अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और भूमिका मे कार्यक्षेत्र में मानव का विकाश
अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और भूमिका मे ज्ञान का मुख्य पहलू है।
स्वयं को अपने नियम के तहत चलाना होता है।
जो मनुष्य अपने जीवन में कुछ नियम का पालन करता है।
जिसके अनुसार अपना दिनचर्या निर्धारित करता है।
उसको अनुशासनात्मक ज्ञान कहते है।
स्वयं के ऊपर अनुशासन कर के सुबह जल्दी उठता है, जो जरूरी कार्य है, उसको पूरा कर के अपने काम धाम में लग जाता है।
जो भी कार्य करता है स्वयं के बनाये हुए नियम से ही करता है।
भले वो नियन दूसरो को अच्छा लगे या नहीं लगे पर अपने नियम पर चलना ही ज्ञान है।
अनुशासनात्मक ज्ञान के तहत स्वयं का नियम सकारात्मक होना चाहिए।
तभी अनुशासन बरक़रार रहता है।
नियम सकारात्मक होगा तो सब अच्छा और समय पर होगा।
सुबह जल्दी उतना। स्नान आदि करके दिनचर्या करना।
नास्ता समय पर करना।
अपने काम पर समय पर जाना।
दोपहर का भोजन समय पर खाना।
अपने काम काज को नियम के तहत कायदे से करना।
लोगो से सकारात्मक हो कर मिलना।
अच्छा व्यावहार करना।
माता पिता की सेवा करना।
बच्चो के पढाई लिखाई का ख्याल रखना।
घर में सबके आदर करना।
सभी से प्यार से बात करना।
बड़े बुजुर्गो को आदर भाव देना। मन सम्मान देना।
मेहनतकश बने रहना।
रात का भोजन समय से खाना।
समय से रात को सोना।
ताकि दुसरे दिन फिर नए दिन की सुरुआत करना होता है।
अनुशासनात्मक ज्ञान के तहत ऐसा दिनचर्या रख सकते है।
अनुशासनात्मक ज्ञान का अर्थ में प्रकृति के नियम बहूत अटल होते जाते है
जिसको कोई परिवर्तन नहीं कर सकता है।
समय समय पर प्रकृति में परिवर्तन स्वयं होता है।
पर जल्दी प्रकृति में परिवर्तन नहीं होता है।
कुछ परिवर्तन होता है।
जैसे शर्दी के बाद गर्मी।
गर्मी के बाद बरसात।
फिर बरसात के बाद फिर शर्दी और दिन-रात ये मुख्या प्रकृति के परिवर्तन है।
पर ये भी प्रकृति के नियम ही है।
जो सबको संतुलित कर के रखता है।
वैसे ही मनुष्य के नियम मनुष्य को संतुलित और संघठित रखता है।
संगठन और संतुलन में किसी परिवर्तन की आवश्यकता नहीं होता है। मनुष्य के अन्दर सकारात्मक ज्ञान होगा तो ये स्वयं ही चरितार्थ होगा। चुकी मनुष्य को ज्ञान ही नियम बनाने के लिए प्रेरित करता है। जब प्रकृति के नियम संतुलित है।मनुष्य के भी नियन संतुलित हो कर संघठित होने चाहिए। तभी मनुष्य का जीवन चलेगा। मनुष्य के जीवन के बहूत सरे आयाम होते है। समस्त आयाम को संतुलित होकर संघठित होना ही एक सफल ब्यक्ति की पहचान है।
कार्यक्षेत्र में अनुशासन बहूत जरूरी आयाम रखता है
अपने जीवन में अनुशासित होने के साथ साथ प्रकृति के नियम के अनुसार आगे बढ़ना। जिसके जरिये ब्यक्ति उपार्जन करता है। कमाता खाता है। जिसके जरिये अपने परिवार का भरण पोसन करता है। कार्यक्षेत्र में कामगार और कारीगर को काम धाम देता है। जीवन में अनुशासन के साथ साथ कार्यक्षेत्र में भी अनुशासन होना बहूत अनिवार्य है। जब तक कार्यक्षेत्र में अनुशासन नहीं होगा। तब तक कार्यक्षेत्र में सफलता नहीं मिलेगा।
अनुशासित ब्यक्ति का व्यावहार संतुलित, व्यवस्थित और संघठित होता है। जिससे कार्यक्षेत्र में संपर्क ज्यादा बनता है। बात विचार संतुलित होने से संपर्क करने वाले को अच्छा लगता है। जिससे संपर्क में आने वाला ब्यक्ति आकर्षित होता है। प्रतिष्ठान में अछे लोग जुड़ते है। जिससे कार्यक्षेत्र का विकाश और उन्नति होता है। कारीगर और कामगार के बिच संतुलन बना रहता है। सबके हित का ख्याल रखा जाता है। जिससे कारीगर और कामगार अछे से अपना काम मन लगाकर करते है। अनुशासनात्मक ज्ञान कार्यक्षेत्र में इसलिए जरूरी है। तब जा कर अनुशासित ब्यक्ति सफल और विकशित होता है।
अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति से जीवन प्रभावित होता है
अनुशासनात्मक किसी बस्तु को बिलकुल उसी रूप में पहचानना ही ज्ञान है। वह किस रूप में है? कैसा दिख रहा है? उसके गुन क्या है? ये अनुशासनात्मक ज्ञान के पहलू है। इसी प्रकार जीवन को भी अपने उसी रूप में पहचानना चाहिए। हम अपने जीवन में क्या कर रहे है? क्या सोच रहे है? अपना जीवन कैसा है? क्या जीवन कल्पना के अनुरूप चल रहा है या किसी और दिशा में आगे बढ़ रहा है? उस और ध्यान दे कर जीवन अपने सही मार्ग में अनुशासन के अनुरूप ढाल कर आगे बढ़ना ही वास्तविक जीवन है।
स्कूली विषय में अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और भूमिका हिंदी भाषा में
विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्व, अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और भूमिका के द्वारा विद्यार्थी के अन्दर ज्ञान का विकाश स्कूल के विषय बच्चो के ज्ञान के विकाश के लिए होता है। जिससे बुद्धि सक्रीय हो और एकाग्रता से किसी कार्य के करने के लिए मन लगे। विषय के ज्ञान में जीवन के उपलब्धि के रहस्य छुपे रहते है।जिसे पढ़कर और शिक्षक से समझकर जीवन का गायन भी बढ़ता है।
हिंदी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषा के विषय में भाषा के सिखने के साथ साथ जीवन के उतार-चढ़ाव, सुख-दुःख, उन्नति-अवनिति का ज्ञान कहानी के माध्यम से सिखाया जाता है। किसी भी प्रकार के माहौल में जीवन यापन कैसे होता है? सभी शब्द भेद भाषा के किताब के माध्यम से बच्चे को बचपन में सिखाया जाता है। जिससे आगे के जीवन में आने वाले परेशानी दुःख तकलीफ में कैसे जीना होता है इन सभी बात का ज्ञान भाषा के किताब से ही शिक्षक के द्वारा कराया जाता है।
वास्तविक जीवन के ज्ञान में जीवन के भूमिका का बहूत बड़ा योगदान है
बचपन से बच्चो में अनुशासन के प्रति सजगता का अभ्यास माता पिता बड़े बुजुर्ग और अध्यापक के द्वारा कराया जाता है। जिसे बच्चे का मन कही और किसी अनुचित विषय में न लग जाये। इन सभी बातो को उजागर करने के लिए। बच्चे के भाषा के किताब का चयन कर के, शिक्षा विभाग के द्वारा बच्चो के उम्र और कक्षा के अनुसार डिजाईन और प्रकाशित किया जाता है। कौन से उम्र में कौन सा ज्ञान आवश्यक है ये ये विशेषग्य के द्वारा ही चयनित किया जाता जिसे बच्चे का मन भाषा के किताब में लगा रहे है।
छोटे बच्चो को कार्टून के माध्यम से सही और गलत का पाठ भाषा के किताब में छपे रहते है जिसे पढने, लिखने और याद करने से सही गलत के ज्ञान का विकाश होता है। बच्चो के उम्र बढ़ने के साथ साथ कक्षा में भी उन्नति होती है। इसके अनुसार आगे के भाषा के किताब में ज्ञान का आयाम और समझदारी का दायरा बढाकर बच्चो में जीवन के प्रतेक पहलू को उजागर कर के शिक्षा में दायरा बढाकर बच्चो को ज्ञान कराया जाता है।
जीवन के ज्ञान के आयाम में प्रकृति और जीवन के भूमिका का अध्ययन
बच्चो के उच्च कक्षा में जाने के साथ साथ उम्र के बढ़ते आयाम में शिक्षा में जरूरी के अनुसार विषय का चयन में गणित जिसे जोड़ने, घटाने, गुना और भाग करने के विभिन्न तरीके का विकाश कराया जाता है। जिससे बच्चे हिसाब किताब के मामले में भी होशियार और बुद्धिजीवी बने अंक गणित और रेखा गणित से विषय वास्तु के मापने समझने बनाने का अभ्यास कराया जाता है। जिससे बच्चे अपने मापन पद्धति में किसी भी प्रकार के खरीद फरोक्त में कमी महाश्सुश नहीं करे और हिसाब किताब सही से समझ सके।
ऐसे ही विज्ञान और उसके तीन भाग जिव विज्ञानं, प्राणी विज्ञानं, भौतिकी विज्ञानं और रसायन विज्ञानं के जरिये विषय वस्तु के समझ और ज्ञान कराया जाता है। विषय वस्तु का ज्ञान से ही बच्चो में समझ का आयाम बढ़ता है। गुणधर्म प्रकृति स्वभाव, जीवित और निर्जीव प्रकृति का अध्यन भी इसी विषय इ होता है।प्राणी का ज्ञान से समझ में आता है। कौन से प्राणी खतरनाक और कौन से प्राणी फायदेमंद है? उसके स्वभाव और प्रकृति समझाया जाता है। ऐसे ही समाज में क्या हो रहा है? पौराणिक और वर्तमान में क्या अंतर है? विशिस्थ लोगोग ने क्या किये है? भोगोलिक प्रकृति क्या है? ये समझ शास्त्र में समझाया जाता है।
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