देव दीपावली : दिव्यता का अद्भुत पर्व
प्रस्तावना
भारत की सांस्कृतिक परंपराएँ विश्वभर में अपनी आध्यात्मिकता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ प्रत्येक पर्व का गूढ़ अर्थ और पवित्र उद्देश्य होता है। ऐसा ही एक दिव्य पर्व है — देव दीपावली, जिसे “देवों की दिवाली” कहा जाता है। यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जब मान्यता है कि देवता स्वर्गलोक से पृथ्वी पर उतरते हैं और गंगा तटों पर दीप जलाकर भगवान शिव की आराधना करते हैं।
वाराणसी — जिसे काशी कहा जाता है — में यह पर्व विशेष भव्यता से मनाया जाता है। गंगा के घाटों पर दीपों की श्रृंखला जगमगा उठती है, और लगता है जैसे स्वर्ग उतर आया हो। यह दृश्य न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह मानव और देवत्व के मिलन का पर्व है।
देव दीपावली का इतिहास और उत्पत्ति
देव दीपावली की उत्पत्ति पौराणिक काल से जुड़ी है।
पौराणिक कथा के अनुसार, त्रिपुरासुर नामक एक अत्याचारी दैत्य ने तीन पुर (नगर) बनाए थे — एक पृथ्वी पर, एक आकाश में और एक पाताल में। वह भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर अमर हो गया था। त्रिपुरासुर के अत्याचार से देवता और मनुष्य सब त्रस्त हो गए।
देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे त्रिपुरासुर का संहार करें। भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने अद्भुत पाशुपत अस्त्र से त्रिपुरासुर का वध किया।
उस दिन देवताओं ने आनंद मनाया और दीप जलाकर भगवान शिव की आराधना की। तभी से यह दिन देव दीपावली के रूप में मनाया जाने लगा।
त्रिपुरासुर वध की कथा
त्रिपुरासुर, तारकासुर का पुत्र था। उसके तीन नगर थे —
- सोनपुर (स्वर्णपुरी) – पृथ्वी पर
 - रजतपुर (रजतपुरी) – आकाश में
 - लोहपुर (लोहमयी) – पाताल में
 
वह इन नगरों में विचरण करता और अत्याचार करता था।
देवताओं ने ब्रह्मा जी से कहा — “हे प्रभु, यह असुर हमें नष्ट कर रहा है।”
ब्रह्मा जी ने कहा — “इसका वध केवल तब होगा जब तीनों पुर एक साथ सीध में आ जाएँ और तभी शिव का बाण छोड़ा जाए।”
युगों तक देवता उस क्षण की प्रतीक्षा करते रहे।
अंततः वह शुभ मुहूर्त कार्तिक पूर्णिमा के दिन आया। भगवान शिव ने अपने दिव्य रथ पर आरूढ़ होकर, भगवान विष्णु को सारथी बनाया और बाण छोड़ा।
तीनों पुर एक साथ आ गए, और एक ही बाण से वे जलकर भस्म हो गए।
देवताओं ने हर्षोल्लास से आकाश में दीप जलाए।
इसी दिन को देव दीपावली कहा गया — देवताओं की दीपावली।
देव दीपावली का आध्यात्मिक अर्थ
देव दीपावली केवल ऐतिहासिक घटना नहीं है, बल्कि यह आत्मज्ञान का भी प्रतीक है।
त्रिपुरासुर हमारे अहंकार, मोह और अज्ञान के तीन पुरों का प्रतीक है।
भगवान शिव जब त्रिपुरासुर का नाश करते हैं, तो वे वास्तव में हमारे भीतर के इन तीन विकारों को नष्ट करते हैं।
इस प्रकार देव दीपावली यह संदेश देती है कि —
“जब मनुष्य अपने भीतर के अंधकार को मिटाकर आत्मदीप प्रज्वलित करता है, तभी वह देवत्व को प्राप्त करता है।”
देव दीपावली का महत्व
देव दीपावली का महत्व बहुत व्यापक है। यह केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह धर्म, दर्शन, और जीवन के संतुलन का पर्व है।
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धार्मिक दृष्टि से:
यह दिन त्रिपुरासुर वध और भगवान शिव की विजय का प्रतीक है। इस दिन गंगा जी का पूजन विशेष फलदायी माना गया है। - 
आध्यात्मिक दृष्टि से:
यह दिन आत्मजागरण और प्रकाश का प्रतीक है। अंधकार (अज्ञान) से प्रकाश (ज्ञान) की ओर बढ़ने का आह्वान करता है। - 
सांस्कृतिक दृष्टि से:
वाराणसी में देव दीपावली का आयोजन विश्वभर के पर्यटकों को आकर्षित करता है। यह भारतीय संस्कृति की गहराई और भव्यता का परिचायक है। 
वाराणसी की देव दीपावली
यदि कोई व्यक्ति एक बार भी वाराणसी की देव दीपावली देख ले, तो वह जीवनभर उसे भूल नहीं पाता।
गंगा के दोनों तट — अस्सी घाट से लेकर राजघाट तक — लाखों दीपों से सजते हैं।
लहराती लहरों पर दीप तैरते हुए मानो तारों का समंदर बनाते हैं।
घाटों पर गंगा आरती होती है, और चारों ओर मंत्रोच्चार गूंजता है।
संध्या के समय जब सूर्य अस्त होता है, तब आरती आरंभ होती है।
सैकड़ों पुजारी एक साथ दीप थामे ‘गंगा आरती’ करते हैं।
हवा में घंटियों की ध्वनि, शंखनाद, और गंगाजल की ठंडी बूँदें —
यह सब मिलकर एक अलौकिक अनुभव देते हैं।
देव दीपावली की पूजा-विधि
🕯️ प्रातःकालीन पूजा:
- कार्तिक पूर्णिमा की सुबह स्नान से पूर्व गंगा, यमुना या किसी पवित्र नदी में स्नान किया जाता है।
 - सूर्य, विष्णु, और शिव का ध्यान कर तिल, दूध, और पुष्प अर्पित किए जाते हैं।
 - व्रत का संकल्प लेकर दिनभर पूजा की तैयारी की जाती है।
 
संध्या पूजा:
- सूर्यास्त के समय घरों, मंदिरों, घाटों और गंगा तटों पर दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं।
 - भगवान शिव की प्रतिमा या शिवलिंग का पंचामृत से अभिषेक किया जाता है।
 - ‘ॐ नमः शिवाय’ और ‘गंगा स्तोत्र’ का पाठ किया जाता है।
 - देवताओं के स्वागत हेतु दीपदान किया जाता है।
 - अंत में आरती कर प्रसाद वितरित किया जाता है।
 
गंगा स्नान और दीपदान का महत्व
देव दीपावली के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है।
पौराणिक मान्यता है कि इस दिन किया गया स्नान और दान असंख्य जन्मों के पापों का क्षालन करता है।
दीपदान को सबसे बड़ा पुण्य माना गया है —
“दीपो दानं त्रिलोकेषु, पापं हरति तद्रुजम्।”
अर्थात, दीपदान तीनों लोकों में पुण्य देने वाला और पाप हरने वाला होता है।
लोग गंगा में दीप प्रवाहित करते हैं, जिसे “दीपदान” कहा जाता है। यह दीप श्रद्धा और आशा का प्रतीक है।
देव दीपावली और अन्य पर्वों का संबंध
देव दीपावली का विशेष संबंध कार्तिक पूर्णिमा, गुरु नानक जयंती, और त्रिपुरारी पूर्णिमा से है।
इन तीनों अवसरों पर पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है।
- यदि यह दिन गुरुवार या सोमवार को पड़े, तो इसका फल अत्यंत शुभ माना जाता है।
 - इस दिन शिव, विष्णु, लक्ष्मी, गंगा, और तुलसी — पाँचों का पूजन करना चाहिए।
 - कार्तिक मास में स्नान और दीपदान करने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
 
ग्रंथों में उल्लेख
स्कंद पुराण, पद्म पुराण, और अग्नि पुराण में देव दीपावली का विस्तृत वर्णन मिलता है।
स्कंद पुराण में कहा गया है —
“कार्तिके पूर्णिमायां तु दीपोत्सवो महोत्सवः।
देवतानां च सर्वेषां, गंगायां दीपदानकम्॥”
अर्थात — कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा में दीपदान देवताओं के उत्सव के समान होता है।
लोक परंपरा और सांस्कृतिक रंग
भारत के कई राज्यों में देव दीपावली को अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है —
- उत्तर प्रदेश (वाराणसी): गंगा घाटों पर दीपोत्सव, आरती और सांस्कृतिक कार्यक्रम।
 - महाराष्ट्र: मंदिरों में दीपमालाएँ सजाई जाती हैं।
 - गुजरात: इसे त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
 - बिहार और झारखंड: घर-घर में दीप प्रज्वलन और भगवान शिव की पूजा।
 
देव दीपावली और मानव जीवन
देव दीपावली हमें सिखाती है कि प्रकाश केवल बाहर नहीं, भीतर भी जलना चाहिए।
जब हम अपने भीतर की नकारात्मकता को दूर करते हैं,
तभी सच्ची दिवाली — सच्ची देव दीपावली — हमारे जीवन में आती है।
“जब मन का अंधकार मिटे, तो देव दीपावली हर दिन है।”
वैज्ञानिक दृष्टि से देव दीपावली
यह पर्व केवल धार्मिक नहीं, वैज्ञानिक भी है।
कार्तिक मास में वातावरण परिवर्तन होता है — यह सर्दियों की शुरुआत होती है।
दीपक का प्रकाश और घी की सुगंध वातावरण को शुद्ध करते हैं।
दीपों से निकलने वाला धुआँ कीटाणुओं का नाश करता है।
इसलिए यह पर्व स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उपयोगी है।
देव दीपावली का आधुनिक स्वरूप
आज के युग में देव दीपावली केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं रही,
बल्कि यह विश्व स्तर पर सांस्कृतिक आकर्षण बन गई है।
वाराणसी की देव दीपावली में लाखों देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं।
गंगा तट पर लेजर शो, संगीत कार्यक्रम और पारंपरिक नृत्य आयोजित होते हैं।
सरकार और स्थानीय प्रशासन भी इसे ‘गंगा महोत्सव’ के रूप में मनाते हैं।
देव दीपावली से मिलने वाले जीवन संदेश
- अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ो।
 - अपने भीतर के त्रिपुरासुर — अहंकार, क्रोध, और लोभ — का नाश करो।
 - प्रकृति, देवता, और मानव के संतुलन को समझो।
 - प्रेम, शांति और सेवा की भावना रखो।
 - हर दिन को दीपोत्सव बनाओ।
 
उपसंहार
देव दीपावली एक ऐसा पर्व है जिसमें आस्था, ज्ञान, और आनंद तीनों का अद्भुत संगम होता है।
यह हमें याद दिलाता है कि जब तक हमारे भीतर भक्ति का दीप जलता रहेगा,
तब तक संसार में कभी अंधकार नहीं होगा।
“जहाँ दीप जलता है, वहाँ अंधकार टिक नहीं सकता।
जहाँ भक्ति बसती है, वहाँ भय नहीं होता।
जहाँ शिव हैं, वहाँ त्रिपुरासुर का अस्तित्व नहीं होता।”
देव दीपावली इस सत्य का उत्सव है —
कि प्रकाश ही परमात्मा है, और दीप ही जीवन है।
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