प्रकाश पर्व धार्मिक और ऐतिहासिक विषय है, जो गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस और सिख धर्म की मूल शिक्षाओं से जुड़ा हुआ है। जिसमें इतिहास, महत्व, परंपराएं, आध्यात्मिक दृष्टिकोण, सामाजिक संदेश, और आधुनिक युग में इसका प्रभाव शामिल है।
प्रकाश पर्व एक आध्यात्मिक उजास का उत्सव
प्रस्तावना
भारत की भूमि विविधता और अध्यात्म से ओतप्रोत है। यहाँ हर पर्व का अपना विशिष्ट संदेश और महत्त्व है। इन्हीं पावन उत्सवों में से एक है “प्रकाश पर्व”, जिसे “गुरु नानक जयंती” या “गुरुपर्व” भी कहा जाता है।
यह दिन सिख धर्म के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व केवल सिखों का नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए ज्ञान, समानता, और प्रेम का प्रतीक है।
गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन हुआ था। अतः हर वर्ष यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस दिन को “प्रकाश उत्सव” इसलिए कहा जाता है क्योंकि गुरु नानक जी का जन्म मानो संसार में आध्यात्मिक प्रकाश का अवतरण था।
गुरु नानक देव जी का जीवन परिचय
प्रारंभिक जीवन
गुरु नानक देव जी का जन्म सन् 1469 ई. में तलवंडी नामक स्थान पर हुआ, जिसे आज ननकाना साहिब कहा जाता है और यह अब पाकिस्तान में स्थित है।
उनके पिता का नाम मेहता कालू चंद तथा माता का नाम माता तृप्ता था। बचपन से ही नानक देव जी असाधारण बुद्धिमान, संवेदनशील और ईश्वर-भक्त थे।
बाल्यावस्था में ही उन्होंने संसार की भौतिकता से ऊपर उठकर सत्य और प्रेम की राह अपनाई।
वे कहा करते थे
“ना कोई हिंदू, ना कोई मुसलमान, सब मनुष्य ईश्वर की संतान हैं।”
यह वाक्य ही उनके जीवन दर्शन का सार है समानता, एकता और प्रेम।
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ
गुरु नानक देव जी ने धर्म को कर्म से जोड़ा। उन्होंने कहा कि केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि सच्चाई, परिश्रम और सेवा ही सच्चा धर्म है।
उनकी मुख्य शिक्षाओं को “तीन स्तंभों” के रूप में समझा जाता है
-
नाम जपो (ईश्वर का स्मरण)
सच्चे मन से परमात्मा का नाम जपना और जीवन को आध्यात्मिक बनाना। -
किरत करो (ईमानदारी से परिश्रम करो)
किसी का शोषण किए बिना अपनी जीविका चलाना। -
वंड छको (बाँटकर खाना)
समाज में समानता और करुणा की भावना रखना, और जरूरतमंदों की सहायता करना।
इसके साथ ही उन्होंने “एक ओंकार सतनाम” का संदेश दिया अर्थात ईश्वर एक है, वह सर्वव्यापक और सत्य स्वरूप है।
प्रकाश पर्व का धार्मिक महत्त्व
यह दिन गुरु नानक देव जी के रूप में धरती पर आए ज्ञान और सत्य के प्रकाश का प्रतीक है।
इस दिन सिख श्रद्धालु सुबह से ही गुरुद्वारों में एकत्र होते हैं।
गुरु ग्रंथ साहिब का अखंड पाठ, कीर्तन, लंगर, और नगर कीर्तन इस पर्व के प्रमुख अंग हैं।
गुरुद्वारों को दीपों, मोमबत्तियों और फूलों से सजाया जाता है।
रात के समय दीपमालिका का दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है।
हर ओर प्रेम, भक्ति और एकता का वातावरण छा जाता है।
प्रकाश पर्व का इतिहास
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन में चारों दिशाओं में चार उदासियाँ (यात्राएँ) कीं।
उन्होंने भारत, तिब्बत, अफगानिस्तान, अरब, श्रीलंका और अनेक स्थानों पर जाकर सत्य, प्रेम और समानता का संदेश फैलाया।
उनकी शिक्षाओं से प्रेरित होकर अनेक लोगों ने जात-पात, ऊँच-नीच और धार्मिक अंधविश्वासों को त्याग दिया।
उनके विचारों ने भारत में सामाजिक सुधार और धार्मिक सहिष्णुता की नई धारा प्रवाहित की।
इसलिए जब उनका जन्म दिवस आता है, तो सिख समाज ही नहीं, हर धर्म के लोग इसे “प्रकाश पर्व” के रूप में मनाते हैं।
गुरुद्वारों में उत्सव की झलक
अखंड पाठ
गुरु नानक जयंती से दो दिन पहले से ही गुरु ग्रंथ साहिब का अखंड पाठ आरंभ होता है, जो 48 घंटे तक लगातार चलता है।
यह पाठ आध्यात्मिक वातावरण बनाता है और श्रद्धालुओं को गुरु वाणी से जोड़े रखता है।
नगर कीर्तन
अखंड पाठ के बाद नगर कीर्तन निकाला जाता है। इसमें पंच प्यारे (पाँच सिख प्रतिनिधि) गुरु ग्रंथ साहिब की पालकी लेकर नगर भ्रमण करते हैं।
संगत भजन-कीर्तन करती हुई चलती है, और लोग सड़कों के किनारे खड़े होकर श्रद्धापूर्वक झाँकी देखते हैं।
लंगर (सामूहिक भोजन)
प्रकाश पर्व की सबसे सुंदर परंपरा है लंगर जहाँ जात-पात, ऊँच-नीच का कोई भेद नहीं होता।
हर व्यक्ति, चाहे अमीर हो या गरीब, एक साथ बैठकर भोजन करता है। यह गुरु नानक की समानता की शिक्षा का सजीव उदाहरण है।
गुरु नानक जी के उपदेशों की आधुनिक प्रासंगिकता
आज का समाज भौतिकता, असमानता और संघर्ष से जूझ रहा है।
गुरु नानक देव जी के संदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने 550 वर्ष पूर्व थे।
उन्होंने कहा था
“विच दूनिया सेव कमाईए, तां दरगह बैठा पाईए।”
अर्थात् संसार में रहकर सेवा करना ही सच्चा धर्म है।
उनके विचार हमें सिखाते हैं कि धर्म का अर्थ पूजा या कर्मकांड नहीं, बल्कि मानवता की सेवा है।
प्रकाश पर्व और भारतीय संस्कृति
भारत में हर धर्म का एक उद्देश्य है अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाना।
गुरु नानक देव जी ने भी यही कार्य किया।
उन्होंने लोगों को सिखाया कि सच्चा ईश्वर हमारे भीतर है और हमें अपने मन को निर्मल बनाना चाहिए।
प्रकाश पर्व केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरण का पर्व है।
यह हमें आत्मा के भीतर बसे ईश्वर का अनुभव कराता है।
प्रकाश पर्व के प्रतीक
- दीपक (प्रकाश) अज्ञान के अंधकार को दूर करने का प्रतीक।
- कीर्तन आत्मा को शुद्ध करने वाला संगीत।
- लंगर सामाजिक समानता का प्रतीक।
- सेवा (संगत) करुणा और सहयोग का प्रतीक।
- एक ओंकार ब्रह्म का अद्वितीय स्वरूप।
गुरु नानक जी के कुछ प्रसिद्ध विचार
- “ईश्वर एक है, वही सत्य है।”
- “सच्चा व्यापारी वही है जो सच्चाई का व्यापार करे।”
- “जो दूसरों के दुख को समझे, वही सच्चा मनुष्य है।”
- “बिना प्रेम के ईश्वर प्राप्त नहीं हो सकता।”
- “मनुष्य का असली धर्म है सेवा, करुणा और सत्य।”
प्रकाश पर्व के सामाजिक संदेश
- समानता का संदेश: सभी मनुष्य समान हैं।
- नारी सम्मान: गुरु नानक जी ने कहा
“सो क्यों मंदा आखिए, जित जन्मे राजान।”
अर्थात स्त्री को कभी हीन नहीं कहना चाहिए, क्योंकि उसी के गर्भ से राजा जन्म लेते हैं। - भाईचारा: उन्होंने प्रेम और एकता का मार्ग दिखाया।
- श्रम की गरिमा: हर काम ईश्वर की पूजा है।
प्रकाश पर्व और पर्यावरण
गुरु नानक जी प्रकृति को ईश्वर का रूप मानते थे।
उनका कथन है
“पवण गुरु, पानी पिता, माता धरत महत।”
अर्थात् हवा गुरु है, पानी पिता है और धरती माता है।
इससे वे हमें पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हैं।
आज जब पृथ्वी प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से जूझ रही है,
उनकी यह वाणी हमें प्रकृति के प्रति श्रद्धा और जिम्मेदारी का भाव देती है।
दुनिया भर में प्रकाश पर्व का उत्सव
भारत ही नहीं, बल्कि ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, मलेशिया, दुबई जैसे देशों में भी सिख समुदाय बड़े उत्साह से प्रकाश पर्व मनाता है।
गुरुद्वारों में कीर्तन दरबार आयोजित किए जाते हैं, और मानवता की सेवा के लिए विशेष अभियान चलाए जाते हैं।
यह दिन अब एक वैश्विक भाईचारे का उत्सव बन चुका है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्त्व
गुरु नानक देव जी का जीवन यह सिखाता है कि सच्चा प्रकाश भीतर से आता है।
दीप जलाना प्रतीक है पर वास्तविक प्रकाश है ज्ञान और प्रेम का उजाला।
प्रकाश पर्व हमें याद दिलाता है कि हमें अपने भीतर के अंधकार जैसे घृणा, ईर्ष्या, लोभ को मिटाकर सच्चे आत्मप्रकाश को जगाना चाहिए।
निष्कर्ष
प्रकाश पर्व केवल गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस का उत्सव नहीं, बल्कि मानवता के पुनर्जागरण का प्रतीक है।
यह हमें सिखाता है
“जहाँ प्रेम है, वहीं परमात्मा है।”
गुरु नानक देव जी का जीवन और उनके उपदेश हमें आज भी दिशा दिखाते हैं कि सच्चा धर्म है
सत्य बोलना, परिश्रम करना, और सबके साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करना।
इस प्रकार प्रकाश पर्व केवल दीयों का नहीं, बल्कि मानव आत्मा के उजाले का पर्व है
जो हर वर्ष हमें याद दिलाता है कि अंधकार चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो,
प्रकाश की एक किरण सब कुछ बदल सकती है।
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