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Wednesday, November 5, 2025

कार्तिक पूर्णिमा, गंगा स्नान का महत्व, पौराणिक संदर्भ, ऐतिहासिक दृष्टिकोण, वैज्ञानिक आधार और समाजिक प्रभाव।

कार्तिक पूर्णिमा गंगा स्नान धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का प्रतीक है। कार्तिक पूर्णिमा, गंगा स्नान का महत्व, पौराणिक संदर्भ, ऐतिहासिक दृष्टिकोण, वैज्ञानिक आधार और समाजिक प्रभाव।



कार्तिक पूर्णिमा और गंगा स्नान : एक विस्तृत धार्मिक एवं सांस्कृतिक विवेचन

भूमिका

भारत त्योहारों का देश है, जहाँ हर पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन जीने की प्रेरणा है। इन्हीं पर्वों में से एक है  कार्तिक पूर्णिमा
यह दिन हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को आता है, जिसे देव दीपावली, गुरु पर्व और गंगा स्नान पर्व के रूप में भी जाना जाता है।
इस दिन गंगा स्नान करने का अत्यधिक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बताया गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन किया गया स्नान, दान, दीपदान और व्रत हजारों यज्ञों के फल के समान होता है।

कार्तिक पूर्णिमा का समय और खगोलीय स्थिति

कार्तिक पूर्णिमा वह तिथि है जब चंद्रमा अपनी पूर्ण अवस्था में होता है और सूर्य तुला राशि में स्थित रहता है।
चंद्रमा की पूर्णता का अर्थ है ऊर्जा का उत्कर्ष, और यह वही समय है जब जल तत्व की शक्ति अपने चरम पर होती है। गंगा जैसी दिव्य नदी में स्नान करने से मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा तीनों की शुद्धि होती है।

2025 में कार्तिक पूर्णिमा 5 नवंबर को पड़ेगी। इस दिन गंगा स्नान और दीपदान का मुहूर्त सायं 5:15 बजे से 7:50 बजे तक शुभ रहेगा।

गंगा का धार्मिक महत्त्व

गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक चेतना की धारा है।
पुराणों में गंगा को “त्रिपथगा” कहा गया है — अर्थात जो स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल तीनों लोकों में प्रवाहित होती है।
गंगा का जल अमृत के समान माना गया है। इसका स्पर्श मात्र ही पापों का नाश करता है, ऐसा विश्वास है।

पद्मपुराण और स्कंदपुराण में कहा गया है कि —

“कार्तिके पूर्णिमायां तु गङ्गायां यः स्नानं करोति, स सर्वपापैः विमुक्तो ब्रह्मलोकं गच्छति।”
अर्थात जो व्यक्ति कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा में स्नान करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर ब्रह्मलोक की प्राप्ति करता है।

गंगा स्नान का पौराणिक संदर्भ

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तप किया, तब भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया।
गंगा का यह अवतरण कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ माना जाता है। इसी कारण इस दिन गंगा में स्नान का विशेष महत्त्व है।

एक अन्य कथा के अनुसार, इस दिन देवताओं ने असुरों पर विजय प्राप्त की थी, इसलिए इसे देव दीपावली भी कहा जाता है। गंगा के घाटों पर दीप जलाकर देवताओं का स्वागत किया जाता है।

गंगा स्नान का धार्मिक विधान

कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र नदियों  विशेषकर गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा या कावेरी में स्नान करना चाहिए।
यदि ये नदियाँ सुलभ न हों, तो घर में ही गंगाजल मिलाकर स्नान किया जा सकता है।

स्नान की विधि:

  1. स्नान से पहले भगवान विष्णु, माता गंगा और सूर्यदेव का स्मरण करें।
  2. जल में डुबकी लगाते समय यह मंत्र बोलें 

    “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः।”

  3. स्नान के बाद तिल, चावल, दान-दक्षिणा और दीपदान करें।
  4. तुलसी के पौधे के नीचे दीप जलाना अत्यंत शुभ माना गया है।
  5. रात्रि में दीपदान कर गंगा आरती का दर्शन करें।

गंगा स्नान का आध्यात्मिक महत्व

गंगा स्नान केवल शारीरिक स्वच्छता नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि का प्रतीक है।
गंगा को “मुक्तिदायिनी” कहा गया है, क्योंकि यह मनुष्य के भीतर के नकारात्मक विचारों, पापों और अहंकार को धो देती है।
स्नान के समय की गई प्रार्थना व्यक्ति को संस्कारों से जोड़ती है और जीवन में नई ऊर्जा का संचार करती है।

देव दीपावली और गंगा आरती का दृश्य

वाराणसी, प्रयागराज, हरिद्वार, ऋषिकेश, पटना और गया जैसे तीर्थस्थलों पर इस दिन का दृश्य अद्भुत होता है।
गंगा घाटों पर लाखों दीप जलते हैं, जिनकी झिलमिल रोशनी पानी में प्रतिबिंबित होकर स्वर्गिक आभा का निर्माण करती है।
वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर होने वाली गंगा आरती विश्वप्रसिद्ध है।
देवताओं के स्वागत के रूप में दीप जलाने की यह परंपरा हजारों वर्ष पुरानी है।

दान और व्रत का महत्व

कार्तिक पूर्णिमा के दिन अन्नदान, वस्त्रदान, गौदान, दीपदान और तिलदान करने का विशेष पुण्य बताया गया है।
शास्त्रों में कहा गया है कि कार्तिक मास में किया गया दान अक्षय फल प्रदान करता है।
इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु तथा शिव की पूजा करने से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट होते हैं।

गुरु नानक जयंती का समन्वय

बहुत बार कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक देव जी की जयंती भी पड़ती है।
इसलिए यह दिन हिंदू और सिख दोनों परंपराओं के लिए अत्यंत पवित्र है।
गुरुद्वारों में दीवाली जैसी सजावट, भजन-कीर्तन और लंगर का आयोजन होता है।
यह भारत की धार्मिक एकता और समरसता का प्रतीक है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गंगा स्नान

गंगा का जल केवल पवित्र ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी अद्भुत है।
अनुसंधानों में पाया गया है कि गंगा के जल में ऐसे जीवाणुनाशक तत्व हैं जो लंबे समय तक पानी को शुद्ध रखते हैं।
स्नान के दौरान व्यक्ति ठंडे जल के संपर्क में आता है, जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
साथ ही सामूहिक स्नान से समाज में समानता, एकता और भाईचारे का भाव विकसित होता है।

सांस्कृतिक पक्ष

कार्तिक पूर्णिमा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव भी है।
इस दिन देशभर में मेला, भजन संध्या, दीपोत्सव, सांस्कृतिक कार्यक्रम और नौका विहार का आयोजन होता है।
वाराणसी की देव दीपावली, पुष्कर मेला, तिरुपति ब्रह्मोत्सव, हरिद्वार की गंगा आरती  ये सभी इस पर्व के जीवंत प्रतीक हैं।

पुष्कर मेला और कार्तिक स्नान

राजस्थान के पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाला मेला विश्व प्रसिद्ध है।
यहाँ लाखों श्रद्धालु सरोवर में स्नान करते हैं और भगवान ब्रह्मा के मंदिर में पूजा करते हैं।
कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने इसी दिन पुष्कर में यज्ञ किया था, इसलिए इसे ब्रह्मा स्नान दिवस भी कहा जाता है।

गंगा स्नान के आधुनिक आयाम

आज के युग में गंगा स्नान केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि पर्यावरण जागरूकता का माध्यम बनता जा रहा है।
गंगा की स्वच्छता, जल संरक्षण, और नदी की पारिस्थितिकी के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है।
सरकार द्वारा चलाए जा रहे “नमामि गंगे अभियान” ने इस दिशा में नई चेतना का संचार किया है।

भक्तों की आस्था और अनुभव

हर साल करोड़ों श्रद्धालु गंगा तटों पर इकट्ठा होते हैं।
उनके चेहरों पर दिव्यता की आभा झलकती है।
गंगा स्नान के बाद लोग कहते हैं 

“ऐसा लगता है जैसे आत्मा ने नया जन्म लिया हो।”

यह अनुभूति केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि मन की गहराई तक पहुँचने वाला अनुभव है।

गंगा स्नान और योगिक दृष्टिकोण

योग के दृष्टिकोण से गंगा स्नान मन की प्राणशक्ति को शुद्ध करने का अभ्यास है।
जल तत्व शरीर के पंचतत्वों में से एक प्रमुख तत्व है, और गंगा में स्नान कर व्यक्ति अपने भीतर के जल तत्व को संतुलित करता है।
इससे मानसिक स्थिरता, सकारात्मकता और शांति का अनुभव होता है।

गंगा स्नान और मोक्ष सिद्धांत

हिंदू धर्म में माना गया है कि जो व्यक्ति गंगा स्नान कर, गंगा तट पर दीपदान करता है, वह मोक्ष को प्राप्त करता है।
वाराणसी, हरिद्वार, गया, प्रयागराज जैसे तीर्थस्थल मोक्षदायिनी भूमि कहलाते हैं।
गंगा के तट पर प्राण त्यागना तो सीधा मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना गया है।

निष्कर्ष

कार्तिक पूर्णिमा और गंगा स्नान का यह पर्व केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि मानव और प्रकृति के अद्भुत मिलन का प्रतीक है।
यह पर्व हमें सिखाता है कि शुद्धता केवल शरीर की नहीं, बल्कि विचारों की भी आवश्यक है।
गंगा की निर्मल धारा हमें यही संदेश देती है 

“जियो, पर निर्मलता के साथ; बहो, पर जीवन को सींचते हुए।”

इस दिन गंगा स्नान कर हम केवल परंपरा नहीं निभाते, बल्कि अपनी आध्यात्मिक यात्रा को आगे बढ़ाते हैं।
यह पर्व हर व्यक्ति को अपने भीतर झाँकने, जीवन को पवित्र बनाने और समाज में प्रकाश फैलाने की प्रेरणा देता है।

प्रेरक वाक्य

“गंगा केवल नदी नहीं, माँ है  जो पापों को धोती है, और आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाती है।”
“कार्तिक पूर्णिमा का स्नान  शरीर की नहीं, आत्मा की सफाई का पर्व है।”


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