र में होता है। मन एक बार अपने कार्य में लग जाए। तो उत्पादन अवश्य होगा। इससे जीवन में उन्नति होगा ही। इसलिए अपने काम व्यवसाय सेवा से जुड़े हुए क्षेत्र में प्रगति के लिए कामना करना ही चाहिये।   

  अपने काम की कल्पना 

अपने अनुभव और ज्ञान के बल पर किसी भी प्रकार के दुःख तकलीफ के बिच भी प्रगति कर सकते है.

 

 सांसारिक जीवन वास्तव में उतना आसन नहीं होता है जितना समझा जाता है.

समझकर जीवन को जीने से ही जीवन में उन्नति होता है. घर बैठे मखमली बिस्तर पर आराम करने से कुछ प्राप्त नहीं होता है. जीवन संघर्स के नाम होना चाहिए. संसारिक जीवन नश्वर है ये एक न एक दिन स्वयं के मृतु के बाद कुछ बचने वाला नहीं है. मृतु तो इस पंचतत्व के बने शारीर का होता है आत्मा कभी नहीं मरता है. मन का भाव भी मृतु के साथ ही ख़त्म हो जाता है. प्राण पखेरू उड़ जाने के बाद शारीर ब्यर्थ होने लग जाता है. घर वाले और रिश्तेदार को भले तकलीफ होता है पर वो भी अपने प्रिय जो मृतु को प्राप्त होने के बाद उसको एक दिन भी नहीं रखना चाहता है. ये सृष्टि का नियम है. जो ख़त्म हो गया है वो व्यर्थ है उसका मोह करने से कुछ नहीं मिलाने वाला है.

 

सांसारिक जीवन में सुख प्राप्त करने के लिए मानव बहूत कुछ करता है. सच्चे ह्रदय वाले व्यक्ति हमेशा अच्छे कार्य करते है. लोगो की भलाई करते है. अपने कर्मो को करते हुए जगत कल्याण का भी कार्य करते है. उनको पता है की ऐसा करने से कोई भौतिक सुख प्राप्त नहीं होता है पर मन को अतुलित आनंद मिलता है. भले ऐसा करने से लोग उसको मना भी करते है पर संसार में ऐसे लोग किसी की परवाह किये बगैर अपने सत्कर्म को नहीं छोड़ते है. ऐसे ही व्यक्ति अपने जीवन में आगे बढ़कर जीवन के आयाम में आध्यात्मिक उन्नति करते है. भक्ति भावना में लीन व्यक्ति जब तक सत्कर्म नहीं करता है तब तक उसको वास्तविक आध्यात्मिक उन्नति नहीं मिलाता है.

अपनी कल्पना का सही इस्तेमाल करें अपनी कल्पना के मौजूदा समय में सकारात्मक कल्पना का इस्तेमाल करें सय्यम रखे

  

अपनी कल्पना का इस्तेमाल करें

कल्पना के मौजूदा समय में जैसा समय ख़राब चल रहा है।

खासकर इस महामारी में जहा पूरा दुनिया अस्त ब्यस्त है।

सेवाब्यवसाय सब उथल पुथल चल रहा है।

कुछ ही उपक्रम ठीक से चल रहे है। रोजमर्रा का समय बिताना मुश्किल पड़ रहा है।

ऐसे हालात में सेवा ब्यवसाय को चलने के लिए अन्तर आत्मा पर ही विस्वास करना होगा।

जहा कई प्रकार का कल्पना पनपता है। जहा कोई भी कल्पना ठीक नहीं चल रहा हो। सकारात्मक कल्पना करे।

सोचे समझे नकारात्मक पहलू कहा उजागर हो रहा है।

उस नकारात्मक पहलू पर विचार करे।

ऐसा क्या रास्ता अपनाये की उस नकारात्मक पहलू में परिवर्तन हो सके।

 

कल्पना में मन की बात सुने।

उठाते सवाल का हल ढूंढने का प्रयास करे।

जब तक कि उसका कोई उपाय नही मिले।

विचार विमर्श करे। फिर भी नही समझ में आ हो तो जानकर से मिले।

जो आपके सवाल दे सके। हर परिवर्तन में नया ज्ञान हासिल करना ही पड़ता है। 

तभी जीवन में नया परिवर्तन आता है।

 अपनी सकारात्मक कल्पना का इस्तेमाल करें

सकारात्मक कल्पना का इस्तेमाल करें। जैसा उपाय समझ में आ रहा है।

बुद्धि विवेक को सक्रीय कर के आगे बढ़े।  मन को सकारात्मक बनाकर रखे।

कोई भी नया सवाल खड़ा हो रहा है। तो उसका हल ढूंढे। 

मन मस्तिष्क में हर सवाल का जवाब होता है। परिणाम कही न कही से अवश्य मिलता है। 

सही दिशा में कार्य करते रहे। संय्यम रखे स्वयं पर पूर्ण विश्वास रखे। 

निरंतर प्रयास और मेहनत के साथ विश्वास कभी भी ब्यर्थ नहीं जाता है।

समय के थपेड़े से कभी घबराना नहीं चाहिए। 

जीवन में उतार चढ़ाओ आते ही रहते है।

समय की अवस्था को समझते हुए परिबर्तन जरूरी हो जाता है। 

 

अपनी कल्पना का इस्तेमाल करते समय सय्यम रखे 

कल्पना का इस्तेमाल करते समय सय्यम जरूर बरतना चाहिये। जिस विषय पर कार्य कर रहे है। मेहनत और समय अपने कार्य पर ही देना चाहिये। अपने कार्य के सफलता के लिए चिंतन जरूर करना चाहिये। जब तक चिंतन सकारात्मक नहीं होगा। मन एक जगह टिकेगा ही नहीं। मन को एक जगह टिकने के लिए अपने कार्य के सफलता के लिए कल्पना जरूर करना चाहिये। अपने कल्पना का इस्तेमाल इस तरह से कर सकते है। सफलता जरूर मिलगी।  

कल्पना का इस्तेमाल

अन्तः अनुशासन अपने मन के अंदर होने वाले क्रिया कलाप है।

 अन्तः अनुशासनात्मक का अर्थ

अन्तः मन से बाहरी मन को उद्घोसित करता है।

अंतर मन बाहरी मन को प्रभावित करने के लिए क्रिया कलाप को प्रेरित करता है।

सहज जीवन जीने के लिए बाहर से अनुशासन होने के साथ अंतर मन मे भी अनुशासन होना बहूत जरूरी है।

बाहरी मन का क्रिया कलाप अन्तर्मन से ही प्रभावित होकर बढ़ता है।

जब तक अंतर मन अंदर से साफ सुथरा नहीं रहेगा तब तक बाहरी मन को शांति और एकाग्रता नहीं मिलेगा।

अच्छे चीज को ग्रहण करने के लिए मन का किताब साफ सुथरा होना चाहिए।

एक ऊर्जा का प्रभाव दूसरे ऊर्जा पर पड़ता है।

ज्ञान ऊर्जा के माध्यम से अंतर मन मे जाता है।

ऊर्जा को निरी आँख से नहीं देख सकते है पर मन पर होने वाला प्रभाव समझ मे आने लगता है।

 

जीवन को संतुलित और अनुशासित रखने के लिए बाहरी मन के साथ अन्तःकरण को भी साफ रखना चाहिए।

   अन्तः अनुशासनात्मक का अर्थ अंतर मन बाहरी मन को प्रभावित करने के लिए क्रिया कलाप को प्रेरित करता है 

अंतर मन मे वही चिजे रहना चाहिए जो जीवन के लिए जरूरी है। व्यर्थ और नकारात्मक क्रिया कलाप बाहरी मन के साथ अन्तर्मन को भी गंदा करता है जो जीवन के अनुशासन के विपरीत होता है। इसका प्रभाव जल्दी और अनिस्तकारी होता है। मन बहूत तेजी से नकारात्मक चिजे सोचने लग जाता है। सही दिशा मे चलता हुआ कार्य भी बिगड़ने लगता है। इन सभी का कारण अंतर मन के गंदा होने से होता है।

जीवन का संतुलन बाहरी मन को नियंत्रित करने के लिए अंतरमन पर अनुशासन करने से होता है।

अन्तः अनुशासनात्मक का अर्थ अंतरमन मे हो रहे हर प्रकार के विचार को समझ कर उचित और अनुचित का निर्णय लेकर अपने मन को नियंत्रण मे रख सकते है। एक बार अंतर मन मे नियंत्रण प्राप्त हो जाने पर मन को सहज भाव मिलता है जिससे प्रसन्नता बना रहता है। बाहरी जीवन को नियंत्रित करने के लिए अन्तः अनुशासन होना जरूरी है। यही अन्तः अनुशासनात्मक है।

अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और भूमिका जो स्वयं को अपने नियम के तहत चलाना होता है जो मनुष्य अपने जीवन में कुछ नियम का पालन करता है

  

अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और भूमिका मे कार्यक्षेत्र में मानव का विकाश 

अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और भूमिका मे ज्ञान का मुख्य पहलू है। 

स्वयं को अपने नियम के तहत चलाना होता है।

जो मनुष्य अपने जीवन में कुछ नियम का पालन करता है।

जिसके अनुसार अपना दिनचर्या निर्धारित करता है।

उसको अनुशासनात्मक ज्ञान कहते है।

स्वयं के ऊपर अनुशासन कर के सुबह जल्दी उठता हैजो जरूरी कार्य हैउसको पूरा कर के अपने काम धाम में लग जाता है।

जो भी कार्य करता है स्वयं के बनाये हुए नियम से ही करता है।

भले वो नियन दूसरो को अच्छा लगे या नहीं लगे पर अपने नियम पर चलना ही ज्ञान है।

अनुशासनात्मक ज्ञान के तहत स्वयं का नियम सकारात्मक होना चाहिए।

तभी अनुशासन बरक़रार रहता है।

 

नियम सकारात्मक होगा तो सब अच्छा और समय पर होगा।

सुबह जल्दी उतना। स्नान आदि करके दिनचर्या करना।

नास्ता समय पर करना।

अपने काम पर समय पर जाना।

दोपहर का भोजन समय पर खाना।

अपने काम काज को नियम के तहत कायदे से करना।

लोगो से सकारात्मक हो कर मिलना।

अच्छा व्यावहार करना।

माता पिता की सेवा करना।

बच्चो के पढाई लिखाई का ख्याल रखना।

घर में सबके आदर करना।

सभी से प्यार से बात करना।

बड़े बुजुर्गो को आदर भाव देना। मन सम्मान देना।

मेहनतकश बने रहना।

रात का भोजन समय से खाना।

समय से रात को सोना।

ताकि दुसरे दिन फिर नए दिन की सुरुआत करना होता है।

अनुशासनात्मक ज्ञान के तहत ऐसा दिनचर्या रख सकते है।

 

अनुशासनात्मक ज्ञान का अर्थ में प्रकृति के नियम बहूत अटल होते जाते है

जिसको कोई परिवर्तन नहीं कर सकता है।

समय समय पर प्रकृति में परिवर्तन स्वयं होता है।

पर जल्दी प्रकृति में परिवर्तन नहीं होता है।

कुछ परिवर्तन होता है।

जैसे शर्दी के बाद गर्मी।

गर्मी के बाद बरसात।

फिर बरसात के बाद फिर शर्दी और दिन-रात ये मुख्या प्रकृति के परिवर्तन है।

पर ये भी प्रकृति के नियम ही है।

जो सबको संतुलित कर के रखता है।

वैसे ही मनुष्य के नियम मनुष्य को संतुलित और संघठित रखता है।

संगठन और संतुलन में किसी  परिवर्तन की आवश्यकता नहीं होता है। मनुष्य के अन्दर सकारात्मक ज्ञान होगा तो ये स्वयं ही चरितार्थ होगा। चुकी मनुष्य को ज्ञान ही नियम बनाने के लिए प्रेरित करता है। जब प्रकृति के नियम संतुलित है।मनुष्य के भी नियन संतुलित हो कर संघठित होने चाहिए। तभी मनुष्य का जीवन चलेगा। मनुष्य के जीवन के  बहूत सरे आयाम होते है। समस्त आयाम को संतुलित होकर संघठित होना ही एक सफल ब्यक्ति की पहचान है।

 

कार्यक्षेत्र में अनुशासन बहूत जरूरी आयाम रखता है

अपने जीवन में अनुशासित होने के साथ साथ प्रकृति के नियम के अनुसार आगे बढ़ना। जिसके जरिये ब्यक्ति उपार्जन करता है। कमाता खाता है। जिसके जरिये अपने परिवार का भरण पोसन करता है। कार्यक्षेत्र में कामगार और कारीगर को काम धाम देता है। जीवन में अनुशासन के साथ साथ कार्यक्षेत्र में भी अनुशासन होना बहूत  अनिवार्य है। जब तक कार्यक्षेत्र में अनुशासन नहीं होगा। तब तक कार्यक्षेत्र में सफलता नहीं मिलेगा।

अनुशासित ब्यक्ति का व्यावहार संतुलितव्यवस्थित और संघठित होता है। जिससे कार्यक्षेत्र में संपर्क ज्यादा बनता है। बात विचार संतुलित होने से संपर्क करने वाले को अच्छा लगता है। जिससे संपर्क में आने वाला ब्यक्ति आकर्षित होता है। प्रतिष्ठान में अछे लोग जुड़ते है। जिससे कार्यक्षेत्र का विकाश और उन्नति होता है। कारीगर और कामगार के बिच संतुलन बना रहता है। सबके हित का ख्याल रखा जाता है। जिससे कारीगर और कामगार अछे से अपना काम मन लगाकर करते है। अनुशासनात्मक ज्ञान कार्यक्षेत्र में इसलिए जरूरी है। तब जा कर अनुशासित ब्यक्ति सफल और विकशित होता है।

 

अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति से जीवन प्रभावित होता है 

अनुशासनात्मक किसी बस्तु को बिलकुल उसी रूप में पहचानना ही ज्ञान है वह किस रूप में है? कैसा दिख रहा है? उसके गुन क्या है? ये अनुशासनात्मक ज्ञान के पहलू है। इसी प्रकार जीवन को भी अपने उसी रूप में पहचानना चाहिए। हम अपने जीवन में क्या कर रहे है? क्या सोच रहे है? अपना जीवन कैसा है? क्या जीवन कल्पना के अनुरूप चल रहा है या किसी और दिशा में आगे बढ़ रहा है? उस और ध्यान दे कर जीवन अपने सही मार्ग में अनुशासन के अनुरूप ढाल कर आगे बढ़ना ही वास्तविक जीवन है।   

 

स्कूली विषय में अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और भूमिका हिंदी भाषा में

विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्व, अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और भूमिका के द्वारा विद्यार्थी के अन्दर ज्ञान का विकाश स्कूल के विषय बच्चो के ज्ञान के विकाश के लिए होता है। जिससे बुद्धि सक्रीय हो और एकाग्रता से किसी कार्य के करने के लिए मन लगे। विषय के ज्ञान में जीवन के उपलब्धि के रहस्य छुपे रहते है।जिसे पढ़कर और शिक्षक से समझकर जीवन का गायन भी बढ़ता है। 

हिंदी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषा के विषय में भाषा के सिखने के साथ साथ जीवन के उतार-चढ़ाव, सुख-दुःख, उन्नति-अवनिति का ज्ञान कहानी के माध्यम से सिखाया जाता है। किसी भी प्रकार के माहौल में जीवन यापन कैसे होता है? सभी शब्द भेद भाषा के किताब के माध्यम से बच्चे को बचपन में सिखाया जाता है। जिससे आगे के जीवन में आने वाले परेशानी दुःख तकलीफ में कैसे जीना होता है इन सभी बात का ज्ञान भाषा के किताब से ही शिक्षक के द्वारा कराया जाता है 

 

वास्तविक जीवन के ज्ञान में जीवन के भूमिका का बहूत बड़ा योगदान है

बचपन से बच्चो में अनुशासन के प्रति सजगता का अभ्यास माता पिता बड़े बुजुर्ग और अध्यापक के द्वारा कराया जाता है। जिसे बच्चे का मन कही और किसी अनुचित विषय में न लग जाये। इन सभी बातो को उजागर करने के लिए। बच्चे के भाषा के किताब का चयन कर के, शिक्षा विभाग के द्वारा बच्चो के उम्र और कक्षा के अनुसार डिजाईन और प्रकाशित किया जाता है। कौन से उम्र में कौन सा ज्ञान आवश्यक है ये ये विशेषग्य के द्वारा ही चयनित किया जाता जिसे बच्चे का मन भाषा के किताब में लगा रहे है। 

छोटे बच्चो को कार्टून के माध्यम से सही और गलत का पाठ भाषा के किताब में छपे रहते है जिसे पढने, लिखने और याद करने से सही गलत के ज्ञान का विकाश होता है। बच्चो के उम्र बढ़ने के साथ साथ कक्षा में भी उन्नति होती है। इसके अनुसार आगे के भाषा के किताब में ज्ञान का आयाम और समझदारी का दायरा बढाकर बच्चो में जीवन के प्रतेक पहलू को उजागर कर के शिक्षा में दायरा बढाकर बच्चो को ज्ञान कराया जाता है।  

 

जीवन के ज्ञान के आयाम में प्रकृति और जीवन के भूमिका का अध्ययन

बच्चो के उच्च कक्षा में जाने के साथ साथ उम्र के बढ़ते आयाम में शिक्षा में जरूरी के अनुसार विषय का चयन में गणित जिसे जोड़ने, घटाने, गुना और भाग करने के विभिन्न तरीके का विकाश कराया जाता है। जिससे बच्चे हिसाब किताब के मामले में भी होशियार और बुद्धिजीवी बने अंक गणित और रेखा गणित से विषय वास्तु के मापने समझने बनाने का अभ्यास कराया जाता है। जिससे बच्चे अपने मापन पद्धति में किसी भी प्रकार के खरीद फरोक्त में कमी महाश्सुश नहीं करे और हिसाब किताब सही से समझ सके। 

ऐसे ही विज्ञान और उसके तीन भाग जिव विज्ञानं, प्राणी विज्ञानं, भौतिकी विज्ञानं और रसायन विज्ञानं के जरिये विषय वस्तु के समझ और ज्ञान कराया जाता है। विषय वस्तु का ज्ञान से ही बच्चो में समझ का आयाम बढ़ता है। गुणधर्म प्रकृति स्वभाव, जीवित और निर्जीव प्रकृति का अध्यन भी इसी विषय इ होता है।प्राणी का ज्ञान से समझ में आता है। कौन से प्राणी खतरनाक और कौन से प्राणी फायदेमंद है? उसके स्वभाव और प्रकृति समझाया जाता है। ऐसे ही समाज में क्या हो रहा है? पौराणिक और वर्तमान में क्या अंतर है? विशिस्थ लोगोग ने क्या किये है? भोगोलिक प्रकृति क्या है? ये समझ शास्त्र में समझाया जाता है।   

  अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति 

अनजान बृक्ष भी यही पर सीता रपटन, मंडला, मध्य प्रदेश में है. जिस पेड़ के निचे वाल्मीकि जी तपस्या किये थे और रामायण की रचना भी इसी पेड़ के निचे वाल्मीकि जी किये थे

  

सीता रपटन मध्य प्रदेश के मंडला जिला में स्थित है.

पौराणिक काल में सीता रपटन का नाम नाम रामगढ था. 

जो १९५१ में नाम बदल कर डिण्डोरी कर दिया गया.

बाद में इसका नाम फिर से बदल कर १९८८ में मंडला कर दिया गया.

अब यह जिला माडला के नाम से ही प्रसिद्ध है. सीता रपटन मंडला जिले में ही पड़ता है.

वाल्मीकि ऋषि का आश्रम भी इसी जगह सीता रपटन में है. 

जहा भगवन राम की पत्नी सीता को महल से निष्कासित कर दिया गया. 

सीता जी वनवास के दौरान वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में रही थी.

वनवास मे  सीता जी ने दो पुत्र लव और कुस को यही जन्म दिया था.

 

अनजान बृक्ष भी यही पर मंडला, मध्य प्रदेश में है. 

जिस पेड़ के निचे वाल्मीकि जी तपस्या किये थे.

रामायण की रचना भी इसी पेड़ के निचे वाल्मीकि जी किये थे.

इस पेड़ के बारे में आज तक कोई भी वनस्पति वैज्ञानिक कुछ भी पता नहीं लगा सके है। 

अनजान कौन से प्रजाति का  पेड़ है ये कोई नहीं जनता है?

यहाँ पर ऐसे दो पेड़ है जो आमने सामने है. एक पेड़ के निचे सीता जी की कुटिया बना हुआ है.

जो छोटा गुफा जैसा है. दुसरे पेड़ सामने है. इसमे ३ बार पतझड़ आता है.

नया पत्ता कब आ जाता है पता नहीं चलता है.

झड़ने वाले पत्ते कहाँ उड़ जाते है ये बी पता नहीं है. पत्ते झाड़ते हुए आज तक किसी ने नहीं देखा है.   

एक पहाड़ है जो बेहद ऊपर से निचे फिसलने वाला है.

जैसा बच्चे के लिए उद्यान में खेलने के लिए बना होता है, जिसपर बच्चे चढ़कर बाद में फिसलकर निचे आते है.

जो काले पत्थर का है. थोड़ी खुरदुरी पर कोई भी इसपर फिसल कर निचे आ सकता है.

बच्चे और बड़े बड़े मौज से इस प्राकृतिक रपटन पर ऊपर से फिसलकर निचे आते है.

पौराणिक समय में एक बार सीता जी पानी भरने के दौरान इसी जगह से मटका लेकर पीछे फिसल गई थी जिससे इसका नाम सीता रपटन पड़ा है.    

वाल्मीकि ऋषि का आश्रम मध्य प्रदेश मांडला मे सीता रपटन 

अनजान बाबा के वृक्ष पर रविवार और मंगलवार को रात को १२ बजे से भीड़ लगने सुरू हो जाते है जो सुबह तक लोग बृक्ष के पत्ते के दूध लेने के लिए आते है

 अनजान बाबा और अनजान बाबा वृक्ष का रहस्य

रहस्यमय अनजान बाबा के वृक्ष के पत्ते से दूध से सभी प्रकार के चार्म रोग, कुष्ट रोग और सफ़ेद दाग आदि एक सप्ताह में ठीक हो जाते है.

अनजान बाबा का वृक्ष कानपुर के दौलतपुर और गोपाल पुर के बच स्तिथ अनजान बाबा का पेड़ आज कल बेहद चर्चा में है.

कुछ समय पहले राउतपुर के रहने वाली दो विकलांग लड़की में से एक ने कुछ सपना देखा.

तब उन्होंने अपने पिता जी को बुलाकर रात में ही पेड़ के पास आये.

पत्ते के दूध का उपयोग किया जिससे एक सप्ताह में उनका विकलांगता दूर हो गया.

तब उस परिवार ने आकर वहा पूजा अर्चन किये और झंडा लगा दिए.

 

अभी तक इस बात का पता नहीं चला है की ये अंजान वृक्ष कौन सा है.

काफी जाच पड़ताल के बाद भी अभी तक वृक्ष का रहस्य बरक़रार है.

दिन में वृक्ष के पत्ते से कम दूध निकलते है और रात में ज्यादा दूध निकलते है.

अनजान बाबा के वृक्ष पर रविवार और मंगलवार को रात को १२ बजे से भीड़ लगने सुरू हो जाते है.

जो सुबह तक लोग वृक्ष के पत्ते के दूध लेने के लिए आते है.

दूध से सभी प्रकार के चार्म रोग, कुष्ट रोग और सफ़ेद दाग आदि एक सप्ताह में ठीक हो जाते है.

 

अनजान बाबा का रहस्य ये है की बहूत दिन पहले कोई बाबा इस बृक्ष के पास आये थे.

काफी दिन तक इस बृक्ष के निचे रहे और बाद में वह से गायब हो गए.

फिर दोबारा किसी को नहीं मिले. अनजान बाबा बारे में कोई कुछ नहीं जनता है.

 

ये बात कहाँ तक सत्य है कह नहीं सकते है लोगो से सुना गया है अन्धविश्वास भी हो सकता है.

ये घटना सत्य है पर पर पत्ते के उपचार से ये सब हो रहा है इसकी पुस्ति किसी ने नहीं है।

विश्वास से सब कुछ होता है परिवर्तन भी आता है पर इसकी आधिकारिक पुस्ति नहीं हुई है।

पत्ते के दूध से ये सब हुआ है इसे कोई प्रमाणित नहीं किया है।

अंधविसवास के होड मे हो सकता है पर वास्तविकता मे ऐसा कुछ नहीं है।

अध्ययन के परिणामस्वरूप विद्यार्थी में किस प्रकार का ज्ञान बढ़ रहा है? किस क्षमता का विकाश हो रहा है? विषय को याद रखने की क्षमता कितना है?

 छात्रों की क्षमता को मापने के लिए ज्ञान और प्रदर्शन महत्वपूर्ण हैं

 

स्कूली शिक्षा छात्रो के अध्ययन से निर्मित ज्ञान के क्षमता को प्रदर्शन के माध्यम से मापना महत्वपूर्ण है.

छात्र विद्यालय में पढ़ते है. समझ और ज्ञान से अध्ययन बढ़ता है.

अध्ययन के परिणामस्वरूप विद्यार्थी में किस प्रकार का ज्ञान बढ़ रहा है?

किस क्षमता का विकाश हो रहा है?

विषय को याद रखने की क्षमता कितना है?

पाठ्य पुस्तक के अन्धरुनी शब्द कहाँ तक याद रहता है?

लेखन में साफ सफाई और सुन्दर लिखावट में कितना विकाश हो रहा है?

इन सभी कारणों का अध्ययन करने के लिए और स्कूली शिक्षा में विकाश करने के लिए स्कूल समय समय पर टेस्ट परीक्षा लेते रहते है.

विद्यार्थी लम्बे समय तक पुस्तक के ज्ञान को कहाँ तक याद रखता है?

इसके लिए वार्षिक और अर्धवार्षिक परीक्षा साल में ६ महीने पर होता है.

इसमे उन्नति होने पर ही आगे के कक्षा में पारित किया जाता है.

जिससे विद्यार्थी के आगे के शिक्षा का विकाश कराया जाता है. 

 

स्कूली शिक्षा न सिर्फ पाठ्य पुस्तक के ज्ञान को बढ़ता है जब की जीवन के विकाश में भी शिक्षा का ज्ञान काम में आता है.

शिक्षा हर तरह से जीवन के वास्तविक ज्ञान को विकशित करने के लिए ही होता है. विषय वस्तु के समझ और उसके गुणधर्म से वस्तु के प्रति ज्ञान जागरूक होता है. जीवन में विकाश में विषय वस्तु बहूत महत्पूर्ण है. शिक्षा में कमी है तो विषय और वस्तु के समझ में अंतर बहूत होता है. स्कूली शिक्षा का आयाम ज्ञानी और विद्वान के जरिये बढाया जाता है. जिनको मनुष्य जीवन के बारे में सही और गलत क्या है? क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए? ये सभी ज्ञान और समझ पाठ्य पुस्तक में दर्ज किया जाता है, जिसे समय समय पर अध्याय के माध्यम से विद्यार्थी को समझाया जाता है.

 

स्कूली शिक्षा मे समय समय पर होने वाले परीक्षा के माध्यम.

विद्यार्थी अपने प्रश्न पत्र का जवाब अपने उत्तर पुस्तक में कैसे प्रदर्शित करते है? विषय के ज्ञान से वो क्या समझे है? कैसे लिखते है? लिखाई में खुबशुरती कैसा है? शिक्षा के मापदंड को ध्यान में रखकर अध्यापक के द्वारा उचित और सही अंक देकर सभी विषय का तुलनात्मक अध्ययन से विद्यार्थी के क्षमता को विद्यार्थी के प्रदर्शन के माध्यम से परखा जाता है. विद्यार्थी के शिक्षा के ज्ञान का प्रदर्शन इसलिए अत्यंत महत्वपूर्ण है विद्यार्थी के ज्ञान और उसके परिणाम का भी अध्यन प्रदर्शन से होता है.

  स्कूली शिक्षा 

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